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Bihar Politics: सीट शेयरिंग को लेकर सामने आई नई बात; क्या चुनाव से पहले बिहार में बिखर जाएगा महागठबंधन?

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Bihar Politics: सीट शेयरिंग को लेकर सामने आई नई बात; क्या चुनाव से पहले बिहार में बिखर जाएगा महागठबंधन?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले महागठबंधन में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर पेंच फंसा हुआ है। इस बीच राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस सीट शेयरिंग पर चर्चा शुरू करने वाली है। पटना में आगामी 17 अप्रैल को महागठबंधन की बैठक बुलाई गई है। इसमें बिहार चुनाव में इलेक्शन की रणनीति और सीट बंटवारे पर पहले दौर की चर्चा होगी। इसमें आरजेडी और कांग्रेस के साथ ही लेफ्ट पार्टियों के नेता भी शामिल होंगे। बता दें कि राजद के नेता तेजस्वी यादव को सीएम कैंडिडेट बता रहे हैं, जबकि कांग्रेस चुनाव नतीजों के बाद मुख्यमंत्री तय करने की बात कह रही है।

रिपोर्ट्स में सूत्रों के हवाले से दावा किया गया है कि महागठबंधन के बैठक की तारीख 17 अप्रैल तय की गई है। इसमें सभी घटक दलों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। माना जा रहा है कि राजद, कांग्रेस और वाम दल सीट शेयरिंग को लेकर अपने प्रस्ताव सहयोगियों के सामने रखेंगे। मुख्यमंत्री के चेहरे पर इस बैठक में चर्चा होगी या नहीं, यह फिलहाल स्पष्ट नहीं है।

तेजस्वी यादव के नाम पर कांग्रेस सहमत नहीं!

बिहार विधानसभा चुनाव में एक ओर जहां आरजेडी की ओर से तेजस्वी यादव को सीएम कैंडिडेट बताया जा रहा है, वहीं कांग्रेस की ओर से अब तक सीएम फेस के नाम पर सहमति नहीं जताई गई है। कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरू ने पिछले दिनों कहा था सीएम फेस के मुद्दे पर बाद में फैसला लिया जाएगा। वहीं गुरुवार को कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव सचिन पायलट ने भी पटना में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि महागठबंधन को बहुमत मिलने के बाद सीएम का नाम तय किया जाएगा।

सीटों पर खींचतान जारी

अपने वर्चस्व की चिंता में राजद अगर स्ट्राइक रेट की दुहाई देता है तो वामदलों का प्रदर्शन आड़े आ जाता है। महत्वाकांक्षी वीआइपी तो 60 सीटों के साथ उप मुख्यमंत्री का पद भी मांग रही।

कांग्रेस को कम-से-कम 70 सीटें चाहिए। यह संख्या राजद के गणित को गड़बड़ा देती है, जो स्वयं 150 से अधिक सीटों पर लड़ना चाह रहा।

भाकपा (माले) सार्वजनिक रूप से मुखर तो नहीं, लेकिन विधान परिषद में कांग्रेस की रिक्त सीट लेकर वह पूर्वाभास करा चुका है।

अभी राजद का सबसे विश्वस्त सहयोगी माले ही है, जबकि लालू कभी कांग्रेस को हाफ और वामदलों को साफ करने का संदेश दिया करते थे।

उसी कांग्रेस और वामदलों को राजद पिछले तीन-चार चुनावों से अपनी छतरी के नीचे रखे है। ऐसा लालू के राजनीतिक कौशल से संभव हुआ, जिसमें तेजस्वी को अभी सिद्धस्त होना है।

घटक दलों के लिए अपना हित साधने का यही अवसर है। इसीलिए अब पप्पू यादव भी तेजस्वी को अहंकारी राजनीति छोड़ एक कदम पीछे हटने की राय दे रहे।

गठबंधन में नेतृत्व का मुद्दा

कांग्रेस के दूसरे नेताओं की तरह शुक्रवार को पटना में सचिन पायलट भी यह कह गए कि महागठबंधन के नेता का चयन घटक दलों की आपसी सहमति से चुनाव बाद होगा।

तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर चुका राजद मान रहा कि कांग्रेस के इस रुख का कारण हैसियत की होड़ है।

सम्मानजनक सीटों की अपेक्षा वाम दलों को भी है, लेकिन अस्थिर चित्त वाले विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) की मुखरता सुखद संकेत नहीं।

ऐसे में राजद अभी सीटों के मुद्दे पर मौन रहना ही श्रेयस्कर समझ रहा, ताकि तेजस्वी का हित प्रभावित न हो।

बहरहाल राजद की दुखती रग को कांग्रेस इतना दबा देना चाहती है कि समझौते की पेशकश दूसरी ओर से होने लगे।

यह सोची-समझी रणनीति है, जिसका सबक कांग्रेस को लोकसभा चुनाव से मिला है। तब एक-एक सीट के लिए लालू ने उसे पानी पिलाया था।

अब बारी कांग्रेस की है, जो मनचाही सीटोंं के लिए राजद को उसी के पैंतरे में उलझाए हुए है। महागठबंधन में नेतृत्व को लेकर बनाई गई भ्रम की स्थिति का असली कारण यही है।

पप्पू और कन्हैया की भूमिका

दबंग छवि वाले पप्पू और वाकपटु कन्हैया कुमार राजद को इसलिए नहीं जंचते, क्योंकि जातिगत नेतृत्व और युवा-वय के आधार पर वे दोनों तेजस्वी के लिए चुनौती हैं।

अब पप्पू को कांग्रेस अपने अधिवेशन तक में आमंत्रित कर रही और कन्हैया की ”पलायन रोको-नौकरी दो” यात्रा में राहुल गांधी तक सहभागिता कर रहे।

प्रतिकार में तेजस्वी को यह बताना पड़ रहा कि पलायन, बेरोजगारी, आरक्षण और संविधान पर आंदोलन मेंं राजद सर्वप्रथम है।

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