General Competition | Science | Biology (जीव विज्ञान) | पौधों तथा मानव शरीर का नियंत्रण एवं समन्वयन

पौधा में नियंत्रण एवं समन्वयन हेतु तीन प्रकार की गति पायी जाती है। पौधा में पायी जानेवाली गति पौधा में वृद्धि और विकास से संबंधित है, न कि प्रचलन (स्थान से।

General Competition | Science | Biology (जीव विज्ञान) | पौधों तथा मानव शरीर का नियंत्रण एवं समन्वयन

General Competition | Science | Biology (जीव विज्ञान) | पौधों तथा मानव शरीर का नियंत्रण एवं समन्वयन

  • बहुकोशिकीय सजीव के शरीर में बहुत से अंग तंत्र होते हैं जो अलग -अलग कार्यों को संपादित करते है। सभी अंग तंत्रों के कार्यों के बीच समन्वयन (Co-ordination) तथा उनपर नियंत्रण करने हेतु बहुकोशिकीय सजीव में जटिल तंत्र बना होता है।
  • पौधों तथा मानव शरीर में नियंत्रण तथा समन्वयन अलग-अलग तरीके से होता है। पौधों में नियंत्रण एवं समन्वयन कुछ गतियाँ (Plant Movement) तथा रसायनिक पदार्थ (Plant Hormone) के द्वारा सम्पन्न होता है। मानव शरीर में नियंत्रण तथा समन्वयन हेतु हॉर्मोन (Hormone) तथा तंत्रिका तंत्र (Narvous system) पाये जाते है।
पौधों में नियंत्रण एवं समन्वयन
  • पौधा में नियंत्रण एवं समन्वयन हेतु तीन प्रकार की गति पायी जाती है। पौधा में पायी जानेवाली गति पौधा में वृद्धि और विकास से संबंधित है, न कि प्रचलन (स्थान से।
    1. अनुवर्ती गति (Tropic Movement)- किसी बाहरी उद्दीपक (प्रकाश, ताप, मानव स्पर्श, जल आदि) के प्रति पौधो के किसी भाग (जड़, तना, पत्ती) में उत्पन्न गति को अनुवर्ती गति कहते हैं। अगर गति उद्दीपक की ओर होता है तो उसे धनात्मक अनुवर्त्तन कहते हैं अगर गति उद्दीपक से दूर हो तो ऋणात्मक अनुवर्त्तन कहलाते हैं।
      • वातावरण में पाँच सामान्य उद्दीपक है। प्रकाश के कारण होनेवाली अनुवर्ती गति को प्रकाशानुवर्त्तन कहते हैं । उसी प्रकार गुरूत्व के कारण उत्पन्न गति को गुरुत्वानुवर्त्तन, रसायन के कारण उत्पन्न गति को रसायनानुवर्त्तन, जल के कारण उत्पन्न गति को जलानुवर्त्तन कहते हैं।
      • पौधा का तना धनात्मक प्रकाशानुवर्त्ती प्रदर्शित करते हैं वही जड़ ऋणात्मक प्रकाशानुवर्त्ती प्रदर्शित करते हैं ।
      • तना ऋणात्मक गुरूत्वानुवर्त्ती प्रदर्शित करते हैं तथा जड़ धनात्मक गुरूत्वानुवर्त्ती प्रदर्शित करते हैं।
      • कमजोर पौधा जैसे - करैला, लौकी, मटर के टेनड्रिल धनात्मक स्पर्शानुवर्त्तन होते हैं जो किसी ठोस भाग के स्पर्श होते ही उनसे लिपट जाते हैं।  
    2. अनुकुंचन गति (Nastic Movement )- किसी बाहरी उद्दीपक के प्रति प्रतिक्रिया में पौधा के अंग की गति जिसमें उद्दीपक की दिशा द्वारा प्रतिक्रिया की दिशा निर्धारित नहीं होती है अनुकुंचन गति कहलाती है।
      • अनुवर्ती तथा अनुकुंचन गति से मुख्य अंतर यह है कि अनुवर्ती गति दिशात्मक होता है परंतु अनुकुंचन गति दिशांत्मक नहीं होता है। अनुकुंचन गति के उदाहरण-
        1. अँगुली से स्पर्श करने पर छूई मुई (मिमोसापुडिका) के पत्ते मुड़कर बंद हो जाते हैं। यह अनुकुंचन गति स्पर्शानुकुंचन कहलाता है।
          • छुई मुई को स्पर्श करने पर पत्तियों के बंद होने की घटना क्यों होती है इस पर सभी जीव वैज्ञानिकों का मत एक नहीं है। छुई मुई पौधा का इस व्यवहार से पौधे को कोई लाभ नहीं पहुँचाता है इस कारण एक विचारणीय प्रश्न बना हुआ है कि जब पौधा को कोई फायदा नहीं हो रहा है तो वे इस प्रकार के व्यवहार को क्यों प्रदर्शित कर रहे हैं।
        2. पौधो के फूल की पंखड़ियाँ तेज प्रकाश में खुलते हैं और शाम को बंद हो जाते हैं। इस प्रकार के अनुकुंचन गति प्रकाशानुकुंचन कहलाता है।
    3. अनुचलन (Tatic or Taxis Movement )- यह गति निम्न कुल के पौधे जैसे- शैवाल, युग्लीना तथा कुछ एककोशीय जीव में भी पाये जाते हैं यह गति भी बाहरी उद्दीपन के प्रभाव से उत्पन्न होते हैं परंतु इस गति में स्थान परिवर्तन ( locomotion) की क्रिया पायी जाती है।
      • यूग्लीना और क्लेमाइडोमोनास प्रकाश के प्रभाव से प्रकाश की ओर गति करना शुरू कर देते हैं वही कछुआ प्रकाश से दूर भाग जाता है इस प्रकार का अनुचलन गति प्रकाश - अनुचलन कहलाता है।
  • तीन गतियाँ के अलावे पौधों में कुछ रसायनिक पदार्थ बनते हैं जो पौधों में नियंत्रण एवं समन्वयन का काम करते हैं। इन रसायनिक पदार्थ को पादप हॉर्मोन कहते हैं। कुछ जीव वैज्ञानिक पादप हार्मोन को पाराहॉर्मोन तथा वृद्धि नियंत्रक रसायन भी कहते हैं। पौधा में निकलने वाले प्रमुख हॉर्मोन निम्नलिखित हैं-
    1. ऑक्जिन (Auxin)— यह रसायन मुख्य रूप से तने के शीर्ष भाग में बनता है तथा तना, पत्ती, में वृद्धि कराता है। यह जड़ में भी वृद्धि करवाता है तथा यह बीज रहित फल का उत्पादन में सहायक होते हैं।
      • ऑक्जीन रसायनिक रूप से इंडोल एसेटीक अम्ल है । आजकल कई ऐसे रसायन बाजार में उपलब्ध है जिसका प्रयोग पौधा पर इच्छानुसार वृद्धि के लिए किया जाता है।
      • ऑक्जीन के समान प्रमुख रसायनिक पदार्थ हैं- फेनॉक्सी ऐसीटिक अम्ल (2, 4-D), इंडोलाइल ब्यूटाइरिक अम्ल, इंडोलाइल प्रोपायोनिक अम्ल आदि। इस रसायन का प्रयोग खरपतवार नष्ट करने हेतु भी किया जाता है। 
    2. जिबरेलिन्स (Gibberellins)रसायन की खोज सर्वप्रथम जापान के टोकियो विश्वविद्यालय में जिबरैला नामक कवक में हुआ था। बाद में पता लगा कि यह रसायन पौधा में भी बनते हैं।
      • जिबरेलिन्स पौधे के लंबाई तथा मोटाई में वृद्धि करवाता है, बीजों के सुषुप्तावस्था को तोड़कर अंकुरण में मदद करता है, पतझड़ को रोकता है, फलों के पकने की प्रक्रिया को धीमा करता है तथा सेब जैसे फसल को ठंड और पाला से बचाता है।
      • जिबरेलीन्स के इस्तेमाल से बड़े आकार का फल तथा फूल का उत्पादन किया जाता है तथा बीजरहित फल के उत्पादन में यह ऑक्जीन की तरह ही सहायक होता है।
    3. साइटोकाइनिन (Cytokinin)— यह रसायन DNA में पाये जानेवाले नाइट्रोजन युक्त क्षार एडिनिन के समान है। इसका खोज मिलर ने मछली के शुक्राणु में किया था और इसका नाम काइनेटिन रखा, बाद में के समय में स्कूग नामक वैज्ञानिक इसका नाम साइटोकाइनीन रखा i
      • इस रसायन का निर्माण पौधों के जड़ों में तथा फल के भीतर होता है। यह रसायन ऑक्जीन के साथ मिलकर कोशिका - विभाजन की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है । यह पत्तों के विकास को धीमा करता है और क्लोरोफील को जल्दी नष्ट होने नहीं देता है। इस रसायन के प्रभाव से पेड़ की पत्तियाँ अधिक समय तक हरी और ताजी बनी रहती है।
    4. एबसिसिक एसीड (Abscissic acid or ABA)- यह एक प्रकार का वृद्धिरोधक पदार्थ है जो पौधा में होनेवाली वृद्धि को रोकता है। इसका निर्माण पौधे के पत्ते, फल और तना में होता है ।
      • यह रसायन पतझड़ कराने में कलियों की वृद्धि तथा अंकुरण को रोकने में सहायक होता है तथा यह कोशिका विभाजन को भी अवरूद्ध करता है ।
    5. इथाइलीन (Ethene or Ethylene)- यह फलों का पकाने वाला रसायन है जिसकी खोज सबसे पहले केले में हुआ था। कभी-कभी यह रसायन पौधे के वृद्धि को रोकता है, और फल तथा पत्तों को गिराता है।

Note :- पौधों में हॉर्मोन निकालने हेतु जंतुओं के तरह कोई अंतः स्त्रावी ग्रंथि नहीं होती है।

जंतुओं में नियंत्रण एवं समन्वयन

  • जंतुओं में नियंत्रण एवं समन्वयन हेतु अंतस्त्रावी ग्रंथि तथा तंत्रिका तंत्र पाये जाते हैं।
  • ग्रंथि दो प्रकार के होते हैं— अंतःस्त्रावी ग्रंथि तथा बाह्यस्त्रावी ग्रंथि । अंतःस्त्रावी ग्रंथि विभिन्न प्रकार के हॉर्मोन का स्त्राव करते हैं।
  • अंतःस्त्रावी ग्रंथि को नलिका विहीन ग्रंथि भी कहते हैं। क्योंकि इसमें कोई नली नहीं पायी जाती है। इस ग्रंथि से हॉर्मोन निकलकर सीधे रक्त में आ जाते हैं तथा रक्त के द्वारा ही शरीर के विभिन्न भाग में पहुँचते हैं।
मनुष्य के प्रमुख अंतःस्त्रावी ग्रंथि
  1. हाइपोथैलेमस ग्रंथि (Hypothalamus Gland)- यह अग्र मस्तिष्क (Fore Brain) में पाया जाता है। यह ग्रंथि शरीर में होने वलो सभी उपापचय (Metabolism) पर नियंत्रण रखता है। हाइपोथैलेमस ग्रंथि मस्तिष्क में पाये जाने वाले एक अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथि - पीयूष ग्रंथि की क्रिया को नियंत्रित करने हेतु release factor तथा Inhibitory Factor का निर्माण करता है।
    • हाइपोथैलेमस ग्रंथि से दो हॉर्मोन का स्त्राव हाता है-
      1. ऑक्सीटोसीन ( Oxytocin ) - यह हॉर्मोन आरेखित मांसपेशी (Unstriped Muscles) में संकुचन उत्पन्न करता है। महिलाओं में यह हॉर्मोन बच्चों को दुग्धपान कराते समय तथा संतान उत्पत्ति के समय आंतरिक दबाव बढ़ाता है ।
      2. भासोप्रेसीन (Vasopressin)- इस हॉर्मोन की कमी से शरीर में जल का सक्रिय रूप से परागमण नहीं हो पाता है, जिसके कारण बहुमूत्रता (बार-बार पेशाब लगना) उत्पन्न हो जाती है। इस हॉर्मोन को एंटीडाययूरेटिक हार्मोन भी कहते हैं ।
  2. पीयूष ग्रंथि (Pitutary Gland) - यह ग्रंथि मस्तिष्क में पाया जाता है। सभी अंतःस्त्रावी ग्रंथि के तुलना में यह सबसे छोटी ग्रंथि है। इस ग्रंथि से कुल सात प्रकार के हॉर्मोन का स्त्राव होता है।
    1. ग्रोथ हॉर्मोन (Growth Harmone or GH)- यह हॉर्मोन एक अन्य हॉर्मोन थाइरॉक्सीन के साथ मिलकर शरीर की वृद्धि एवं विकास को नियंत्रित करते हैं ।
      • इस हॉर्मोन की कमी से शरीर की वृद्धि रूक जाती है जिससे मनुष्यों में बौनापन (Dwarfism) हो जाता है।
      • इस हॉर्मोन की अधिक स्त्राव से मनुष्य की लंबाई काफी बढ़ जाती है, हड्डी मोटा एवं भारी हो जाता है, इस अवस्था को Gigantism कहा जाता है।
    2. TSH (Thyroid Stimulating Harmone)-- यह हॉर्मोन थाइरॉइड ग्रंथि के विकास, उसमें बनने वाले हॉर्मोन पर नियंत्रण रखता है I
    3. ACTH (Adreno corticotrophic Hormone)- यह हॉर्मोन एडरीनल ग्रंथि (अववृक्क ग्रंथि) के वृद्धि एवं उसमे बनने वाले हॉर्मोन पर नियंत्रण रखता है।
    4. MSH (Melanocyte Stimulating Hormone) - यह हॉर्मोन त्वचा (Skin) के मेलोनोसाइट कोशिका में बनने वाले मेलालीन रंग पर नियंत्रण रखता । यह हॉर्मोन का हमारे लिए कोई विशेष महत्व नहीं होता है ।
      • सफेद दाग (Vitiligo या ल्यकोडर्मा ) - जब त्वचा की मेलानोसाइट कोशिका किन्हीं कारणों से मेलालीन रंग बनाना बंद कर देती है तो त्वचा पर सफेद दाग हो जाते हैं। दुनिया की 1% तथा भारत का 8% जनसंख्या इस सफेद दाग से प्रभावित है और दुर्भाग्य की बात यह है कि इस सफेद दाग का अभी तक कोई पक्का इलाज विज्ञान को नहीं मिला है।
      • हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए की सफेद दाग कोई रोग अथवा बिमारी नहीं है। सफेद दाग वाले व्यक्ति के सभी अंग तंत्र ठीक उसी प्रकार कार्य करते है जिस प्रकार एक स्वस्थ व्यक्ति के । सफेद दाग न तो खतरनाक है और न ही यह छूत का रोग है। समाज के लोगों के बीच एक मिथक फैल गया है कि दूध एवं मछली एक साथ सेवन करने से सफेद दाग होता है, जो पूर्णतः गलत है।
    5. Prolactin (प्रोलैक्टीन ) - यह हॉर्मोन संतान उत्पत्ति के बाद दूध निर्माण की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। यह हॉर्मोन पुरूष में भी निकलता है लेकिन वह बेकार हो जाता है ।
    6. FSH (Folicle Stimulating Hormone ) - यह हॉर्मोन स्त्रियों में अंडा निर्माण प्रक्रिया (Oogenesis) तथा पुरूष में शुक्राणु निर्माण प्रक्रिया ( Spermatogenesis) को नियंत्रित करता है ।
    7. LH (Luteinzing Hormone) - यह वयस्क उम्र का हॉर्मोन है। इस हॉर्मोन के प्रभाव से स्त्रियों में अंडाणु (Ova) तथा पुरूष में शुक्राणु (Sperm) निकलना प्रारंभ हो जाते हैं। इसी हॉर्मोन के प्रभाव से विपरित लिंग एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं।
      • पीयूष ग्रंथि को अंतस्त्रावी ग्रंथि का मालिक कहा जाता है तथा इससे निकलने वाले हॉर्मोन को निश्चित लक्ष्य वाला हॉर्मोन कहा जाता है।
  3. Pineal gland (पीनियल ग्रंथि) - इस ग्रंथि के कार्य के बारे में कुछ भी स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है परंतु हाल के शोध-कार्य से मालूम हुआ है कि यह कोई स्त्राव उत्पन्न करता है। इस ग्रंथि से मिलेटोनिन तथा सिरोटिनिन हॉर्मोन का स्त्राव होता है।
    • मिलेटोनिन महिलाओं के मासिक चक्र की प्रक्रिया को धीमा करता है तथा सिरोटिनिन नींद लाने हेतु उत्तरदायी है |
  4. थाइरॉइड या अवटु ग्रंथि (Thyroid gland) - थाइरॉइड ग्रंथि शरीर का सबसे बड़ी अंतः स्त्रावी ग्रंथि है। यह लगभग 2–2.5 cm लम्बा तथा 1-1.5 cm मोटा होता है। इस ग्रंथि से दो मुख्य हॉर्मोन स्त्रावित होता है।
    1. Thyroxin— यह हार्मोन ग्लूकोज, अमीनो अम्ल और वसा का ऑक्सीकरण करवाता है जिससे हमें ATP के रूप में ऊर्जा की प्राप्ति होती है ।
      • यह हॉर्मोन, हाइपोथैलेमस ग्रंथि तथा TSH के साथ मिलकर शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है । शरीर के तापमान नियंत्रण की प्रक्रिया थर्मोरेगुलेशन कहलाता है।
      • थाइरॉक्सीन हॉर्मोन भ्रूण अवस्था से लेकर वयस्क होने तक Growth Hormone का सहायता करता है जिससे शरीर में वृद्धि होती है।
      • थाइरॉक्सीन के कमी से बच्चों में क्रेटिनिज्म रोग तथा बड़ों में इस हॉर्मोन की मात्रा अचानक बढ़ जाती है जिससे ग्रेभ की बिमारी हो जाती है। ग्रेम की बिमारी में एक या दोनों आँखे बड़ी-बड़ी और बाहर निकली दिखाई पड़ती है।
    2. Calcitonin— यह हॉर्मोन रक्त में उपस्थित कैल्शियम को हड्डी से जोड़ता है जिससे हड्डी मजबूत बनती है। इसकी कमी से Osteoporosis रोग होने की संभावना रहती है।
  5. पारा अवटु ग्रंथि (Parathyroid gland)- यह ग्रंथि थॉयरॉइड ग्रंथ ऊपर चिपकी रहती है तथा इसकी संख्या दो होती है। इससे एक मात्र हॉर्मोन पाराथॉर्मोन का स्त्राव होता। यह हॉर्मोन हड्डी के टूटे-फूटे भाग से अतिरिक्त कैल्शियम हटाकर रक्त में डालता है। Parathormone की कमी से गठिया तथा अधिकता से Osteoporosis रोग हो सकता है I
  6. अववृक्क ग्रंथि (Adrenal Gland ) - यह ग्रंथि दोनों वृक्क (Kidney) के उपर चिपके रहता है। यह ग्रंथि की संख्या हमारे शरीर में दो है । किडनी के तरह यह ग्रंथि का आंतरिक भाग दो स्पष्ट भागों में विभक्त रहता है- Medula तथा Cortex | अववृक्क ग्रंथि से निम्न प्रकार के हॉर्मोन स्त्रावित होते हैं।
    1. Mineralo Corticoid– इस हार्मोन का मुख्य कार्य वृक्क नालिकाओं (नेफ्रॉन) द्वारा सोडियम लवण का पुनः अवशोषण करवाना तथा शरीर में अन्य लवणों की मात्रा का नियंत्रण करना है। इसके अलावे यह हॉर्मोन शरीर में जल-संतुलन को नियंत्रण करता है तथा इसके प्रभाव से मूत्र द्वारा पोटैशियम एवं फॉस्फेट का अधिक उत्सर्जन होता है ।
      • इस हॉर्मोन के अधिक स्त्राव से Hypertension तथा कम स्त्राव से कैन्स रोग होता है। कैन्स रोग में तंत्रिका तंत्र में गड़बड़ी उत्पन्न होती है । 
    2. Gluco-corticoid- यह हॉर्मोन कार्बोहाइड्रेट प्रोटीन, एवं वसा के उपापचय (Metabolism) पर नियंत्रण रखते हैं तथा जरूरत पड़ने पर वसा तथा अमीनों अम्ल को कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित करते हैं।
      • शरीर में ग्लूकोज की कमी होने पर वसा अम्ल या अमीनों अम्ल का कार्बोहाइड्रेट (ग्लूकोज) में परिवर्तन gluconeogenesis कहलाता हैं ।
      • यह हॉर्मोन सूजन विरोधी तनाव-विरोधी एवं एलर्जी विरोधी क्रिया भी करते हैं। इस हॉर्मोन के बिना हमलोग जिंदा नहीं रह सकते हैं ।
    3. Cate Cholamine अववृक्क ग्रंथि के मेडुला भाग से दो हॉर्मोन स्त्रावित होते हैं- एड्रीनलीन तथा नॉर-एड्रीनलीन जिन्हें सम्मीलित रूप कैटेकोलामाइन भी कहते हैं।
      • यह हॉर्मोन हृदयगति तथा रक्तचाप को नियंत्रित करता है तथा तनाव वाले परिस्थितियों में (जैसे- भय, मारपीट, आगजनी दंगा ) इस हॉर्मोन की मात्रा अचानक बढ़ जाती है जिससे मांसपेशी में जमा सारा ग्लूकोज रक्त में आ जाता है जिससे एकाएक काफी ऊर्जा हमें प्राप्त होता है और हम विपरित परिस्थिति में अपनी रक्षा कर पाते हैं।
      • इस हॉर्मोन को लड़ो-उड़ो हॉर्मोन या 3F हार्मोन (Fight, Fear, Flight) भी कहते हैं ।
      • अववृक्क ग्रंथि से निकलने वाले तीनों हॉर्मोन को सम्मिलित रूप से 3S (Salt, Sugar, Stress) हॉर्मोन भी कहते हैं ।
  7. Pancreas (अग्न्याशय) - यह हमारे शरीर का मिश्रीत प्रवृत्ति की ग्रंथि है जो एंजाइम तथा हॉर्मोन दोनों को स्त्रावित करता है।
    • अग्न्याशय का पचास प्रतिशत भाग एसीनर कोशिकाओं से बना होता है जिससे एंजाइम निकलता है, शेष भाग एल्फा, बिटा, गामा (डेल्टा) कोशिकाओं से बना है जिसे Islets of Languerhans कहते हैं। लैंगर हैन्स द्वीपीका से ही हॉर्मोन स्त्रावित होता है। प्रमुख हॉर्मोन निम्न है-
      1. Insulin— यह बीटा कोशिका से स्त्रावित होता है। जब रक्त में ग्लूकोज का स्तर सामान्य से अधिक होता है तब यह हॉर्मोन स्त्रावित होकर अधिक ग्लूकोज जो ग्लाइकोजेन में बदल देता है। यह ग्लाइकोजैन हमारे यकृत जमा हो जाता है। इसकी कमी होने पर डायबिटिज मेटीलस (मधुमेह) रोग हो जाता है।
      2. Glucagon - यह अल्फा कोशिका से स्त्रावित होता है तथा Insulin के विपरित कार्य करता है। यह हॉर्मोन, रक्त में ग्लूकोज की मात्रा कमी होने पर ग्लाइकोजेन को ग्लूकोज में परिविर्तत करता है।
      3. Somato Statin- यह गामा या डेल्टा कोशिका से निकलने पाला हॉर्मोन घाव भरने में मदद करता है ।
      4. Gastrin - यह हॉर्मोन 14  स्त्रावित होता है। यह हॉर्मोन अमाशय से HCl का स्त्राव करवाता है। इस हॉर्मोन के अधिक स्त्राव से पेट में अल्सर होने की संभावना बन जाती है।
  8. Testes (वृषण) - यह पुरूषों में पायी जाने वाली अंतस्त्रावी ग्रंथि है। इसके द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन ऐंड्रोजेन (पुरूष हॉर्मोन) कहलाता है।
    • प्रमुख एंड्रोजेन Testosteron हार्मोन है जो पुरूष के लैंगिक लक्षण पर नियंत्रण रखते हैं।
  9. Overy (अंडाशय)- यह महिलाओं में पायी जाने वाली अंतस्त्रावी ग्रंथि है। इसके द्वारा निम्न हार्मोन का स्त्राव होता है-
    1. Astrogen इस हॉर्मोन का स्त्राव अंडाशय के ग्रैफियन फॉलिकिल कोशिका द्वारा होता है। यह हॉर्मोन महिलाओं के लैंगिक लक्षण पर नियंत्रण रखता है। 
    2. Progesterone— इस हॉर्मोन का स्त्राव अंडाशय के कॉर्पस ल्यूटियम कोशिकाओं द्वारा होता है। यह हॉर्मोन गर्भावस्था पर नियंत्रण रखता है ।
  10. Placenta (जरायु)- गर्भधारण करने के उसे 4 सप्ताह बाद भ्रूण की कोशिका गर्भाशय (Uretes) की कोशिकाओं के - साथ जुटकर जरायु का निर्माण करता है | Placenta के द्वारा निम्न हॉर्मोन स्त्रावित होते हैं-
    1. Progesterone गर्भधारण के बाद से लेकर पूरे गर्भावस्था ( 9 महिना 10 दिन) तक Progesterone हॉर्मोन जरायु द्वारा ही स्त्रावित होता है। यह Hormone गर्भावस्था पर नियंत्रण रखता है।
    2. Relaxin- यह हॉर्मोन बच्चे के जन्म के ठीक पहले स्त्रावित होता है। यह हॉर्मोन गर्भनली तथा जरायु के मुख्य ढीला करता है ताकि बच्चा माँ के गर्भाशय से आसानी से बाहर आ सकें। 
    3. Prostaglandin यह हॉर्मोन के प्रभाव से जरायु गर्भाशय से टूटकर अलग होने लगता है जिससे संतान के जन्म (Parturition) के समय दर्द उत्पन्न होता है, जिसे Labour Pain (प्रसव वेदना) कहते हैं।
  11. थाइमस ग्रंथि (Thymus gland)- यह ग्रंथि हृदय तथा महाधमनी के ऊपर स्थित होता है। यह ग्रंथि युवाओं में सक्रिय रहता है तथा धीरे-धीरे इसका आकार घटते जाता है। वृद्धावस्था में यह ग्रंथि पूरी तरह से लुप्त हो जाती है। इस ग्रंथि से दो हार्मोन का स्त्राव होता है-
    1. थाइमोसीन - यह हॉर्मोन T-लिम्फोसाइट के निर्माण को बढ़ावा देता है जिससे शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत बनता है।
    2. थायमीन- यह हार्मोन थाइमस ग्रंथि के स्त्राव पर नियंत्रण रखता है।
  • थाइमस ग्रंथि जन्म के समय 10-12 ग्राम, युवा अवस्था में 20-30 ग्राम तथा वृद्धावस्था में 3-6 ग्राम वजन का होता है।

मानव का तंत्रिका तंत्र (Narvous System of Human Body)

  • तंत्रिका तंत्र मानव शरीर के अंदर होने वाली सभी क्रियाओं का समन्वयन (Co-ordination) करता है, तथा उन पर नियंत्रण (Control) रखता है। तंत्रिका तंत्र की सहायता से मानव बाहरी तथा भीतरी उद्दीपनों को ग्रहण कर उनके अनुकूल कार्य करने में सक्षम हो पाता है।
  • तंत्रिका तंत्र, तंत्रिका उत्तक (Narvous Tissue) का बना होता है एवं तंत्रिका उत्तक, तंत्रिका कोशिका का बना होता है। तंत्रिका कोशिका को न्यूरॉन (Neurone) कहते है। न्यूरॉन को तंत्रिका तंत्र की रचनात्मक तथा क्रियात्मक इकाई कहा जाता है।

तंत्रिका कोशिका (Neurone - cell)

  • न्यूरॉन को जब सूक्ष्मदर्शी से देखा जाय तो इसके दो स्पष्ट भाग दिखाई पड़ते हैं। ये हैं- 1. साइटॉन (Cyton or Cell-body) तथा 2. तंत्रिका तंतु (Nerves fibres ) ।
  • न्यूरॉन का मुख्य भाग साइटॉन है। इस कोशिका का केन्द्रक साइटॉन वाले भाग में स्थित रहता है। साइटॉन वाले भाग के कोशिका द्रव्य में अनेक कण समान संरचना पायी जाती है जिसे निसेल ग्रेन्यूल (Nissl's Granules) कहते हैं।
  • साइटॉन के चारों और पतले-पतले तंतु समान संरचना को तंत्रिका तंतु (Nerves-fibres ) या कोशिका प्रवर्ध (Cell Processes) कहते हैं। तंत्रिका तंतु दो प्रकार के होते हैं- डेन्ड्रॉन (Dendrone) तथा एक्सॉन (Axon ) ।
  • साइटॉन से निकलने वाली सूक्ष्म सूक्ष्म तंतु को डेन्ड्रॉन कहते हैं, पुनः डेन्ड्रॉन छोटी-छोटी शाखाओं में बँट जाती है जिसे डेन्ड्राइट्स (Dendrites) कहते है।
  • साइटॉन से निकलने वाले लम्बे आकार के तंतु को एक्सॉन कहते है। एक्सॉन के अंतिम सिरे से कई तंतुएँ निकलती है जिसे सिनेष्टिक नांव (Synaptic Knob) कहते है।
  • न्यूरॉन के एक्सॉन वाले भाग के ऊपर सफेद रंग के चर्बीदार पदार्थ का आवरण रहता है, जिसे मेडुलरी या मायलीन शीथ (Medullary or myelin sheath) कहते हैं। एक्सॉन के जिस जगह पर मायलीन शीथ नहीं रहते हैं, उस जगह को रेनवियर के नोड (nodes of Ranvier) कहते है।
  • एक्सॉन के मायलीन शीथ परत के ऊपर एक पतली झिल्ली होती है जिसे न्यूरिलेमा (Neurilemma) कहते है। न्यूरिलेमा एक खास प्रकार के कोशिका से निर्मित होती है, इन कोशिकाओं को श्वान कोशिका (Schewann cells) कहते है।
  • एक न्यूरॉन का एक्सॉन, दूसरे न्यूरॉन के डेन्ड्राइटस से जुड़ा रहता है। इस जोड़ों को सिनेप्स (Synapse) कहा जाता है।
  • सभी प्रकार के संवेदना का प्रवाह अंगों से मस्तिष्क (Brain) तक तथा मस्तिष्क से विभिन्न अंगों के बीच न्यूरॉन के द्वारा ही होता है। संवेदनाओं के प्रवाह के आधार पर न्यूरॉन दो प्रकार के होते है-
    1. Sensory Neuron- यह न्यूरॉन शरीर के संवेदी अंग (आँख, नाक, कान, त्वचा तथा जीभ) से संवेदना को ग्रहण कर, उसे मस्तिष्क तक पहुँचाते है। मस्तिष्क इन संवेदनाओं को ग्रहण कर उसका विश्लेषण करता है तथा शरीर के अंगों को उचित निर्देश देता है।
    2. Motor Neuron— यह न्यूरॉन मस्तिष्क के निर्देश को शरीर में विभिन्न अंगों तक पहुँचाते है।
  • उपर्युक्त दो प्रकार के न्यूरॉन के अतिरिक्त कुछ ऐसे न्यूरॉन होते हैं जो Sensory Neuron तथा Motor Neuron के कार्यों के बीच सामंजस्य स्थापित कराता है, जिसे Adjustor Neuron कहते हैं।
  • संवेदनाओं तथा मस्तिष्क के निर्देशों का न्यूरॉन से होकर तीव्र गति से प्रवाह कराने हेतु सिनैप्स वाले स्थान पर न्यूरॉन के एक्सॉन के सिनेप्टिक नोव से कुछ पदार्थ स्त्रावित होता है, जिन्हें न्यूरोट्रांसमीटर कहते है। न्यूरोट्रांसमीटर दो प्रकार के होते है-
    1. Acetylcholone— उस पदार्थ की कमी होने पर अलजाईमर रोग हो जाता है, जिसमें मनुष्य की यादाश्त में कमी आने लगती है।
    2. Dopamin- इस रसायनिक पदार्थ की कमी से पर्कीसन रोग होता है, जिसमें मनुष्य के हाथ तथा पैर में थरथराहट होते रहता है।
  • न्यूरॉन में संवेदनाओं का ग्रहण डेन्ड्राइट्स के द्वारा होता है। डेन्ड्राइटस इन संवेदना को साइटोंन को भेज देता है। साइटॉन में संवेदना, विद्युत आवेग ( Impulse) में बदल जाता है। विद्युत आवेग साइटॉन से एक्सॉन में पहुँच जाता है और फिर एक्सॉन से दूसरे न्यूरॉन के डेन्ड्राइट्स में।
  • विद्युत आवेग ( Impulse ) का संचार हमेशा एक न्यूरॉन के एक्सॉन से इससे न्यूरॉन के डेन्ड्राइट्स में होता है, न कि इसके विपरित ।
  • तंत्रिका कोशिका (Neuron) एक विशेष प्रकार के संयोजी उत्तक द्वारा आपस में जुड़ी रहती है। इन संयोजी उत्तक को न्यूरोग्लिया (Neuroglia) कहते है ।
  • मानव के तंत्रिका तंत्र को जीव वैज्ञानिक ने तीन भागों में बाँटा है, ये है- 
    1. Central Narvous system.
    2. Peripheral Narvous system.
    3. Autonomous Narvous system.

1. Central Narvous system ( केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र )

  • केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र के अंतर्गत मस्तिष्क (Brain) तथा मेरुरज्जु (Spinal Cord) आते है।
  • मस्तिष्क तथा मेरूरज्जु के सुरक्षा हेतु इस पर तीन झिल्लियों का एक परत चढ़ा रहता है। तीन झिल्लियों में सबसे आंतरिक झिल्ली को पायमेटर (Piamater), मध्य झिल्ली को अरैकनॉइड (Arachnoid ) तथा बाहरी झिल्ली को डूरामेटर (Duramatter) कहते है। इन तीनों झिल्ली को सम्मिलित रूप से मेनिन्जेज ( Meninges) कहते है।
  • मस्तिष्क के पायमेटर तथा अरैक्नॉइड झिल्ली के बीच एक तरल पदार्थ पाये जाते हैं जिसे सेरीब्रोस्पाइनल द्रव (Cerebrospinal fluid) कहते हैं यह द्रव (Fluid) मस्तिष्क का पोषण, श्वसन गैसों तथा अन्य पदार्थों के परिवहन के लिए माध्यम का कार्य करता है।
  • केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र, सबसे प्रमुख तंत्रिका तंत्र है। अन्य दो तंत्रिका तंत्र, केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र के नियंत्रण में कार्य करते है।

मस्तिष्क (Brain)

  • मानव मस्तिष्क एक कोमल अंग है जिसकी संरचना अत्यंत ही जटिल होती है। मानव मस्तिष्क का औसत आयतन 1650ml तथा औसत भार 1.5 kg होता है। मस्तिष्क 6 वर्ष की उम्र तक पूर्ण विकसित हो जाता है।
  • मस्तिष्क केन्द्रीय तंत्रिका का अग्र भाग है जो खोपड़ी के मस्तिष्क गुहा (Cranium) के अंदर सुरक्षित रहता है। मस्तिष्क गुहा में हड्डीयों की संख्या आठ होती हैं।
  • मानव मस्तिष्क तीन भागों में बँटे होते हैं- अग्र मस्तिष्क (Fore Brain), मध्य मस्तिष्क (Mid Brain) तथा पश्च मस्तिष्क (Hind Brain)। मध्य तथा पश्च मस्तिष्क को सम्मीलित रूप से मस्तिष्क स्टेम (Brain stem) कहते है।
  • मस्तिष्क के अग्र भाग (Fore Brain)- अग्र मस्तिष्क दो भागों में बँटा होता है। सेरीब्रम तथा डाइएनसफेलॉन।
  1. सेरीब्रम (Cerebrum) :
    • सेरीत्रम मस्तिष्क का सबसे बड़ा तथा सबसे महत्वपूर्ण भाग है। पूरे मस्तिष्क का दो-तिहाई हिस्सा सेरीब्रम ही होता है।
    • सेरीत्रम दो बाएँ तथा दाएँ अर्धगोलों में बँटा रहता है जिसे सेरीब्रम हेमीस्फीयर (Cerebral hemisphere) कहते है। दोनों सेरीब्रल हेमीस्फीयर कॉर्पस कैलोसम नामक संरचना द्वारा आपस में जुड़ा रहता है।
    • सेरीब्रम को अगर बीचो-बीच काटा जाए तो अंदर में धूसर (Gray) तथा सफेद रंग के पदार्थ दिखाई देते हैं। धूसर रंग के पदार्थ को कॉर्टेक्स (Cortex) तथा सफेद रंग के पदार्थ को मेडुला (Medula) कहते है।
    • सेरीब्रम के ऊपरी सतह पर अनेक उभार जैसी संरचना पायी जाती है। इन संरचनाओं को गाइरस (Gyrus) कहते है। दो गाइरस के बीच के खाँचे को सल्कस (Sulcus) कहते है। सल्कस तथा गाइरस सेरीब्रम के कॉर्टेक्स वाले भाग में होते हैं।
    • सेरीब्रम बुद्धि, चतुराई, सोचने-समझने तथा स्मरण शक्ति का केन्द्र है। प्रेरणा, घृणा, प्रेम, भय, हर्ष, कष्ट तथा अनुभव जैसी क्रियाओं का नियंत्रण इसी भाग से होता है।
    • सेरीब्रम सभी प्रकार के चेतना शक्ति का केन्द्र है। अगर भाग ठीक से काम न करे तो जीवित होने के बावजूद मानव की सारी समझ समाप्त हो जाएगी।
  2. डाइएनसफेलॉन (Diencephalon) :
    • यह भाग सेरीब्रल हेमीस्फीयर द्वारा ढकाँ रहता है। इसके दो भाग होते हैं थैलेमस तथा हाइपोथैलेमस ।
    • थैलेमस सेरीब्रल हेमीस्फीयर में लिपटा रहता है। थैलेमस संवेदी तथा प्रेरक संकेतों का मुख्य सम्पर्क स्थल है।
    • हाइपोथैलेमस द्वारा शरीर के तापमान तथा खाने-पीने का नियंत्रण होता है। इस भाग में कुछ हॉर्मोन भी बनते है।
    • सेरीब्रम (Cerebrum) के आंतरिक भाग आंतरिक अंग से जुटकर एक जटिल तंत्र बनाता है, जिसे लिबिंक तंत्र कहते है। हाइपोथैलेमस लिबिंक तंत्र के साथ मिलकर लैंगिक व्यवहार मनोभावनाओं की अभिव्यक्ति जैसे- उत्तेजना, खुशी, गुस्सा और भय आदि का नियंत्रण करता है।
  • मस्तिष्क के मध्य भाग (Mid Brain -
    • मध्य मस्तिष्क का सबसे छोटा हिस्सा है, यह अग्र एवं पश्च मस्तिष्क के बीच में स्थित रहता है।
    • मध्य मस्तिष्क में चार गोलाकार संरचना पायी जाती है। इस गोलाकार संरचनाओं को कॉरपोरा क्वाड्रिगेनिया कहते है ।
    • दोनों ओर (बायीं तथा दावीं) के कॉरपोरा क्वाड्रिगेनिया आपस में क्रूरा सेरेब्री नामक संरचना द्वारा आपस में जुटे होते हैं।
    • मध्य मस्तिष्क आँखों के देखने की प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं तथा संतुलन बनाये रखने में सहायक होते हैं।
  • मस्तिष्क के पश्च भाग ( Hind Brain)
    • पश्च मस्तिष्क तीन हिस्सों में बँटा रहता है, सेरीबेलम, पॉन्स तथा मेडुला आब्लांगाटा
      1. सेरीबेलम (Cerebalum)—
        • सेरीबेलम सुनने और शरीर को संतुलित रखने का काम करता है। यह समन्वयन संतुलन, ऐच्छीक पेशियों के गति को नियंत्रित करता है। सेरीबेलम जीभ तथा जबड़े के पेशियों पर भी नियंत्रण रखता है जिसके कारण बोलना संभव हो पाता है।
        • सेरीबेलम पाँच गुच्छों में बँटा रहता है। इस भाग के नष्ट होने अथवा इसमें खराबी आने पर सभी प्रकार के ऐच्छीक गतियाँ जैसे- चलना, बोलना, सुना, असंभव हो जाएगा ।
      2. पॉन्स (Pons)—
        • मस्तिष्क का यह भाग श्वसन प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है।
      3. मेडुला ऑब्लांगेटा (Medula oblongata)—
        • इस भाग की संरचना बेलनाकार होता है। यह हृदय की धड़कन, रक्तचाप (Blood Pressure), तथा श्वसन गति को नियंत्रित करते है।
        • इस भाग द्वारा खाँसना, छींकना, उल्टी करना (Vomiting), पाचक रसों का स्त्राव का भी नियंत्रण होता है।
  • मेडुला ऑब्लांगेटा अनैच्छीक क्रियाओं पर नियंत्रण रखते है। यही भाग मस्तिष्क के पीछे से डण्ठल के रूप में निकल कर रीढ़ के न्यूरल कैनाल में प्रवेश कर मेरूरज्जु का निर्माण करता है।

मेरूरज्जु (Spinal Cord)

  • मस्तिष्क का पीछला भाग (Medula Oblongata) ठण्ढल के रूप में खोपड़ी से बाहर निकलकर रीढ़ के न्यूरल कैनाल में प्रवेश कर जाती है, इसे ही मेरूरज्जु (Spinal Cord) कहते है ।
  • मेरूरज्जु 4 से 5 वर्ष की अवस्था में पूर्ण विकसित हो जाते हैं, उसके बाद इसमें वृद्धि रूक जाती है। मेरूरज्जु मस्तिष्क से निकलते समय मोटी रहती है और रीढ़ में प्रवेश के बाद धीरे-धीरे पतली हाते जाती है तथा रीढ़ की अंतिम हड्डी तक जाते जाते बहुत पतली हो जाती है। मेरूज्जु रीढ़ के सभी हड्डी तक फैला रहता है।
  • मेरूरज्जु के संरचना के प्रमुख भाग-
    1. Central Canal : यह मेरूरज्जु का मध्य भाग है।
    2. Posterior and anterior fissure : यह मेरूरज्जु के मध्य भाग से निकला हुआ संरचना है।
    3. Grey Matter : यह Central Canal के चारों ओर अंग्रेजी वर्णमाला के H अक्षर के तरह फैला रहता है।
    4. White matter : यह Grey matter के चारों तरफ फैला रहता है।
    5. Posterior and anterior horn : Grey matter दो Posterior तथा दो Anterior horn का निर्माण करता है।
  • मेरूरज्जु के दोनों ओर से सभी रीढ़ की हड्डी के जोड़ पर एक-एक जोड़े स्पाइनल तंत्रिकाएँ (Spinal Nerves) उत्पन्न होता है। ये स्पाइनल तंत्रिकाएँ आसपास के अंगों में फैला रहता है तथा उनकी क्रिया को नियंत्रित करता है। मानव में कुल 31 जोड़े स्पाइनल तंत्रिकाएँ होते हैं।
  • प्रत्येक स्पाइनल तंत्रिका के दो हिस्से हो हैं- Dorsal horn (डॉर्सल हॉर्न) तथा Ventral horn ( भेंट्रल हॉर्न) । डॉर्सल हॉर्न से संवदी न्यूट्रॉन (Sensory or Afferent neuron) बनता है तथा भेंट्रल हॉर्न से मोटर न्यूरॉन ( Motor or Efferent nuron) बनता है।
  • मेरूरज्जु, तंत्रिकाओं (Nerves) तथा मस्तिष्क के बीच कड़ी (Connecting link) का काम करता है। यह सभी प्रकार के प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex action) का नियंत्रण केन्द्र है।

प्रत्यावर्ती क्रिया (Reflex action )

  • प्रत्यावर्ती क्रिया वे अनैच्छिक क्रिया है जो किसी उद्दीपन के प्रतिक्रिया क्षणभर में बिना सोचे समझे हमारा शरीर स्वयं कर देता है। उदाहरण-
    • ठोकर खाते ही लड़खड़ा कर अपने-आप शरीर का संभल जाना।
    • आँखों के सामने कीड़ा आने पर आँखों का पलक का स्वयं बंद हो जाना ।
  • प्रत्यावर्ती क्रिया कुछ जन्मजात ही होते है। कुछ प्रत्यावर्ती क्रिया को प्रशिक्षण तथा अभ्यास की सहायता विकसित किया जा सकता है। साइकिल चलाना, नृत्य करना, क्रिकेट खेलना प्रत्यावर्ती क्रिया ही है पर इसे अभ्यास के मदद शरीर में विसित किया गया है।
  • प्रत्यावर्ती क्रियाओं का पता सर्वप्रथम मार्शल हाल नामक वैज्ञानिक ने लगाया था ।

प्रतिवर्ती चाप (Reflex arc )

  • संवेदी अंगों से मस्तिष्क तक संवदेनाओं का संचार तथा मस्तिष्क द्वारा अंगों को निर्गत आदेश का गमण न्यूरॉन के माध्यम से होता है।
  • न्यूरॉन में आवेग का संरचरण एक निश्चित पथ से होता है। इसी पथ को प्रतिवर्ती चाप (Refflex arc ) कहते है। प्रतिवर्ती चाप में निम्नलिखित भाग होते हैं- 
    1. Receptor- यह त्वचा, पेशी तथा अंगों में उपस्थित रहते हैं तथा विभिन्न प्रकार के उद्दीपन को ग्रहण करते है। 
    2. Sensory Path— रिसेप्टर्स द्वारा ग्रहण किया संवेदना (उद्दीपन) का संरचरण संवेदी न्यूरॉन (Sensory neuron) में होता है। संवेदी न्यूरॉन ही Sensory path का निर्माण करता है। 
    3. Nerve Centres— मस्तिष्क तथा मेजरूरज्जु को ही Nerve Centre कहते है। यह Sensory Path से आये संवेदनाओं को प्राप्त कर विश्लेषण करते हैं तथा इसके बाद उचित निर्णय देते है।
    4. Motor Path Nerve Centres से प्राप्त निर्देशों को मोटर न्यूरॉन ग्रहण करता है और Motor Path का निर्माण करता है। 
    5. Effectors— Motor Path से मस्तिष्क का निर्देश Effectors में पहुँचते है और यह निर्देश के अनुसार प्रतिक्रिया करते है। Effectors अभिवाही अंग) पेशियाँ (Muscles) होता है। 

2. Peripharal aral Narvous System ( परिधीय तंत्रिका तंत्र )

  • शरीर के विभिन्न अंगो को केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (मस्तिष्क तथा मेरूरज्जु) से जोड़ने वाले सभी तंत्रिका (Nerves) को सम्मीलित रूप से परिधीय तंत्रिका तंत्र कहते है।
  • परिधीय तंत्रिका तंत्र के अंतर्गत मुख्य रूप से क्रेनियल तंत्रिकाएँ तथा स्पाइनल तंत्रिकाएँ आते हैं। क्रेनियल तंत्रिकाएँ 12 जोड़े होते हैं तथा स्पाइनल तंत्रिकाएँ 31 जोड़े है।
  • कैनियल तंत्रिकाएँ मस्तिष्क से जुड़े होते है। एक जोड़ी अग्र मस्तिष्क, 1 जोड़ी मध्य मस्तिष्क तथा 10 जोड़ी पश्च मस्तिष्क से जुड़े होते हैं।
  • क्रैनियम तंत्रिकाएँ में पहला दूसरा तथा आठवाँ जोड़ा संवेदी (Sensory ); सातवाँ, नवाँ तथा दसवाँ मिश्रित (Mixed ) तथा शेष मोटर तंत्रिकाएँ होते हैं।
  • परिधीय तंत्रिका के 31 जोड़े स्पाइनल तंत्रिकाएँ मेरूरज्जु से निकलती है तथा प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex action) को नियंत्रित करती है।

3. Autonomous Nervous System (स्वायत्त तंत्रिका तंत्र ) 

  • स्वायत्त तंत्रिका तंत्र शरीर के आंतरिक अंग (किडनी, अमाशय, हृदय आदि) के क्रियाओं का नियंत्रण करता है। इस तंत्र की तंत्रिकाएँ (Nerves) हमेशा बिना किसी बाधा के क्रियाशील रहती है, इसके कार्य पर हमारी सोच या इच्छा का सीधा नियंत्रण नहीं रहता है। 
  • स्वायत्त तंत्रिका तंत्र द्वारा हृदय गति, आँखों के सिलयरी मांसपेशी तथा आइरिस की गति, पसीने का निष्कासन आदि क्रियाओं का नियंत्रण होता है। 
  • स्वायत्त तंत्रिका तंत्र को दो भागों में बाटा गया है, ये हैं- सिम्पैथेटिक तंत्रिका तंत्र तथा पारा सिम्पैथेटिक तंत्रिका तंत्र। 
  • सिम्पैथेटिक तथा पारासिम्पैथेटिक तंत्रिका तंत्र के क्रियाएँ एक दूसरे के परित होती है तथा ये दोनों ही हमेशा क्रियाशील रहते है।

अभ्यास प्रश्न

1. मानव शरीर के तंत्रिका तंत्र तथा हॉर्मोन का मुख्य कार्य क्या है ?
(a) उत्सर्जन
(b) नियंत्रण
(c) समन्वयन
(d) A तथा B दोनों
2. मानव शरीर में विभिन्न जैविक कार्यों का नियंत्रण होता है-
(a) तंत्रिका द्वारा
(b) रसायन द्वारा
(c) तंत्रिका एवं रसायन दोनों के द्वारा
(d) इनमें से कोई नहीं
3. पौधों में निम्नलिखित में किसका अभाव पाया जाता है?
(a) तंत्रिका तंत्र
(b) रसायनिक नियंत्रण
(c) तंत्रिका नियंत्रण
(d) A तथा C दोनों
4. बाह्य उद्दीपनों के प्रभाव से पौधों में होने वाले गति को क्या कहते है ?
(a) उपापचयी गति
(b) रसायनिक गति
(c) अनुवर्तिनी गति
(d) समन्वयन गति
5. जड़ (Root) होता है-
(a) ऋणात्मक प्रकाशानुवर्ती
(b) धनात्मक जलानुवर्ती
(c) धनात्मक गुरूत्वानुवर्ती
(d) इनमें से कभी
6. मटर, कद्दू और कई अन्य पौधें के तंतु किसी ठोस सहारे के सम्पर्क में आते ही तेजी से वृद्धि कर उससे लिपट जाते है। यह किस प्रकार के गति को दर्शाता है ?
(a) प्रकाशानुवर्ती 
(b) गुरूत्वानुवर्ती
(c) जलानुवर्ती
(d) स्पर्शानुवर्ती
7. पौधे के तने में किस प्रकार की वृद्धि होती है -
(a) धनात्मक प्रकाशानुवर्ती
(b) ऋणात्मक गुरूत्वानुक्र्ती
(c) धनात्मक जलानुवर्ती
(d) इनमें से सभी
8. फूलों का प्रकाश की उपस्थिति से खिल जाना और रात में बंद हो जाना किस प्रकार के गति को दर्शाते है ? 
(a) प्रकाशानुवर्ती
(b) प्रकाशानुकुंचन
(c) स्पर्शानुवर्ती
(d) स्पश्शानुकुंचन
9. पौधे में वृद्धि होती है-
(a) कभी-कभार
(b) रूक-रूक कर 
(c) जीवनपर्यन्त
(d) पौधे में वृद्धि होती ही नहीं है
10. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
1. पौधों में वृद्धि निरंतर अनियमित परिवर्तन से होती है
2. पौधे में वृद्धि निरंतर नियमित परिवर्तन से होती है।
3. पौधों के वृद्धि का ग्राफ s आकार का होता है
उपर्युक्त में कौन-सा/से कथन सही है/हैं ?
(a) केवल 1
(b) 1 और 2
(c) 1 और 3
(d) केवल 3
11. समय और आकार के सन्दर्भ में होने वाले वृद्धि को ग्राफ पर अंकित करने पर 's' आकार का वक्र बनता है, इस वक्र को क्या कहते है ?
(a) वृद्धि वक्र
(b) सिग्माइड वक्र
(c) परासरण वक्र
(d) उत्सर्जन वक्र
12. पौधों की वृद्धि गतियाँ जो प्रकाश उद्दीपन के कारण होती है, उसे कहते है-
(a) हेलियोट्रापिज्म
(b) हाइड्रोट्रॉप्जिम
(c) जियोट्रॉपिज्म
(d) थिग्मोट्रॉपिज्म
13. छुईमुई के पत्तों में किस प्रकार की गति होती है ?
(a) कम्पानुकुंचन
(b) निशानानुकुंचन
(c) प्रकाशानुकुंचन
(d) उपरिकुंचन
14. स्पर्श करने पर छुईमुई पौधे की पत्तियाँ क्यो मुरझा जाती है ?
(a) तंत्रिका समन्वयन के कारण
(b) पत्तियाँ कोमल होती है
(c) पर्णाधार का स्फीति दात्र बदल जाता है
(d) इनमें से सभी
15. सूर्य के प्रकाश की ओर बढ़ते हुए प्ररोह ( तना) का मुड़ना क्या कहलाता है ?
(a) जलानुवर्तन 
(b) दीप्तिकालिता
(c) हीलियोट्रॉपिज्म
(d) प्रकाशानुकुंचन
16. सूर्यमुखी के सौर ट्रेकिंग (सूर्य की दिशा में विचलन ) को कहा जाता है-
(a) प्रकाशानुवर्तन 
(b) स्पर्शानुवर्तन
(c) सूर्यावर्तन
(d) जलानुवर्तन
17. किसी आधार के चारो ओर मटर के प्रतान का लिपटना उदाहरण है-
(a) स्पर्शानुवर्तन 
(b) नैश गति का
(c) प्रकाशानुवर्तन
(d) रसायनुवर्तन
18. बाह्य उद्दीपनों के प्रभाव से पौधों में होना चलन (Loco- motion) को कहते है-
(a) अनुवर्ती 
(b) अनुचलन
(c) अनुकुंचन
(d) इनमें से सभी
19. सनड्यू तथा वीनस फ्लाई ट्रेप कीटभक्षी पौधों में गति होती है-
(a) निशानुकुंचन
(b) स्पर्शानुकुंचन
(c) कम्पानुकुंचन
(d) प्रभाशानुकुंचन
20. जड़े धनात्मक भूम्यानुवर्तन (Positive Geotropism) होती है-
(a) सदैव
(b) अधिकांश
(c) कभी नही
(d) कभी-कभी
21. पौधे के किसी अंग की वृद्धि जब किसी विशिष्ट उद्दीपक की ओर होती है, तो इस प्रक्रिया को कहा जाता है ?
(a) ऋणात्मक प्रकाशानुवर्तन
(b) धनात्मक प्रकाशानुवर्तन
(c) धनात्मक अनुवर्तन
(d) ऋणात्मक अनुवर्तन
22. जियोट्रॉपिज्न (Geotropism) क्या है ?
(a) जल की प्रतिक्रिया के रूप में पौधों में वृद्धि
(b) पोषक तत्वों की प्रतिक्रिया के रूप में पौधों की वृद्धि
(c) सूर्य की रोशनी की प्रतिक्रिया के रूप में पौधों की वृद्धि
(d) गुरूत्वाकषर्ण की प्रतिक्रिया के रूप में पौधों की वृद्धि
23. पौधों में पाये जाने वाले वृद्धि-हॉर्मोन का पता सर्वप्रथम किस वैज्ञानिक ने लगाया ?
(a) फंक
(b) विलियम हार्वे
(c) चार्ल्स डार्विन
(d) एफ. डब्लू. वेण्ट
24. पौधों में होने वाले वृद्धि से तात्पर्य है-
(a) कोशिका विभाजन 
(b) कोशिका दीर्घन
(c) कोशिका विभेदन 
(d) इनमें से सभी
25. ऑक्जिन हॉर्मोन का अत्यधिक निर्माण किस भाग में होता है ?
(a) प्ररोह में
(b) जड़ में
(c) जड़ के विभज्योतिकी क्षेत्र में
(d) प्ररोह के विभज्योतिकी क्षेत्र में
26. ऑक्सीन का वियोजन (Isolation) सबसे पहले किसने किया था ?
(a) हागेन स्मिट 
(b) कोल
(c) थिमान
(d) साल्को वस्की
27. पौधों में उत्पन्न वह हॉर्मोन जिसके कारण पौधे सूर्य के प्रकाश की ओर झुक जाते हैं-
(a) जिबरेलीन
(b) ऑक्सिन
(c) साइटोकाइनीन
(d) एस्कॉविक एसीड
28. ऑक्सीन हॉर्मोन की मात्रा सबसे ज्यादा होती है-
(a) तने के शीर्ष भाग में
(b) मूलशीर्ष में
(c) कैम्बीयम में
(d) संपर्ण पौधा में समान रूप में
29. निम्न कथनों पर विचार कीजिए-
1. तने के जिस भाग में ऑक्सीन हॉर्मोन अधिक होता है, उधर वृद्धि अधिक होती है
2. जड़ की जिस भाग में ऑक्सीन हॉर्मोन अधिक होता है, उधर वृद्धि कम होती है
उपर्युक्त में कौन - सा /से कथन सही है/हैं ?
(a) केवल 1
(b) केवल 2 
(c) 1 तथा 2 दोनों
(d) न तो 1 न ही 2
30. विशेष प्रकार के जटिल कार्बनिक पदार्थ जो पादपो में वृद्धि तथा विकास को नियंत्रित करते है, कहलाते हैं-'
(a) पादप हॉर्मोन
(b) पाराहॉर्मोन
(c) वृद्धि नियंत्रक पदार्थ
(d) इनमें से सभी
31. ऑक्सीन से सम्बन्धित कौन सा कथन सही है ?
(a) इसके कारण पौधों में शीर्ष प्रमुखता हो जाती है
(b) यह पत्तियों का विगलन रोकता है
(c) यह खर-पतवार को नष्ट कर देता है
(d) उपर्युक्त सभी
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