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भारतीय संस्कृति की आत्मा संस्कृत में है सन्निहित- डॉ जयशंकर

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भारतीय संस्कृति की आत्मा संस्कृत में है सन्निहित- डॉ जयशंकर

संस्कृत में भारतीय संविधान की नवीनतम संस्करण प्रशंसनीय- डॉ घनश्याम

भारतीय संस्कृति की आत्मा संस्कृत में ही सन्निहित है। संस्कृत भाषा में भारतीय संविधान का प्रकाशन बंदे मातरम् की भाषा का यह सर्वोच्च सम्मान है। उक्त बातें केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से संस्कृत भाषा में संविधान की संशोधित संस्करण की प्रति प्राप्त करने के उपरांत मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग के पूर्व प्राध्यापक डॉ जयशंकर झा ने कही। उन्होंने कहा कि संस्कृत में संविधान प्रकाशन कराकर भारत सरकार ने संस्कृत को राष्ट्रभाषा बनाने की भावना से ओतप्रोत संविधान निर्माता बाबा साहब अंबेडकर के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि दी है। साथ ही मातृभाषा मैथिली में भी संविधान का प्रकाशन करोड़ों मिथिलावासियों के लिए गर्व की बात है। इस अवसर पर संस्कृत में संविधान की प्रति प्राप्त कर कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति पंडित प्रो रामचन्द्र झा ने इस संशोधित संस्करण को संस्कृत प्रेमियों के लिए अनुपम उपहार बताते हुए कहा कि इससे संस्कृत के प्रचार-प्रसार में तेजी आएगी।

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ घनश्याम महतो ने कहा कि संस्कृत भाषा में भारतीय संविधान का नवीनतम संस्करण प्रशंसनीय है। इस प्रकाशन में भारतीय संविधान के अद्यतन सभी संशोधनों को भी शामिल किया गया है। इससे संविधान को व्यापक फलक प्राप्त होगा।

संस्कृत विश्वविद्यालय की व्याकरण- प्राध्यापिका डॉ सविता आर्या ने कहा कि इससे संस्कृत विशेषज्ञों के माध्यम से संस्कृतप्रेमी भी भारतीय संविधान को अधिक से अधिक जान पाएंगे, जिससे संविधान के प्रति उनकी जागरूकता एवं श्रद्धा और अधिक बढ़ेगी। इस अवसर पर चार्टर एकाउंटेंट वरुण कुमार जाजू, उज्ज्वल कुमार आदि उपस्थित थे। विदित हो कि संविधान लागू होने से पूर्व ही भारतरत्न म.म.पांडुरंग वामन काणे के संपादकत्व में भारतीय संविधान का संस्कृत संस्करण प्रकाशित हुआ था।

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