Jagannath Rath Yatra 2025: जगन्नाथ रथ यात्रा आज से हुई शुरू,जानें कुछ रोचक बातें
Jagannath Rath Yatra 2025: जगन्नाथ रथ यात्रा आज से हुई शुरू,जानें कुछ रोचक बातें
नई दिल्ली। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जगन्नाथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra 2025) के दौरान भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ गुंडीचा मंदिर जाते हैं, जो उनकी मौसी का घर माना जाता है। माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं और 7 दिनों तक अपनी मौसी के घर ही विश्राम करते हैं। इस साल जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत 27 जून से हो चुकी है।
जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व
बामदेव संहिता जैसे शास्त्रों के अनुसार, जो भक्त भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान सुदर्शन को गुंडिचा मंदिर में एक सप्ताह तक सिंहासन पर विराजमान देखते हैं, उन्हें अनंत आशीर्वाद और बैकुंठ में स्थान मिलता है. माना जाता है कि इस यात्रा के बारे में सुनने या पढ़ने से भी आध्यात्मिक पुण्य मिलता है.
शुभ रथ यात्रा 2025: प्रमुख तिथियां और कार्यक्रम
गुंडिचा मरजाना (मंदिर सफाई): 26 जून
रथ यात्रा: 27 जून 2025 (शुक्रवार)
हेरा पंचमी: 1 जुलाई
बहुदा यात्रा (वापसी): 4-5 जुलाई
सुना बेशा (गोल्डन पोशाक): 5-6 जुलाई
नीलाद्रि बिजय (अंतिम रिटर्न): 8 जुलाई
27 जून, शुक्रवार – रथ यात्रा की शुरुआती विधि
रथ यात्रा के पहले दिन पुरी के राजा खुद ‘छेरा पन्हारा’ रस्म निभाते हैं, जिसमें वे सोने के झाड़ू से रथ के नीचे का हिस्सा साफ करते हैं. यह विनम्रता और सेवा भाव का प्रतीक माना जाता है. ‘हेरा पंचमी’ के दिन देवी लक्ष्मी गुंडिचा मंदिर जाकर नाराज़गी जताती हैं कि भगवान उन्हें छोड़कर क्यों चले आए. यह आयोजन पूरी यात्रा को और भी रोचक बना देता है.
रथ यात्रा की शुरुआत कैसे हुई?
रथ की बनावट कैसी होती है?
इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ तीन अलग-अलग रथों पर सवार होते हैं.
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हर 12 साल में क्यों बदलती है मूर्ति?
क्या रस्सियों के भी होते हैं नाम?
कौन खींच सकता है रथ?
रथ यात्रा का धार्मिक महत्व
रथों की खासियत
भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष अथवा गरुड़ध्वज कहा जाता है। बलराम जी के रथ का नाम ‘तालध्वज’ है, वहीं सुभद्रा जी के रथ को ‘दर्पदलन’ अथवा ‘पद्म रथ’ कहा जाता है। इन दिव्य रथों के निर्माण के लिए दारुक नामक लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। रथ के लिए लकड़ी चुनने के लिए बसंत पंचमी का दिन सबसे अच्छा माना जाता है।
साथ ही इन रथों को बनाने के लिए किसी तरह के कील या कांटों का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इसका कारण यह माना गया है कि कील या कांटे का इस्तेमाल करने से रथ की पवित्रता खंडित हो सकती है। इतना ही नहीं रथ में किसी तरह की धातु का इस्तेमाल भी नहीं किया जाता है।
पुराने रथ से होता है ये काम
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पूरी होने के बाद रथों को संभालकर रख जाता है। इसके बाद रथ की लकड़ियों का इस्तेमाल कई तरह के शुभ कार्यों में जैसे जगन्नाथ मंदिर में प्रसाद बनाने आदि में किया जाता है। साथ ही भक्त भी रथ की लकड़ियों को अपने घर ले जाते हैं और इसे घर में रखना बहुत ही शुभ माना जाता है।
कैसे जाएं पुरी
अगर आप ट्रेन से जाना चाहते हैं तो आपको पुरी रेलवे स्टेशन जाना होगा, जो देश के करीब सभी बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है. वहीं यात्रा के दौरान कई स्पेशल ट्रेनें भी चलाई जाती हैं. पुरी रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी 2 किलोमीटर के करीब है. यहां से आप ऑटो या रिक्शा लेकर जा सकते हैं. अगर आपको हवाई सफर करना है, तो करीबी एयरपोर्ट भुवनेश्वर में है. जो पुरी से करीब 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. एयरपोर्ट से आप बस या टैक्सी की मदद से पुरी तक जा सकते हैं.
पुरी में होटल और धर्मशाला के कई ऑप्शन मौजूद हैं, मंदिर के आसपास कई होटल हैं, जिनका बजट एक हजार से शुरू होता है. वहीं 500 रुपये में आपको धर्मशाला मिल जाएगा. मंदिर में दर्शन का समय सुबह 5 बजे से रात के 9 बजे तक का है. दिन में साढ़े 11 बजे से एक बजे तक भोग और विशेष पूजा के लिए दर्शन बंद रहता है. मंदिर में अगर भीड़ हो तो दर्शन करने में 3 से 4 घंटे का समय लग जाता है. जून और जुलाई के महीने में रथ यात्रा में शामिल होने के लिए दुनिया भर से भक्त यहां आते हैं. रथ यात्रा से 15 दिन पहले मंदिर में दर्शन बंद हो जाता है.
रथ यात्रा के दौरान राज्य सरकार की तरफ से कई इंतजाम किए जाते हैं. पुरी रेलवे स्टेशन के बाहर निशुल्क कैंप भी लगाए जाते हैं जहां तीर्थयात्री रह सकते हैं.