मध्यकालीन भारतीय इतिहास के स्रोत

मध्यकालीन भारतीय इतिहास के स्रोत

मध्यकालीन भारतीय इतिहास के स्रोत

> मध्यकालीन इतिहास पर प्रकाश डालने वाले ग्रन्थ 
(1) ताजुल-मासिर — इस ग्रन्थ के रचयिता हसन निजामी हैं. इस ग्रन्थ में तत्कालीन 11वीं व 12वीं सदी के भारत का वर्णन किया गया है. इसमें तत्कालीन प्रशासन का भी विस्तृत विवरण मिलता है. यद्यपि इस ग्रन्थ की शैली अलंकृत है, किन्तु इसमें सत्य के अंश पर्याप्त मात्रा में हैं. इस ग्रन्थ में मुख्य रूप से युद्ध तथा युद्ध नीति का ही विवरण दिया गया है, परन्तु सामाजिक दशा का भी विवरण इसमें दिया गया है. सामाजिक जीवन से सम्बन्धित खेलों, मनोरंजन के साधनों आदि का भी इसमें विस्तृत विवरण है.
(2) तारीखे फखरुद्दीन मुबारक शाह–इस महत्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना फखरुद्दीन मुबारकशाह उर्फ फखरे मदव्वीर ने की, लेखक का गुलाम वंश के राजदरबार से घनिष्ठ सम्बन्ध था. इसने अपना अधिकांश समय कुतुबुद्दीन ऐबक के दरबार में बिताया और उस समय का आँखों देखा हाल इसने अपनी कृति में लिखा है. यद्यपि इस ग्रन्थ में सामान्यजनों की उपेक्षा की गई है और केवल शासकों का ही वर्णन किया गया है, परन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण रचना है.
(3) तबकाते नासिरी – इस महत्वपूर्ण कृति के रचनाकार मिनहाजुद्दीन सिराज हैं. लेखक ने स्वयं गौर वंश का उत्थान एवं पंतन देखा था. इस पर इल्तुतमिश, रजिया एवं नासिरुद्दीन की कृपा रही. इसलिए इसके ग्रन्थ में नासिरुद्दीन के शासनकाल के प्रारम्भ के वर्षों का इतिहास क्रमबद्ध रूप में दिया गया है. सांस्कृतिक स्थिति का विवरण भी इसमें पर्याप्त रूप से दिया गया है. 
(4) तारीख-ए-फिरोजशाही – इस पुस्तक के रचनाकार जियाउद्दीन बरनी हैं. बरनी स्वयं बहुत बड़े विद्वान् थे तथा उन्हें अमीर खुसरो एवं अमीर हसन देहलवी जैसे प्रकाण्ड विद्वानों की संगत प्राप्त थी. इस ग्रन्थ में तत्कालीन समाज की सांस्कृतिक दशा के साथ-साथ अलाउद्दीन के राजस्व विभाग, बाजार नियन्त्रण आदि व्यवस्थाओं का विवरण दिया गया है.
(5) तुजुके बाबरी— यह बाबर द्वारा तुर्की भाषा में विरचित उसकी आत्मकथा है. इस पुस्तक में बाबर द्वारा भारत की, उसके समय की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं धार्मिक दशा का वर्णन लिखा गया है. बाबर स्वयं प्रकृति प्रेमी था. अतः उसने फल-फूल, भोजन, मौसम, रहन-सहन, नदी-नालों आदि के विषय में भी लिखा है. यह ग्रन्थ स्पष्टवादिता एवं तथ्यों की सच्चाई के लिए विशेष मूल्यवान है.
(6) आइन - ए - अकबरी — इस ग्रन्थ के लेखक अबुल फजल थे, जोकि मुगल सम्राट अकबर के दरबारी एवं उसके नवरत्नों में से एक थे. इस पुस्तक में 16वीं सदी के भारत का विवरण है. इस समय की प्रत्येक प्रकार की सांस्कृतिक, साहित्यिक, सामाजिक, राजनीतिक दशाओं का इसमें चित्रण किया गया है.
(7) तुजुके जहाँगीरी – इसमें 17वीं सर्दी के पूर्वार्द्ध की घटनाओं का विशेष रूप से वर्णन किया गया है. यह जहाँगीर द्वारा लिखी गई उसकी आत्मकथा है. इसमें उसने स्पष्ट रूप से अपने द्वारा की गई त्रुटियों को भी लिखा है. इस ग्रन्थ में तत्कालीन ललित कलाओं, संगीत, चित्रकला, साहित्य आदि का विस्तृत विवरण दिया गया है.
> अलबरूनी एवं उनकी पुस्तक किताबुल हिन्द/ तहकीके हिन्द
अलबरूनी मात्र एक इतिहासकार ही नही थे, अपितु व खगोल विज्ञान, भूगोल, तर्कशास्त्र, औषधि विज्ञान, गणित, दर्शन, धर्मशास्त्र के भी जानकार थे. इनके विषय में जानकारी हमें इनकी कृतियों से प्राप्त होती है.
अलबरूनी खींवा (प्राचीन ख्वारिज्म) देश के रहने वाले थे. जब महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया तब वे उसके साथ भारत आये. इससे पूर्व अलबरूनी खींवा वंश के अन्तिम शासक की सेवा में थे.
अलबरूनी द्वारा लिखी गई ‘किताबुल हिन्द' एक अनुपम कृति है जिसकी रचना मेधावी व्यक्ति द्वारा की गई जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखता था. इस कृति में उन्होंने भारतीय जीवन का सर्वेक्षण प्रस्तुत किया है.
इस पुस्तक को लिखने के लिए अलबरूनी ने स्वयं संस्कृत भाषा का अध्ययन किया. धार्मिक एवं वैज्ञानिक पुस्तकों को पढ़ा. उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कारण धार्मिक पूर्वाग्रह उनके ज्ञानात्मक गुणों को प्रभावित नहीं कर सके हैं. उन्होंने अनेक संस्कृत रचनाओं जैसे—ब्रह्मगुप्त, बलभद्र, वराहमिहिर की रचनाओं का अध्ययन किया. उनकी पुस्तक में गीता, विष्णु पुराण एवं वायु पुराण से लिए गये अनेक उद्धरणों का प्रयोग किया गया है.
अलबरूनी जहाँ अपने ज्ञान के विषय में सन्तुष्ट नहीं हैं वहाँ उन्होंने इस तथ्य को स्पष्टतः स्वीकार किया है. वे ऐसे तथ्यों का उल्लेख करते हैं, जिन्हें उन्होंने स्वयं जाँच करके नहीं देखा जैसा सुना वैसा लिख दिया. भारतीय परम्पराओं, रीति-रिवाजों, त्यौहारों, उत्सवों एवं धार्मिक अनुष्ठानों के अनेक विवरण इस रचना में दिये गये हैं. इस रचना में अनेक रोचक भौगोलिक आँकड़े दिये गये हैं तथा गणितीय और खगोल सिद्धान्तों की चर्चा की गई है. इस विषय पर उनके द्वारा निकाले गये निष्कर्ष बहुत अधिक आलोचनात्मक हैं. उन्होंने इस बात पर खेद व्यक्त किया है कि भारतीयों ने अपने पूर्वजों के दृष्टिकोणों का परित्याग कर दिया है.
भारत पर तुर्कों के हमले के ठीक पहले के काल के अध्ययन की दृष्टि से जो इस रचना का महत्व है इसकी तुलना किसी अन्य ग्रन्थ से नहीं की जा सकती.
> मिन्हास / उस-सिराज / तबकाते नासिरी
मिन्हास का जन्म सम्भवतः 1193 ई. में हुआ था तथा वे एक अच्छे खाते-पीते परिवार में पैदा हुए थे. उनके पिता सुल्तान मुहम्मद गौरी की सेवा में थे. मिन्हास काफी सुशिक्षित एवं महत्वाकांक्षी व्यक्ति थे. मंगोलों की गतिविधियों के कारण उन्हें मध्य एशिया में अपना कोई भविष्य दिखाई नहीं दिया. अतः अनेक लोगों की तरह वे भी भारत में चले आये जो एशिया का एकमात्र ऐसा प्रदेश था जहाँ मुसलमानों का शासन था और अभी तक मंगोल आक्रमणों से सुरक्षित था. मिन्हास – इल्तुतमिश, रजिया, बहरामशाह, अलाउद्दीन मसूदशाह और नासिरुद्दीन महमूद शाह के समकालीन थे और सम्भवतः बलबन के काल में उनकी मृत्यु हो गई. इन सुल्तानों के शासनकाल में वे अनेक महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त हुए थे.
तबकात-ए-नासिरी मिन्हास की उल्लेखनीय कृति है. इसमें मिन्हास ने आदम से आरम्भ करके नासिरुद्दीन महमूद के शासनकाल के 14 वर्षों तक के इतिहास का विवरण है. यह पुस्तक 23 तबकों (अध्यायों) में विभक्त है जिसमें वे विभिन्न क्षेत्रों के विभिन्न राजवंशों का अलग-अलग विवेचन करते हैं. इस रचना में मिन्हास के समय के 25 अमीरों की जीवनी भी दी गई है. प्रारम्भिक इस्लामी राजवंश का केवल सर्वेक्षण ही इस कृति में दिया गया है, लेकिन सुल्तान इल्तुतमिश के समय से इसमें अधिक विस्तार करते हुए उसके पुत्रों, अमीर वर्ग, काजियों एवं वजीरों तक के नामों को उपसम्मिलित किया गया है.
मिन्हास अपनी रचना में धार्मिक शब्दावली का प्रयोग बराबर करते हैं तथा युद्धों को ‘इस्लामी सेनाओं' तथा शैतानी शक्तियों के बीच लड़ाई के रूप में निरूपित करते हैं. कृति की आलोचना इस बात के लिए की जाती है कि वे आवश्यकता से अधिक राजाओं और अमीरों के मामले में उलझे रहे तथा जनसामान्य पर कोई ध्यान नहीं दिया, परन्तु उनके युग को देखते हुए यह आलोचना सही नहीं ठहरती क्योंकि मिन्हास उस युग में केवल वही कुछ लिख सकते थे, जिसकी उन्हें जानकारी थी. गहराई से देखने पर स्पष्ट होता है कि मिन्हास की दिलचस्पी केवल राजनीतिक सत्ता को कायम रखने में थी इसलिए जो विवरण इससे ताल्लुक नहीं रखते, उनको वे लिपिबद्ध नहीं करते थे.
> जियाउद्दीन बरनी
जियाउद्दीन बरनी का जन्म सैयद परिवार में 1284 ई. में हुआ था. उनके चाचा अला-उल-मुल्क सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सलाहकार तथा राजधानी दिल्ली के कोतवाल थे. T बरनी ने 46 प्रमुख विद्वानों से शिक्षा पाई थी. वे मुहम्मद तुगलक के नदीम (जिन्दादिल साथी) भी रहे, किन्तु फिरोज तुगलक के समय वे जेल में रहे. बरनी का अन्तिम समय बड़े कष्ट एवं गरीबी में बीता, अन्तिम दिनों में उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया था. उन्होंने अपनी दयनीय स्थिति का स्वयं कई बार उल्लेख किया है. अपने जीवन के अन्तिम समय में बरनी ने विविध विषयों पर पुस्तकें लिखीं जिनमें से तारीख-ए-फिरोजशाही एवं फतवा-ए-जहाँदारी महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं.
बरनी ने तारीख-ए-फिरोजशाही 1357-58 ई. में पूरी की. उनकी यह रचना मध्यकालीन इतिहास लेखन के विकास को दर्शाती है. बरनी ने अपनी इस पुस्तक में केवल एक क्षेत्र की राजनीतिक घटनाओं पर विचार व्यक्त किये हैं. उनके विभिन्न अध्याय अलग-अलग शासनकालों पर आधारित हैं तथा वे एक-दूसरे की सीमाओं का अतिक्रमण नहीं करते. प्रत्येक अध्याय के आरम्भ में शाही राजकुमारों एवं अमीरों की सूची देते हैं तथा जब वे फिरोज तुगलक पर आते हैं तब उसके शासनकाल को ग्यारह अध्यायों में बाँटते हैं. इन अध्यायों में फिरोज तुगलक के शासनकाल की सामान्य घटनाओं का उल्लेख किया गया है.
इस पुस्तक का उल्लेखनीय दोष यह है कि इसमें कालानुक्रम (Chronological Order) दोषपूर्ण हैं. वे तिथियों का प्रयोग इसमें कभी-कभार ही करते हैं. इसके साथ ही वार्तालाप लिपिबद्ध करने की जो विधि इन्होंने अपनाई है, वह भ्रामक है. इसे देखकर ऐसा लगता है कि वार्तालाप के समय वहाँ ये स्वयं मौजूद हों.
जियाउद्दीन बरनी की एक अन्य उल्लेखनीय कृति ‘फतवा-ए-जहाँदारी' है जिसकी हमें केवल एक प्रति प्राप्य है. इस पुस्तक में बरनी ने विभिन्न विषयों पर विविध ऐतिहासिक व्यक्तियों से वार्तालाप होते हुए दिखाया है. ये विचार उनके स्वयं के अपने हैं. यह इस बात से सिद्ध होता है कि वे ही विचार महमूद गजनवी के भाषणों रूप में पुस्तक में दिये गये हैं.
बरनी अपने पीछे एक अमूल्य कृतित्व विरासत में छोड़ गये हैं. इस युग में दिल्ली सल्तनत का स्वरूप क्या था, उसे किन समस्याओं का सामना करना पड़ा, इसकी जानकारी हमें बरनी द्वारा ही प्राप्य है. उनकी कृतियाँ मध्यकालीन राजनीतिक, आर्थिक तथा प्रशासनिक इतिहास की जानकारी प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण स्रोत हैं.
> शम्स-ए-सिराज - अफ़ीफ़
जियाउद्दीन बरनी की तारीख-ए-फिरोजशाही के 50 वर्ष बाद अफ़ीफ़ ने भी ‘तारीख-ए-फिरोजशाही' की रचना की तथा यह दावा किया कि उनकी रचना बरनी की रचना की पूरक है, किन्तु इसका स्वरूप एकदम भिन्न है, क्योंकि जिन हालातों में इसकी रचना की गई वे एकदम भिन्न थे. अफ़ीफ़ की रचना के केवल कुछ अंश ही वर्तमान में उपलब्ध होते हैं. इसमें इन्होंने सल्तनत काल के अन्तिम वर्षों का इतिहास लिखा है. इस पुस्तक में फिरोजशाह के शासनकाल का विस्तृत विवरण दिया गया है. इसमें फिरोजशाह तुगलक की स्थापत्य सम्बन्धी गतिविधियाँ, नहरें बनवाने, बाग लगवाने, शाही टकसाल की कार्यविधि, सैनिक पड़ाव, शाही आखेट, खाद्य पदार्थों की कीमत, सिक्का ढलाई के ब्यौरे, उत्सव, समारोहों, राजस्व प्रबन्ध आदि का विस्तार से वर्णन किया गया है. इनकी रचना में पहली बार किसी मध्यकालीन इतिहासकार ने दरबारी क्षेत्र से निकलकर आम लोगों की समस्याओं की झलक दिखाई है.
> ख्वाजा अब्दुल मलिक इसामी
ख्वाजा अब्दुल मलिक इसामी ने अपनी रचना फुतुहआलोचना की है. यह सुल्तान बहमन शाह के दरबार में पद्य उस-सलातीन में सुल्तान मुहम्मद तुगलक के विषय में कटु शैली में लिखी गई. बहमन शाह ने बहमनी राज्य की स्थापना मुहम्मद तुगलक से विद्रोह करके की. इसलिए मुहम्मद तुगलक के विषय में इसामी के विचार पूर्वाग्रह पूर्ण थे फिर भी इसका अपना महत्व है, क्योंकि यह रचना मुहम्मद बिन तुगलक के विषय में कुछ अतिरिक्त सूचनाएँ प्रदान करती हैं.
> अमीर खुसरो
साल का पूरा विवरण अमीर खुसरो के ग्रन्थ तत्कालीन सल्तनत काल के साहित्य में सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रन्थ अमीर खुसरो के हैं. इनके ग्रन्थ साहित्य एवं इतिहास दोनों श्रेणियों में रखे जा सकते हैं. ऐतिहासिक ग्रन्थों में 1285 ई. से 1315 ई. तक के इतिहास का क्रमबद्ध विवरण प्राप्त होता है. इन्होंने चार शासकों का शासनकाल अपनी आँखों से देखा था. कैकुबाद, जलालुद्दीन खिलजी, अलाउद्दीन खिलजी तथा मुबारक खिलजी, इन चारों शासकों करते हैं.
अलाउद्दीन खिलजी के ये दरबारी कवि थे. इस कारण से उनका शाही परिवार से घनिष्ठ सम्बन्ध था तथा तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों का पूर्ण ज्ञान कवि होने के कारण उनमें नैसर्गिक साहित्यिक प्रतिभा थी. उनके ग्रन्थ साहित्य में भी उत्तमकोटि के माने जाते थे. एक जागरूक साहित्यकार होने के कारण उन्होंने तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, लौकिक, रूढ़ियों एवं रीतियों, ज्योतिष, शैक्षिक, नैतिक एवं अन्य सभी प्रकार की संस्कृति एवं सभ्यता सम्बन्धी दशाओं का विशद् एवं व्यापक चित्रण किया है. उनकी प्रमुख पुस्तकें निम्नलिखित हैं
(1) किरान-उस-सदाइन – इसमें कैकुबाद का अपने पिता बुगराखाँ से भेंट का वर्णन है.
(2) मिफ्ता - उल - फूतूह – इसमें जलालुद्दीन खिलजी की चार विजयों का वर्णन है.
(3) खजाइनल फूतूह – इसमें अलाउद्दीन खिलजी के प्रथम 15 वर्षों के इतिहास का अलंकृत शैली में वर्णन किया गया है.
(4) नूहे सिपहर – इसमें कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी के शासनकाल का राजनैतिक एवं सामाजिक दशा पर प्रकाश डाला गया है.
(5) आशिकी – इसमें देवलरांनी एवं खिज्रखाँ के प्रेम का विवरण है.
(6) इजाजे खुसरवी – इसमें तत्कालीन प्रशासन का विस्तृत विवरण है.
(7) मतला-उल-अनवार व फजल-उल-फवायत — इन दोनों पुस्तकों में उस समय की सामाजिक दशा, रीति-रिवाज, प्रचलित लोकरूढ़ियों एवं अन्य सांस्कृतिक दशाओं की जानकारी प्राप्त होती है.
इस प्रकार स्पष्ट है कि, अमीर खुसरो ने अनेक साहित्यिक व ऐतिहासिक ग्रन्थों की रचना की जिससे हमें सल्तनतकाल के इतिहास के निर्धारण में बहुत अधिक सहायता मिलती है.
> यह्या-बिन- अहमद सरहिन्दी
यह्या-बिन-अहमद सरहिन्दी द्वारा 'तारीखे मुबारक शाही ' की रचना की गई थी जो 1388-1414 ई. के काल में सम्बन्धित समसामयिक इतिहास है. इस पुस्तक के लेखन का आधार प्रत्यक्षदर्शियों के विवरण एवं सुने-सुनाए साक्ष्य तथा स्वयं लेखक द्वारा किए गए निरीक्षणों को बताया गया है. इस पुस्तक में सैनिक एवं राजनैतिक इतिहास का ही निरूपण किया गया है. इस ग्रन्थ की सर्वाधिक उल्लेखनीय विशेषता प्रत्येक तथ्य का कालक्रमानुसार निरूपण है.
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