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बिहार के वो CM, जिसने कमीशन लेने और रिश्वत देने की बात कबूला था..

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बिहार के वो CM, जिसने कमीशन लेने और रिश्वत देने की बात कबूला था..

पटना: 6 नवम्बर 2014, पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में आयोजित एक कार्यक्रम। मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का संबोधन, ‘मैं थोड़े ही दिन के लिए मुख्यमंत्री हूं। यह आप लोग भी जानते हैं। 2015 के बाद गठबंधन सरकार बनेगी और गठबंधन, मांझी को ही नेता मान ले, ये कोई जरूरी नहीं। मांझी में कोई सुर्खाब के पंख तो लगे नहीं हैं। वह इसकी अपेक्षा भी नहीं रखते और भरोसा भी नहीं है। उन्हें जब तक का समय मिला है, तब तक वे अपने दिल की बात कहते रहेंगे।’ जीतन राम मांझी करीब नौ महीने तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे और इस दौरान उन्होंने विवादास्पद बयानों से बिहार की राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया। वे एक के बाद एक, अपने ‘दिल की बात’ कहते रहे और हंगामे पर हंगामा होता रहा।

कमीशन लेने की बात स्वीकारी

जीतन राम मांझी बिहार के पहले मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने सार्वजिनक रूप से कमीशनखोरी की बात स्वीकार की थी। 12 फरवरी 2015 को पटना के गांधी मैदान में शिक्षकों की एक सभा थी। इस सभा में मुख्यमंत्री मांझी ने अचानक कहना शुरू किया, पुल के निर्माण से ज्यादा पैसा खंभों के निर्माण पर खर्च होता है। ये इंजीनियर और टेक्नोक्रेट जिन्होंने करोड़ों रुपये जमा किये हैं, कुछ पैसा ठेकेदार को देते हैं और कुछ पैसा मुझे भी। मुझे भी कमीशन मिलता है। अब से मैं कमीशन का पैसा नहीं लूंगा और उस पैसे का इस्तेमाल राज्य के शिक्षकों के लिए करूंगा। मुख्यमंत्री मांझी के इस कबूलनामा के बाद तो जदयू में जैसे भूचाल आ गया।

बिजली बिल के लिए देनी पड़ी रिश्वत!

इसके पहले अगस्त 2014 को मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने रिश्वत देने की बात कबूल की थी। उन्होंने भ्रष्टाचार के प्रसंग में खुद अपनी कहानी सुनायी थी। उस समय मंत्री थे। फिर भी अपना काम कराने के लिए उन्हें रिश्वत देनी पड़ी थी। घूसखोर अफसर पर इस बात का कोई असर नहीं पड़ा कि वह एक मंत्री से रिश्वत मांग रहा है। उनके गया जिले वाले घर का बिजली बिल 25 हजार रुपये बढ़ कर आया हुआ था। औसतन उन्हें बिजली बिल के रूप में करीब 5 हजार रुपये का भुगतान करना पड़ता था। इतना ज्यादा बिजली बिल मिलने से परिवार के लोग परेशान हो गये। तब एक पड़ोसी ने बताया कि कैसे बिजली बिल कम आ सकता है। उसके कहने पर पैसा देकर बिजली बिल कम कराया गया। बाद में जीतन राम मांझी ने ये बात बिजली बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारियों को बतायी। इसके बाद उस घूसखोर अफसर को सजा हुई।

विवाद के लिए मीडिया को ठहराया जिम्मेदार

कोई मुख्यमंत्री खुलेआम ये बात स्वीकार करे कि वह भ्रष्ट इंजीनियरों से कमीशन लेता था, या अपना काम कराने के लिए रिश्वत देता था, तो बवाल मचना लाजमी था। जब मामला तूल पकड़ने लगा तो सीएम मांझी की जदयू में स्थिति डांवाडोल होने लगी। ये बातें नीतीश कुमार के गुड गवर्नेंस के खिलाफ थीं। विवाद बढ़ने पर मुख्यमंत्री मांझी ने कहा ‘मैंने बिजली बिल के लिए जो पैसा देने की बात कही है, वह बहुत पहले की है। ये पैसा रिश्वत नहीं, बल्कि मिठाई खाने के लिए दिया गया था।’ उन्होंने विवाद के लिए मीडिया को जिम्मेदार ठहरा दिया। उनका कहना था कि मीडिया ने उनकी बात को तोड़ मरोड़कर पेश किया है।

कैसे मुख्यमंत्री बने थे जीतन राम मांझी ?

2014 लोकसभा चुनाव के कुछ पहले नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ दिया था। भाजपा के अलग होने के कारण उन्होंने बहुमत खो दिया था। कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों की मदद से वे अल्पमत की सरकार चला रहे थे। नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन की यह विडंबना है कि उन्होंने कांग्रेस की मदद से भी सरकार चलायी है। 2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार बिना किसी गठबंधन के अकेले चुनाव में उतरे थे। जदयू को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। सभी 40 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन जीत केवल 2 पर मिली।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस बात से आहत हो गये कि ‘गुड गवर्नेंस’ के बाद भी राज्य के मतदाताओं नें उन्हें नकार दिया। उन्होंने हार की नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए 17 मई 2014 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उस समय जीतन राम मांझी, नीतीश कुमार के सबसे विश्वस्त सहयोगी थे। नीतीश कैबिनेट में वे एससी-एसटी कल्याण विभाग के मंत्री थे। नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी को अगले सीएम के रूप में मनोनीत किया। 20 मई 2014 को जीतन राम मांझी बिहार के मुख्यमंत्री बन गये।

अप्रिय स्थिति में छोड़ना पड़ा मुख्यमंत्री पद

जब वे मुख्यमंत्री बने तो भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने उन्हें ‘डमी मुख्यमंत्री’ कहा था। उनके कहने का मतलब था कि जीतन राम मांझी तो कहने भर के मुख्यमंत्री हैं, सत्ता की असल बागडोर नीतीश कुमार के हाथों में रहेगी। जीतन राम मांझी का मुख्यमंत्री बनना बिल्कुल अप्रत्याशित था। कुछ समय बाद ही काम करने के तरीके और विवादास्पद बयानों के कारण उनकी नीतीश कुमार से दूरी बढ़ने लगी। फरवरी 2015 के आते-आते मुख्यमंत्री मांझी के लिए दल में विकट स्थिति बन गयी।

9 फरवरी को उन्हें जदयू से निकाल दिया गया। टकराव और बढ़ गया। सीएम मांझी विधानसभा भंग करना चाहते थे, लेकिन कैबिनेट ने मंजूरी ही नहीं दी। अब नीतीश समर्थक किसी तरह उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाना चाहते थे। नीतीश कुमार ने अपना बहुमत दिखाने के लिए राज्यपाल के सामने 128 विधायकों की परेड करायी। तब राज्यपाल ने जीतन राम मांझी को 20 फरवरी तक बहुमत साबित करने को कहा। लेकिन सीएम मांझी ने विश्वास मत हासिल करने से ठीक पहले अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

इन बयानों से जदयू हुआ असहज

मुख्यमंत्री के रूप में जीतन राम मांझी अपनी बात बहुत बेबाकी से कहते थे। वैसी बात भी बोल जाते थे, जिससे आम नेता परहेज करते थे। एक बार वे नवनियुक्त ग्रामीण विकास अधिकारियों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, ‘नीतीश जी के प्रयासों से राजनीतिक कार्यकर्ता तो ईमानदार हो गये, लेकिन अधिकारी बेईमान बने रहे। मैं जहां भी गया, लोगों ने सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार की शिकायत की।’

शासन में भ्रष्टाचार के संबंध में मुख्यमंत्री मांझी के अपने विचार थे। उनका मानना था कि नीतीश कुमार के शासन में बिहार विकास के पथ पर तेजी से अग्रसर तो है, लेकिन भ्रष्टाचार पर पूरी तरह से लगाम नहीं लग पाई है। जीतन राम मांझी की इन बातों से नीतीश कुमार ‘अनकम्फर्टेबल’ महसूस करने लगे। उन्होंने करप्शन पर जीरो टॉलरेंस नीति का कड़ाई से पालन किया था। कई भ्रष्ट अफसरों की अचल सम्पत्ति जब्त कर उसमें स्कूल खोले गये थे।

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