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Veer Kunwar Singh Jayanti: जानिए कौन थे वीर कुंवर सिंह जिन्होंने चटाई थी अंग्रेजों को धूल

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Veer Kunwar Singh Jayanti: जानिए कौन थे वीर कुंवर सिंह जिन्होंने चटाई थी अंग्रेजों को धूल

भारत की आजादी के लिए सैकड़ो वीरों और वीरांगनाओं ने अपने साहस का परचम लहराते हुए लड़ाई लड़ी। देश को अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों से निकालने के इस संघर्ष में कई वीर शहीद भी हुए। कुछ वीरसपूतों के नाम तो हमें मुंह जुबानी याद हैं, लेकिन कुछ ऐसे वीर भी रहे हैं, जिनके बलिदान के बारे में बहुत कम ही लोगों को पता है। उन्हीं वीरों में से एक बाबु वीर कुंवर सिंह भी थे। जिनकी बहादुरी की कहानी आज हम इस लेख में बताने जा रहे हैं।

वीर कुंवर सिंह का जीवन परिचय

13 नवंबर, 1777 को बिहार राज्य के भोजपुर जिले में वीर कुंवर सिंह का जन्म हुआ था। कुंवर सिंह का जन्म एक राजपूत जमींदार परिवार में हुआ था। उनके पिता राजा शाहबजादा सिंह जगदीशपुर के जमींदार और योद्धा थे जो अपनी वीरता और साहस के लिए जाने जाते थे। राजा शाहबजादा सिंह के 4 पुत्र थे जो उन्हीं की तरह प्रसिद्ध योद्धा भी थे। उन पुत्रों में सबसे छोटे वीर कुंवर सिंह थे। योद्धा परिवार में जन्म होने के कारण कुंवर सिंह को भी कम उम्र से ही घुड़सवारी, तलवारबाजी और तीरंदाजी सहित युद्ध के विभिन्न पहलुओं की ट्रेनिंग दी गयी। इन सब के अलावा वीर कुंवर सिंह को कविता और संगीत में गहरी रुचि थी, जिसे उन्होंने जीवन भर जारी रखा।

बिहार में क्रांतिकारियों का किया नेतृत्व

वीर कुंवर सिंह की खासियत यह थी कि उन्होंने 80 साल की उम्र में भी अपनी वीरता को बरकरार रखा और युवा की तरह अंग्रेजों से लड़े। उन्होंने कभी अपने ऊपर उम्र को हावी नहीं होने दिया। 1857 में जब आजादी की पहली लड़ाई लड़ी जा रही थी तब उन्होंने बिहार में अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने का काम किया। कुंवर सिंह ने दानापुर में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ रहे क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया।

ब्रिटिश सरकार को घुटने पर ले आए थे

1848-49 में जब अंग्रेजी शासकों ने विलय नीति अपनाई तो इससे भारत के बड़े-बड़े राजाओं के अंदर डर जाग गया। वीर कुंवर सिंह को अंग्रेजों की यह बात रास नहीं आई और वे उनके खिलाफ खड़े हो गए। उन्होंने दानापुर रेजिमेंट, रामगढ़ के सिपाहियों और बंगाल के बैरकपुर के साथ मिलकर अंग्रेजों पर हमला कर दिया। इस दौरान मेरठ, लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर, झांसी और दिल्ली में भी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह के स्वर मुखर हो रहे थे। ऐसे में अपने साहस, कुशल सैन्य नेतृत्व और अदम्य साहस की बदौलत वीर कुंवर सिंह अंग्रेजों को घुटनों पर ले आए थे। अपने पराक्रम के दम पर उन्होंने आरा, जगदीशपुर और आजमगढ़ को आजाद कराया था।

खुद ही काट ली थी अपनी बांह

वीर कुंवर सिंह ने 1985 में जगदीशपुर के किले से अंग्रेजों के झंडे को हटाकर अपना झंडा फहराया था। जब वे अपनी सेना के साथ बलिया के पास शिवपुरी में गंगा नदी पार कर रहे थे तो इसकी भनक अंग्रेजों को लग गई। उन्होंने मौका देखते हुए बिना किसी सूचना के उन्हें घेर लिया और गोलीबारी कर दी। इस गोलीबारी में उनके बाएं हाथ पर गोली लग गई। गोली का जहर उनके पूरे शरीर में फैलता जा रहा था। वे नहीं चाहते थे जिंदा या मुर्दा अंग्रेजों के हाथ उनका शरीर लगे। इसलिए उन्होंने तलवार से अपनी गोली लगी बांह को काटकर गंगा में समर्पित कर दिया। इसके बाद एक ही हाथ से अंग्रेजों का सामना करते रहे।

‘1857 में अंग्रेजों को छोड़ना पड़ता भारत’

वीर कुंवर सिंह की वीरता के बारे में अंग्रेज इतिहासकार होम्स ने लिखा है कि ‘यह गनीमत थी कि युद्ध के समय वीर कुंवर सिंह की उम्र 80 थी। यदि वह जवान होते तो शायद अंग्रेजों को 1857 में ही भारत छोड़ना पड़ता।’ 23 अप्रैल 1858 को वीर कुंवर सिंह अंग्रेजों को धूल चटाकर अफने महल में वापस लौटे। मगर उनका घाव इतना गहरा हो गया था कि उनकी जान नहीं बच सकी। 26 अप्रैल 1858 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

1857 की क्रांति क्या थी

ब्रिटिश का अत्याचार बढ़ा और भारतीयों का आक्रोश जिसने 1857 ई. की क्रांति को हवा दी। 1857 की क्रांति ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को खत्म करने के लिए की गई थी। इस क्रांति के एक नहीं बल्कि कई कारण थे जिनमें राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा धार्मिक, सैनिक एवं तात्कालिक कारण शामिल है। इस क्रांति के बाद देश में कई बदलाव आये जैसे भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त हो गया,  भारत के गवर्नर जनरल को वायसराय बना दिया गया, भारत में मुगल सत्ता का अंत हो गया आदि। यानी कि इस क्रांति ने अंग्रेजों को हिला कर रख दिया।

न्योछावर किया सर्वस्व : 

15 अगस्त, 1857 से 10 फरवरी, 1858 के मध्य बाबू कुंवर सिंह ने अपनी अविराम स्वतंत्र चेतना से युक्त स्वाधीनता की यज्ञाग्नि प्रज्वलित रखी। कुंवर सिंह के वंशज उज्जैन के परमार वंश के क्षत्रिय थे। इसी वंश के राजा भोज ने भोजपुरी बोली का विकास और विस्तार किया था। अत: वे भोजपुरीभाषी कुंवर सिंह के लिए सर्वस्व न्योछावर करने हेतु कटिबद्ध थे। लेखक सुंदरलाल ने अपनी पुस्तक में यह भी लिखा है कि, ‘17 अक्टूबर, 1858 को जब अंग्रेजों ने जगदीशपुर पर सभी दिशाओं से आक्रमण किया तो महल की 150 स्त्रियों ने शत्रु के हाथ में पड़ना गंवारा न किया और तोपों के मुंह के सामने खड़ी होकर ऐहिक जीवन का अंत कर लिया था।’

अंग्रेज भी करते थे प्रशंसा : 

आरा/ब्वायल कोठी की लड़ाई एक सप्ताह चली। ‘टू मंथ्स इन आरा’ के लेखक डा. जान जेम्स हाल ने आरा हाउस का आंखों देखा दृश्य लिखते समय यह स्वीकार किया है कि कुंवर सिंह ने ‘व्यर्थ की हत्या नहीं करवाई। कोठी के बाहर जो ईसाई थे वे सब सुरक्षित थे।’ विनायक दामोदर सावरकर द्वारा लिखित अमर ग्रंथ ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ में जिन सात योद्धाओं के नाम से अलग खंड की रचना की गई है, उसमें से एक खंड बाबू कुंवर सिंह और उनके छोटे भाई अमर सिंह को समर्पित है। बाबू कुंवर सिंह पर इतिहासकार के.के. दत्त की भी पुस्तक है पर फिर भी इतिहास के इस महानायक पर जितना लिखा जाना चाहिए, उतना नहीं लिखा गया।

वीर कुंवर सिंह पर कोट्स

वीर कुंवर सिंह पर निबंध जान लेने के बाद आइये जान लेते हैं कुछ वीर कुंवर सिंह पर कोट्स –

  • अस्सी वर्ष की आयु थी उनकी, और लहू राजपूताना था
    वो वीर कुवर सिंह थे, जिनको सबने फिर से भीष्म पितामह माना था।
  • इतिहास में गूंजता नाम है बाबु वीर कुँवर सिंह,
    शेर की दहाड़ थे बाबु वीर कुँवर सिंह,
    देश के वीर जवान थे बाबु वीर कुँवर सिंह,
    आज भी हर किसी के रोंगटे खड़े करदे ऐसे विचार के थे बाबु वीर कुँवर सिंह।।
  • गूंज रहा है दुनिया में जीत का नगाड़ा,
    चमक रहा है आसमान में भारत का सितारा,
    आजादी के लिए लड़ने वाले उन वीरों को नमन,
    जिनके कारण लहरा रह तिरंगा हमारा।
  • ना घर मेरा, ना शहर मेरा,
    ना ही बड़ा है नाम मेरा,
    मुझे तो इस बात का गर्व है,
    मै हिन्दुस्तान का हूँ और हिन्दुस्तान है मेरा।
  • शूरवीरों की तरह जंग लड़े वो,
    फिर खून खौल फौलाद हुआ।
    आखिरी दम तक मैदान में डटे रहे वो,
    तब ही तो हमारा देश आजाद हुआ ।।

वीर कुंवर सिंह से जुड़े कुछ तथ्य 

वीर कुंवर सिंह से जुड़े कुछ तथ्य इस प्रकार हैं –

  • वीर कुंवर सिंह को उस समय में स्वतंत्रता संग्राम का बूढ़ा शेर कहा जाता था, क्योंकि 80 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने क्षेत्र शाहाबाद (अब उत्तर प्रदेश में) को अंग्रेजों के चुंगल से मुक्त कराया था।
  • उन्हें साल 1857 के महासंग्राम का सबसे बड़ा योद्धा कहा जाता है।
  • वीर कुंवर सिंह मालवा के सुप्रसिद्ध शासक महाराजा भोज के वंशज थे।
  • अंग्रेजों का सामना करने के दौरान उनके हाथ में गोली लगी थी, जिसके बाद उन्होंने अपना हाथ खुद ही काट लिया था और डटकर अंग्रेजो का सामना करते रहे।
  • बिहार सरकार द्वारा हर साल 23 अप्रैल को वीर कुंवर सिंह के ‘विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

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