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संस्कृत केवल भाषा ही नहीं, बल्कि ज्ञान- विज्ञान, संस्कृति एवं संस्कार का भंडार- प्रो दयाशंकर तिवारी

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संस्कृत केवल भाषा ही नहीं, बल्कि ज्ञान- विज्ञान, संस्कृति एवं संस्कार का भंडार- प्रो दयाशंकर तिवारी

संस्कृत केवल भाषा ही नहीं, बल्कि ज्ञान- विज्ञान, संस्कृति एवं संस्कार का भंडार है। हमारी संस्कृति हर स्रोतों से अच्छाइयों को ग्रहण करती रही है। संस्कृत, संस्कृति एवं संस्कार ही हमें वास्तविक मानव बनाने में सक्षम हैं। संस्कृत ही संस्कृति एवं संस्कार की मूल जननी एवं उद्गम स्थल है। संस्कृति फूल में सुगंध तथा दूध में मक्खन के सदृश्य महत्वपूर्ण हैं। उक्त बातें दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली के संस्कृत- प्राध्यापक प्रो दयाशंकर तिवारी ने मारवाड़ी कॉलेज, दरभंगा के संस्कृत विभाग द्वारा ,”संस्कृत, संस्कृति और संस्कार” विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में ऑनलाइन माध्यम से जुड़कर मुख्य वक्ता के रूप में कही। उन्होंने संस्कृत साहित्य की महत्ता की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि संगोष्ठी के विषय के तीनों शब्द आपस में पूरक एवं अन्योन्याश्रित हैं।

मुख्य अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ घनश्याम महतो ने सेमिनार के विषय को महत्वपूर्ण एवं विस्तृत बताते हुए कहा कि मानव जीवन के लिए जरूरी सभी बातें संस्कृत में निहित हैं। संस्कार से व्यक्ति का परिमार्जन होता है। उन्होंने कहा कि संस्कृत एवं संस्कृति के कारण ही भारत विश्वगुरु था और भविष्य में इन्हीं के बदौलत पुनः विश्वगुरु बन सकता है। विद्यापति सेवा संस्थान के सचिव एवं कॉलेज के पूर्व छात्र डॉ बैद्यनाथ चौधरी ने कहा कि मिथिला शक्तिपीठ एवं तपोभूमि है जो संस्कृत-रचना, अपनी संस्कृति एवं संस्कार के लिए विख्यात रही है।

विशिष्ट अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय के संस्कृत- प्राध्यापक डॉ आर एन चौरसिया ने कहा कि वर्तमान भौतिकता एवं धनलोलुपता के इस युग में संस्कृत, संस्कृति एवं संस्कार की महत्ता अधिक बढ़ती जा रही है। संस्कृत के अध्ययन एवं भारतीय संस्कृति और उत्तम संस्कार के आचरण से ही युवाओं का चरित्र निर्माण तथा उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास संभव है। इन्हीं तीनों के कारण भारत मानवता की भूमि कही जाती है। उन्होंने इनकी सार्वदेशिक एवं सार्वकालिक महत्ता स्वीकारते हुए कहा कि इन्हें अपनाकर ही हम सुखी एवं सभ्य समाज तथा समृद्ध एवं विकसित भारत के निर्माण के सपनों को साकार कर सकते हैं। आगत अतिथियों का स्वागत करते हुए अर्थशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ बिनोद बैठा ने संस्कृत को सभी भाषाओं की जननी बताया।

अध्यक्षीय संबोधन में प्रधानाचार्य डॉ दिलीप कुमार ने सेमिनार के विषय को अति रोचक एवं प्रासंगिक बताते हुए संस्कृत को ज्ञान- विज्ञान की कूंजी बताया। संगोष्ठी के तीनों शब्द आपस में काफी जुड़े हुए हैं जो एक- दूसरे को बल प्रदान करते हैं। उन्होंने छात्रों का आह्वान किया कि वे संस्कृत का अधिक से अधिक अध्ययन कर अपने जीवन में परोपकार, सेवा, दया, दान आदि उच्च भावों को अपनाएं।

उद्घाटन सत्र का संचालन करते हुए संस्कृत विभागाध्यक्ष सह संगोष्ठी के संयोजक डॉ विकास सिंह ने बताया कि संस्कृत एवं संस्कृति के कारण ही भारत पूरे विश्व में प्रतिष्ठित होता रहा है। वहीं धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कॉलेज के बर्सर डॉ अवधेश प्रसाद यादव ने कहा कि संस्कृत से ही संस्कृति एवं संस्कार आते हैं।

संगोष्ठी का आरंभ दीप प्रज्वलन से हुआ। अतिथियों का स्वागत चादर, फाइल, बैग आदि से किया गया, जिसमें डॉ राम नारायण राय, नीलम सेन, मुकेश कुमार झा, डॉ अवधेश कुमार, डॉ शकुंतला कुमारी, डॉ दयानंद मेहता, डॉ अनुरुद्ध सिंह, डा श्याम भगत महतो, डा रवि कुमार राम, प्रशांत कुमार झा, बालकृष्ण कुमार सिंह, रितु कुमारी, सदानंद विश्वास, मनी पुष्पक घोष, प्रह्लाद, जिग्नेश, धम्म रतन, चंदन, आनंद सागर, आदित्य, दिव्यांश, कुणाल अर्णव, देव हर्ष तथा वसुंधरा सहित ऑनलाइन एवं ऑफलाइन मोड में 100 से अधिक व्यक्तियों ने भाग लिया।

 

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