यूपीएस पर यू टर्न या कांग्रेस का पत्ता कट, क्या है सरकार की रणनीति, क्या अग्निपथ-जाति जनगणना पर भी बदलेंगे सुर?
यूपीएस पर यू टर्न या कांग्रेस का पत्ता कट, क्या है सरकार की रणनीति, क्या अग्निपथ-जाति जनगणना पर भी बदलेंगे सुर?
लैटरल एंट्री से लेकर नई पेंशन स्कीम, ब्रॉडकास्टिंग ड्राफ्ट बिल से लेकर डब्ल्यूएएफ बिल तक…कांग्रेस खुशी से कह रही है कि मोदी सरकार ने विपक्ष के दबाव में यू-टर्न लिया है। दावा किया गया कि कैसे नरेंद्र मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में विपक्ष के दबाव में है और अपने ही फैसले वापस लेने के लिए मजबूर हो रही है।
हालांकि, सरकार इसे कांग्रेस के पत्ते की काट के तौर पर देख रही है. उनका यह भी मानना है कि जनता की नब्ज को परखने की क्षमता केवल उन्हीं में है। कई बीजेपी नेताओं का मानना है कि यह लोकसभा चुनाव के बाद जनता के बीच फिर से पकड़ बनाने का हिस्सा है.
अब रायसीना हिल्स के गलियारों में दो और फैसलों की खूब चर्चा हो रही है. कहा जा रहा है कि सरकार इन पर पुनर्विचार भी कर सकती है. पहला, सेना भर्ती की ‘अग्निपथ’ योजना और दूसरा, जातीय जनगणना. कहा जा रहा है कि सरकार अग्निपथ योजना की समीक्षा कर सकती है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कई मौकों पर कह चुके हैं कि सरकार ‘अग्निपथ’ योजना में बदलाव करने के लिए तैयार है, ताकि इसमें सुधार किया जा सके.
माना जा रहा है कि इस योजना की वजह से बीजेपी को लोकसभा चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा, क्योंकि कांग्रेस ने सत्ता में आने पर इस योजना को खत्म करने का वादा किया था.
जाति जनगणना पर क्या है रुख?
इसी तरह जातीय जनगणना भी एक मुद्दा है, जिस पर बीजेपी के दो प्रमुख सहयोगी जेडीयू और एलजेपी सरकार पर दबाव बना रहे हैं. बिहार में जाति की राजनीति एक अहम मुद्दा है और अगले साल वहां विधानसभा चुनाव भी होने हैं. ऐसे में जातीय जनगणना एक अहम कारक हो सकता है. अब तक प्रधानमंत्री ‘अग्निपथ’ योजना का पुरजोर बचाव करते रहे हैं.
अभी पिछले महीने जब वह कारगिल में थे तो उन्होंने अग्निपथ योजना की तारीफ की थी. वहीं, सरकार अब तक जातीय जनगणना की सभी मांगों को खारिज करती रही है. वह इसे देश के लिए विभाजनकारी कदम बता रही हैं. सरकार ने इस पर विचार करने के लिए एक कमेटी बनाई है, लेकिन किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के लिए कानून बनाने की मांग कर रहे हैं.
पहले ही वापस उठा लिए कदम
यह पहली बार नहीं है जब सरकार पीछे हटी है. मोदी सरकार के पहले कार्यकाल और दूसरे कार्यकाल में दो बड़े फैसले वापस लिए गए, जिनमें से एक था भूमि अधिग्रहण कानून और दूसरा, तीन नए कृषि कानून। जब केंद्र में भाजपा के पास पूर्ण बहुमत था तो सरकार ने ये कानून वापस ले लिए। इसका जिक्र करते हुए पार्टी नेताओं का कहना है कि सरकार जनता की नब्ज पहचानना जानती है, इसीलिए ऐसे फैसले लिए जाते हैं.
सरकार ने एसीएसटी के वर्गीकरण और क्रीमी लेयर के निर्धारण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी पुरजोर विरोध किया है. बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने न्यूज18 से कहा, ”सरकार जानती है कि विपक्ष ऐसे मुद्दों पर साजिश रचता है. लोगों को विरोध करने के लिए उकसाता है. सरकार इन साजिशों से वाकिफ है, इसलिए वह नहीं चाहती कि विकास को रोकने के लिए कोई आंदोलन हो.
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