खेमका फैमिली की कहानी रहस्य बनी; 7 साल पहले बिजनेसमैन के बेटे की हत्या से क्या है कनेक्शन?
खेमका फैमिली की कहानी रहस्य बनी; 7 साल पहले बिजनेसमैन के बेटे की हत्या से क्या है कनेक्शन?
पटना: पटना में एक बड़े उद्योगपति गोपाल खेमका परिवार की कहानी उलझती जा रही है। शुक्रवार की देर रात गोपाल खेमका की पटना में उनके घर के बाहर हत्या कर दी गई। 2018 में गोपाल खेमका के बेटे गुंजन खेमका को भी बिहार के वैशाली में मार दिया गया था। मामला तब और पेचीदा हो गया था, जब गुंजन की हत्या के आरोपी के जेल से छूटने के बाद उसका भी मर्डर हो गया। बेटे की हत्या के 7 साल बाद फिर से इतिहास दोहराया गया और इस बार पिता गोपाल खेमका की गोली मारकर हत्या की गई। पुलिस अब स्कूटी सवार शूटर की तलाश कर रही है।
किसने की थी खेमका के बेटे की हत्या?
पहले जानें कि बिजनेसमैन गोपाल खेमका के बेटे की हत्या कब और किसने की थी? बता दें कि साल 2018 में गोपाल खेमका के बेटे गुंजन खेमका की हाजीपुर इंडस्ट्रियल एरिया में हत्या कर दी गई थी। गुंजन के ऊपर बाइक सवार अपराधी ने ही गोली चलाई थी। बताया गया था कि गुंजन अपनी कार से पटना से हाजीपुर इंडस्ट्रियल एरिया में अपनी फैक्ट्री पहुंचे थे।
अपराधियों ने इस दौरान गोलियों की बौछार कर दी थी। इस वारदात में एक गोली गुंजन के ड्राइवर को लगी थी, जबकि दो गोलियां गुंजन खेमका को लगी थीं। गुंजन की कार में मौके पर ही मौत हो गई थी। इस वारदात के बाद पुलिस ने मस्तू सिंह नामक अपराधी को गिरफ्तार भी किया था। उसे जेल भेजा। आरोपी मस्तू के जेल से बाहर आने के बाद उसकी भी हत्या कर दी गई थी। ऐसे में बड़ा सवाल है कि एक ही परिवार के दो लोगों की हत्या के पीछे कोई गहरी साजिश है? बहरहाल, इस हत्याकांड के बाद से परिजनों में काफी गुस्सा है।
कैसे हुई खेमका की हत्या?
अब गुंजन के पिता गोपाल खेमका की घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई। खेमका जब क्लब से लौटकर रामगुलाम चौक स्थित अपने घर के गेट पर पहुंचे, तो एक शूटर स्कूटी से उनकी गाड़ी के पास आया। उसने पार्किंग में स्कूटी खड़ी की और पैदल उनकी कार तक पहुंचा। शूटर ने अपनी कमर से पिस्टल निकाली और खेमका के सिर में करीब से गोली मार दी। इसके बाद वह स्कूटी पर सवार होकर जेपी गोलंबर की तरफ भाग गया। सीसीटीवी में शूटर वारदात को अंजाम देकर भागते हुए कैद हो गया।
परिवार ने लगाया लापरवाही का आरोप
इधर परिवार के लोगों ने पुलिस पर लापरवाही और देरी करने का आरोप लगाया है। मृतक के छोटे भाई शंकर खेमका का आरोप है कि एफएसएल की टीम घटना के पांच घंटे बाद मौके पर पहुंची, जबकि कार की फोटोग्राफी पहले ही शुरू कर दी गई थी। शव को सुबह पीएमसीएच भेजा गया। इस लापरवाही से पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
अपराधी ने नजदीक से मारी गोली
- गोपाल खेमका गांधी मैदान राम गुलाम चौक स्थित अपने घर के पास अपनी कार से उतर रहे थे। तभी बाइक सवार अपराधियों ने उन्हें नजदीक से गोली मार दी।
- वे राम गुलाम चौक के पास कतरका निवास की चौथी मंजिल पर रहते थे। उनका पेट्रोल पंप से लेकर फैक्ट्री और अस्पताल तक का कारोबार है।
- जानकारी के अनुसार, गोपाल खेमका राज्य के बड़े व्यवसायी थे। गोपाल खेमका के पास एमबीबीएस की डिग्री भी थी। वे बांकीपुर क्लब के पूर्व सचिव भी थे।
प्रत्यक्षदर्शी ने क्या कहा?
समाचार एजेंसी पीटीआई ने भी इस संबंध में जानकारी दी है। पीटीआई ने खेमका के अपार्टमेंट के गार्ड राम पारस के हवाले से बताया, “मैंने उनकी (गोपाल खेमका की) कार को आते देखा और अपनी कुर्सी से उठ गया। उन्होंने हॉर्न बजाया और जैसे ही मैं गेट की तरफ बढ़ा, मुझे गोलियों की आवाज सुनाई दी। रात के करीब 11.30 बजे थे। मैं गेट पर पहुंचा तो देखा कि वे खून से लथपथ पड़े थे, लेकिन उनकी सांसें चल रही थीं। पुलिस रात 2.30 बजे के बाद आई।”
पुलिस के आने के बारे में पूछे जाने पर प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि पुलिस रात 2.30 बजे के बाद आई। तब तक खेमका की मौत हो चुकी थी। इससे पता चलता है कि इतनी बड़ी घटना के बावजूद पुलिस लापरवाह रही।
सवाल ये भी उठे
- बिजनेसमैन गोपाल खेमका के मर्डर से 7 साल पहले बेटे की हत्या कई सवाल खड़े कर रही है। क्या इसके पीछे कोई साजिश है?
- कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में जमीन विवाद की बातें भी कही गईं। क्या इस हत्याकांड के पीछे यही असल वजह है?
- पिता-पुत्र के मर्डर केस में अपराधियों ने एक जैसा तरीका अपनाया, क्या इससे दोनों मामलों में पुलिस कोई कड़ी जोड़ पाएगी?
- गोपाल खेमका के बेटे की हत्या के आरोपी के जेल से बाहर आने के बाद हत्या क्यों और किसने की?
- पुलिस थाने से करीब 300 मीटर की दूरी पर हत्याकांड कैसे हुआ? पुलिस क्यों मौके पर देर से पहुंची? यह भी एक बड़ा सवाल और पुलिस के लिए चुनौती है।
- इस घटना को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। क्या इसका बिहार की राजनीति से भी कोई कनेक्शन है?
मामले पर क्या कहना है रेंज आईजी जितेंद्र राणा का?