General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | सुभाषचन्द्र बोस और स्वतंत्रता का अंतिम चरण

सुभाष चन्द्र बोस को महात्मा गांधी ने राष्ट्रभक्त कहा था। वे अपने समकालीन नेताओं में सबसे सटीक और कुशाग्रबुद्धि के थे।

General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | सुभाषचन्द्र बोस और स्वतंत्रता का अंतिम चरण

General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | सुभाषचन्द्र बोस और स्वतंत्रता का अंतिम चरण

सुभाष चन्द्र बोस को महात्मा गांधी ने राष्ट्रभक्त कहा था। वे अपने समकालीन नेताओं में सबसे सटीक और कुशाग्रबुद्धि के थे। भारत की आजादी के लिए प्रारंभ से ही उनको अलग एवं सटीक विचारधारा था। समय के साथ सुभाष चन्द्र ने अपने विचारधारा और कर्मों एवं उपलब्धियों के बदौलत स्वयं को साबित किया । एवं अपने साहसी निर्णय से तो गाँधीजी तक को भी चुनौती दिए । प्रश्न तो यह बनता है कि अगर सुभाष चन्द्र बोस अपनी फौज के साथ भारत की धरती पर होते तो भारत कैसा होता ? ऐसे बहुतेरे प्रश्न बनते हैं किंतु उनके कार्य प्रणाली से अलग भारत को जीत प्राप्त हुई। लेकिन इस आजादी में सुभाष चन्द्र बोस की योगदान भी सराहनीय और अविस्मरणीय है । इस खण्ड में भारत छोड़ो आंदोलन के पश्चात आजादी की प्राप्ति तक के महत्वपूर्ण घटना भी द्वितीय खण्ड में है।

सुभाष चन्द्र बोस

  • ज्ञातव्य है कि सुभाष चन्द्र बोस की स्वतंत्रता संघर्ष में आगमन ने संघर्ष की दिशा को विचारधारा व प्रगतिगामी सोच दोनों स्तर पर तीव्रता प्रदान किया था।
  • सुभाष चन्द्र बोस अल्पायु से ही कुशाग्रबुद्धि के धनी व्यक्ति थे। नजरिया व कर्मों के बीच सामंजस्य एवं सटीकता ने उनके अल्पायु जीवन को भी उपलब्धियों से नवाजा था।
सुभाष चन्द्र बोस 
जन्म - 23 जनवरी 1897 
स्थान - कटक (उड़ीसा)   
माता - प्रभावती देवी
पिता - जानकी बोस
पत्नी - ऐमिली बोस
पुत्री - अनीता बोस
मृत्यु - विवादित (18 अगस्त, 1945 )
  • वर्ष 1919 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि ग्रहण किया एवं 1920 ई. में भारतीय नागरिक सेवा (ICS) में उत्तीर्ण हुए।
  • कालांतर में सुभाष ने राष्ट्रीय आंदोलन में सम्पूर्ण सहयोग हेतु ICS से त्याग पत्र दे दिया।

सुभाष चन्द्र बोस और त्रिपुरी संकट

  • वर्ष 1938 के कांग्रेस के हरिपुरा (गुजरात) अधिवेशन में पहली बार अध्यक्ष (निर्विरोध) बने थे।
  • वर्ष 1939 में जबलपुर (MP) के त्रिपुरी में गाँधीजी द्वारा समर्थित पट्टाभि सीतारमैया को पराजित कर कांग्रेस के दूसरी बार अध्यक्ष बने थे।
  • इस अधिवेशन में विजेता बनने के पश्चात भी सुभाष चन्द्र बोस ने गाँधीजी के मतभेद के कारण उन्होंने त्याग पत्र दे दिया था।
  • त्रिपुरी चुनाव में प्राप्त वोट
    1. सुभाष चन्द्र बोस - 1,588 वोट
    2. पट्टाभि सीतारमैया - 1,377 वोट
  • वर्ष 1939 में कांग्रेस से त्यागपत्र देकर सुभाष चन्द्र बोस ने फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना किया था।
  • इसी क्रम में सुभाष चन्द्र बोस को जुलाई 1940 में भारतीय सुभाष चन्द्र कानून के तहत गिरफ्तार कर कलकत्ता में बंद कर दिया गया था।
  • सुभाष चन्द्र बोस को भूख हड़ताल करने पर 5 दिसम्बर 1940 को उन्हीं के घर में नजरबंद कर दिया गया था।
  • 18 जनवरी 1941 को सुभाष चन्द्र बोस अपने घर से एक पठान जिआउद्दीन के वेश में निकल कर फरार हो गए थे।
  • भागने के क्रम में बोस सर्वप्रथम कार द्वारा गोआ गए थे। इसमें उनके भतीजा शिशिर बोस ने मदद किया था।
  • इसी क्रम में बोस सर्वप्रथम कार द्वारा गोआ गए थे। तथा वहाँ फ्रंटियर मेल (ट्रेन) के द्वारा पेशावर चले गए।
  • क्रांतिकारी भगत राम तलवार की मदद से वे काबुल पहुंचे थे। काबुल से उन्होंने ओरलैण्डो मैजोण्टा नामक इटली के नागरिक के पासपोर्ट (जाली पासपोर्ट) पर हवाई जहाज द्वारा सोवियत संघ की राजधानी मोस्को पहुंचे थे। तथा उसके पश्चात जर्मनी की राजधानी बर्लिन पहुंचे थे।
  • 28 मार्च 1941 को बर्लिन पहुंचने के पश्चात बर्लिन में इनका स्वागत हिटलर के प्रमुख सहायक रिवेनट्राप ने किया था ।
  • जर्मनी में हिटलर ने प्रथम मुलाकात पर इनको नेताजी कहा था।
  • ज्ञातव्य है कि हिटलर को 'डेर फुहरर', मुसालिनी का 'डलथूडस' जैसे उपाधियां मिली थी। इस सबका मतलब नेताजी ही होता है।
  • ध्यातव्य है कि बर्लिन में ही सुभाष चन्द्र बोस को बर्लिन रेडियो से ब्रिटिश विरोधी प्रचार करने तथा जर्मनी में भारतीय युद्धबंदियों से एक आजाद हिंद फौज की स्थापना की अनुमति प्रदान किया था।
  • जर्मनी में ही सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिंद रेडियो की स्थापना किया था तथा 1942 में दो सैनिक दस्ते भी स्थापित किए थे।
  • इसी यात्रा में सुभाष चन्द्र बोस ने रोम तथा पेरिस में दो स्वतंत्र भारत केन्द्र ( Free India Centre) की स्थापना किया था।
  • इसी समय जापान ने 15 फरवरी 1942 को सिंगापुर पर कब्जा कर भारतीय सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया।
  • इसी कालखण्ड में दिल्ली बमकांड से भागकर जापान में बसे रास बिहारी बोस ने जापान में ही इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की थी।
  • रास बिहारी बोस की कोशिशों से 28 से 30 मार्च 1942 को टोकियो (जापान) में एक सम्मेलन आयोजित किया गया।
  • इस सम्मेलन में कैप्टन मोहन सिंह, रास बिहारी बोस, निरंजन सिंह गिल के सहयोग से भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) का गठन किया गया था।
  • 23 जून 1942 को बैंकाक में भी एक सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इस सम्मेलन में विभिन्न देशों के 100 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था ।
  • ज्ञातव्य है कि बैंकाक सम्मेलन की अध्यक्षता रास बिहारी बासे ने किया था। इसी सम्मेलन में इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना किया गया तथा सुभाष चन्द्र बोस को एशिया बुलाने का निर्णय लिया गया था।
  • बैंकाक सम्मेलन से पूर्व ही भारतीय सेना के कैप्टन मोहन सिंह ने 2500 युद्धबंदियों के साथ आजाद हिंद फौज की औपचारिक स्थापना कर दिया था । 
  • यह सेना कुछ कठिनाइयों के कारण पुनः भंग कर दी गई थी।

आजाद हिंद फौज

  • 13 जून 1943 को टोकियो और 2 जुलाई 1943 को सिंगापुर में सुभाष चन्द्र बोस का आगमन हुआ था।
  • इसी क्रम में 4 जुलाई को सुभाष चन्द्र बोस इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के अध्यक्ष बने। यहीं पर सुभाष चन्द्र बोस ने ब्रिटेन के विरुद्ध आक्रमण करने की घोषणा किया था।
  • नेताजी 5 जुलाई 1943 सिंगापुर के टाउन हॉल में 'दिल्ली चलो' का नारा दिया था। इसके साथ ही यह भी कहा था “हमारी मातृभूमि स्वतंत्रता की खोज में है। तुम हमें खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा यह स्वतंत्रता की देवी की मांग है। "
  • इसी क्रम में 21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर के कैथहॉल के एक विशाल जनसभा में बोस ने आजाद हिंद की अस्थायी सरकार बनाने की घोषणा किया था।
  • बोस इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा सेनाध्यक्ष तीनों थे।
    वित्त विभाग - ए. सी. चटर्जी
    प्रचार विभाग - एस. ए. अय्यर
    महिला संगठन - लक्ष्मी स्वामीनाथन 
  • इस सरकार को निम्न राष्ट्रों का मान्यता प्राप्त हुआ था
    जापान
    चीन
    जर्मनी
    इटली
    कोरिया
    फिलीपीन्स
    मांचुको
    आयरलैंड
  • 25 अक्टूबर 1943 को ब्रिटेन तथा अमेरिका के विरुद्ध युद्ध की सुभाष चन्द्र बोस के द्वारा कर दिया गया था।
  • 6 नवम्बर 1943 को जापान ने अपने कब्जे वाले दो भारतीय द्वीप को सुभाष चन्द्र बोस की अस्थायी सरकार को सौंप दिया।
  • सुभाष चन्द्र बोस ने अंडमान को शहीद द्वीप तथा निकोबार को स्वराज द्वीप नाम रखा था।
  • आजाद हिंद फौज की अनेकों टुकड़ियां बनाई गई जिनको ब्रिगेड कहा गया इसमें निम्न ब्रिगेड थे।
    1. महात्मा गाँधी बिगड
    2. अबुल कलाम आजाद ब्रिगेड
    3. जवाहर लाल नेहरू ब्रिगेड
    4. रानी लक्ष्मीबाई ब्रिगेड ( महिला ब्रिगेड )
    5. सुभाष ब्रिगेड ( सेनापति - शहनवाज खान)
  • इसी क्रम में यह सेना की एक टुकड़ी जनवरी 1944 को रंगून पहुंच गई। इसके पश्चात 4 फरवरी 1944 को एक टुकड़ी रंगनू से अराकान पहुंची तथा मार्च में इस सेना ने ब्रिटिश टुकड़ी को परास्त किया।
  • 14 अप्रैल 1944 को मणिपुर के मोरांग नामक स्थान पर ब्रिटिश सेना पराजित हुई तथा भारत का तिरंगा झंडा फहराया गया था।
  • इसी क्रम में फौज की एक टुकड़ी जापानी सेना के साथ कोहिमा पहुंच गई थी। 6 जुलाई, 1944 को सुभाष चन्द्र बोस रंगून रेडियो स्टेशन से गांधीजी को राष्ट्रपिता नाम से संबोधित किया था ।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की पराजय के साथ आजाद हिंद फौज की परान्न भी सुनिश्चित हो गई थी।
  • इसी क्रम में 13 अगस्त 1945 को सुभाष चन्द्र बोस सिंगापुर पहुंचे। 18 अगस्त 1945 को बोस और हबीबुर्ररहमान टोकियो जाने के लिए फारमोसा हवाई अड्डे से रवाना हुए किंतु विमान उड़ते ही दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी।
  • आजाद हिंद फौज के सभी सैनिकों और अधिकारियों को अंग्रेजी ने 1945 में गिरफ्तार कर लिया था ।
  • ज्ञातव्य है 5 से 11 नवम्बर को गिरफ्तार अधिकारियों पर अंग्रेजों ने दिल्ली के लाल किले में इन पर मुकदमा चलाया गया।
  • इस मुकदमे के मुख्य अभियुक्त कर्नल ढिल्लो, कर्नल शहगल, तथा मेजर शहनवाज खां थे। इन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया था।
  • ज्ञातव्य है आजाद हिंद के बचाव पक्ष के वकील तेज बहादूर सप्रु, जवाहरलाल नेहरू, अरूणा आसफ अली और के. एन. काटजू थे। इन सभी वकीलों का नेतृत्व भूलाभाई देसाई ने किया था ।
  • अंग्रेज सरकार ने तीनों स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी की सजा दी थी।
  • इस क्रियाविधि का विरोध समूचे भारत में होने लगा। भारत में नारा लगा था लाल किला को तोड़ दो, आजाद हिंद फौज को छोड़ दो।
  • तत्कालीन वायसराय लार्ड वेवेल को अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर इनकी मृत्युदंड की सजा को माफ कर देना पड़ा था।

गाँधीजी का उपवास 

  • अगस्त क्रांति (भारत छोड़ो आंदोलन) के दौरान लगातार हो रहे हिंसा के लिए आंदोलनकारियों को गलत साबित करने के लिए गाँधीजी पर अंग्रेजों ने दबाव डाला।
  • गाँधीजी ने आंदोलनकारियों को गलत नहीं माना बल्कि अंग्रेजों को यह संदेश दिया कि हिंसा का कारण क्रूरतापूर्वक आंदोलन का दमन है।
  • गाँधीजी ने इसी सरकारी दमन के विरोध में अंग्रेजों के खिलाफ फरवरी 1943 को उपवास प्रारंभ कर दिया।
  • गाँधीजी के उपवास की खबर मिलते ही पूरे देश में आक्रोश फैल गया। देश भर में प्रदर्शन, हड़ताल तथा प्रदर्शन का आयोजन किया जाने लगा गया था।
  • विदेश में भी गाँधीजी के उपवास पर प्रतिक्रिया प्रारंभ हो गया था। गाँधीजी को रिहा करने की भी बात प्रारंभ हो गया था।
  • इसी क्रम में वायसराय की कार्यकारिणी परिषद से तीन सदस्यों ने त्यागपत्र दे दिया था।
  • गाँधीजी के उपवास का प्रभाव :

राजगोपालाचारी योजना (CR Formula, 1944)

  • महात्मा गाँधी को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गिरफ्तार कर पूना के आगा खां पैलेस में कैद कर लिया गया था।
  • 6 मई 1944 को ब्रिटिश सरकार ने स्वास्थ्य के आधार पर उनको रिहा कर दिया था।
  • जेल से रिहा होने के पश्चात गाँधीजी ने पुनः राजनीतिक गतिरोध दर करने के उद्देश्य से लीग और कांग्रेस मध्य सद्भावपूर्ण माहौल बनाने का प्रयास किया था।
  • 10 जुलाई 1944 को गांधीजी की स्वीकृति से सी. राजगोपालाचारी ने दोनों दलों के मध्य एक समझोते की योजना प्रस्तुत किया।
  • इसका उद्देश्य था
    1. मुस्लिम लीग स्वतंत्रता की मांग का समर्थन करे तथा अंतरिम सरकार के निर्माण में कांग्रेस का सहयोग करें।
    2. युद्ध समाप्ति के पश्चात मुस्लिम बहुसंख्यक वाले क्षेत्र की सीमा निर्धारित किया जा सके।
    3. इस निर्धारित क्षेत्र में वयस्क मतदान प्रणाली के अंतर्गत लोगों के देशों के चयन के आधार पर अगर वे भारत से अलग रहना चाहे तो उनको भारत से बाहर किया जा सके।
    4. निवासियों की अदला-बदली उनकी स्वेच्छा पर निर्भर हो ।
    5. बंटवारे की दशा में, रक्षा, प्रतिरक्षा तथा संसाधनों एवं अन्य विषयों में पारस्परिक समझौता व्यवस्था हो ।
  • ज्ञातव्य है कि गांधीजी ने जिन्ना को यह सिद्धांत मानने के लिए काफी प्रयत्न किया था।
  • इसी क्रम में गांधीजी ने सर्वप्रथम उनको कायदे आजम (महान नेता) की उपाधि से संबोधित किया था।
  • इसी क्रम में सी. राजगोपालाचारी ने मुहम्मद अली जिन्ना को पाकिस्तान मांग का भी समर्थन किया था।
  • इसी क्रम में मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच समझौता का प्रयास मूलाभाई देसाई के द्वारा भी किया गया था।

वेवेल योजना (The Wevell plan, 1945)

  • 1945 में मित्र राष्ट्रों की सफलता के साथ द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया। 21 मार्च, 1945 को केवल भारत में व्याप्त गतिरोध को समाप्त करने हेतु लंदन गए ।
  • लंदन पहुंचकर वेबल ने प्रधानमंत्री चर्चिल तथा भारत मंत्री एमरी से परामर्श कराने के पश्चात 14 जून 1945 को भारत लौटे थे।
  • भारत में व्याप्त तत्कालीन समस्याओं निजात हेतु वेवेल ने एक भारतीयों के समक्ष योजना प्रस्तुत किया। इसको ही 'वेवल योजना' कहा गया ।
  • इस योजना की प्रमुख बातें :
    1. कार्यकारिणी में मुस्लिम सदस्यों की संख्या सवर्ण हिंदुओं के बराबर होगी ।
    2. कार्यकारिणी परिषद् एक अन्तरिम राष्ट्रीय सरकार के समान होगी। गवर्नर जनरल बिना कारण विशेषाधिकार का प्रयोग नहीं कर पायेंगे।
    3. कांग्रेस के सदस्य रिहा किये जायेंगे तथा शीघ्र ही शिमला में एक सर्वदलीय सम्मेलन बुलाया जाएगा।
    4. युद्ध समाप्त होने के पश्चात भारतीय स्वयं ही संविधान बनायेंगे।
    5. वायसराय के कार्यकारिणी परिषद को पुनर्गठित किया जाएगा तथा उसमें सभी दलों को प्रतिनिधित्व दिया जाएगा।
    6. परिषद् में वायसराय या सैन्य प्रमुख के अतिरिक्त शेष सभी सदस्य भारतीय होंगे तथा प्रतिरक्षा विभाग वायसराय के अधीन होगा।

शिमला सम्मेलन 1945

  • ज्ञातव्य है कि वेवेल योजना के प्रस्ताव पर विचार-विमर्श हेतु 25 जून से 19 जुलाई 1945 तक शिमला में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया था।
  • ध्यातव्य है कि इस सम्मेलन में सभी समकालीन राजनीतिक दलों से 21 राजनेताओं (प्रतिनिधियों) ने भाग लिया था।
  • इस सम्मेलन में कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने भाग लिया।
  • इस सम्मेलन में शामिल होने वाले नेता :-
    अबुल कलाम आजाद (कांग्रेस)
    सरदार पटेल (कांग्रेस)
    जवाहरलाल नेहरू (कांग्रेस )
    खान अब्दुल गफ्फार खान (मुस्लिम लीग)
    मुहम्मद अली जिन्ना (मुस्लिम लीग)
    नवाब इस्माईल खां (मुस्लिम लीग )
    लियाकत खां (मुस्लिम लीग)
    मास्टर तारा सिंह (अकाली नेता )
  • ज्ञातव्य है कि गाँधीजी ने इस सम्मेलन में भाग नहीं लिया था । यद्यपि सम्मेलन के समय शिमला में ही मौजूद थे।
  • ज्ञातव्य है कि इस सम्मेलन में मतैक्यता का अभाव रहा इस कारण 14 जुलाई 1945 की बावसाय से सम्मेलन को असफल कहकर समाप्त कर दिया था।

भारत में आम चुनाव

  • ज्ञातव्य है कि जुलाई 1945 में इंगलैंड में चुनाव हुए थे। इसमें लेबर पार्टी की सरकार बनी थी।
  • इस नवीन सरकार में चर्चिल की जगह पर एटली इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बने थे।
  • लेबर पार्टी भारत के प्रति उदार दृष्टिकोण रखती थी। एटली ने वेवेल को भारत बुलाकर उनसे बातचीत किया था।
  • वर्ष 1945-46 में सर्वप्रथम एटली ने भारत में आम चुनाव कराने की घोषणा किया जो प्रांतीय और केन्द्रीय विधान सभाओं के लिए होना था ।
  • इस चुनाव में सामान्य स्थानों पर कांग्रेस को तथा आरक्षित स्थानों पर लीग को सफलता प्राप्त हुई थी।
  • दिसम्बर 1946 को चुनाव परिणाम आए थे जो निम्न है-

चुनाव से सम्बन्धित तथ्य

  1. इस चुनाव में साम्प्रदायिक मत विभाजन का मुद्दा अत्यधिक प्रभावी था।
  2. पृथक निर्वाचन पद्धति
  3. इसमें प्रांतीय जनसंख्या के कुल मत का केवल 10% हिस्से ने ही मताधिकार का प्रयोग किया।
  4. केन्द्रीय व्यवस्थापिका के लिए चुनावों में कुल जनसंख्या के केवल 1% भाग को ही मताधिकार के योग्य माना गया था।

कैबिनेट मिशन, 1946

  • फरवरी 1946 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ने भारत में एक तीन सदस्यीय उच्चस्तरीय शिष्टमंडल भेजने की घोषणा किया था।
  • इस शिष्टमंडल में ब्रिटिश कैबिनेट के तीन सदस्य थे।
  1. लार्ड पैथिक लारेंस (भारत सचिव)
  2. सर स्टेफोर्ड क्रिप्स (व्यापार बोर्ड के अध्यक्ष)
  3. एनी अलेक्जेंडर (नौवहन विभाग के प्रथम लार्ड या नौसेना मंत्री)

कैबिनेट मिशन का आगमन और ब्रिटिश वापसी के कारण

  1. सरकारी विरोधी जनभावना और राष्ट्रवादियों की नीतियां एवं सफलता चरम पर थी।
  2. 1939 तक सेना से सिविल सेवा तक ब्रिटिश वर्चस्व था । किंतु यह धार-धीरे कम होता गया। भारतीयों का सेवाओं में वर्चस्व ने भी सेवा का भारतीयकरण किया।
  3. इसी क्रम में जब ब्रिटिश सरकार ने अहिंसक आंदोलनों का हिंसा से दमन किया तो इससे ब्रिटिश फासीवादी विचार का प्रबलता दिखा।
  4. आजाद हिंद फौज की बचाव के लिए समूचा राष्ट्र एकजूट हो गया था। अब राष्ट्रवाद अपने चरम परिणती पर था ।
  5. तत्कालीन परिस्थितियों में सरकार के पास भारतीयों के दमन का बस एक ही व्यवस्था था। अंतरिम शासन व्यवस्था किंतु यह व्यवस्था असंभव प्रतीत होने लगी थी I
  6. अंतर्राष्ट्रीय दबाव के साथ अब ब्रिटिश सरकार को महसूस होने लगा कि भारत से समझौता कर लिया जाए तथा शांतिपूर्ण ढंग से सत्ता सौंप दिया जाए।
  • 29 मार्च 1946 को पैथिक लारेंस ने कहा कि इसका उद्देश्य भारत के लिए संविधान तैयार करने के लिए एक शीघ्र ही एक कार्यकारिणी तैयार तथा अंतरिम सरकार के लिए आवश्यक प्रबंध करना था।
  • इसी क्रम में कैबिनेट मिशन के समझौता का अंतिम प्रयास करने के आशय से शिमला में त्रिदलीय सम्मेलन बुलाया गया। यह सम्मेलन 5 से 11 मई तक चला था।
  • ज्ञातव्य है कि इस सम्मेलन से मतैक्यता का अभाव था। इसी कारण मिशन ने 16 मई 1946 को अपने प्रस्तावों की घोषणा किया था। इसकी प्रमुख बातें निम्न थी-
    1. भारत एक प्रांत होगा तथा इसमें ब्रिटिश भारत के प्रांत तथा देशी दोनों राज्य शामिल होंगे। विदेशी मामले, प्रतिरक्षा केन्द्रीय सरकार के अधीन होंगे।
    2. संघीय विषयों को छोड़कर शेष विषयों एवं अवशिष्ट शक्तियों प्रांतों में निहित होगी। ऐसी रियासतें जो विषय तथा शक्तियां संघ को सौंप दे। इनके अतिरिक्त अन्य विषय तथा शक्तियां उनके पास सुरक्षित होगी।
    3. संविधान निर्मात्री सभा का गठन प्रांतीय विधान सभाओं तथा देशी रियासतों के प्रतिनिधियों द्वारा किया जाएगा। तथा प्रांत को उसकी जनसंख्या के अनुपात में सामान्यतः 10 लाख की आबादी में 1 प्रतिनिधि के अनुपात में सीटों की कुल संख्या आवंटित किया जाएगा।
    4. ज्ञातव्य है कि प्रांतों को तीन श्रेणियों क, ख, ग में बांटा गया था।
      (क) बंबई, बिहार, मध्य प्रांत, मद्रास, उड़िसा, संयुक्त प्रांत
      (ख) पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत, सिंध और पंजाब
      (ग) असम और बंगाल
    5. इसी क्रम में मुस्लिम लीग के पाकिस्तान के मांग के प्रस्ताव को ठुकरा दिया गया था। इसको ठुकराने का आधार था की इससे अल्पसंख्यकों की समस्या का समाधान नहीं होगा।
  • 29 जून, 1946 को कैबिनेट मिशन भारत से वापस चला गया। लीग तथा काग्र न चाहते हुए भी इसके प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया।
  • कैबिनेट मिशन के संबंध में गाँधीजी के विचार "यह योजना इस समय की परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में सबसे उत्कृष्ट योजना थी, उसमें ऐसे बीज थे जिनसे दुःख की मारी भारत भूमि यातना से मुक्त हो गई थी।'
  • संविधान सभा के लिए हुए चुनावों में ब्रिटिश भारत के प्रांतों के 296 स्थानों में काँग्रेस द्वारा 205 पर जीत प्राप्त हुआ। मुस्लिम लीग को इस विजय से समस्या उत्पन्न हो गया।
  • 22 जुलाई को अंतरिम सरकार की स्थापना से संबंधित प्रस्ताव कांग्रेस और लीग के समक्ष रखा।
  • नये प्रस्ताव के अनुसार अंतरिम सरकार में 14 सदस्य होंगे जिसमें 6 कांग्रेस मनोनीत करेगी तथा 5 को मुस्लिम लीग तथा 3 अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधि होंगे।
  • ज्ञातव्य है कि 3 अल्पसंख्यक प्रतिनिधि सदस्यों को लेकर कांग्रेस और लीग में विवाद उत्पन्न हो गया I कांग्रेस ने अपने प्रतिनिधित्व की पक्ष रखा जबकि मुस्लिम लीग ने स्वयं को इकलौता अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधि माना था।
  • मुस्लिम लीग को वायसराय का यह प्रस्ताव मंजूर नहीं था । अतः उसने एक प्रस्ताव पारित कर "स्वतंत्र प्रभुतासंपन्न पाकिस्तान राज्य की स्थापना के लिए सीधी कार्यवाही के लिए तैयार हो गई।
  • इसी क्रम में मुस्लिम लीग ने सीधी कार्यवाही दिवस (Direct action day ) की घोषणा 16 अगस्त 1946 को कर दिया।
  • मुस्लिम लीग द्वारा घोषित सीधी कार्यवाही दिवस का उद्देश्य भारत के साम्प्रदायिकता को बढ़ाना तथा यह साबित करना था कि हिंदू और मुस्लिम एक नहीं है । और एक साथ नहीं रह सकते हैं।
  • प्रत्यक्ष कार्यवाही (सीधी कार्यवाही) के दौरान कलकना नरसंहार, हत्या, बलात्कार की क्रीड़ा स्थली बन गई।
  • प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस के बिहार, बंगाल, पंजाब, दिल्ली सभी जगहों पर भयंकर रक्तपात हुआ था।

अंतरिम सरकार का गठन

  • ज्ञातव्य है कि कांग्रेस के द्वारा वायसराय के नवीनतम प्रस्तावों को स्वीकार कर लेने के पश्चात 1 अगस्त 1946 को वेबल ने कांग्रेस अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू को अंतरिम सरकार की गठन के लिए आमंत्रित किया था।
  • 24 अगस्त, 1946 को पंडित नेहरू के नेतृत्व में भारत की पहली अंतरिम राष्ट्रीय सरकार की घोषणा की गई थी, जिसमें मुस्लिम लीग की भागीदारी नहीं थी ।
  • अंतरिम सरकार का उद्देश्य भारत में संवैधानिक व राजनीतिक स्थिरता के साथ नये भारत के निर्माण को कार्यरूपेण परिणत करना था।
अंतरिम सरकार का मंत्रिमंडल
क्रम सं. नेता पद / कार्यभार
1. जवाहरलाल नेहरू र्काकारी परिषद के उपाध्यक्ष, विदेशी मामले, कॉमनवेल्थ संबंध
2. सरदार वल्लभ भाई पटेल गृह, सूचना एवं प्रसारण
3. बलदेव सिंह रक्षा
4. डॉन जॉन मथाई उद्योग एवं आपूर्ति
5. सी. राजगोपालाचारी शिक्षा
6. सी. राजगोपालाचारी शिक्षा
7. सी. एच. भाभा निर्माण, खनन एवं ऊर्जा
8. राजेन्द्र प्रसाद कृषि एवं खाद्य
9. जगजीवन राम श्रम
10. आसफ अली रेलवे
11. अब्दुररर्हमान निस्तर (मुस्लिम लीग) संचार
12. इब्राहिम इस्माइल (मुस्लिम लीग) वाणिज्य
13. गजनफर अली खान (मुस्लिम लीग ) स्वास्थ्य
14. लियाकत अली खान (मुस्लिम लीग) वित्त
15. जोगेन्द्र नाथ मंडल (मुस्लिम लीग) कानून
  • ज्ञातव्य है कि 2 सितम्बर 1946 को जवाहरलाल नेहरू ने अपने सहकर्मियों के साथ वायसराय के काउंसिल के रूप में शपथ लिया था।
  • यह काउंसिल नेहरू के नेतृत्व में एक प्रकार से मंत्रिमंडल के रूप में कार्य करने लगा था।
  • इस काउंसिल का कार्य और राष्ट्र समर्पण के प्रभाव को देखते हुए बेल का कांग्रेस से डर लगा । अतः इन्होंने इसमें डर कर मुस्लिम लीग को शामिल होने के लिए मना लिया।
  • मुस्लिम लीग को काउंसिल करना इसलिए भी आवश्यक था क्योंकि इसके बगैर काउंसिल असंतुलित थी। हालांकि वेवेल के मनाने के बावजूद मुस्लिम लीग संविधान सभा शामिल होने से इंकार किया था।

संविधान सभा और मुस्लिम लीग

  • अंतरिम सरकार के काउंसिल ( मंत्रिमंडल) में मुस्लिम वेवेल के मनाने पर शामिल हो गया था। लेकिन संविधान सभा में शामिल होने की स्पष्टीकरण अभी नहीं दिया था।
  • ज्ञातव्य है कि संविधान सभा के 12 सत्र और बैठकों के दौर हुए थे जिसमें पहला 9-24 दिसम्बर, 1946 में प्रारंभ हुआ और अंतिम बारहवां 24 जनवरी, 1950 को समाप्त हुआ था।
  • 9 दिसम्बर, 1946 को संविधान सभा के प्रथम बैठक में मुस्लिम लीग सम्मिलित नहीं हुई थी। इसी क्रम में लीग की अनुपस्थिति में बैठक हुआ और जवाहरलाल नेहरू द्वारा तैयार मसौदे को पारित किया गया था। इसमें "एक स्वतंत्र पूर्ण प्रभुतासम्पन्न गणराज्य की स्थापना का आदर्श लक्ष्य था, जिसे स्वायत्तता अल्पसंख्यकों को पर्याप्त संरक्षण देने का अधिकार तथा सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त होगी । "
  • ज्ञातव्य है कि मुस्लिम लीग ने मंत्रिमंडल द्वारा निर्णय लिये जाने हेतु आहूत की गई औपचारिक बैठक में भी भाग नहीं लिया ।
  • मुस्लिम लीग ने कांग्रेस के सदस्यों द्वारा लिए गए निर्णय तथा नियुक्तियों पर भी सवाल उठाए। वित्त मंत्री के रूप में लियाकत अली खान मंत्रिमंडल के अन्य मंत्रियों के कार्य में बाधक बने थे।
  • ज्ञातव्य है कि मुस्लिम लीग ने हमेशा अपने उद्देश्य को सटीक रखा था। जिसमें उसको पृथक पाकिस्तान का निर्माण ही चाहिए था। लियाकत अली खान वित्त मंत्री थे जो हमेशा मंत्रिमंडल के अन्य मंत्रियों के कार्य में बाधक बन रहे थे।
  • संविधान सभा में कांग्रेस के मंत्रियों ने वायसराय को पत्र लिखकर मांग की मुस्लिम लीग के सदस्यों को त्यागपत्र देने का क अन्यथा वे मंत्रिमंडल से नामांकन वापस ले लेंगे।
  • इसी क्रम में लीग ने संविधान सभा को भंग करने की भी बात कर दी थी तथा लीग व कांग्रेस के बीच मतभेद और बढ़ गया I
  • मुस्लिम लीग के द्वारा संविधान सभा का बहिष्कार के कारण ब्रिटिश सरकार ने यह निर्णय लिया कि संविधान सभा के निर्णय मुस्लिम बहुल इलाके में लागू नहीं किए जायेंगे।

एटली घोषणा पत्र फरवरी, 1947

  • ब्रिटेन में लेबर पार्टी के प्रधानमंत्री एटली ने हाउस ऑफ कॉमन्स में 20 फरवरी, 1947 को एक ऐतिहासिक घोषणा किया "जून 1948 से पूर्व ही ब्रिटिश सरकार उत्तरदायी लोगों को सत्ता सौंप कर ब्रिटेन वापस आ जाएगी" ।
  • पंडित नेहरू ने एटली की घोषणा को एक बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय बताया। इसी क्रम में क्लीमेंट एटली ने लार्ड वेवेल के स्थान पर लार्ड माउंटबेटन को भारत का वायसराय नियुक्त किया था।
  • लार्ड वेवेल ने अपने वायसराय के पद के अंतिम दिनों में एक 'ब्रेक डाउन प्लान' के तहत 31 मार्च 1947 तक अंग्रेजी को भारत छोड़ने का पूर्ण रूप से सुझाव दिया था।

लार्ड माउंटबेटन (जून 1947)

  • ज्ञातव्य है कि 22 मार्च 1947 को माउंट बेटन ने भारत के 34वें भारत के अंतिम ब्रिटिश गवर्नर जनरल बनकर आए।
  • माउंटबेटन का प्राथमिक उद्देश्य भारत को अतिशीघ्र स्वतंत्रता देना और इस महाद्वीप की समस्याओं का शांतिपूर्ण निपटारा करना था । इसी क्रम में माउन्टबटन ने 15 अगस्त 1947 तक भारतीय सत्ता भारतीयों को सौंप दिया जाएगा।
  • वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति में उलझे माउंटबेटन ने लगभग दो महीने तक भारत विभाजन टालने का प्रयास किया।
  • अंतत: माउंटबेटन इस निष्कर्ष पर पहुंचे जहां वे एकमत होकर स्वीकार किया कि भारत को विभाजित करना पड़ेगा।
  • माउंटबेटन ने 20 फरवरी 1947 के लिए वचन भाषण को ध्यान में रखकर इस निर्णय पर पहुंचे की भारत विभाजन की नीति भी शीघ्र तैयार किया जाए।
  • इस विवशता की स्थिति में नेहरू और सरदार पटेल ने विभाजन की स्थिति को स्वीकारा लेकिन गांधीजी ने इसका विरोध किया था।
  • इसी क्रम में अंतरिम सरकार के काल में मुस्लिम लीग की विरोध को देखकर सरदार पटेल ने कहा था, "जिन्ना विभाजन चाहते है या नहीं, अब हम स्वयं विभाजन चाहते हैं। "
  • 3 जून 1947 को प्रधानमंत्री एटली ने हाउस ऑफ कॉमन्स में विभासरदार  योजना (3 जून योजना) की घोषणा किया था।
  • ज्ञातव्य है कि 3 जून की योजना मूलतः भारत विभाजन की योजना थी।
  • लाई वेवेल के स्थान पर लार्ड माउंटबेटन के वायसराय बन जाने के पूर्व ही भारत में विभाजन के साथ स्वतंत्रता का फार्मूला भारतीय नेताओं द्वारा लगभग स्वीकार कर लिया गया था।

माउंटबेटन योजना के महत्वपूर्ण बिंदु

  1. बंगाल तथा पंजाब में हिंदू तथा मुसलमान बहुसंख्यक जिलां के प्रांतीय विधानसभा के सदस्यों की अलग बैठक बुलाई जाए और उसमें कोई भी पक्ष यदि प्रांत का विभाजन चाहेगा, तो विभाजन रद्द कर दिया जाएगा।
  2. विभाजन होने के दशा में दो डोमनियनों तथा संविधान सभाओं का निर्माण किया जाएगा।
  3. सिंध इस संबंध में अपना निर्णय स्वयं लेगा।
  4. इसी क्रम में उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत तथा असम के सिलहट जिले में जनमत संग्रह द्वारा यह पता लगाया जाएगा कि वे भारत के किस भाग के साथ रहना चाहते है।
  5. पंजाब, बंगाल और आसाम के विभाजन हेतु एक सीमा आयोग का गठन।
  6. रजवाड़ों को इस बात का निर्णय लेना था कि वे भारत में रहना चाहते है कि पकिस्तान में।

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947

  • माउंटबेटन योजना के आधार पर ब्रिटिश संसद ने 18 जुलाई 1947 को भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 को पास किया था I इसी उपबंध द्वारा ही 15 अगस्त 1947 को भारत का विभाजन हुआ था ।
    इस अधिनियम के प्रमुख बिंदु :
    1. 15 अगस्त 1947 से भारत में भारत और पाकिस्तान नाम से डोमिनियन की स्थापना हो जाएगी।
    2. भारत के राज्यक्षेत्र में उन क्षेत्रों को छोड़कर जो पाकिस्तान में सम्मिलित होंगे, ब्रिटिश भारत के सीमा प्रांत भी भारत में शामिल होंगे।
    3. देशी रजवाड़े दोनों में भारत-पाकिस्तान किसी भी डोमिनियन (अधिराज्य) में सम्मिलित हो सकते हैं।
    4. पाकिस्तान के राज्यक्षेत्र में पूर्वी बंगाल, पश्चिमी पंजाब, सिंध और उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत सम्मिलित होंगे। पूर्वी बंगाल प्रांत में असम का सिलहट जिला भी सम्मिलित होगा ।
    5. दोनों डोमिनियनों तथा प्रांतों का संचालन 1935 के अधिनियम के अनुसार ( जहां संभव हो सके) उस समय तक चलाया जाएगा जब तक कि संबंधित संविधान सभा इनके लिए संवैधानिक व्यवस्था कर लेती ।
  • 14-15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि के समय भारत स्वतंत्र हो गया। आधी रात को दिल्ली में संविधान निर्मात्री सभा को संबोधित करते हुए ऐतिहासिक भाषण दिया था।
  • लार्ड माउंटबेटन को स्वतंत्र भारत का प्रथम ब्रिटिश गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया तथा जवाहरलाल नेहरू को भारत का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया।
  • 7 अगस्त 1947 को मुस्लिम लीग के नेता जिन्ना करांची पहुंचे। पाकिस्तान की संविधान सभा द्वारा 11 अगस्त की प्रथम बैठक में जिन्ना को राष्ट्रपति चुना गया था।
  • 14 अगस्त 1947 को जिन्ना पाकिस्तान के प्रथम गवर्नर जनरल बने थे।
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