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भारत की एकता के महान प्रतीकों में से एक हैं ऋषि अगस्त्य : काशी तमिल संगमम 3.0

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भारत की एकता के महान प्रतीकों में से एक हैं ऋषि अगस्त्य : काशी तमिल संगमम 3.0

हिंदू परंपराओं में ऋषि-मुनियों उच्च स्थान होता है। पुरातन काल में कई महान ऋषि हुए, इनमें से एक थे ऋषि अगस्त्य। कहते हैं कि उन्होंने एक बार समंदर का सारा पानी पी लिया था। उनमें इतनी ताकत थी कि विंध्याचल पर्वत को झुका लिया था। उन्होंने श्रीराम को ऐसा मंत्र दिया, जिससे रावण का वध करने में मदद मिली। पढ़िए ऐसे ऋषि की कहानी।

कौन थे अगस्त्य ऋषि?

कहते हैं कि जगदगुरु ब्रह्मा ने धरती पर संतुलन बनाए रखने के लिए सप्तर्षियों की उत्पत्ति की थी। अगस्त्य ऋषि उनमें से एक थे। हालांकि कुछ कथाओं में कहा गया है कि अगस्त्य ऋषि का जन्म अगस्त्यकुंड में हुआ था। उनका अधिकतर जीवन दक्षिण भारत के क्षेत्र में बीता। इसलिए दक्षिण भारत के ग्रंथों में उनकी महिमा का बखान मिलता है। उनकी शादी विदर्भ देश की राजकुमारी लोपमुद्रा से हुआ था। लोपमुद्रा भी बहुत ज्ञानी महिला थीं। अगस्त्य ऋषि को राजा दशरथ का गुरु माना जाता है। ये भी कहा जाता है कि ऋग्वेद में कई मंत्रों की रचना अगस्त्य ऋषि ने की थी।

जब अगस्त्य ऋषि ने पी लिया समंदर का सारा पानी

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार देवताओं और राक्षसों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। देवताओं ने वृतासुर नाम के प्रमुख राक्षस का वध कर दिया। अपने भयभीत होकर राक्षस इधर-उधर छिपने लगे। कुछ राक्षस समंदर में जाकर छिप गए। वे अंधेरे में बाहर निकलते और ऋषि-मुनियों, देवताओं एवं अन्य महान पुरुषों का वध करके वापस समंदर में छिप जाते।

इससे परेशान होकर सभी देवता विष्णुजी के पास पहुंचे। विष्णु ने कहा कि इसका एक ही उपाय है, अगर सारा समुद्र सूख जाए तो राक्षस बाहर आ जाएंगे। इस काम में सिर्फ एक ही महापुरुष मदद कर सकते हैं, वो हैं अगस्त्य ऋषि। इसके बाद सभी देवता अगस्त्य ऋषि के पास पहुंचे और अपनी चिंता बताई। अगस्त्य ने उनकी बातें सुनी और उनके साथ चल दिए।

अगस्त्य ऋषि ने समंदर का सारा पानी पी लिया। फिर छिपे हुए राक्षस नजर आ गए और देवताओं ने उनका वध कर लिया। जब समंदर पूरा सूख गया तो, देवताओं ने अगस्त्य ऋषि से पानी वापस भरने की अपील की। मगर अगस्त्य ने उनके सामने हाथ जोड़ लिए और कहा कि ये उनके बस का नहीं है। धरती पर अकाल का संकट आ गया। सभी देवी-देवता वहां ब्रह्माजी के पास पहुंच गए। ब्रह्मा ने कहा कि जब भागीरथ धरती पर स्वर्ग से गंगा लाने की कोशिश करेंगे, तब समुद्र फिर पानी से भर जाएगा।

जब ऋषि के सामने झुक गया पर्वत

अगस्त्य ऋषि से जुड़ी एक और कथा है। कहते हैं कि एक बार भारत के मध्य में बसे विंध्य पर्वत को मेरु पर्वत से जलन हो गई। वह मेरु पर्वत जितना बड़ा बनना चाहता था। विंध्य पर्वत ने खुद को इतना ऊंचा उठा लिया कि वो आसमान तक जा पहुंचा। इससे सूरज-चंद्रमा सारे छिप गए और धरती पर अंधेरा छाने लगा। तब कुछ लोग अगस्त्य ऋषि के पास आए और इसका उपाय निकालने के लिए कहा।

अगस्त्य ऋषि उस समय उत्तर भारत में रहा करते थे। उन्होंने विंध्य पर्वत से कहा कि नीचे झुको, मुझे दक्षिण की ओर जाना है। ऋषि की महानता को देख विंध्य पर्वत ने तुरंत हामी भर दी और अपना कद छोटा कर दिया। इससे धरती पर फिर से सूरज और चंद्रमा चमकने लगे। ऋषि ने ये भी कहा कि जब तक वे दक्षिण से उत्तर की ओर वापस न लौटें, तब तक वह अपना कद न बढ़ाए। विंध्य पर्वत ने उनकी ये बात भी मान ली। ऋषि अगस्त्य फिर दक्षिण आए और वहीं बस गए। वे कभी उत्तर की ओर नहीं गए और विंध्य पर्वत ने भी अपना कद नहीं बढ़ाया।

काशी तमिल संगमम 3.0

ऋषि अगस्त्य भारत की एकता के प्रतीक हैं। उन्होंने भाषा, धर्म, संस्कृति, चिकित्सा, राजनीति और शिक्षा के माध्यम से उत्तर और दक्षिण भारत को जोड़ा। वे केवल एक संत नहीं थे, बल्कि भारत की आत्मा को जोड़ने वाले महान विचारक और मार्गदर्शक थे। उनकी शिक्षाएँ और योगदान आज भी प्रासंगिक हैं और भारत की सांस्कृतिक विरासत को सशक्त बनाते हैं।

ऋषि अगस्त्य को उत्तर भारत के हिमालय क्षेत्र में जन्म लेने वाला माना जाता है। किंतु, उन्होंने दक्षिण भारत की यात्रा की और वहां ज्ञान, भाषा, चिकित्सा और अध्यात्म का प्रचार-प्रसार किया। काशी में भगवान शिव ने उन्हें तमिल भाषा के व्याकरण को विकसित करने का निर्देश दिया, जिसके बाद वे तमिलनाडु गए और तमिल व्याकरण की रचना की। यह इस बात का प्रमाण है कि ऋषि अगस्त्य ने उत्तर और दक्षिण भारत के बीच आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संबंध स्थापित किए।

जनवरी,2025 में जब काशी तमिल संगमम के तीसरे संस्करण की घोषणा केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री धर्मेन्द्र प्रधान ने की, तो उन्होंने कहा था कि शिक्षाविदों का मानना है कि प्राचीन काल से भारत में शिक्षा और संस्कृति के ये दो महत्वपूर्ण केंद्र रहे हैं और दोनों के बीच अटूट सांस्कृतिक संबंध रहा है। इस संगमम का उद्देश्य इस बारे में युवाओं को जागरूक करना है, ताकि जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में लोगों के बीच परस्पर संपर्क-संवाद बढ़े। आईआईटी मद्रास ने 15 से 24 फरवरी 2025 तक आयोजित होने वाले ‘काशी तमिल संगमम’ की पूरी तैयारी की है। यह भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय का अहम आयोजन है। वाराणसी में इस आयोजन की मेजबानी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय करेगा। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के मुताबिक़, तमिलनाडु और काशी के बीच ये अटूट बंधन काशी तमिल संगमम 3.0 के माध्यम से जीवंत होने जा रहे हैं।

काशी तमिल संगमम 3.0 की मुख्य थीम ऋषि अगस्त्य के महत्वपूर्ण योगदान को उजागर करना है जो उन्होंने सिद्धा चिकित्सा पद्धति (भारतीय चिकित्सा), शास्त्रीय तमिल साहित्य और राष्ट्र की सांस्कृतिक एकता में दिया है। इस अवसर पर एक विशिष्ट प्रदर्शनी ऋषि अगस्त्य के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं के बारे में और स्वास्थ्य, दर्शन, विज्ञान, भाषा विज्ञान, साहित्य, राजनीतिक, संस्कृति, कला, विशेष रूप से तमिल और तमिलनाडु के लिए उनके योगदान पर आयोजित की जाएगी। इसके अलावा प्रासंगिक विषयों पर सेमिनार और कार्यशाला भी होंगी।

असल में, ऋषि अगस्त्य को तमिल भाषा के पहले वैयाकरण के रूप में जाना जाता है। यह माना जाता है कि भगवान मुरुगन ने उन्हें स्वयं तमिल व्याकरण की शिक्षा दी थी। उनकी रचनाओं ने तमिल भाषा और साहित्य को समृद्ध बनाया। उन्होंने संस्कृत और तमिल दोनों भाषाओं में ग्रंथों की रचना की, जिससे वे दोनों ही भाषायी परंपराओं के सेतु बने।

ऋषि अगस्त्य केवल भाषा और साहित्य तक ही सीमित नहीं थे, बल्कि उन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में भी अतुलनीय योगदान दिया। वे सिद्ध चिकित्सा प्रणाली के जनक माने जाते हैं, जो तमिलनाडु की पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली है। उनकी जयंती को हर वर्ष ‘राष्ट्रीय सिद्ध दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। उनकी यह विरासत आज भी तमिलनाडु और भारत के अन्य भागों में चिकित्सा पद्धति के रूप में जीवित है। ऋषि अगस्त्य को कावेरी और ताम्रपर्णी नदियों को पृथ्वी पर लाने का श्रेय दिया जाता है। इन नदियों ने दक्षिण भारत में कृषि और जल आपूर्ति को समृद्ध किया, जिससे वहां की सभ्यता फली-फूली। उनके इस योगदान ने भारतीय समाज के प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

ऋषि अगस्त्य ने परशुराम के साथ मिलकर ‘कलरीपट्टू’ नामक भारत की प्राचीन मार्शल आर्ट की स्थापना की। यह युद्धकला दक्षिण भारत और केरल में आज भी प्रचलित है। यह दर्शाता है कि ऋषि अगस्त्य केवल आध्यात्मिक गुरु ही नहीं, बल्कि शारीरिक प्रशिक्षण और रक्षा-कौशल के भी प्रेरणास्रोत थे।

ऋषि अगस्त्य कई तमिल राजाओं जैसे चोल, पांड्य आदि के कुलगुरु थे। उन्होंने प्रशासनिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन देकर भारतीय राजनीति और समाज को दिशा दी। इसके अलावा, वे ऋग्वेद के लगभग 300 मंत्रों के रचयिता माने जाते हैं, जो भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में उनका अमूल्य योगदान है। ऋषि अगस्त्य का उल्लेख कई धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। रामायण में, उन्होंने भगवान राम को लंका युद्ध से पहले ‘आदित्य हृदयम्’ स्तोत्र का उपदेश दिया, जिससे श्रीराम को युद्ध में विजय प्राप्त करने की शक्ति मिली। वे महाभारत और पुराणों में भी एक प्रमुख ऋषि के रूप में वर्णित हैं।

ऋषि अगस्त्य के नाम से भारत के कई राज्यों में मंदिर हैं। उत्तर भारत में काशी के अगस्त्य कुंड और अगस्त्येश्वर महादेव मंदिर प्रसिद्ध हैं। इसके अलावा, उज्जैन, नासिक, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, असम, उत्तर प्रदेश, गुजरात आदि में भी उनके मंदिर स्थापित हैं। दक्षिण भारत विशेषकर तमिलनाडु और कावेरी क्षेत्र में उन्हें विशेष रूप से पूजा जाता है।

ऋषि अगस्त्य की ख्याति केवल भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि श्रीलंका, इंडोनेशिया, जावा, कंबोडिया, वियतनाम सहित दक्षिण-पूर्व एशिया के कई देशों में भी उन्हें पूजा जाता है। यह उनकी शिक्षाओं और योगदान की वैश्विक स्वीकृति को दर्शाता है।

ऋषि अगस्त्य का जीवन और उनका योगदान हमें यह सिखाता है कि भारत की विविधता ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति है। वे हमें यह प्रेरणा देते हैं कि विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं और परंपराओं के बीच सेतु बनाकर ही हम एक सशक्त और समृद्ध भारत की परिकल्पना को साकार कर सकते हैं। उनकी स्मृति और शिक्षाएँ हमें सदैव एकता, ज्ञान और आत्मनिर्भरता की राह दिखाती रहेंगी।

ऋषि अगस्त्य के बारे में जानिए 11 खास बातें दक्षिण भारत में उनकी लोकप्रियता अधिक है।

ऋषि अगस्त्य के बारे में जानिए 11 खास बातें दक्षिण भारत में उनकी लोकप्रियता अधिक है। उन्होंने कई उल्लेखनीय कार्य किए थे। ऋषि अगस्त्य के वंशजों को अगस्त्य वंशी कहा गया है। ऋग्वेद में इनका उल्लेख मिलता है। आओ जानते हैं उनके बारे में संक्षिप्त जानकारी।

1. ऋषि अगस्त्य वशिष्ठ के भाई थे। कुछ लोग इन्हें ब्रह्मा का पुत्र मानते हैं। महर्षि अगस्त्य को पुलस्त्य ऋषि का पुत्र माना जाता है। उनके भाई का नाम विश्रवा था जो रावण के पिता थे। पुलस्त्य ऋषि ब्रह्मा के पुत्र थे। ऋषि वशिष्ठ के समान यह भी मित्रावरूणी के पुत्र हैं।

2. महर्षि अगस्त्य ने विदर्भ-नरेश की पुत्री लोपामुद्रा से विवाह किया, जो विद्वान और वेदज्ञ थीं। दक्षिण भारत में इसे मलयध्वज नाम के पांड्य राजा की पुत्री बताया जाता है। वहां इसका नाम कृष्णेक्षणा है। इनका इध्मवाहन नाम का पुत्र था।
3. महर्षि अगस्त्य की गणना सप्तर्षियों में की जाती है। ये भगवान शंकर से सबसे श्रेष्ठ 7 शिष्यों में से एक थे। महर्षि अगस्त्य राजा दशरथ के राजगुरु थे।
4. महर्षि अगस्त्य को मं‍त्रदृष्टा ऋषि कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने तपस्या काल में उन मंत्रों की शक्ति को देखा था। ऋग्वेद के अनेक मंत्र इनके द्वारा दृष्ट हैं। महर्षि अगस्त्य ने ही ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 165 सूक्त से 191 तक के सूक्तों को बताया था। साथ ही इनके पुत्र दृढ़च्युत तथा दृढ़च्युत के पुत्र इध्मवाह भी नवम मंडल के 25वें तथा 26वें सूक्त के द्रष्टा ऋषि हैं।

5. ऋषि अगस्त्य ने ही इन्द्र और मरुतों में संधि करवाई थी।
6. अगस्त्य ऋषि ने ही विंध्यांचल की पहाड़ी में से दक्षिण भारत में पहुंचने का सरल मार्ग बनाया था। यह भी कहा जाता है कि इन्होंने अपनी मंत्र शक्ति के बल पर विंध्याचल पर्वत को झुका दिया था।
7. महर्षि अगस्त्य समुद्रस्थ राक्षसों के अत्याचार से देवताओं को मुक्ति दिलाने हेतु सारा समुद्र पी गए थे। अगस्त्य के बारे में कहा जाता है कि एक बार इन्होंने अपनी मंत्र शक्ति से समुद्र का समूचा जल पी लिया था।

8. इसी प्रकार इल्वल तथा वातापी नामक दुष्ट दैत्यों द्वारा हो रहे ऋषि-संहार को इन्होंने ही बंद करवाया था। मणिमती नगरी के इल्वल तथा वातापी नामक दुष्ट दैत्यों की शक्ति को नष्ट कर दिया था। अगस्त्य ऋषि के काल में राजा श्रुतर्वा, बृहदस्थ और त्रसदस्यु थे। इन्होंने अगस्त्य के साथ मिलकर दैत्यराज इल्वल को झुकाकर उससे अपने राज्य के लिए धन-संपत्ति मांग ली थी।
9. दक्षिण भारत में ऋषि अगस्त्य सर्वाधिक पू्ज्यनीय हैं। श्रीराम अपने वनवास काल में ऋषि अगस्त्य के आश्रम में पधारे थे।

10. ऋषि अगस्त्य के वंशजों को अगस्त्य वंशी कहा गया है। अगस्त्य वंश के गोत्रकार करंभ (करंभव) कौशल्य, क्रतुवंशोद्भव, गांधारकावन, पौलस्त्य, पौलह, मयोभुव, शकट (करट), सुमेधस ये गोत्रकार अगस्त्य, मयोभुव तथा महेन्द्र इन 3 प्रवरों के हैं। अगस्त्य, पौर्णिमास ये गोत्रकार अगस्त्य, पारण, पौर्णिमास इन 3 प्रवरों के हैं।
11. वेदों में धातुओं के तार बनाकर उनका उपयोग करने का उपदेश है- युवं पैदवे पुरूवारमश्विना स्पृधां श्वेतं तरूतारं दुवस्यथः। शर्यैरभिद्युं पृतनासु दुष्टरं चर्कत्यमिन्द्रमिव चर्षणीसहम्।। -ऋग्वेद अष्ट1।अ8।व21।मं10।।

 

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