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Makhanlal Chaturvedi Jayanti: जानिए कौन थे माखनलाल चतुर्वेदी? 16 वर्ष की आयु में बनें शिक्षक फिर राष्ट्र कवि

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Makhanlal Chaturvedi Jayanti: जानिए कौन थे माखनलाल चतुर्वेदी? 16 वर्ष की आयु में बनें शिक्षक फिर राष्ट्र कवि

Makhanlal Chaturvedi 132nd Birth Anniversary स्वतंत्रता संग्राम के कालखंड में हर क्रांतिकारी ने मातृभूमि को स्वतंत्र कराने का यथाशक्ति परिश्रम किया। किसी ने अहिंसा तो किसी ने अपनी ओजस्वी वाणी और कलम काे हथियार बनाकर विदेशी सत्ता काे झुकाने का काम किया। इसी कालखंड के लोकप्रहरी और कवियों की श्रेणी में एक नाम आता है बहुमुखी प्रतिभा के धनी माखनलाल चतुर्वेदी का। जिनकी अनेकों कविताएं देश के कई वीर और युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनीं। माखनलाल ने तत्कालीन वीरों की अभिलाषा को पुष्प की अभिलाषा के रूप में पिरोकर जन-जन तक पहुंचाया। …
‘…मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर तुम देना फेंक। मातृ-भूमि पर शीश चढाने, जिस पथ जावें वीर अनेक।’ माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा रचित ये वो पंक्तियां हैं जिन्हें 18 फरवरी 1922 को लिखा गया था। अर्थात् लगभग आठ दशक पहले। उस समय देश में पहुंओर आजादी का नारा ही गूंज रहा था। इसी संघर्ष के दौरान कई बारे ऐसे क्षण भी आएं जब माखनलाल चतुर्वेदी को जेल जाना पड़ा। आज हम भारत माता के इन्हीं सपूत जयंती मना रहे हैं।
देश के वरिष्ठ हिंदी कवि, लेखक और पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल 1889 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में बाबई गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम नन्दलाल चतुर्वेदी था जो गाँव के प्राइमरी स्कूल में अध्यापक थे। उनके जन्मदिवस के मौके माधवराव सप्रे संग्रहालय के संस्थापक व वरिष्ठ पत्रकार विजय दत्त श्रीधर ने पत्रिका प्लस के साथ उनसे जुड़े कुछ किस्से शेयर किए जो उन्होंने अपने वरिष्ठ साथियों और तत्कालीन खंडवा जिले के अधिकारी संतोष कुमार शुक्ल से सुने थे। श्रीधर बताते हैं कि माखनलाल चतुर्वेदी से मिलने के लिए एक बार नागपुर से पत्रकारों का दल खंडवा गया था। उस वक्त उन्होंने कहा था कि देखो भाई, तुम्हारी कीमत लगेगी, बार-बार लगेगी लेकिन जिस दिन तुमने अपनी कीमत ले ली उस दिन तुम्हारी कोई कीमत नहीं रह जाएगी। श्रीधर के मुताबिक इस बात से मौजूदा दौर में सीख लेने की जरूरत है। वर्ष 1990 में भोपाल में पत्रकारिता विश्वविद्यालय भी उन्हीं के नाम पर स्थापित किया गया है।

गांधी जी ने दी थी 24 घंटे निर्जल रहने की सजा

वर्ष 1920 के एक वाकये का जिक्र करते हुए श्रीधर बताते हैं कि महात्मा गांधी क्रांतिकारियों का समर्थन नहीं करते थे और चाहते भी नहीं थे कि उनके सहयोगी भी ऐसा कुछ करें। जबकि माखनलाल क्रांतिकारियों के वक्तव्य छापने के साथ-साथ उनकी मदद भी करते थे। एक बार जबलपुर में एक क्रांतिकारी छिपे हुए थे, कर्मवीर के संपादक के तौर पर माखनलाल ने ही उन्हें शरण दी। जब पता लगा कि पुलिस उस क्रांतिकारी को कभी भी गिरफ्तार कर सकती है तब माखनलाल खुद जाकर उन्हें नागपुर तक छोड़ा जहां से वो दक्षिण भारत चले गए। इसके बाद माखनलाल को लगा कि यह गलत है तो वेे सेवाग्राम गए, और गांधी जी को बताया कि मैंने एक क्रांतिकारी की मदद की है। तब गांधी जी ने उन्हें प्रायश्चित के तौर पर एक दिन का निर्जला व्रत रखने को कहा। इसके बाद 24 घंटे तक भूखे-प्यासे रहे माखनलाल को गांधी जी ने खुद खाना परोसकर खिलाया। इस प्रकार माखनलाल ने क्रांतिकारी के प्रति कर्तव्य की पूर्ति भी की और प्रायश्चित भी किया।

महज 16 वर्ष की आयु में ही बनें स्कूल के शिक्षक

माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल 1889 को भारत के मध्य प्रदेश के होशंगाबाद (अब नर्मदापूरम) जिले के बाबई गाँव में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा होशंगाबाद में पूरी की और बाद में इंदौर के होलकर कॉलेज से कला स्नातक की डिग्री हासिल की। माखनलाल चतुर्वेदी महज 16 वर्ष की आयु में ही स्कूल के शिक्षक बन गये। बाद में उन्होंने एक राष्ट्रवादी पत्रिका प्रभा के लिए लिखना शुरू किया। उन्होंने विभिन्न राष्ट्रवादी पत्रिकाओं प्रभा, प्रताप और कर्मवीर जैसी पत्रिकाओं में बतौर संपादक कार्य किया। पत्रिकाओं में संपादक के पद पर रहते हुए माखनलाल चतुर्वेदी को कई बार जेल भी जाना पड़ा।

बाद में, वह राष्ट्रवादी पत्रिकाओं प्रभा, प्रताप और कर्मवीर के संपादक थे और ब्रिटिश राज के दौरान उन्हें बार-बार जेल में रखा गया। भारतीय स्वतंत्रता के बाद, उन्होंने सरकार में कोई पद पाने से परहेज किया, इसके बजाय उन्होंने सामाजिक बुराइयों के खिलाफ और महात्मा गांधी की कल्पना के अनुसार शोषण-मुक्त, न्यायसंगत समाज के समर्थन में बोलना और लिखना जारी रखा।

हिन्दी के लिए 1967 में लौटा दिया था ‘पद्मभूषण’

माखनलाल चतुर्वेदी कविता के मामले में मैथिलीशरण गुप्त को अपना गुरु मानते थे और वर्ष 1916 में उनसे पहली मुलाकात लखनऊ कांग्रेस में हुई। जिसके बाद मैथिलीशरण गुप्त ने उनके जन्मदिन पर ‘माखन सा मन मृदुल तुम्हारा मिश्री जैसे वचन रसाल…Ó कविता भी लिखकर भेजी थी। वर्ष 196& में भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मभूषण’ से अलंकृत किया लेकिन राष्ट्रभाषा हिन्दी पर आघात करने वाले राजभाषा संविधान संशोधन विधेयक के विरोध में 10 सितंबर 1967 को माखनलाल चतुर्वेदी ने यह अलंकरण लौटा दिया था।

साहित्यिक के क्षेत्र में माखनलाल चतुर्वेदी

माखनलाल चतुर्वेदी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से गहराई से प्रभावित थे और उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन का समर्थन करने के लिए साहित्य को अपने हथियार के रूर में चुना। देश के लिए आजादी के कई आंदोलन में उन्होंने अपनी साहित्यिक क्षमता का इस्तेमाल किया। उन्होंने देशभक्ति, राष्ट्रवाद और आम आदमी की दुर्दशा पर विस्तार से कई लेख लिखें। उनकी कुछ उल्लेखनीय कृतियों में “हिम तरंगिनी”, “साहित्य देवता”, “पुष्प की अभिलाषा” और “युग चरण” शामिल हैं।

जब चतुर्वेदी पर छाया पत्रकारिता का जुनून

हिन्दी साहित्यकार माखनलाल चतुर्वेदी, स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में एक प्रमुख पत्रकार के रूप में भी जाने जाते थे। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने हिंदी साप्ताहिक पत्रिता “मर्यादा” की स्थापना की और इसके संपादक के रूप में कार्य किया। उन्होंने अपने मंच का उपयोग सामाजिक मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और जनता को अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित करने के लिए किया। (Makhanlal Chaturvedi ka Jivan Parichay)

जेल में रहते हुए की “एक पुष्प की अभिलाषा” की रचना

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान माखनलाल चतुर्वेदी ने अपने लेखन के माध्यम से आजादी के लिए लड़ाई लड़ी। जब माखनलाल चतुर्वेदी को असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए बिलासपुर जेल (वर्तमान छत्तीसगढ़) में कैद किया गया था, तब उन्होंने एक पुष्प की अभिलाषा या ए फ्लावर्स विश लिखी थी। इस कविता में प्रतीकवाद का प्रयोग उल्लेखनीय है। फूल एक अलंकरण या एक महिला द्वारा सुशोभित आभूषण होने से इनकार करता है। यह मांगी गई या वांछित वस्तु होने से इंकार करता है।

इस कविता में फूल बहादुर शहीदों की कब्रों पर बरसाए जाने की अपेक्षा रखते हैं। वह अपनी कविता के माध्यम से शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं क्योंकि उन बहादुर आत्माओं ने अपनी मातृभूमि के लिए निस्वार्थ भाव से अपना जीवन बलिदान कर दिया है। उन्होंने देशवासियों के ऐसे निडर गुण की प्रशंसा की और इसे एक उद्देश्यपूर्ण अस्तित्व माना।

कर्मवीर के माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध जमकर प्रदर्शन और प्रचार किया और युवाओं को दासता से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। उन्होंने भारत की आजादी के बाद सरकार में कोई पद नहीं मांगा, बल्कि सामाजिक बुराइयों के खिलाफ और महात्मा गांधी के शोषण-मुक्त, न्यायसंगत समाज के दृष्टिकोण के समर्थन में बोलना और लिखना जारी रखा।

साहित्य अकादमी और पद्म भूषण से सम्मानित

माखनलाल चतुर्वेदी को उनकी काव्य कृति “हिम तरंगिनी” के लिए 1955 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। साहित्य और पत्रकारिता में उनके योगदान के लिए उन्हें 1963 में भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक, पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया था। उनकी स्मृति में, मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी (मध्य प्रदेश सांस्कृतिक परिषद) द्वारा 1987 से हर साल ‘माखनलाल चतुर्वेदी समारोह’ का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा किसी भारतीय कवि को कविता में उत्कृष्टता के लिए वार्षिक ‘माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार’ से सम्मानित किया जाता है।

मध्य प्रदेश के भोपाल में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय का नाम उनके सम्मान में रखा गया। चतुर्वेदी की कविता अपने देशभक्तिपूर्ण उत्साह, मानवतावाद और गीतात्मक सौंदर्य के कारण पाठकों के बीच आज भी गूंजती रहती है। उनका लेखन पीढ़ियों को सत्य, न्याय और करुणा के मूल्यों को बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है। 30 जनवरी, 1968 को माखनलाल चतुर्वेदी का निधन हो गया। उन्होंने भारत में हिन्दी साहित्य जगत के लिए एक समृद्ध साहित्यिक विरासत खड़ी की है जो हिंदी साहित्य को युगों-युगों तक प्रेरित और समृद्ध करती रहेगी।

ये हैं प्रमुख रचनाएं: 20वीं सदी की शुरुआत में माखनलाल ने काव्य लेखन शुरू किया था। हिमकिरीटिनी, हिम तरंगिनी, युग चरण, समर्पण, मरण ज्वार, माता, वेणु लो गूंजे धरा, ‘बीजुरी काजल आंज रही’ जैसी प्रमुख कृतियों सहित कई अन्य रचनाएं कीं। महान साहित्यकार माखनलाल चतुर्वेदी ने 30 जनवरी, 1968 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।

माखनलाल चतुर्वेदी की कविताएं| Makhanlal Chaturvedi Poems

  • वेणु लो गू़ँजे धरा
  • दीप से दीप जले
  • कैसा छन्द बना देती है
  • पुष्प की अभिलाषा

…तो इसलिए छोड़ दिया था सीएम का पद: कवयित्री महादेवी वर्मा अपने साथियों को इनका एक किस्सा बताती थीं कि स्वतंत्रता संग्राम के समय माखनलाल चतुर्वेदी को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए चुना गया था। सूचना मिलने के उपरांत इन्होंने कहा कि “शिक्षक और साहित्यकार बनने के बाद मुख्यमंत्री बना तो मेरी पदावनति होगी।” ये कहकर मुख्यमंत्री के पद को पंडित जी ने ठुकरा दिया था।

उपलब्धियां: 

  • पत्रकार परिषद के अध्यक्ष (1929)
  • म.प्र.हिंदी साहित्य सम्मेलन (रायपुर अधिवेशन) के सभापति
  • भारत छोड़ो आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता (1942) सागर वि.वि. से डी.लिट् की मानद उपाधि
  • हिमकिरीटिनी रचना के लिए 1943 में देव पुरस्कार
  • पुष्प की अभिलाषा और अमर राष्ट्र जैसी ओजस्वी रचनाओं के लिए 1959 में डी.लिट्. की मानद उपाधि
  • 1963 में पद्मभूषण
  • हिमतरंगिणी के लिये उन्हें 1955  में साहित्य अकादमी पुरस्कार

 

Makhanlal Chaturvedi Quotes: वास्तव में देशभक्ति का पथ

वास्तव में देशभक्ति का पथ, बलिदान का पथ ही ईश्वर भक्ति का पथ है

Makhanlal Chaturvedi Quotes: पत्रकार के लिए सबसे बड़ी चीज है

पत्रकार के लिए सबसे बड़ी चीज है – कलम.  जो न रुकनी चाहिए, न झुकनी चाहिए, न अटकनी चाहिए और न ही भटकनी चाहिए.

Makhanlal Chaturvedi Quotes: कर्म ही अपना जीवन प्राण

कर्म ही अपना जीवन प्राण,
कर्म पर हो जाओ बलिदान.

Makhanlal Chaturvedi Quotes: मुझे तोड़ लेना वनमाली

मुझे तोड़ लेना वनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने,
जिस पथ जाएँ वीर अनेक’

Makhanlal Chaturvedi Quotes: हम अपनी जनता के पूर्ण उपासक होंगे

हम अपनी जनता के पूर्ण उपासक होंगे, हमारा दृढ विश्वास होगा कि विशेष मनुष्य या विशेष समूह नहीं बल्कि प्रत्येक मनुष्य और समूह मातृ सेवा का अधिकारी है

Makhanlal Chaturvedi Quotes: हमारा पथ वही होगा जिसपर

हमारा पथ वही होगा जिसपर सारा संसार सुगमता से जा सके.  उसमें छत्र धारण किए हुए, चंवर से शोभित सिर की भी कीमत वही होगी जो कृशकाय, लकड़ी के भार से दबे हुए एक मजदूर की होगी.

Makhanlal Chaturvedi Quotes: हम मुक्ति के उपासक हैं

हम मुक्ति के उपासक हैं.  राजनीति या समाज में, साहित्य में या धर्म में, जहाँ भी स्वतंत्रता का पथ रोका जाएगा, ठोकर मारनेवाले का प्रहार और घातक के शस्त्र का पहला वार आदर से लेकर मुक्त होने के लिए हम सदैव प्रस्तुत रहेंगे.  दासता से हमारा मतभेद होगा फिर वह शरीर का हो या मन की, शासकों की हो या शासितों की.

Makhanlal Chaturvedi Quotes:  समाचार – पत्र यदि संसार की

समाचार – पत्र यदि संसार की एक बड़ी ताकत है तो इसके सिर पर जोखिम भी कोई कम नहीं है.

Makhanlal Chaturvedi Quotes:  जगत में बिना जिम्मेदारी के बड़प्पन

जगत में बिना जिम्मेदारी के बड़प्पन के मूल्य ही क्या हैं ? और वह बड़प्पन तो मिट्टी के मोल हो जाता है , जो अपनी जिम्मेदारी को सम्हाल नहीं पाता.

Makhanlal Chaturvedi Quotes:  कितने संकट के दिन हैं.

कितने संकट के दिन हैं.  ये व्यक्ति ऐसे चौराहे पर खड़ा है , जहाँ भूख की बाजार दर बढ़ गई है और पाथी हुई स्वतंत्रता की बाजार दर घट गयी है और सिर पर पेट रखकर चल रहा है.  खाद्य पदार्थों की बाजार दर बढ़ी हुई है और चरित्र की बाजार दर गिर गयी है.

Makhanlal Chaturvedi Quotes:  राजनीति में देश के अभ्युत्थान

राजनीति में देश के अभ्युत्थान और संघर्ष के लिए हमें स्वयं अपनी ही संस्थाएं निर्माण करनी पड़ेगी.  इस दिशा में हम किसी दल विशेष के समर्थक नहीं , किन्तु एक कभी न झुकने वाली राष्ट्रीयता के समर्थक होंगे फिर चाहे वह दाएं दीख पड़े या बाएं ?

मृत्यु:

  • माखनलाल चतुर्वेदी का निधन 30 जनवरी, 1968 को हुआ. 
  • यह संयोग है कि उनकी और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि एक ही दिन है. 

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