अभी तक नहीं जली है लालू की लालटेन; कांग्रेस के गढ़ में ओवैसी की सेंधमारी
अभी तक नहीं जली है लालू की लालटेन; कांग्रेस के गढ़ में ओवैसी की सेंधमारी
वहीं, परिसीमन के उपरांत इस विधानसभा क्षेत्र में बहादुरगंज प्रखंड का 20 पंचायत, टेढ़ागाछ प्रखंड के सभी 12 पंचायत, दिघलबैंक प्रखंड के तीन पंचायत सहित बहादुरगंज नपं के 18 वार्ड क्षेत्र को शामिल किया गया।
वर्ष 2005 में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में विधायक बने तौसीफ आलम क्षेत्र को कांग्रेस का मजबूत गढ़ बनाते हुए कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए थे। वहीं, 2020 में एआईएमआईएम से अंजार नईमी जीत कर राजद में शामिल हो गए।
विधानसभा 2025 के लिए फिर से मोर्चा तैयार
वहीं जनसुराज से प्रो. मुसब्बिर आलम के चुनाव लड़ने की संभावना बन रही है। वहीं, एनडीए ने अब तक अपना पत्ता नहीं खोला है। लेकिन भाजपा इस बार एआईएमआईएम व महागठबंधन के संघर्ष बीच पतली गली से विजयी पताका फहराकर एक बार फिर इतिहास रचना चाह रही है।
विकास या वोट बैंक
बहादुरगंज विधानसभा क्षेत्र के अधिकांश लोग गांव में रहते हैं। खेती ही आजीविका का मुख्य साधन है। लेकिन कोल्ड स्टोरेज, मंडी, प्रोसेसिंग यूनिट सहित अन्य कोई उद्योग धंधा नहीं होने के कारण लोग नाराज हैं। नदी कटाव विधानसभा के पश्चिमी क्षेत्र का मुख्य समस्या है।
हर चुनाव के समय नेता बहादुरगंज को अनुमंडल, ग्रामीण सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा व रोजगार का जिक्र तो करते हैं। लेकिन इसका हल नहीं निकल पाया। फलस्वरूप रोजगार की तलाश में यहां के युवक दिल्ली, पंजाब, गुजरात, हिमाचल, महाराष्ट्र व जम्मू-कश्मीर पलायन करने पर मजबूर हैं।
मुस्लिम बाहुल्य विधान सभा क्षेत्र
बहादुरगंज विधान सभा क्षेत्र में 66 प्रतिशत मुस्लिम वोटर है। जिससे यह सीट बिहार की सबसे मजबूत मुस्लिम-बहुल सीटों में गिना जाता है। मुस्लिम बाहुल्य के बाद हिन्दू वोटरों में गंगई समाज की अधिक मतदाता है।
भाजपा का परंपरागत वोटर होने के बावजूद पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने हमेशा इस समाज के लोगों को उपेक्षित ही रखा। विधानसभा प्रत्याशी बनाना तो दूर संगठनात्मक व एनडीए सरकार द्वारा गठित विभिन्न आयोग में भी तवज्जो नहीं दिया गया।
फलस्वरूप गंगई समाज शीर्ष नेतृत्व से नाखुश चल रहे हैं। जिसका खामियाजा एनडीए को उठाना पड़ सकता है।