General Competition | Indian Polity | संवैधानिक/गैर-संवैधानिक और सांविधिक संस्था

वैसी संस्थाएँ जिसकी चर्चा हमारे देश के संविधान के अनुच्छेदों में है, उसे संवैधानिक संस्था कहते हैं संवैधानिक संस्था कहते हैं । प्रमुख संवैधानिक संस्था निम्न है:-

General Competition | Indian Polity | संवैधानिक/गैर-संवैधानिक और सांविधिक संस्था

General Competition | Indian Polity | संवैधानिक/गैर-संवैधानिक और सांविधिक संस्था

★ वैसी संस्थाएँ जिसकी चर्चा हमारे देश के संविधान के अनुच्छेदों में है, उसे संवैधानिक संस्था कहते हैं संवैधानिक संस्था कहते हैं । प्रमुख संवैधानिक संस्था निम्न है:-
संस्था अनुच्छेद
अंतर्राज्जीय परिषद 263
वित्त आयोग 280
संघ लोक सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोग 315-323
निर्वाचन आयोग 324
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग 338
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग 338 (क)
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग 338 (ख)
वित्त आयोगः-
वित्तं आयोग एक संवैधानिक संस्था है । इसका गठन भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 280 क तहत् किया गया है। इस संगठन में किसी भी प्रकार का बदलाव संविधान संसोधन के तहत् ही किया जाता है। यह एक पंचवर्षीय निकाय है, अर्थात इसका गठन प्रत्येक 5 वर्ष के अंतराल पर " होता है। इसका गठन राष्ट्रपति के द्वारा किया जाता है । वित आयोग में अध्यक्ष के सहित कुल 5 सदस्य होते हैं। वित्त आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सभी सदस्यों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति करते हैं। वित्त आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य अपना त्यागपत्र भारत के राष्ट्रपति को देता है। इस आयोग के अध्यक्ष और सदस्य पुर्नयुक्ति के पात्र होते हैं ।
नोट:-
(1) वित्त आयोग की सलाह सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं होता है। इस आयोग का सलाह मानना या ना मानना सरकार की इच्छा पर निर्भर करता है।
(2) वित्त आयोग का सबसे प्रमुख काम केंद्र और राज्य के बीच राजस्व का बँटवारा करना होता है।
★ अनुच्छेद- 281 हमें वित्त आयोग की अनुशंसाओं की जानकारी देता है।
★ वित्त आयोग के अध्यक्ष अपना रिपोर्ट भारत के राष्ट्रपति को देते हैं । राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को संसद के पटल पर रखवाते हैं।
★ वित्त आयोग का अध्यक्ष वहीं व्यक्ति बन सकता है जो सार्वजनिक मामलों का जानकार हो, वहीं वित्त आयोग में जो 4 अन्य सदस्य होते हैं उनमें एक अच्छे अर्थशास्त्री होना चाहिए, एक उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होना चाहिए, एक वित्तीय मामलों का जानकार होना चाहिए और एक प्रशासनिक मामलों का जानकार होना चाहिए।
★ संविधान लागू होने से आज तक 15 वित्त आयोग का गठन किया जा चुका है। जिसमें प्रथम क्त्ति आयोग का गठन 1951 ई0 में के०सी० नियोगी की अध्यक्षता में हुआ, वहीं 15वें वित्त आयोग का गठन 2017 ई० में N. K सिंह की अध्यक्षता में हुआ । 15वें वित्त आयोग ने 2011 की जनगणना को आधार बनाते हुए अपनी सिफारिशें की है। 15वें वित्त आयोग की सिफारिशें 2021-2026 तक लागू रहेगा ।

लोक सेवा आयोग

★ इसके अंतर्गत संघ लोक सेवा आयोग, राज्य लोक सेवा आयोग और संयुक्त लोक सेवा आयोग आता है। संघ लोक सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोग के विषय में जानकारी हमें भारतीय संविधान का भाग- 14 के अंतर्गत अनुच्छेद- 315 से 323 जानकारी देता है। संघ लोक सेवा आयोग के गठन संबंधी प्रावधान की चर्चा भारत शासन अधिनियम 1919 में की गई थी, जबकि राज्य लोक सेवा आयोग के गठन संबंधी प्रावधान की चर्चा भारत शासन अधिनियम 19354 में की गई थी । 
संघ लोक सेवा आयोगः-
  • संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति के द्वारा किया जाता है। साथ ही साथ इस आयोग में कितने सदस्य होगें इसका निर्धारण भी भारत के राष्ट्रपति के द्वारा ही किया जाता है।
  • इस आयोग के अध्यक्ष या सदस्य अपना त्यागपत्र भारत के राष्ट्रपति को देते हैं।
  • इस आयोग के अध्यक्ष या सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष का होता है। जो भी पहले पूरा हो उस अनुसार ये अपने पद को छोड़ते हैं ।
  • इस आयोग के अध्यक्ष या सदस्य पुर्नयुक्ति के पात्र नहीं होते हैं
  • यह एक प्रकास का सलाहकारी प्रवृत्ति का आयोग होता है। इसकी सिफारिशें सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं होता है।
  • इस आयोग के अध्यक्ष या सदस्य को राष्ट्रपति निम्न आधार पर पद से हटा सकता है:-
    1. अगर वह दिवालियाँ घोषित हो जाता है ।
    2. अगर उस पर कदाचार या भ्रष्टाचार साबित हो जाता है
    3. अगर वह किसी अन्य लाभ के पद को ग्रहण कर लेता है ।
नोट:- संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या सदस्यों पर लगें भ्रष्टचार की जाँच अनुच्छेद - 145 के तहत् भारत का सर्वोच्च न्यायालय करता है। और इसकी सिफारिशें राष्ट्रपति को करता है। इस सिफारिश को राष्ट्रपति मानने के लिए बाध्य है ।
राज्य लोक सेवा आयोगः-
  • इस आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति राज्य के राज्यपाल के द्वारा किया जाता है।
  • इस आयोग के अध्यक्ष या सदस्य अपना त्यागपत्र राज्यपाल को देते हैं।
  • इस आयोग के अध्यक्ष या सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष या 62 वर्ष का होता है ।
  • इस आयोग के अध्यक्ष या सदस्य को उसी तरीका से हटाया जाता है जिस तरीका से संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या सदस्य को हटाया जाता है। अर्थात इसे भी भारत के राष्ट्रपति के द्वारा ही हटाया जाता है।
  • इस आयोग के अध्यक्ष या सदस्य संघ लोक सेवा आयोग में नियुक्त हो सकते हैं।
संयुक्त लोक सेवा आयोगः-
  • दो या दो से अधिक राज्यों के विधानमंडल के प्रस्ताव को पारित करने पर संसदीय अधिनियमों के तहत् संयुक्त लोक सेवा आयोग का गठन किया जाता है ।
  • 1966 ई0 में अल्प समय के लिए पंजाब और हरियाणा हेतू संयुक्त लोक सेवा आयोग का गठन किया जाता है।
  • संयुक्त लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति करते हैं ।
  • इस आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष या 62 वर्ष का होता है ।
  • इस आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य अपना त्यागपत्र राष्ट्रपति को सौंपते हैं ।
  • इस आयोग के अध्यक्ष या सदस्य को उसी तरीका से हटाया जाता है जिस तरीका से संघ लोकं सेवा आयोग के अध्यक्ष या सदस्य को हटाया जाता है । अर्थात इसे भी भारत के राष्ट्रपति के द्वारा ही हटाया जाता है।
अनुच्छेदः - 315
यह अनुच्छेद कहता है एक संघ लोक सेवा आयोग होगा तथा प्रत्येक राज्य में एक राज्य लोक सेवा आयोग होगा ।
अनुच्छेदः - 316
यह अनुच्छेद हमें संघ लोक सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति तथा उसके कार्यकाल के विषय में जानकारी प्राप्त होता है |
अनुच्छेदः - 317
यह अनुच्छेद हमें संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों के बर्खास्तगी और निलंबन (पद से हटाया जाना) के विषय में जानकारी देता है ।
अनुच्छेदः - 318
यह अनुच्छेद संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों के सेवा शर्तों संबंधी नियम बनाने की शक्ति के बारें में बताता है।
अनुच्छेदः - 319
आयोग के सदस्यों द्वारा सदस्यता के समाप्ति के पश्चात् पद पर बने रहने पर रोक ।
अनुच्छेदः - 320
लोक सेवा आयोग के कार्य ।
अनुच्छेद:- 321
लोक सेवा आयोग के कार्यो को विस्तारित करने की शक्ति भारत की संसद को है ।
अनुच्छेदः - 322
यह अनुच्छेद हमें लोक सेवा आयोग पर होने वाले खर्च की जानकारी देता है
अनुच्छेदः - 323
यह अनुच्छेद हमें लोक सेवा आयोग के प्रतिवेदन की जानकारी प्रदान करता है I
★ संघ लोक सेवा आयोग अपना प्रतिवेदन राष्ट्रपति को देता है । राष्ट्रपति इसे संसद के पटल पर रखवाता है। वहीं राज्य लोक सेवा आयोग अपना प्रतिवेदन राज्यपाल को देता है। राज्यपाल उसे विधानमंडल के समक्ष रखवाता है।

भारत का निर्वाचन आयोग/चुनाव आयोग Election Commission of India

⇒ इस आयोग के विषय में जनकारी हमें भारतीय संविधान के भाग- 15 के अंतर्गत अनुच्छेद 324 से 329 देता है । अनुच्छेद- 324 यह कहता है कि भारत का एक निर्वाचन आयोग होगा। इस आयोग की स्थापना 25 जनवरी 1950 को हुआ है। 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है। निर्वाचन आयोग के कई सारे काम हैं । जैसे:- (1) चुनाव करवाना (2) राजनैतिक दलों को मान्यता प्रदान करना (3) राजनैतिक दल के बीच चुनाव चिन्ह आबंटित करना (4) मतदाता सूची तैयार करवाना, इत्यादि...... । लेकिन ध्यान रहें कि निर्वाचन आयोग का सबसे प्रमुख काम चुनाव करवाना है। भारत का निर्वाचन आयोग राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा और विधानपरिषद का चुनाव कराती है, लेकिन ध्यान रहें कि चुनाव में होने वाले विवाद का निपटारा करना निर्वाचन आयोग का काम नहीं है । राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में होने वाले विवाद को भारत का भारत का सुप्रीम कोर्ट सुलझाएगा तथा लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा और विधानपरिषद के चुनाव में होने वाले विवाद का निपटारा उच्च न्यायलय करता है।
⇒ स्थापना के समय निर्वाचन आयोग 1 सदस्यीय संस्था था, 1989 ई. इसे 3 सदस्यीय संस्था बना दिया गया लेकिन इसे 1990 ई0 में इसे पुनः 1 सदस्यीय संस्था बना दिया गया। कलांतर में 1 अक्टूबर 1993 ई0 में निर्वाचन आयोग को 3 सदस्यीय संस्था बनाया गया। तब से लेकर आज तक यह 3 सदस्यीय संस्था बनी हई है। निर्वाचन आयोग में 1 मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा 2 अन्य निर्वाचन आयुक्त होते हैं । इन सभी की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। इनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष का होता है । जो भी पहले पूरा हो उस अनुसार ये सभी अपने पद को छोड़ते हैं। मुख्य निर्वाचन आयुक्त या अन्य निर्वाचन आयुक्त को उसी प्रक्रिया द्वारा पद से हटाया जाता है जैसे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को हटाया जाता है।
नोटः- निर्वाचन आयोग में निर्णय बहुमत के आधार पर लिया जाता है ।
★ जब पहली बार भारत में 1951-52 में लोकसभा का चुनाव हुआ था तो उस समय भारत में राष्ट्रीय राजनैतिक दलों की संख्या 14 हुआ करती थी । वर्त्तमान में भारत में राष्ट्रीय राजनैतिक दलों की संख्या 8 है।
(1) भारतीय जनता पार्टी
(2) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
(3) बहुजन समाजवादी पार्टी
(4) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(5) मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी
(6) ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस पार्टी
(7) राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी
(8) नेशनल पिपुल्स पार्टी
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस:-
भारत की सभी राजनीतिक दलों में सबसे प्राचीन राजनीतिक दल कांग्रेस है। इसकी स्थापना 1885 ई0 में मुम्बई में की गई थी। कांग्रेस का चुनाव चिन्ह हाथ का पंजा है ।
भारतीय जनता पार्टी:-
नेहरू मंत्रीमंडल से त्यागपत्र देने वाला प्रथम मंत्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी हुए जिन्होनें नेहरू लियाकत समझौते के कारण त्यागपत्र दिया और कांग्रेस से अलग हटकर 1951 ई० में भारतीय जनसंघ नामक संगठन की स्थापना की । कलांतर में यही जनसंघ 1980 ई० में भाजपा के तौर पर स्थापित हुई । BJP के संस्थापक सदस्य अटल बिहारी बाजपेई, लाल कृष्ण अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, आदि को माना जाता है। इस पार्टी का चुनाव चिन्ह. कमल का फुल है।
ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस पार्टी:-
कांग्रेस से अलग होकर 1998 ई० में ममता बनर्जी ने इस पार्टी को स्थापित की। इस पार्टी का चुनाव चिन्ह दो जोड़ा घास का फुल है।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी:- 
कांग्रेस से अलग होकर ही 1999 ई0 में इस पार्टी की स्थापना हुई। इस पार्टी के संस्थापक सरद पवार हैं। इसका चुनाव चिन्ह घड़ी है ।
नेशनल पिपुल्स पार्टी:-
N.C.P से अलग होकर PA संगमा ने नेशनल पिपुल्स पार्टी की स्थापना 2013 में की। यह पार्टी मुख्यतः मेघालय में ज्यादा सशक्त है। इसका चुनाव चिन्ह पुस्तक है।
बहुजन समाजवादी पार्टी:-
एक बहुत बड़े अंबेडकरवादी नेता काशीराम के द्वारा 14 अप्रैल 1984 को यह पार्टी स्थापित किया गया। वर्त्तमान में इस पार्टी की कमांड मायावती के हाथ में है। इस पार्टी का चुनाव चिन्ह हाथी है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी:-
इसकी स्थापना नागपुर में 1925 ई0 में हुई थी। इसका चुनाव चिन्ह हसियाँ और बाली था |
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी:-
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के ही कुछ नेता अलग होकर 1964 ई0 में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना किया। इस पार्टी का चुनाव चिन्ह हसियाँ और हथौरा है ।

राष्ट्रीय दल के दर्जा प्राप्त करने की शर्ते

★ किसी भी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भारत के चुनाव आयोग के द्वारा दियें जाते हैं। राष्ट्रीय दल के दर्जा प्राप्त करने की निम्न शर्ते हैं:-
(1) अगर कोई पार्टी कम से कम 4 राज्यों में राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा प्राप्त करता है।
या
(2) लोकसभा के कुल सीट का 2 प्रतिशत (11 सीट) सीट 3 अलग-अलग राज्यों से प्राप्त करता है ।
या
(3) अगर कोई पार्टी लोकसभा अथवा विधानसभा चुनाव में कम से कम 4 राज्यों में कुल पड़े वैध मतों का 6 प्रतिशत प्राप्त करता है तथा 4 लोकसभा सीट 1 या अधिक राज्यों से जीतता है ।
★ राज्य स्तरीय दल के दर्जा प्राप्त करने की शर्तें:-.
(1) अगर कोई पार्टी किसी राज्य में लोकसभा के चुनाव में कुल पड़े वैध मतों का 6 प्रतिशत मत प्राप्त करता है तथा 1 लोकसभा सीट जीतता है ।
या
(2) अगर कोई राजनीतिक दल किसी राज्य के विधानसभा चुनाव में कुल पड़े वैध मतों का 6 प्रतिशत प्राप्त करता है तथा 2 विधानसभा सीट जीतता है । 
या
(3) अगर कोई राजनीतिक पार्टी किसी राज्य में लोकसभा अथवा विधानसभा चुनाव में कुल पड़े वैध मतों को 8 प्रतिशत मत प्राप्त करता है ।
या
(4) अगर किसी राज्य में कोई राजनीतिक दल विधानसभा के कुल सीट का 3 प्रतिशत सीट या 3 सीट ( जो भी अधिक हो) प्राप्त करता है ।
★ भारत में मुख्यतः दो प्रकार से चुनाव होता है ।
(1) First Past the Post System:-
वैसी चुनाव प्रणाली जिसमें सर्वाधिक मत प्राप्त होने पर उम्मीदवार को विजेता घोषित कर दिया जाता है, उसे ही First Past the Post System कहते हैं। विशेषकर प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में यह प्रावधान अपनाई जाती है। इस प्रणाली के तहत् भारत में लोकसभा, विधानसभा और पंचायती राज के अंतर्गत मुखिया, सरपंच, वार्ड सदस्य समिति, इत्यादि की चुनाव होती है।
(2) अनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर एकल संक्रमणीय मत प्रणाली:
वैसी चुनाव प्रणाली जिसमें उम्मीदवार को विजेता बनने हुतू कुल पड़े वैध मतों का 50 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त करना आवश्यक होता है। उसे अनुपातिक प्रतिनिधित्व चुनाव प्रणाली कहा जाता है। जैसे भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, विधानपरिषद, राज्यसभा सदस्य का चुनाव इसी प्रणानी के तहत् होता है ।

चुनाव के प्रकार

★ मुख्य तौर पर चुनाव तीन प्रकार के होते हैं:-
(1) आम चुनावः-
प्रत्येक 5 वर्ष पर लोकसभा और विधानसभा के कार्यकाल की समाप्ति पर जो चुनाव होता है, उसे ही आम चुनाव कहते हैं।
(2) मध्यावधि चुनावः-
अगर लोकसभा और विधानसभा अपने कार्यकाल के समाप्ति के पूर्व भंग हो जाता है, इस स्थिति में जो नई लोकसभा या विधानसभा के लिए चुनाव होता है, उसे मध्यावधि चुनाव कहा जाता है।
(3) उपचुनावः-
यदि लोकसभा या विधानसभा के सदस्यों का पद पर रहते हुए मृत्यु हो जाता है. या वह - त्यागपत्र दे देता है या किसी अन्य करणवश लोकसभा और विधानसभा का सीअ खाली होता है तो इस स्थिति में जो चुनाव होता है उसे उपचुनाव कहा जाता है। ध्यान रहें कि उपचुनाव के माध्यम से चुनें हुए सदस्य बचें हुए समय के लिए ही निर्वाचित होते हैं।

दलीय व्यवस्था

एकदलीय व्यवस्था वाला देश:-
वैसे देश जहाँ कहने को तो कई सारी राजनीतिक पार्टियाँ होती है, लेकिन मुख्य तौर पर सत्ता में हमेशा एक ही दल रहता है उसे एकदलीय व्यवस्था वाला देश कहा जाता है। इसका सर्वोकृष्ट उदाहरण चीन को माना जाता है।
द्विदलीय व्यवस्था वाला देश:-
वैसे देश जहाँ कहने को तो कई सारी राजनीतिक पार्टियाँ होती है, लेकिन मुख्य तौर पर सत्ता में हमेशा दो राजनीतिक दल रहता है उसे द्विदलीय व्यवस्था वाला देश कहा जाता है। इसका सर्वोकृष्ट उदाहरण अमेरिका और ब्रिओन को माना जाता है। अमेरिका में कभी डेमोक्रेटिव पार्टी की सरकार तो कभी रिपब्लिकन पार्टी की सरकार बनती है। उसी प्रकार ब्रिटेन में कभी लेबर पार्टी तो कभी कंजरबेटिव पार्टी की सरकार बनती है।
बहुदलीय व्यवस्था वाला देश:-
वैसे देश जहाँ कई सारी राजनीतिक दलें होती है और सत्ता में कोई भी दल आ सकता है उसे बहुदलीय व्यवस्था वाला देश कहा जाता है। इस व्यवस्था सबसे बेहतर उदाहरण अपना देश भारत है।
नोटः- संभवतः विश्व में सबसे ज्यादा राजनीतिक दल वाला देश भारत है।
★ आजादी से लेकर 1977 ई0 तक भारत में कांग्रेस की ही सरकार रही। जिस कारण इस कालखंड को एकदलीय व्यवस्था वाला कालखंड कहते हुए रजनी कोठारी ने कड़ी आलोचना की।
चुनाव सुधार से संबंधित समितिः-
(1) तारकुंडे समिति- 1974
(2) जे०पी० समिति- 1974
(3) दिनेश गोस्वामी समिति- 1990
(4) इन्द्रजीत गुप्ता समिति- 1998
(5) तनखा समिति - 2010
नोट:- 1993 ई0 में वोहरा समिति का गठन अपराधी और राजनेताओं के बीच के साँठगाँठ को पता लगाने के लिए किया गया ।

एक देश एक चुनाव

★ देश के उपर आर्थिक बोझ कम पड़े, विकासात्मक कार्यो में अवरोध ना हो, सुरक्षा बलों को अधिक परेशानी ना हो, इत्यादि को लेकर देश के भीतर लोकसभा और विधानसभा का चुनाव एक साथ करवाने की जो योजना है, इसे ही एक राष्ट्र -एक चुनाव कहा जाता है। अगर ऐसा होता तो फिर क्षेत्रीय दलों का महत्व कम हो जायेगा जो स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए सही नहीं है।
नोटः- 61वाँ संविधान संसोधन 1989 के तहत् मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया ।
★ 1952, 1957, 1962 और 1967 ई0 में पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हुए हैं।

EVM

★ Electronic Voting Machine भारत वर्ष में 1982 ई0 में पहली बार EVM का प्रयोग केरल में हुआ था। इसके बाद 1998 में दिल्ली, राजस्थान और मध्यप्रदेश के कुछ विधानसभा क्षेत्र में इसका प्रयोग किया गया। 1999 ई0 में गोवा भारत का प्रथम राज्य बना जहाँ पूर्णतः विधानसभा चुनाव EVM के प्रयोग से संपन्न हुआ। इसके बाद 2004 में 14वीं लोकसभा चुनाव पूर्णतः EVM के प्रयोग से संपन्न हुआ । 2009 से लोकसभा और विधानसभा का चुनाव EVM के प्रयोग से ही होता हुआ आ रहा है।
NOTA (Non of the Above):-
जब किसी मतदाता को कोई उम्मीदबार पसंद नहीं होता है तो फिर वह EVM में NOTA का प्रयोग करता है । सर्वप्रथम 2013 ई0 में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, दिल्ली और मिजोरम के विधानसभा चुनाव में NOTA का प्रयोग किया गया है।
VVPAT (Votor Verifiable Paper Audit Trail):-
मतदाता ने जिस उम्मीदवार को मत दिया है उसे ही मृत पड़ा है या नहीं इसकी पुष्टि हेतू VVPAT का प्रयोग भारतीय चुनाव प्रणाली में की जाती हैं। सर्वप्रथम VVPAT का प्रयोग 2013 में नागालैंड के विधानसभा चुनाव में किया गया है।
नोट:- भारत Electronic Limited और Electronic Corporation of India Limited ने मिलकर 2013 में VVPAT Machine तैयार किया है ।
अनुच्छेदः - 324
यह अनुच्छेद कहता है कि भारत का एक निर्वाचन आयोग होगा। चुनावों का अधिक्षण, निर्देशन और नियंत्रण चुनाव आयोग में निहित होता है।
अनुच्छेदः - 325
यह अनुच्छेद कहता है कि मतदाता सूची में नाम शामिल करते वक्त धर्म, मूलवंश, जाति और लिंग के आधार पर कोई भेद-भाव नहीं किया जायेगा ।
अनुच्छेदः - 326
लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव में वयस्क मताधिकार का प्रयोग किया जायेगा ।
अनुच्छेदः - 327
राज्य विधान मंडल के निर्वाचन को लेकर विशेष उपबंध करने की संसद की शक्ति ।
अनुच्छेद:- 328
राज्य विधानमंडल के निर्वाचन को लेकर विशेष उपबंध करने की उस राज्य विधानमंडल की शक्ति ।
अनुच्छेदः - 329
निर्वाचन संबंधी मामलों को लेकर न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्णन ।

दल-बदल अधिनियम

★ 52वाँ संविधान संसोधन अधिनियम 1985 में यह व्यवस्था की गई कि सांसदों एवं विधायकों द्वारा एक दल से दूसरे दल में जाने पर उन्हें निम्न स्थितियों में आयोग्य करार दिया जायेगा ।
(1) अगर कोई सांसद या विधायक अपनी पार्टी की सदस्यता से स्वेच्छा से त्यागपत्र देता है।
(2) अंगर कोई सांसद या विधायक अपनी पार्टी के विरोध में जाके मतदान करता है या मतदान से अनुपस्थित रहता है और 15 दिनों के भीतर अपनी पार्टी से माँफीनामा नहीं प्राप्त करता है।
(3) अगर कोई निर्दलीय सांसद या विधायक किसी पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर लेता है।
नोटः- 52वाँ संविधान संसोधन 1985 यह प्रावधान करता था कि अगर किसी पार्टी (1 तिहाई) सांसद या 3 विधायक एक पार्टी से दूसरें पार्टी में जाता है तो उसकी सदस्यता समाप्त नहीं होगी। लेकिन दल-बदल अधिनियम को अधिक सशक्त बनाने के लिए 91वाँ संविधान संसोधन के तहत् एक तिहाई से बढ़ाकर दो तिहाई कर दिया गया है। अर्थात वर्त्तमान परिदृश्य में अगर किसी पार्टी के कुल विधायकों या सांसद का दो तिहाई सदस्य किसी दूसरें दल में जाता है, तब उसपर दल-बदल अधिनियम लागू नहीं होता है। लेकिन अगर उससे कम सदस्य जाता है तो फिर दल-बदलं अधिनियम लागू हो जाता है और सदस्यों की सदस्यता समाप्त हो जाती है।
★ लोकसभा के अध्यक्ष और विधानसभा के अध्यक्ष अगर अपनी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र देता है तो उन पर दल-बदल अधिनियम लागू नहीं होता है
★ दल-बदल अधिनियम के तहत् निर्णय लोकसभा अध्यक्ष और विधानसभा अध्यक्ष के द्वारा लिया जाता है, लेकिन ध्यान रहें कि उनका निर्णय अंति निर्णय नहीं होता है बल्कि उसकी न्यायायिक समीक्षा की जा सकती है। किहोतो होलोहन मामला 1992 मे सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि अध्यक्ष के द्वारा दिए गए निर्णय की न्यायायिक समीक्षा की जा सकती है ।

कुछ अन्य संवैधानिक संस्था

★ राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग का गठन 1978 ई0 में हुआ था। 89वाँ संविधान संसोधन 2003 के तहत् राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का विभाजन हुआ। वर्त्तमान स्थिति में अनुच्छेद- 338A के तहत् राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को संवैधानिक दर्जा प्राप्त है। इन दोनों आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों के सेवा शर्तो का निर्धारण भारत के राष्ट्रपति के द्वारा किया जाता है । संभवतः दोनों आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्षो का होता है। यह दोनों आयोग अपना रिपोर्ट भारत के राष्ट्रपति को देता है । राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को संसद के पटल पर रखवाता है । संसद इस रिपोर्ट की जाँच S.C, S.T के कल्याण को लेकर बनी समिति के द्वारा करवाता है।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोगः-
इस आयोग का गठन 1993 ई0 मं किया गया था। हाल ही के दिनों में 102वाँ संविधान संसोधन अधिनियम के तहत् अनुच्छेद- 338B के तहत् इस आयोग को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया ।
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