Bal Gangadhar Tilak Birth Jayanti: ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा’
Bal Gangadhar Tilak Birth Jayanti: ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा’
भारत के स्वतंत्रता सेनानियों में बाल गंगाधर तिलक का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता है। उन्होंने हमारे देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
तिलक की पत्रकार बनने की यात्रा ऐसे हुई शुरू
1877 में उन्होंने पुणे के दक्कन कॉलेज से गणित में अपनी ग्रेजुएशन की। कानून (एलएलबी) की पढ़ाई के लिए उन्होंने अपना एम.ए. कोर्स बीच में ही छोड़ दिया और 1879 में उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय के सरकारी लॉ कॉलेज से एलएलबी की डिग्री प्राप्त की। ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने एक निजी स्कूल में गणित पढ़ाना शुरू किया। इसके बाद वह पत्रकार बन गए।
जब क्रांतिकारियों के पक्ष में लेख लिखने पर हो गए थे गिरफ्तार
30 अप्रैल 1908 को खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चंद चाकी ने जज किंग्सफोर्ड को अपना निशाना बनाते हुए एक बम विस्फोट किया था। इसमें दो ब्रिटिश महिलाओं की मौत हो गई थी। अग्रेंजों ने खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर उनपर मुकदमा चलाया।
इस गिरफ्तारी के बाद बाल गंगाधर तिलक की जिंदगी बदल गई। उन्होंने दोनों क्रांतिकारियों के पक्ष में अपने अखबार ‘केसरी’ में लिखा। उनके इस लेख ने अंग्रेजों के होश उड़ा दिए थे। 3 जुलाई 1908 को अंग्रेजों ने तिलक को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें इसकी 6 साल की सजा मिली। उन्हें बर्मा के मंडले जेल में रखा गया, जहां उन्होंने 400 पन्नों की किताब ‘गीता रहस्य’ लिखा।
इन दो भाषाओं में शुरू किए थे दो अखबार
तिलक ने एक मराठी और एक अंग्रेजी में दो अखबार ‘मराठा दर्पण और केसरी’ की शुरुआत की। इन दोनों ही अखबारों में तिलक ने अंग्रेजी शासन की क्रूरता के खिलाफ अपनी आवाज उठाई। इन अखबारों को लोगों द्वारा काफी पसंद किया जाने लगा था।
लोकमान्य तिलक की मदद से ही महाराष्ट्र में गणेश और शिवाजी उत्सव को सामाजित तौर पर स्वीकार किया गया। इन त्योहारों के जरिए अंग्रेजों के खिलाफ जागरुकता फैलाया जाता था। उन्होंने युवाओं को अधिक से अधिक शामिल करने के लिए अखाड़े, लाठी क्लब और गाय हत्या विरोधी समितियां भी शुरू की थी।
जब तिलक पर चला राजद्रोह का मुकदमा
1896-97 के बीच महाराष्ट्र में प्लेग महामारी फैली और इससे निपटने के लिए महामारी अधिनियम 1897 के प्रावधानों के खिलाफ तिलक ने लेख लिखा, जिसके बाद उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया।
- अपने लेखन में तिलक ने कमिश्नर वाल्टर चार्ल्स रैंड को निशाना बनाया था और उनके लेखन से प्रेरित होकर दो युवाओं चापेकर बंधुओं ने रैंड की हत्या कर दी थी।
- ब्रिटिश सरकार ने तिलक को हत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया था।
- इस मामले की सुनवाई और सजा से उन्हें ‘लोकमान्य’ (जनता का प्रिय नेता) की उपाधि मिली।
- तिलक को 18 महीने जेल की सजा सुनाई गई, जहां उन्होंने पहली बार स्वराज के अपने विचारों को विकसित किया।
‘लोकमान्य’ उपाधि कैसे मिली?
‘लोकमान्य’ का अर्थ है, जिसे जनता ने मान्यता दी हो। बाल गंगाधर तिलक को यह उपाधि उनके तेजस्वी विचारों, निर्भीक लेखनी और ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ जन-जागरण के लिए मिली थी। वे पहले ऐसे व्यक्ति थे जिनके लिए जनता ने यह सार्वजनिक रूप से कहना शुरू किया ‘तिलक ही हमारे सच्चे नेता हैं।’
‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’ का नारा
बाल गंगाधर तिलक ने जब कहा, “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।” तो यह नारा पूरे देश में आज़ादी की लहर बन गया। ये शब्द केवल नारा नहीं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम का मंत्र बन गए।
गणेशोत्सव और शिवाजी महोत्सव की शुरुआत
तिलक ने अंग्रेजों की सेंसरशिप और एकता को तोड़ने वाली नीति के खिलाफ एक सांस्कृतिक हथियार अपनाया, जो है गणेशोत्सव और शिवाजी महोत्सव की शुरुआत। इन त्योहारों के जरिए उन्होंने लोगों को एक मंच पर लाकर ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ सामाजिक चेतना जगाई।
चरमपंथियों का युग (1905-1917)
- बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल – इन्हें लाल, बाल, पाल के नाम से जाना जाता था। सभी चरमपंथी नेता थे जिनके लेखन ने देश में कई क्रांतिकारी गतिविधियों को जन्म दिया।
- तिलक ने अपने समाचार पत्रों के माध्यम से ब्रिटिश शासन और उदारवादी राष्ट्रवादियों के खिलाफ काफी आलोचनाएं की।
- 1 अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन की शुरुआत के दिन ही तिलक का निधन हो गया।
- स्वतंत्रता संग्राम में तिलक के योगदान और बलिदान को सम्मान देने के लिए गांधीजी ने तिलक फंड की शुरुआत की।
एकता और प्रयास
बाल गंगाधर तिलक के जीवन से एकता और निरंतर प्रयास करने के गुणों को भी सीखना ही चाहिए। उनका मानना था कि समाज की ताकत उसकी एकता में है। आज के समय में भी हमें उनकी इस सीख को याद रखना चाहिए और सामाजिक सद्भाव और एकता को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।
भारत के वीर पुत्र ने हमें हमेशा ही संघर्ष करना, हक के लिए आवाज उठाना तो निडर होकर जीना सिखाया है। तिलक का जीवन साहस, विद्या और राष्ट्रभक्ति का अनूठा संगम था। और आज उनकी जन्म जयंती पर उन्हें याद कर नमन करने के साथ साथ, उनके जीवन की खास बातें हमें भी जरूर अपने जीवन में शामिल करनी चाहिए।