Bihar news

चुनाव आयोग ने मांगे हैं 11 डॉक्यूमेंट,बिहार में वोटर कार्ड जांच पर लग सकता है ब्रेक

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

चुनाव आयोग ने मांगे हैं 11 डॉक्यूमेंट,बिहार में वोटर कार्ड जांच पर लग सकता है ब्रेक

Bihar Voter List Revision: बिहार में जितनी चर्चा विधानसभा चुनाव को लेकर है उससे ज्यादा चर्चा इस बात की है कि वहां के लोग वोट कैसे डालेंगे क्योंकि वोट डालने में चुनाव आयोग के नए दिशा-निर्देशों के तहत लोगों को काफी मुश्किलें पेश आ रही हैं। बिहार के तमाम गांवों में लोग चुनाव आयोग की ओर से मांगे गए डॉक्यूमेंट्स को बनवाने के लिए भाग-दौड़ कर रहे हैं। राज्य में कुछ ही महीने के भीतर विधानसभा के चुनाव होने हैं।

चुनाव आयोग ने 25 जुलाई तक वोटर लिस्ट के वेरिफिकेशन का काम पूरा करने को कहा है। इसके लिए पूरे बिहार में जोर-शोर से तैयारी चल रही है। सबसे ज्यादा परेशान वे लोग हैं जिनका नाम 2003 की वोटर लिस्ट में नहीं था। बिहार में ऐसे लोगों की संख्या 2.93 करोड़ है।

बताना जरूरी होगा कि चुनाव आयोग ने कहा है कि जरूरी 11 दस्तावेजों में से कोई एक उनके पास होना जरूरी है, तभी वे वोट डाल पाएंगे। विपक्ष ने कहा है कि बीजेपी के इशारे पर चुनाव आयोग बिहार के गरीब, दलित, पिछड़े और वंचित समाज के लोगों को परेशान कर रहा है।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से लग सकता है ब्रेक

ECI के पुराने अधिकारियों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार कहा है कि ECI का काम सिर्फ ये देखना है कि वोट डालने का अधिकार सिर्फ नागरिकों को मिले।लेकिन, कोर्ट ने ये भी बताया है कि ECI को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

1995 का लाल बाबू हुसैन मामला एक उदाहरण है। लाल बाबू हुसैन बनाम Electoral Registration Officer (ERO) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ECI के दो आदेशों को रद्द कर दिया था। ये आदेश 21 अगस्त, 1992 और 9 सितंबर, 1994 को जारी किए गए थे। पहले आदेश में सभी जिलाधिकारियों को पुलिस जांच के जरिए ये पता लगाने का अधिकार दिया गया था कि कोई व्यक्ति विदेशी है या नहीं। दूसरे आदेश में ERO को विदेशी नागरिकों की पहचान कर उनके नाम मतदाता सूची से हटाने का अधिकार दिया गया था।

इन आदेशों को चुनौती देने वाली याचिकाएं तब दायर की गईं जब ग्रेटर बॉम्बे (अब मुंबई) में लगभग 1.67 लाख लोगों को नोटिस जारी किए गए। उनसे ये दस्तावेज मांगे गए थे। (i) जन्म प्रमाण पत्र (ii) भारतीय पासपोर्ट (iii) नागरिकता प्रमाण पत्र (iv) नागरिकता रजिस्टर में एंट्री का प्रमाण।

सुप्रीम कोर्ट ने 1995 के आदेश को फिर से दोहराया था

सुप्रीम कोर्ट ने ECI के अधिकार को मानते हुए 1995 में दिए गए नियमों को दोहराया। कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को मतदाता सूची से निकालने से पहले उसे अपनी बात रखने का मौका देना चाहिए. साथ ही, संदिग्ध नागरिकता के मामले को संबंधित tribunal/authority यानी न्यायाधिकरण/प्राधिकरण को भेजना चाहिए और उसके अनुसार कार्रवाई करनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने ECI को याद दिलाया कि इसका मकसद सही नागरिकों के साथ अन्याय नहीं करना है, बल्कि विदेशियों को मतदाता सूची में शामिल होने से रोकना है।इसके बाद ECI ने सावधानी से काम किया और मतदाता सूची को अपडेट करने के लिए कम दखल देने वाला तरीका अपनाया। ECI ने मतदाताओं पर ज्यादा भरोसा किया।

एक उदाहरण है 2013 में गोवा में एक मतदाता चुनाव लड़ने के बाद विदेशी नागरिक पाया गया। ये मामला कोर्ट में गया और इसमें गृह मंत्रालय को भी दखल देना पड़ा। इसके बाद ECI ने अपने Form 6 (मतदाता सूची में नाम शामिल करने का आवेदन) में बदलाव किया। अब हर मतदाता को ये घोषणा करनी होती है कि वह भारतीय नागरिक है और गलत जानकारी देने पर उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट ने ERO के काम के तरीके पर उठाए थे सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने ERO के काम करने के तरीके पर सवाल उठाते हुए कुछ नियम बनाए। कोर्ट ने कहा कि अगर ERO को लगता है कि किसी ऐसे व्यक्ति का नाम मतदाता सूची में है जिसकी नागरिकता संदिग्ध है, तो नोटिस जारी करने से पहले ERO को पिछली मतदाता सूची की जांच करनी चाहिए और उसे ध्यान में रखना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये जांच quasi judicial यानी अर्ध-न्यायिक होनी चाहिए। जांच अधिकारी को सभी सबूतों पर ध्यान देना चाहिए, चाहे वे दस्तावेज हों या कुछ और व्यक्ति को अपनी बात रखने और अपना मामला साबित करने का मौका मिलना चाहिए। जांच अधिकारी को संविधान, नागरिकता अधिनियम और नेचुरल जस्टिस के सिद्धांतों को ध्यान में रखना चाहिए।

असम में अवैध प्रवासियों की समस्या बहुत ज्यादा है। 2002 में ‘Intensive Revision’ यानी गहन पुनरीक्षण के दौरान ये मुद्दा फिर से उठा। HRA चौधरी बनाम ECI मामले में असम के नागांव में कई मतदाताओं को ‘D’ (doubtful citizenship) यानी संदिग्ध नागरिकता के साथ एक अलग मतदाता सूची में डाल दिया गया था। ऐसा ECI के 1997 के आदेश के बाद किया गया था।

दिल्ली के पहाड़गंज में भी एक ऐसा ही मामला सामने आया था

वहीं, दिल्ली के पहाड़गंज इलाके में भी ऐसा ही हुआ। वहां उत्तर प्रदेश और बिहार से आए कई गरीब लोग रहते थे। ERO ने उनके दस्तावेज इसलिए नहीं माने क्योंकि वे ECI के नियमों के हिसाब से नहीं थे।

1995 में सुप्रीम कोर्ट ने ECI के दोनों आदेशों को रद्द करते हुए कहा कि ECI के नियमों के हिसाब से नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी उस व्यक्ति पर है, जबकि कई लोग पहले भी वोट डाल चुके थे।कोर्ट ने कहा कि इसका मतलब है कि ECI ने पहले ही उनकी जांच कर ली थी, तभी उनके नाम मतदाता सूची में शामिल किए गए थे।

ये प्रमाणपत्र हैं मान्य:

  • केंद्र, राज्य सरकार एवं सार्वजनिक उपक्रमों में कार्यरत कर्मियों के पहचान पत्र, पेंशन भुगतान आदेश
  • एक जुलाई 1987 के पूर्व सरकारी, स्थानीय प्राधिकार, बैंक, पोस्टऑफिस, एलआईसी एवं पब्लिक सेक्टर उपक्रमों से जारी आईकार्ड, दस्तावेज
  • सक्षम प्राधिकार से जारी जन्म प्रमाणपत्र
  • पासपोर्ट
  • मान्यता प्राप्त बोर्ड, विश्वविद्यालय से निर्गत मैट्रिक व अन्य शैक्षणिक प्रमाणपत्र
  • स्थायी आवासीय प्रमाणपत्र
  • वन अधिकार प्रमाणपत्र
  • सक्षम प्राधिकार द्वारा निर्गत ओबीसी/एससी/एसटी जाति प्रमाणपत्र
  • राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (जहां उपलब्ध हो)
  • राज्य/स्थानीय प्राधिकार द्वारा तैयार पारिवारिक रजिस्टर
  • सरकार की कोई भूमि/मकान आवंटन प्रमाणपत्र

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *