अब्राहम लिंकन : इस तरह जीती जंग

अब्राहम लिंकन : इस तरह जीती जंग
We have highly resolved that these deads shall not have died in vain that this nation, under God, shall have a new birth of freedom and that government of the people, by the people, for the people shall not perish from earth.
-Abraham Lincoln
अब्राहम लिंकन ने 1860 के अंतिम महीनों में जब अमेरिका का राष्ट्रपति बनने का फैसला लिया, लगभग उसी समय अमेरिका में दास प्रथा को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से दक्षिण के राज्यों ने संयुक्त राज्य अमेरिका के संघ से अपने आप को अलग करने का मन बना लिया था।
कारण यह था कि दक्षिण के चार राज्यों में नीग्रो निवास करते थे जिनकी 40 लाख की आबादी दक्षिणी राज्यों की खेती पर आधारित अर्थव्यवस्था का आधार थी। ग्रेट ब्रिटेन मूल के अंग्रेजों ने दक्षिणी राज्यों में जंगलों को काट-काटकर बड़े-बड़े फार्म बनाए थे और वे नीग्रो जाति के काले लोगों को जानवरों की तरह इन फार्मों पर काम करने के लिए इस्तेमाल करते थे।
काले लोगों के प्रति गोरों के नृशंस व्यवहार से अमेरिका के उत्तरी भाग के निवासी बहुत दुखी थे। दुनिया भर में इस बात के लिए अमेरिकन बदनाम हो रहे थे कि वे दास प्रथा के हिमायती हैं और चमड़ी के रंग के आधार पर मनुष्यों के साथ इतना अन्याय करते हैं कि उन्हें भागने के डर से जंजीरों में बांधकर रखते हैं और छोटी-छोटी गलतियों पर उन्हें दर्दनाक यातनाएं देते हैं।
काले लोगों को गोरों के अमानवीय शोषण से बचाने के लिए उन्हें दासता से मुक्त कराकर इंसानों की तरह जीने के अधिकार दिलाने की मांग को लेकर अनेक संगठन सक्रिय हो गए थे। दक्षिण में इन संगठनों ने अधिक सक्रियता दिखाई क्योंकि इन्हीं राज्यों में काले लोग रहते थे। कालों को दासता मुक्त कराने का संकल्प लेकर तीन दशक पहले राजनीति में उतरे लिंकन ने 1854 से लेकर 1860 तक अपने भाषणों तथा प्रचार से पूरे देश में यह संदेश पहुंचा दिया था कि वे दास प्रथा के कट्टर विरोधी हैं और यदि उन्हें कभी अमेरिका की कानून और व्यवस्था को अपने हाथ में लेने का मौका मिला तो वे ऐसा कानून बनाने से नहीं चूकेंगे जिसके तहत गुलामों को दासता से पूरी तरह मुक्त कर दिया जाएगा।
जब लिंकन ने राष्ट्रपति पद के लिए अपना नामांकन भरा तो दक्षिण के वे सभी प्रभावशाली लोग चौकन्ने हो गए जो गुलामों की मेहनत से अमीर बने हुए थे और पीढ़ी-दर-पीढ़ी उन्हें साधन के रूप में इस्तेमाल करने के रंगी ख्वाबों में खोए रहते थे। उनको लगा कि लिंकन को उत्तर के 23 राज्यों में भारी समर्थन मिलेगा और उसे राष्ट्रपति पद पर पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता। उनमें से कुछ तो लिंकन को रोकने के लिए सक्रिय हो गए और उन्होंने ऐसी नाकेबंदी की कि दक्षिण में लिंकन को एक भी वोट न मिल सके, कुछ इतने हताश हो गए थे कि वे यह मान बैठे कि लिंकन को वोट के हथियार से सत्ता में आने से रोका नहीं जा सकता, अत: भलाई इसी में है कि लिंकन जीतकर अमेरिका पर शासन करे, इससे पहले ही अपने राज्य को अमेरिकी संघ से अलग कर लिया जाए ताकि लिंकन का कानून उन पर लागू न हो सके।
दिसम्बर 1860 में विघटन की प्रक्रिया शुरू हो गई। फरवरी 1861 तक लिंकन के जीतकर आने और चार्ज संभालने से पहले ही दक्षिण के छः तथा पश्चिम के एक राज्य ने संघ से अलग होने की घोषणा कर दी और नए संघ का गठन कर इन राज्यों ने अपनी अंतरिम सरकार के तहत संयुक्त राज्य अमेरिका से अपने आपको हमेशा के लिए अलग कर लिया। तीन और राज्य अमेरिकी संघ से अलग हो गए। इस प्रकार ग्यारह राज्यों ने मिलकर अपने आपको इतनी बड़ी ताकत बना लिया कि वे इस बात पर इतराने लगे कि अब लिंकन उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। कपास की खेती की सम्पन्नता पर खड़ा उनका साम्राज्य नीग्रो गुलामों की मेहनत के भरोसे दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनेगा और शेष अमेरिका को ठेंगा दिखाएगा।
मार्च में सत्ता संभालने के बाद लिंकन ने विद्रोही दक्षिणी राज्यों पर सैनिक कार्यवाही का आदेश दिया, परंतु लिंकन क्योंकि दक्षिणी राज्यों के निवासियों को भी अपना भाई ही मानते थे, अत: वे उनके प्रति अत्यधिक उग्र कार्यवाही से बचते रहे। बड़ी संकट की घड़ी थी उनका अपना गृह राज्य कंटुकी जहां उनका जन्म हुआ था, भी इन्हीं ग्यारह राज्यों में शामिल था। इन राज्यों पर कठोर प्रहार करने में लिंकन का दिल बैठता था। वे केवल यह चाहते थे कि दक्षिण के राज्य अपनी भूल महसूस करें और फिर से अमेरिकी संघ में शामिल हो जाएं। जहां तक दास प्रथा की समाप्ति का तथा नीग्रो लोगों के साथ न्याय करने का सवाल था, लिंकन उसके लिए दूसरे हल तलाशने को तैयार थे। किसी भी हालत में वे अमेरिकी संघ का विघटन नहीं चाहते थे, परंतु हालात ऐसे बिगड़ गए कि उनकी नाक के नीचे अमेरिकी संघ का विघटन हो चुका था और भाई ही भाई के खून का प्यासा बनकर एक-दूसरे की गर्दन पर नंगी तलवार से वार कर रहा था।
होरेस ग्रीली को अपने प्रसिद्ध पत्र में अब्राहम लिंकन ने दास प्रथा और अमेरिकी संघ को लेकर जो धारणा उनके मन में थी, उसे स्पष्ट करते हुए लिखा था–
'मेरे संघर्ष का सबसे पहला उद्देश्य संघ को बचाना है। यदि संघ को बचाने के लिए मुझे दासता को समाप्त करने का अभियान रोकना पड़ा, तो मैं इसे रोक दूंगा। यदि संघ को बचाने के साथ-साथ दास प्रथा समाप्त कर सका तो अवश्य करूंगा, मेरे मन में काले लोगों के साथ न्याय करने तथा दास प्रथा से उन्हें मुक्ति दिलाने की बात भी इसलिए है क्योंकि मैं जानता हूं कि यह बुराई राष्ट्रीय विघटन का कारण बन सकती है, इसका मिटना संघीय अखंडता के हित में होगा। मैं जो कार्यवाही करने में संकोच कर रहा हूं और सहनशीलता व धैर्य का परिचय दे रहा हूं, वह भी इसीलिए है क्योंकि मुझे लगता है कि ऐसा करना संघीय एकता बहाल करने में सहयोगी होगा। जब मुझे लगता है कि धीमा चलने से संघ बचेगा तो मैं धीमा हो जाता हूं और जब मुझे लगता है कि तेजी से वार करने से संघ बचेगा तो मैं तेजी से वार करता हूं।'
सन् 1858 में डगलस के खिलाफ बहस में बोलते हुए दास प्रथा को केंद्र में रखकर अपनी तथा अपनी पार्टी की नीतियों को स्पष्ट करते हुए लिंकन ने कहा था— “जिन लोगों को दास बनाकर अमानवीय यातनाएं दी जाती हैं वे तथा उनके समर्थक यह मानते हैं कि दास प्रथा गलत है, जबकि गुलामों के साथ अमानवीय व्यवहार करने वाले लोग यह मानते हैं कि दास प्रथा गलत नहीं है, लेकिन मैं और मेरी रिपब्लिकन पार्टी यह साफ-साफ कहती है कि देश में दास प्रथा को बनाए रखने की धारणा ही गलत है। "
लिंकन के ये शब्द दास प्रथा के समर्थकों के लिए भारी चुनौती थे। इन शब्दों को सुनने के बाद वे लिंकन की ओर से बेखबर कैसे रह सकते थे।
लॉर्ड लोंगफोर्ड ने इस पर टिप्पणी करते हुए अपनी पुस्तक 'अब्राहम लिंकन' में कहा है—"The southern slave owners could be forgiven for believing that however inhumane his intention, this man Abraham Lincoln represented the ultimate threat to their system.
सितम्बर 1862 में जब गृह युद्ध अपने चरम पर था लिंकन ने यह फैसला कर लिया था कि वे विद्रोही राज्यों के सारे गुलामों को मुक्त कर देंगे। 1 जनवरी, 1863 को अपने फैसले की घोषणा करने का मन भी उन्होंने बना लिया था, परंतु दो कारणों से यह काम उन्हें रोक देना पड़ा-एक, यह कि ऐसा करने से केवल विद्रोही राज्यों के दास मुक्त हो जाते, सीमावर्ती राज्यों में रहने वाले गुलाम तो फिर भी रह जाते, दूसरे यह कि ऐसा करने से पहले उन्हें दो मोर्चों पर फतह हासिल करना अभी बाकी था—एक विद्रोही राज्यों पर विजय, दूसरे उनमें रहने वाले लोगों के हृदयों पर विजय।
लॉर्ड लोंगफोर्ड के शब्दों में—“Another element in his thought became more and more evident his determination to win a millitary victory indeed, but just as emphatically to win the hearts and minds of the South rather than crush them, degrade them or ruin them.
जब हम अमेरिका के गृहयुद्ध की गहराई में पहुंचते हैं तो पता लगता है कि जिस तरह लिंकन ने डगलस के साथ बहस के दौरान चुनाव प्रचार के समय दास प्रथा का मामला उठाया, उसके कारण ही यह धारणा बनी कि लिंकन दास प्रथा विरोधी कानून अवश्य बनाएंगे और दास प्रथा के समर्थकों ने विरोधियों के विरुद्ध अपनी तलवारें निकाल लीं। दास प्रथा के समर्थक संघ तोड़कर अलग हुए और उन्होंने विरोधियों की दुनिया से अपनी दुनिया अलग बसाने का फैसला ले लिया।
गृहयुद्ध से निबटने के लिए जो कदम लिंकन ने उठाए— प्रहार करने और सहलाते जाने का जो अनोखा तरीका अपनाया, इसके कारण लिंकन राष्ट्रपति पद की पहली बार शपथ लेने से लेकर दूसरी बार शपथ लेने तथा अपने जीवन की अंतिम सांस तक इतने कष्ट में रहे कि एक भी सांस चैन से नहीं ले पाए।
कभी वे विद्रोही राज्यों पर वार करते समय अपने जनरलों को सख्ती बरतने से रोकने की सलाह देते देखे गए तो कभी ताबड़-तोड़ हमले कर जल्दी से युद्ध जीतकर संघ से छूटे राज्यों को संघ में फिर से मिला लेने की बेचैनी से प्रेरित हो उन्हें आर-पार की लड़ाई लड़ने के लिए कहते हुए तथा त्वरित कार्रवाई न करने पर जनरलों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करते हुए देखे गए।
1861 से लेकर 1864 तक, जब तक विद्रोही राज्यों ने घुटने नहीं टेक दिए, तब तक लिंकन कभी चैन की नींद न सो सके। उनका व्यवहार कई बार पहले वाले व्यवहार से विपरीत होता, उनका अगला आदेश कई बार पहले वाले आदेश का उलट होता। अपनी इन हरकतों के कारण अनेक बार वे उपहास का पात्र बने। आलोचना के शिकार भी हुए और अपनी ही सेनाओं की हार के कारण भी बने, परंतु अपने चरित्र में बसी इंसानियत और हमदर्दी का दामन वे कभी छोड़ नहीं पाए। पता नहीं क्यों उन्हें ऐसा लगा करता था कि यह दामन ही भाई के हाथों भाई को लगे घावों की मरहम पट्टी कर सकता है और लड़कर अपनी भड़ास निकाल लेने के बाद उन्हें फिर से एक करने के लिए साझी जमीन प्रदान कर सकता है।
चार मार्च 1861 को राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण करने के बाद अब्राहम लिंकन बुरी तरह घबराए हुए से नजर आए। उन्हें मन ही मन यह चिंता सताए जा रही थी कि जो कांटों का ताज राष्ट्रपति पद के रूप में उनके सिर पर रखा जा रहा है उसने उन्हें इतनी बड़ी जिम्मेदारियों में धकेल दिया जितनी बड़ी जिम्मेदारियां राष्ट्रपति वाशिंगटन के कंधों पर भी नहीं थीं।
इसी घबराहट के कारण राष्ट्रपति के रूप में अपना पहला भाषण देने के लिए मंच पर जाते समय वे एक हाथ में छड़ी और दूसरे हाथ में हैट पकड़े रहे। उनकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि वे इन दोनों का क्या करें। उनके विरोधी रहे डगलस की निगाह जब नए राष्ट्रपति पर पड़ी तो वे उनकी परेशानी समझ गए। वे दौड़कर मंच पर चढ़े और राष्ट्रपति के हाथों से छड़ी व हैट लेकर एक ओर आ गए। बाद में ये दोनों चीजें उन्होंने उन्हें वापस कर दीं।
लिंकन ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए कांग्रेस की मीटिंग बुलाई और कई महत्त्वपूर्ण फैसले लिए। उन्होंने देश में आपात स्थिति की घोषणा की तथा सभी सेनाओं के सुप्रीम कमांडर होने के नाते युद्ध सम्बंधी सारे अधिकार अपने हाथ में ले लिए। उनकी युद्ध नीति का आधार था संघीय सैन्य ताकत के बल पर विद्रोहियों को सबक सिखाना तथा उन्हें संघ में फिर से वापस लाकर क्षमा कर देना। बदले की भावना से दक्षिणी राज्यों के फ्रंट कंफडरेशन' के खिलाफ शत्रुतापूर्ण ढंग से कार्यवाही करने तथा उनके साथ स्थाई शत्रुता पैदा कर लेने से संघीय ताकतों को रोके रखना उनकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी थी।
सबसे पहले लिंकन ने दक्षिण की आर्थिक नाकेबंदी का ऐलान किया। अपने जनरलों को बुलाकर उन्होंने साफ कह दिया कि इस नाकेबंदी का उद्देश्य दक्षिणी राज्यों को भूखे मारना नहीं है, अपितु उनके माल की बाहर आवाजाही पर प्रतिबंध लगाना है ताकि वे आर्थिक नुकसान की संभावनाओं से डरकर संघीय ताकतों के खिलाफ लम्बे समय तक लड़ते रहने का इरादा छोड़ दें और जल्दी आत्मसमर्पण कर दें।
उस समय दक्षिणी राज्यों के पास जल सेना नहीं थी। जल सेना की पूरी कमान संघीय सेनाओं के हाथ में थी। लिंकन ने जल सेना के कमांडर इन चीफ को आदेश दिया कि दक्षिणी राज्यों के समुद्री मार्गों की पूरी तरह नाकेबंदी की जाए कि वे समुद्र में कोई गतिविधि न कर सकें। विदेशों के साथ उनका कपास का व्यापार चौपट हो जाए और वे जल्दी घुटने टेक दें।
उन दिनों थल सेना का कमांडर इन चीफ जनरल स्कॉट था। जनरल स्कॉट बूढ़ा हो चुका था और उसके दिल में उत्तरी राज्यों के प्रति भी उतनी ही वफादारी थी जितनी दक्षिणी राज्यों के प्रति थी। अनेक राजनयिकों व सलाहकारों ने राष्ट्रपति को आगाह किया कि वे जनरल स्कॉट पर विश्वास न करें और नए कमांडर इन चीफ की नियुक्ति करें, परंतु लिंकन को जनरल स्कॉट अपनी उसी विशेषता के कारण अच्छा लगा, जिसे दूसरे उसकी बुराई मान रहे थे।
लिंकन ने जनरल स्कॉट को बुलाकर कहा- “जनरल! मैं जानता हूं कि तुम्हारे दिल में भी दक्षिणी राज्यों के निवासियों के प्रति वैसी ही हमदर्दी है जैसी मेरे दिल में है। जैसे तुम नहीं चाहते कि दक्षिणी राज्यों और संघीय सेनाओं के बीच घमासान हो, वैसे ही मैं भी इसके विरुद्ध हूं, परंतु मुझे एक बात बताओ कि क्या कोई ऐसा रास्ता है कि उत्तरी व दक्षिणी सेनाओं के बीच टकराव न हो और गृहयुद्ध समाप्त हो जाए।"
जनरल स्कॉट ने कहा- “सेनाओं के सुप्रीम कमांडर की हैसियत से आप तो मुझे बस आदेश कीजिए, जो आप चाहेंगे मैं वही करूंगा, जो आप नहीं चाहेंगे, उसे मैं नहीं होने दूंगा। टकराव तो अब निश्चित है, बिना बल प्रयोग के कोई और रास्ता नहीं है।"
“तो ठीक है।" अब्राहम लिंकन ने कहा – “तुम अपने जनरलों को बुलाओ और उन्हें इसी तरह काम सौंपो जिस तरह जल्दी से जल्दी स्थिति पर काबू पाया जा सके। मेरे ख्याल में सबसे खराब स्थिति रिचमोंड की है। जनरल 'ली' को सेना लेकर रिचमोंड पर हमला करने के लिए भेजो, अन्य जनरलों को यथा योग्य काम सौंपो और तुम स्वयं मुख्य मोर्चा संभालो।"
स्कॉट ने यूनाइटेड स्टेट्स की आर्मी के सबसे योग्य अफसर जनरल ली को बुलाया और उन्हें रिचमोंड के लिए प्रस्थान करने का आदेश दिया।
जनरल ली ने जवाब दिया— “मैं इतनी बड़ी जिम्मेदारी संभालने से पहले थोड़ा सोचना चाहता हूं, आप इसे आदेश का उल्लंघन न मानें।" इतना कहकर जनरल ली ने अपना सफेद रंग का सबसे अच्छा घोड़ा निकाला और उस पर चढ़कर उसे ऐड़ लगा दी। जंगलों में ओझल होने के बाद वह दक्षिण की ओर चला गया और दक्षिणी राज्यों की सीमा में प्रवेश कर उसने कंफेडरेशन की सेनाओं के कमांडर इन चीफ की जिम्मेदारी संभा ली। उसने बाद में टिप्पणी की थी–“मैं दक्षिण के खिलाफ युद्ध में नहीं उतर सकता था, यह मेरी मजबूरी थी, अतः मैंने फैसला लिया क्यों न दक्षिण की ओर से ही युद्ध में उतरूं।"
जनरल ली का संघीय सेना से चला जाना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण घटना साबित हुई। इस बात का अंदाजा तब हुआ जब भविष्य में संघीय सेनाओं का हर कमांडर जनरल ली के सामने या तो पड़ा ही नहीं और यदि पड़ा तो उसे हजारों सैनिकों की लाशें बिछवाकर पीछे हटना पड़ा। जनरल ली संघीय सेनाओं के लिए एक चुनौती बन गया। जनरल स्कॉट ने संघीय सेनाओं को जनरल ली की सेना से बहुत पीछे रोके रखा। राष्ट्रपति की ओर से आक्रमण का आदेश मिलने के बावजूद उसने अपनी सेनाओं को जनरल ली पर हमला करने का आदेश नहीं दिया। लिंकन ने 75 हजार सैनिकों की तुरंत भर्ती का ऐलान किया तथा जनरल इर्विन मैकडोवैल को रिचमोंड पर हमला करने के लिए कमान सौंपी। जनरल मैकडोवैल पहले तो आनाकानी करता रहा, उसका तर्क था कि सैनिकों को थोड़ा और तैयार कर लिया जाए तब आगे बढ़ा जाए, परंतु जब वह लिंकन से तुरंत हमला करने का आदेश लेकर रिचमोंड पहुंचा तो 'कंफेडरेशन' की सेनाओं का मुकाबला न कर सका। उसके पैर उखड़ गए।
जनरल मैकडोवैल की असफलता से कांग्रेस की चिंता बढ़ गई। कांग्रेस ने राष्ट्रपति के सामने प्रस्ताव रखा कि संघीय सेना में तुरंत पांच लाख नए सैनिकों की भर्ती की जाए। राष्ट्रपति ने यह सुझाव मान लिया। जनरल मैकलीलन को वाशिंगटन बुलाकर लिंकन ने उसे यह दायित्व सौंपा कि वह सैनिकों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था करे तथा जितनी जल्दी हो सके एक बडी सेना लेकर रिचमोंड की ओर प्रस्थान करे। मैकलीलन ने बड़ी फुर्ती दिखाई। उसने सैनिकों के प्रशिक्षण की ठोस व्यवस्था कर दी। मैकलीलन 35 वर्ष का मैक्सिको युद्ध में सफल भूमिका अदा करने वाला तथा पश्चिमी वर्जीनिया में गृह युद्ध को रोकने में सफल रहने वाला सैनिक अधिकारी था। लिंकन ने जनरल मैकलीलन पर बहुत भरोसा किया और नवम्बर 1861 में जब जनरल स्कॉट रिटायर हुआ तो लिंकन ने जनरल मैकलीलन को संघीय सेनाओं का कमांडर इन चीफ बना दिया। जनरल मैकलीलन ने सेना को मजबूत बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ी, परंतु जब उसे दक्षिण पर जोरदार हमला करने को कहा गया तो वह बहानेबाजी करने लगा। बहुत दिनों तक उसने राष्ट्रपति लिंकन को धोखे में रखा और कहा कि वह सही समय पर हमला करेगा। जनरल ली पर विजय पाने के लिए सही अवसर का इंतजार कर लेना ठीक रहेगा, लेकिन उसने हमला किया ही नहीं। इससे तंग आकर लिंकन ने एक बार कहा था- “यदि तुम कुछ दिन के लिए विश्राम करना चाहो तो लाओ सेनाओं की कमान मुझे सौंप दो। मैं देखता हूं कैसे बच पाता है यह जनरल ली और उसकी सेनाओं का जमावड़ा । "
लेकिन जनरल मैकलीलन ने राष्ट्रपति को समझा-बुझाकर फिर विश्वास में ले लिया। पश्चिम में मिसीसिपी पर कब्जा करके दक्षिण के फ्रंट को कमजोर करने की रणनीति बनाकर अब्राहम लिंकन ने 1858 में रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी रहे जॉन सी फ्रीमोंट को बुलाया और उन्हें पश्चिम की कमान सौंप दी। कांफीडरेट गुरिल्ले मिसीसिपी पर कब्जा जमाए थे, लिंकन ने फ्रीमोंट की संघ के प्रति प्रतिबद्धता पर विश्वास करते हुए उन्हें मिसीसिपी में खुलकर खेलने की छूट दे दी। फ्रीमोंट ने कमान संभालते ही मिसौरी में मार्शल लॉ लागू किया और उन सबकी सम्पत्ति जब्त करने के आदेश जारी कर दिए जिन्होंने सरकार के विरुद्ध हथियार उठाए थे। फ्रीमोंट ने दास प्रथा विरोधियों को भी नहीं बख्शा। संविधान और संघ को केंद्र में रखकर उन्होंने सख्त कार्यवाही की, परंतु फ्रीमोंट अधिक दिन नहीं टिक सके क्योंकि वे इतने ज्यादा सख्त हो गए थे कि उन्होंने राष्ट्रपति को सहयोग करने से भी इंकार कर दिया। लिंकन के सामने कठिनाई एक नहीं थी, अनेक प्रकार की विषमताओं और विसंगतियों से उन्हें जूझना पड़ रहा था। संविधान की मर्यादा, न्यायपालिका का आदर, कांग्रेस के सदस्यों का रुख, दास प्रथा विरोधियों के कड़े तेवर और पारिवारिक दंश आदि सबके साथ तालमेल बैठाकर चलना पड़ रहा था। यह ऐसी स्थिति थी कि कौन दुश्मन है कौन दोस्त है, इसकी पहचान करना मुश्किल था, कौन गलत कह रहा है और कौन सही यह विश्वास करना कठिन था।
पत्नी के कारण शर्मिंदगी और बेटे की मृत्यु
जिस समय लिंकन गृहयुद्ध से निबटने में अपनी पूरी ऊर्जा गंवा रहे थे, उन्हीं दिनों पत्नी मैरी टॉड की फिजूलखर्ची के कारण लिंकन के सामने एक अजीब सी परेशानी आ खड़ी हुई। 'व्हाइट हाउस' में मैरी टॉड के कारण लिंकन के अनेक शत्रु पैदा हो गए थे। कांग्रेस ने व्हाइट हाउस की सज्जा के लिए 20 हजार डॉलर मंजूर किए थे, परंतु श्रीमती लिंकन ने 27 हजार डॉलर खर्च कर डाले। उन्होंने अपने लिए कीमती कपड़े तथा गहने आदि बनवाने पर भी मोटी रकम खर्च कर डाली।
युद्ध की विभीषिका के दिनों में भी श्रीमती लिंकन पर अपने शौक पूरे करने का जुनून सवार हो गया और उन्होंने महारानी की तरह ठाट-बाट से व्हाइट हाउस में रहना तथा खुले हाथों नौकर-चाकरों पर खर्च करना आरंभ कर दिया। इससे नौकर-चाकरों में तथा मिलने आने वालों में उनकी छवि बहुत अच्छी हो गई, सभी तारीफ करते नहीं थकते थे कि श्रीमती लिंकन अत्यधिक उदार और बड़े दिल वाली महिला हैं। लोगों को मान देना तथा उनकी खातिर करना उन्हें खूब आता है। पैसे को वे पानी की तरह बहा देती हैं।
श्रीमती लिंकन के विरुद्ध सीनेट कमेटी गठित हो गई। यह शर्म की बात थी कि लिंकन को अपनी पत्नी की फिजूलखर्ची के कारण सीनेट कमेटी के सामने उपस्थित होना पड़ा। श्रीमती लिंकन पर यह भी आरोप था कि उनकी सहानुभूति दक्षिण के विद्रोहियों के साथ है। लिंकन केवल तीन मिनट पत्नी के विरुद्ध लगे आरोपों पर बोले और उसका ऐसा प्रभाव पड़ा कि कमेटी ने उनकी पत्नी के विरुद्ध लगे सारे आरोप वापस ले लिए।
सच्चाई यह थी कि श्रीमती लिंकन के अनेक रिश्तेदार कंफेडरेशन की ओर से संघीय सेनाओं के विरुद्ध युद्ध कर रहे थे। उनका परिवार केंटुकी के अत्यधिक अमीर लोगों से सम्बंधित था। उनके तीन भाई कंफेडरेट आर्मी की ओर से लड़ते हुए संघीय सेनाओं के हाथों मारे गए थे, परंतु उनके कुछ रिश्तेदार वाशिंगटन के अमीर परिवारों में से थे जो संघीय सेना की ओर से लड़ रहे थे।
श्रीमती लिंकन के बारे में उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि के आधार पर यह कहावत बड़ी चर्चित हो गई थी कि वे दो तिहाई गुलामी विरोधी और एक तिहाई गुलामी समर्थक हैं।
1862 में लिंकन और मैरी लिंकन व्हाइट हाउस में कुछ विशेष मेहमानों का स्वागत कर रहे थे। श्रीमती लिंकन ने बहुत कीमती और सुंदर ड्रेस पहनी थी। श्रीमती लिंकन सबसे ज्यादा सुंदर लग रही थीं। तब राष्ट्रपति ने अपने बराबर में बैठी महिला से कहा था—“My wife is as handsome as she was a girl, and I, a poor nobody then, fell in love with her, and what is more, Ihave never fallen out.
राष्ट्रपति को 'जोक' करने की बड़ी आदत थी, गंभीर अवसर पर भी वे अपने 'जोक' से वातावरण को हल्का-फुल्का कर दिया करते थे। ऐसा ही उन्होंने आज भी किया। उनके शब्द सुनते ही सब एक साथ हंस पड़े। श्रीमती लिंकन थोड़ी-सी लजा गईं।
लेकिन उस समय उनके बेटे विली की तबीयत बहुत खराब थी, उसे तेज बुखार था। मेहमानों से निबटने के बाद पति-पत्नी दोनों बच्चे की चिंता करते हुए उसके साथ जागते रहे। डॉक्टर दवा दे रहा था। बहुत कोशिश की जा रही थी, परंतु कोई फायदा नहीं हो रहा था।
अगले दिन सायं 5 बजे विली की मृत्यु हो गई। डॉक्टर निकोले राष्ट्रपति के बराबर में अपराधी की तरह खड़े थे। कोशिश करने के बावजूद वे विली को नहीं बचा पाए थे। इसका अफसोस उनके चेहरे पर साफ झलक रहा था।
राष्ट्रपति ने बेटे की निर्जीव काया की ओर देखा और रो पड़े। उनके मुंह से ये शब्द निकले–“निकोले! मेरा बेटा चला गया...वह अब नहीं रहा। दुख के आवेग को वे सह नहीं पाए। युद्ध चरम पर था। बाहर उनसे निर्देशन लेने आए सेना के जनरल इंतजार कर रहे थे। वे पछाड़ खाकर गिरी पत्नी को उसी अवस्था में छोड़कर बाहर चले गए। वहां मौजूद लोगों ने श्रीमती लिंकन को संभाला। विली राष्ट्रपति का बहुत प्यारा बेटा था। पति-पत्नी दोनों ही उसे बहुत प्यार करते थे। बेटे के गम में दोनों टूट गए। श्रीमती लिंकन तो इस दुर्घटना के बाद वर्षों तक उबर नहीं पाईं। महीनों ऐसे बीते कि राष्ट्रपति उन्हें सुला देते थे, तब सो जाती थीं, जबरन कुछ खिला देते थे, तब खा लेती थीं अन्यथा उन्हें अपने शरीर की सुधि नहीं थी। इधर युद्ध की स्थिति बद से बदतर होती जा रही थी। कंफेडरेट सेना कमांडर इन चीफ जनरल ली के नेतृत्व में संघीय सेनाओं को भारी नुकसान पहुंचा रही थी। जनरल पर जनरल बदले जा रहे थे, युद्ध नीतियां बदली जा रही थीं, मोर्चे बेहतर बनाए जा रहे थे, लाखों की संख्या में नए सैनिक झोंके जा रहे थे, परंतु संघीय सेनाएं बढ़त की ओर नहीं बढ़ पा रही थीं।
राष्ट्रपति की दक्षिण की घेराबंदी की नीति ने ब्रिटेन को नाराज कर दिया था। दक्षिणी राज्यों से निर्यात होने वाली कपास रुक गई थी। ब्रिटेन की मिलें बंद हो गई थीं। ब्रिटेन ने दक्षिणी राज्यों का पक्ष लेते हुए कंफेडरेट के तहत दक्षिण की अंतरिम सरकार को मान्यता दे दी। इतना ही नहीं संघीय सेना के जहाजों को क्षति पहुंचाने के लिए दक्षिणी राज्यों को जहाजों तथा हथियारों से सहायता करना शुरू कर दिया। ब्रिटेन की मदद से कंफेडरेट सेनाओं के हौसले और बढ़ गए तथा उन्होंने संघीय जल सेना को भारी नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया।
संघीय सेना के अनेक जहाज डुबो दिए गए, जल सेना को बहुत नुकसान पहुंचा। 1862 के अंत तक आते-आते लिंकन हताश होने लगे। जब तक यह लड़ाई केवल गृह युद्ध के दायरे में थी, तब तक तो भरोसा था कि संघीय सेनाएं दक्षिणी सेनाओं को एक दिन मात दे देंगी, परंतु जब विदेशी हस्तक्षेप होने लगा और दक्षिणी सेनाओं को बाहर से मदद मिलने लगी तब तो लिंकन बुरी तरह फंस गए। उन्हें ब्रिटेन तथा अन्य देशों से जो ब्रिटेन के इशारे पर दक्षिण की मदद को आगे बढ़ आए थे, ऐसी उम्मीद नहीं थी, परंतु अब तो बात बहुत आगे बढ़ गई थी। कहीं विदेशी ताकतें दक्षिणी राज्यों के साथ युद्ध में न उतर आएं और संयुक्त राज्य अमेरिका राख का ढेर न बन जाए इस आशंका से लिंकन कांप गए। संघीय सेनाओं का कमांडर इन चीफ मैकलीलन पूरे वर्ष दक्षिणी सेनाओं के कमांडर इन चीफ जनरल ली पर बढ़त हासिल नहीं कर पाया।
अप्रैल 1862 में मैकलीलन ने जल सेना की मदद से रिचमोंड प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया और मध्य अगस्त तक यह कब्जा बना रहा।
मई महीने के मध्य में दक्षिणी सेना के जनरल जौंसटन ने 'फेयर ओक्स' के युद्ध में संघीय सेना को भारी चुनौती दी। वह युद्ध में बुरी तरह घायल हो गया, लेकिन उसका स्थान जनरल ली ने ले लिया। जनरल ली के मुकाबले तो संघीय सेना कभी ठहर ही नहीं पाती थी। जनरल ली ने 26 जून को संघीय सेना पर भारी हमला किया। 7 दिन तक घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में जनरल ली ने जनरल मैकलीलन के छक्के छुड़ा दिए। सात दिन में दक्षिणी सेना के 20 हजार सैनिक मारे गए तथा संघीय सेना के 17 हजार सैनिक शहीद हुए। रिचमोंड पर संघीय सेना की पकड़ ढीली पड़ गई और उसे पीछे हटना पड़ा।
अगले दिन स्टेंट के साथ घोड़े पर सवार हो लिंकन अपने सैनिकों के निरीक्षण के लिए कैंप में पहुंचे। उन्होंने रेजीमेंट के सामने अपना हैट उतारा और उसे सम्मान दिया। एक सैनिक ने राष्ट्रपति की शाब्दिक तस्वीर खींचते हुए लिखा है–
"His benign smile as he passed by was a real reflection of his honest, kindly heart, but deeper under the surface that marked and not all uncomely face were the signs of care nad anxiety. God bless the man and give answer to the prayers for guidance, I am sure he offers."
11 जुलाई को लिंकन ने जनरल हेलेक (General Halleck) को संयुक्त राज्य अमेरिका की सारी सेनाओं की कमान सौंप दी। जनरल मैकलीलन को जनरल ली से निबटने का काम सौंपा गया, परंतु जनरल मैकलीलन ने जनरल ली पर हमला किया ही नहीं। रिचमोंड में जनरल ली से उसका मुकाबला था। जनरल मैकलीलन पक्का डेमोक्रेट था। वह लिंकन के खिलाफ राजनीति कर गया।
उसने 5 नवम्बर, 1862 तक अपनी सेनाओं को जनरल ली की सेनाओं के खिलाफ नहीं उतारा। या तो वह जनरल ली के साथ कोई गुप्त समझौता कर चुका था, या फिर वह लिंकन के राष्ट्रपति काल में संयुक्त राज्य अमेरिका की सेनाओं को जीत दिलाना नहीं चाहता था।
5 नवम्बर को लिंकन ने जनरल मैकलीलन को उसके पद से हटा दिया। इसके बाद जनरल बर्नसाइड ने कमान संभाली।
एक महीने बाद स्थिति को पूरी तरह समझकर लिंकन के दबाव में बर्नसाइड ने जनरल ली की सेना पर सीधा हमला किया। उसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि सीधे आगे बढ़ते जाने से दाएं-बाएं से जो हमले होंगे उनका शिकार होकर उसकी सेना नष्ट हो जाएगी।
नतीजा यह हुआ कि रात होने से पहले-पहले 12 हजार संघीय सैनिक माए गए। इस आक्रमण के समय जनरल हूकर सहित अनेक जनरलों ने बर्नसाइड का साथ नहीं दिया।
हूकर को कमान सौंपी
जनरल बर्नसाइड ने अपने जनरलों के असहयोग तथा पहली ही लड़ाई में 12 हजार सैनिकों के मारे जाने के कारण अपने पद से इस्तीफा दे दिया। राष्ट्रपति ने उसका इस्तीफा स्वीकार कर लिया। इस समय तक संघीय सेना की स्थिति संतोषजनक नहीं थी। मिसीसिपी नदी पर संघीय सेनाओं ने कब्जा कर लिया था। विक्सवर्ग और पोर्ट हडसन के बीच फैले 250 मील क्षेत्र पर ये सेनाएं कब्जा नहीं कर पाई थीं। इसी समय जनरल ग्रांट को विक्सवर्ग पर कब्जा करने का काम सौंपा गया था। जनरल ग्रांट को अधिक सफलता नहीं मिल पा रही थी। पूर्व में भी स्थिति अच्छी नहीं थी। लिंकन ने उस समय जिन शब्दों में अपने मन की हताशा को उजागर किया उसे हेंडरसन ने लिखा है—“We are on the brink of destruction. It appears to me the Almighty is against us and I can hardly see a ray of hope.
पोटोमेक की सेना के लिए लिंकन को एक और कमांडर की जरूरत थी। उसने जनरल जोसेफ हूकर को पोटोमेक का कमांडर नियुक्त किया। लम्बा इंटरव्यू लेने के बाद राष्ट्रपति लिंकन ने हूकर से कहा – “मैंने तुम्हें कमान सौंप दी है, परंतु दो बातें मैं और साफ करना चाहता हूं। एक यह कि जनरल बर्नसाइड का आदेश न मानकर तुमने जो गलती की थी, उससे देश का बहुत नुकसान हुआ, लेकिन फिर भी तुम्हारी प्रतिभा के कारण मैं तुम्हें एक मौका और दे रहा हूं। मैंने तुम्हें एक बात कहते सुना है। तुम कह रहे थे, इस देश को तथा देश की सेना को एक डिक्टेटर की जरूरत है, यानी मेरे जैसा राष्ट्रपति देश नहीं संभाल सकता, लेकिन तुम जानते हो, केवल वही जनरल डिक्टेटर बनने के ख्वाब देख सकता है, जो युद्ध जीतकर दिखाए। मैं तुम्हें चुनौती देता हूं तुम जाओ और युद्ध जीतकर दिखाओ। इसके बाद जब तुम डिक्टेटर बनने का इरादा पूरा करोगे तो उस खतरे से मैं निबट लूंगा।
जनवरी 1863 में जनरल हूकर ने कमान संभाली।
1 मई से लेकर 5 मई 1863 तक जनरल हूकर का जनरल ली की सेना से युद्ध हुआ। जनरल हूकर की सेना में 80 हजार सैनिक थे और जनरल ली के पास केवल 17 हजार। लेकिन फिर भी जनरल ली ने संघीय सेना को पीछे हटने पर विवश कर दिया। संघीय सेना का भारी नुकसान हुआ। जब लिंकन को इस शर्मनाक हार का पता लगा तो उसके मुंह से निकला – “My God My God, what will the country say...what will the country sayèk'
लेकिन इस युद्ध में जनरल ली का सबसे योग्य जनरल मारा गया। उसका नाम स्टोन वाल जैक्सन था। लिंकन ने जनरल हूकर को हटा दिया और उसके स्थारन पर जनरल मीडे को नियुक्त कर दिया। जनरल मीडे की नियुक्ति के बाद संघीय सेना के सारे जनरलों ने अपने-अपने मोर्चों पर भारी शिकस्त देने का फैसला किया। हर मोर्चे पर घमासान युद्ध शुरू हो गया। 3 जुलाई को जनरल मीडे के सामने जनरल ली की सेना के पैर उखड़ गए। जनरल ली पहली बार मैदान से हटा। जनरल मीडे ने जनरल ली की पीछे हटती सेनाओं का पीछा नहीं किया। यह बात लिंकन को अच्छी नहीं लगी। उसने जनरल मीडे को 12 हजार सैनिक और दिए तथा जनरल ली का पीछा करने को कहा। 7 जुलाई को संघीय सेनाओं ने एक और मोर्चा मारा। जनरल ग्रांट ने विक्सन वर्ग जीत लिया। 9 जुलाई को जनरल ग्रांट ने शत्रु सेना के 38 हजार सैनिकों को गिरफ्तार करके दक्षिणी सेना की कमर तोड़ दी। मिसीसिपी में जनरल बैंक के सामने पोर्ट हडसन ने समर्पण कर दिया। 27 नवम्बर में चेटानूगा पर संघीय सेनाओं ने कब्जा कर लिया।
नीग्रो सैनिकों की भर्ती
युद्ध की विभीषिका के बीच भी नीग्रो समस्या का समाधान निकालने की धुन लिंकन पर सवार थी, क्योंकि वह जानता था कि सारी मुसीबत की जड़ तो यह नीग्रो ही हैं। इनकी समस्या नहीं सुलझाई गई तो लाखों अमेरिकी सैनिकों और नागरिकों का जो रक्त बहा है, वह बेकार चला जाएगा।
1863 में लिंकन के दिमाग में यह विचार आया कि काले लोग गोरों के साथ नहीं रह सकते। गोरे इनसे घृणा करते रहेंगे तथा इनका शोषण जारी रहेगा, क्यों न इन्हें अलग बसा दिया जाए। लिंकन ने काले लोगों के नेताओं से बात की और इस बात पर सहमति प्राप्त कर ली कि काले लोगों को मध्य अमेरिका में बसा दिया जाए। सरकार ने अपने खर्चे पर हेती में चार हजार नीग्रो भेजे, लेकिन वह प्रयोग सफल न हो सका। तब लिंकन ने इसे छोड़ दिया और फैसला लिया– "अब चाहे जो हो काले और गोरे साथ-साथ ही रहेंगे। " उन्होंने नीग्रो को सेना में भर्ती करने का मन बना लिया।
25 दिसम्बर, 1863 को क्रिसमस के दिन सेना में काले लोगों की भर्ती खोल दी गई। जब युद्ध समाप्त हुआ तब संघीय सेना में 1,86,000 नीग्रो सैनिक थे।
गैटिस्वर्ग ने दहला दिया
गैटिस्वर्ग के घमासान युद्ध के बाद संघीय सेनाओं ने पूरे क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। पर इस युद्ध में इतनी लाशें गिरीं कि दूर-दूर तक जहां तक नजर जाती थी, मैदान में लाशें ही लाशें नजर आती थीं। सितम्बर 1863 में गैटिस्वर्ग पर कब्जा हुआ था। परंतु लाशें अक्टूबर तक ठिकाने न लगाई जा सकीं। संघीय सैनिकों की लाशों को अक्टूबर के अंत तक दफन करने का काम शुरू किया, परंतु कंफेडरेट सैनिकों की लाशें यूं ही पड़ी रहीं। वर्षों के लम्बे अंतराल के बाद भी उन्हें दफनाने का काम शुरू नहीं हो सका। पेंसिलवानिया में 17 एकड़ जमीन संघीय सैनिकों को दफनाने के लिए तय की गई थी।
इस अवसर पर राष्ट्रपति को भाषण देने के लिए बुलाया गया। तब प्रैस तथा देश की जनता को यह उम्मीद थी कि राष्ट्रपति जीत की खुशी में एक शानदार भाषण देंगे, परंतु राष्ट्रपति का हृदय तो शोक से भरा हुआ था। उन्होंने बड़े नपे-तुले शब्दों में मृतक सैनिकों के प्रति सम्वेदना प्रकट की। अंत में सम्वेदना से भरे ऐसे शब्द कहे जो इतिहास में अमर हो गए। उन्होंने कहा- "हमारे सामने हजारों बहादुरों की लाशें पड़ी हैं। आओ हम सब अमेरिकावासी मिलकर संकल्प लें कि दोनों ओर से इस गृहयुद्ध में मारे गए लाखों लोगों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। ईश्वर की छत्रछाया में यह राष्ट्र नया जन्म लेगा इसकी स्वाधीनता नई होगी और जनता का जनता पर तथा जनता द्वारा शासन का धरती से कभी अंत नहीं होगा।"
(Under God, this nation shall have a new birth of freedom and that government of the people, by the people for the people, shall not parish from the earth)
3 सितम्बर, 1863 को रिपब्लिकंस ने सभी डेमोक्रेट्स से यह निवेदन किया कि वे मिलकर एक नई पार्टी 'नेशनल यूनियन पार्टी' बना लें। लिंकन इस सभा में सम्मिलित नहीं हुए थे, परंतु उन्होंने अपने पुराने मित्र जेम्स सी कोंकलिंग (कमेटी के चेयरमैन) को अपने पत्र में ये शब्द लिखे थे–“संकेत अच्छे हैं, परंतु पूरी शांति प्राप्त करने के तीन तरीके हैं। इनमें से कोई एक तरीका अपनाना होगा। पहला तरीका यह है कि विद्रोहियों को कुचल दिया जाए जैसा कि सरकार के अधीन जारी है। दूसरा, संघ को भंग कर दिया जाए जो मैं कभी नहीं चाह सकता, तीसरा कोई समझौता किया जाए, जो दक्षिणी राज्यों की आजादी के बिना सम्भव नहीं लगता। यदि दक्षिण की ओर से कोई ऐसा प्रस्ताव आता है जिससे हमारा संघ न टूटे और आपस में समझौता हो जाए तो मैं उसका स्वागत करूंगा। "
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