अब्राहम लिंकन : शहादत का सफर

अब्राहम लिंकन : शहादत का सफर

शहादत का सफर


There was a funeral. It took long to pass its many given points. Many millions of people saw it and personally moved in it and were part of its procession. The line of march ran seventeen hundred miles. As a dead march nothing live it had ever been attempted before.
-Carls Sandburg.
अब्राहम लिंकन के प्रथम राष्ट्रपति काल की सबसे बड़ी त्रासदी यह रही कि चार साल की यह अवधि गृहयुद्ध और खून-खराबे में बीती। इस अवधि में दर्जनों जनरल बदले गए। संघीय सेनाओं और कंफेडरेट सेनाओं के बीच युद्धों में कई लाख लोगों की जानें गईं, परंतु फिर भी कोई फैसला नहीं हो पाया।
युद्धों के साए में ही राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन का समय आ गया। राष्ट्रपति लिंकन तथा उनके समर्थक यद्यपि 1864 तक आते-आते यह उम्मीद करने लगे थे कि सैनिक स्तर पर संघीय ताकतों की जीत हो जाएगी, परंतु अभी राजनैतिक विजय तथा संघीय अखंडता की बहाली का काम शेष था।
दास प्रथा से अमेरिका को पूरी तरह मुक्ति दिलाने की योजना राष्ट्रपति के सामने रखकर कई बार दास प्रथा उन्मूलन के हिमायती रेडिकल राष्ट्रपति को घेर चुके थे। डेमोक्रेट्स लिंकन की आलोचना करते हुए यह साबित करने का प्रयास कर रहे थे कि उनका पूरा कार्यकाल असफलता से भरा रहा है। उनके कार्यकाल में अमेरिका बुरी तरह बर्बाद हो गया। संघीय अखंडता अब एक स्वप्न जैसी चीज लगती है। न तो युद्ध में दक्षिणी राज्यों को पूरी तरह जीता जा सका है, न ही उनके साथ समझौते के कोई आसार नजर आते हैं। इस तर्क के साथ ही उन्होंने 1864 के चुनाव के लिए राष्ट्रपति प्रत्याशी के रूप में मैकलीलन को मैदान में उतारा। 1864 में कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं हुईं। 8 मार्च को जनरल ग्रांट वाशिंगटन आया। व्हाइट हाउस में उसका भव्य स्वागत किया गया तथा राष्ट्रपति लिंकन ने उसे संयुक्त राज्य अमेरिका की संघीय सेनाओं का कमांडर इन चीफ नियुक्त किया।
7 जून को अब्राहम लिंकन का रिपब्लिकन प्रत्याशी के रूप में नामांकन भरा गया।
8 नवम्बर को लिंकन के फिर से राष्ट्रपति चुने जाने की घोषणा की गई।
8 जून से लेकर 8 नवम्बर 1864 में जो ऐतिहासिक घटनाएं घटीं, उनमें जनरल ग्रांट तथा मेजर जनरल विलियम टी. शरमन द्वारा विद्रोही राज्यों के सभी महत्त्वपूर्ण ठिकानों पर जीत हासिल करना तथा अमेरिकी जनता में यह संदेश पहुंचाना बहुत महत्त्वपूर्ण था कि पिछले तीन वर्षों में लिंकन के राष्ट्रपति काल में युद्ध में जो प्रगति हुई वह तो जीत की पृष्ठभूमि मात्र थी, जिसे भाइयों के बीच होने के कारण बड़ी मुश्किल से तैयार किया जा सका। लाखों अमेरिका वासियों की शहादत के बाद इस चौथे वर्ष में अमेरिका राष्ट्रपति लिंकन के संचालन में ही यह साबित कर देगा कि बुरे दिन में सब कुछ अच्छा नहीं होता, परंतु हौसले बुलंद हों और पैर सही जमीन पर अड़े रहें तो विजय सत्य की ही होती है।
23 अगस्त, 1864 को राष्ट्रपति लिंकन ने एक पत्र तैयार किया और अपने केबिनेट मंत्रियों से इस पत्र के दूसरी ओर इसे बिना पढ़े ही अपने हस्ताक्षर करने को कहा। इस पत्र का उद्देश्य केबिनेट मंत्रियों के इस्तीफे प्राप्त करना और सारे अधिकारों को अपने हाथ में लेना था ताकि संघीय अखंडता को बचाने के लिए राष्ट्रपति स्वयं कोई फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हों।
केबिनेट की ओर से सारे अधिकार अपने हाथ में लेकर लिंकन डेमोक्रेटिस की ओर से लाए गए राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी जनरल मैकलीलन से एक अलिखित समझौता करना चाहते थे कि वह मिलिट्री ताकत के जरिए विद्रोही राज्यों को घुटने टिकाने और संघीय अखंडता बहाल करने के लिए राष्ट्रपति के साथ मिलकर एक साझा मुहिम चलाएं। सफलता मिलने पर राष्ट्रपति लिंकन अगले चुनाव के लिए अपनी दावेदारी वापस ले लेंगे और जनरल मैकलीलन को अगला राष्ट्रपति चुने जाने के लिए रास्ता साफ कर देंगे।
राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को अमेरिका का फिर से राष्ट्रपति बनने की इतनी चाह नहीं थी जितनी कि संघीय सेनाओं द्वारा युद्ध में अंतिम जीत हासिल करने तथा संघीय अखंडता फिर से कायम करने की थी।
इसके लिए उन्होंने एड़ी-चोटी तक का बल लगा दिया, परंतु वैसा नहीं हो पाया, जैसा वे चाहते थे। राष्ट्रपति के केबिनेट मंत्रियों ने अपने पदों से इस्तीफे देकर राष्ट्रपति को सारे अधिकार दे दिए कि वे देश की विजय व अखंडता के लिए चाहे जो फैसला लें, परंतु डेमोक्रेट्स तथा उनके प्रत्याशी जनरल मैकलीलन ने राष्ट्रपति लिंकन को सहयोग नहीं दिया। 29 अगस्त, 1864 को हुए शिकागो डेमोक्रेटिक कनवेंशन में डेमोक्रेटिक पार्टी ने एक प्रस्ताव पास कर यह घोषणा कर डाली कि राष्ट्रपति लिंकन की युद्ध नीति पूरी तरह असफल रही है तथा संविधान की मर्यादाओं का हर तरह से हनन हुआ है।
डेमोक्रेटिक पार्टी के असहयोग से, गृहयुद्ध की स्थिति में भी राजनीति करने की चालों से लिंकन को बहुत दुख पहुंचा। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि डेमोक्रेटिक पार्टी के अनुभवी और विद्वान नेता राष्ट्र के संकट की घड़ी में भी सस्ती राजनीति करेंगे और इस जिम्मेदारी को बिल्कुल भुला देंगे कि युद्ध और आपात काल में विपक्षी तथा सत्तारूढ़ दल मिलकर लोकतंत्र में राष्ट्रहित में राजनीति से ऊपर उठकर फैसले लिया करते हैं। लिंकन बहुत उदास हुए। 29 अगस्त की रात को उन्हें बिल्कुल भी नींद नहीं आई। सारी रात वे चहल-कदमी करते रहे, उनकी पत्नी ने बार-बार उन्हें आराम करने की सलाह दी, परंतु उनका एक ही जवाब था- "जब मेरा देश जल रहा है, तब मुझे नींद कैसे आ सकती है। मैं नहीं जानता था कि राजनीति मनुष्य को इतना नीचे गिरा सकती है कि राष्ट्र की सेवा के लिए समर्पित होने की शपथ लेने के बाद राजनेता राष्ट्र के संकट की घड़ी में भी उसकी अस्मिता के साथ खिलवाड़ कर सकते हैं।"
उन्होंने रात-भर ईश्वर से प्रार्थना की -“यदि मैंने तन-मन से, पूरी निष्ठा से राष्ट्र की सेवा की है, यदि मैं अपनी जगह बिल्कुल ठीक हूं तो हे सर्वशक्तिमान ईश्वर मेरी मदद कर। अमेरिका की संघीय सेनाएं जीत दर्ज करें। अमेरिकी संघ को कोई आंच न आए।
अगले दिन सुबह जब लिंकन सोने और जगने के बीच की स्थिति से गुजर रहे थे तब उन्हें जनरल शरमन का टेलीग्राम मिला। उसमें लिखा था—'Atlanta is ours and fairly won.'
इस टेलीग्राम को पढ़ते ही लिंकन खुशी से उछल पड़े। उनकी प्रार्थना सुन ली गई थी। संघीय सेनाओं की यह जीत इतनी महत्त्वपूर्ण थी कि उन्हें कोई रोक नहीं सकता था। इसके बाद जनरल ग्रांट और युवा जनरल शेरीडन ने शेनान्डोह घाटी में अपनी सेनाएं उतार दीं और कंफीडरेट सेनाओं को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद एक के बाद एक जीतों का ऐसा सिलसिला चला कि पूरे अमेरिका में लिंकन की जय-जयकार हो गई। अब पासा पलट चुका था। अमेरिका की जनता लिंकन को युद्ध के विजेता के रूप में स्वीकार कर चुकी थी और अगले चुनावों में उसने अपने लोकप्रिय नेता को फिर से राष्ट्रपति चुनकर उसे विजय का उपहार देने का फैसला कर लिया था।
8 नवम्बर, 1864 को लिंकन चुनाव में विजयी हुए। उन्हें 2203831 मत मिले तथा उनके प्रतिद्वंद्वी डेमोक्रेटिक प्रत्याशी जनरल मैकलीलन को 1797019 मत प्राप्त हुए। अब्राहम लिंकन का फिर से अमेरिका का राष्ट्रपति चुना जाना विजय का इतिहास बनाती संघीय सेनाओं तथा संविधान में परिवर्तन कर दास प्रथा को मुक्ति दिलाने तथा संघीय अखंडता बहाल कराने की उम्मीद रख रही अमेरिकी जनता के लिए आशा और उमंग का प्रतीक था।
दास प्रथा समाप्त
31 जनवरी, 1865 को फिर से निर्वाचित राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद सबसे पहला काम यह किया कि इसी दिन संविधान में परिवर्तन कर दास प्रथा की समाप्ति की घोषणा कर दी।
दास प्रथा के समाप्त होते ही पूरे अमेरिका में जश्न का माहौल पैदा हो गया। दास प्रथा विरोधियों में अब्राहम लिंकन की जय-जयकार होने लगी।
जब लिंकन ने संविधान में परिवर्तन करने के बाद दास प्रथा की समाप्ति की घोषणा की तो सदन में ऐसा लगा जैसे कोई विस्फोट हो गया है। कांग्रेस के सदस्यों ने तालियों की गड़गड़ाहट और खुशी की तेज आवाजों के बीच इस घोषणा का स्वागत किया। नोआ ब्रूक्स ने इस घोषणा पर सदन की प्रतिक्रिया को इन शब्दों में व्यक्त किया है-
"There was an explosion, a storm cheers, the like of which probably no congress of the United States ever heard before. Strong men embrassed each other with tears."
दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने के बाद अब्राहम लिंकन ने यह बात बहुत गहराई से महसूस की कि दास प्रथा अमेरिकी समाज के माथे पर बहुत बड़ा कलंक है। इसी बुराई के कारण, इसको हटाने के विचार मात्र से गृह युद्ध आरंभ हुआ। पिछले चार वर्ष में लाखों लोगों की जानें जा चुकी हैं, युद्ध अब भी जारी है, फिर क्यों न सबसे पहले इस कलंक को ही धोया जाए, जो अमेरिका के विनाश का कारण बन चुका है और उनके राष्ट्रपतित्व के लिए एक चुनौती है।
लिंकन ने कहा—“With malice towards none, with charity for all, with firmness in the right as God gives us to see the right, let us strive on to finish the work we are in, to bind up the nation's wounds, to care for him who shall have won the battle, and for the widow and his orphans to do all which may achieve and charish a just lasting peace, among ourselves and with all nations."
दासता समाप्त करने के बाद लिंकन ने पूरा ध्यान संघ को बचाने पर लगा दिया। यद्यपि इस बात का खतरा चारों ओर मंडरा रहा था कि जो अमेरिकन नागरिक लिंकन के दासता समाप्त करने वाले फैसले से सहमत नहीं हैं, वे राष्ट्रपति के जीवन पर हमला कर सकते हैं। इतना बड़ा ऐतिहासिक कदम उठाने के बाद राष्ट्रपति को अपनी सुरक्षा कड़ी कर लेनी चाहिए, परंतु लिंकन ने यह बात नहीं मानी। उन्होंने कहा- "जब मेरा पूरा देश घायल पड़ा कराह रहा है, जब अमरीकी अमरीकी का खून बहाने पर विवश है, ऐसे में मैं अपनी जान की हिफाजत करने में लग जाऊं, यह घोर कायरता होगी और सच्चाई से पलायन भी। मैंने जो किया है, अमेरिका के हित में किया है, मानवता के हित में किया है। अब यदि कुछ यह मानते हैं कि मैं गलत हूं तो उनके हाथ खुले हैं, इस देश के नागरिक होने के नाते वे अपने राष्ट्रपति को जो चाहें सजा दे सकते हैं, राष्ट्रपति को इससे इंकार नहीं है। "
वो रात-दिन हर मोर्चे पर भाग-भागकर पहुंचते और अपने कमांडरों, जनरलों तथा सैनिकों के हौसले बढ़ाते। कमांडरों से वे यही कहते कि जितने जल्दी हो इस युद्ध को समाप्ति की ओर ले जाओ, परंतु हम यह जानते हैं कि हम सच्चाई के लिए लड़ रहे हैं, सही के लिए लड़ रहे हैं, तुम कहीं भी किसी भी तरह गलत नहीं हो, अत: हमारे लिए जीतना अनिवार्य है ताकि दुनिया में गलत संदेश न जाए और सच्चाई के लिए लड़ने वालों के मनोबल कम न हों।
जनरल मीडी के साथ जब लिंकन पीटसवर्ग में थे युद्ध क्षेत्र का निरीक्षण कर रहे थे तब एक सैनिक अधिकारी ने उन्हें सूचना दी–“एक कंफीडरेट सैनिक ने युद्ध क्षेत्र में दम तोड़ने से पहले अपनी मां को याद किया, इतना अधिक कि वह रो पड़ा और फिर उसने दम तोड़ दिया। "
ये शब्द सुनते ही लिंकन भावुक हो उठे और उनकी आंखों में आंसू आ गए और मुंह से ये शब्द निकले–“Robbing the craddle and the grave" (इस युद्ध ने पालने से लेकर कब तक सब कुछ नष्ट कर दिया है।)
जनरल ग्रांट ने लिंकन से पूछा–“मिस्टर प्रेसिडेंट क्या कभी आपने अपनी विजय पर संदेह भी किया था?"
लिंकन ने फौलादी दृढ़ता से जवाब दिया– “नहीं, एक क्षण को भी नहीं।
9 अप्रैल की रात को संयुक्त राज्य अमेरिका के कमांडर इन चीफ जनरल ग्रांट का टेलीग्राम राष्ट्रपति को मिला। इसमें लिखा था—'जनरल ली ने आज सुबह उत्तरी वर्जीनिया में मेरी शर्तों के अनुसार अंतिम आत्मसमर्पण कर दिया है। ली पूरी सैनिक शान-शौकत से वर्दी पहनकर मेरे सामने उपस्थित हुआ और मुझे लगा कि वह मेरे साथ बातचीत करने आया है, परंतु मुझे तब बड़ा आश्चर्य हुआ जब उसने कहा–जनरल ग्रांट मुझे यह बताओ कि मुझे किन शर्तों पर तुम्हारे सामने समर्पण करना है। मैंने उसे अपनी पहले से ही तैयार शर्तें सुना दीं— और उसने उन सबको मानते हुए समर्पण कर दिया।'
संघीय सेनाओं की पूरी तरह जीत हो चुकी थी। केवल नेवी जनरल शरमन से जीत की खबर का उसे बेसब्री से इंतजार था। उसे उम्मीद थी कि शरमन भी विजय प्राप्त कर चुका होगा और कंफीडरेट सेनाओं की अंतिम सैन्य टुकड़ी पर विजय प्राप्त कर उसका जहाज तेजी से किनारे की ओर लौट रहा होगा। वह शीघ्र ही सूचना देगा– 'इस मोर्चे पर भी हमारी फतह। अब हम पूरी तरह युद्ध जीत गए।
परंतु इन सबके बावजूद लिंकन के चेहरे पर विजेता की प्रसन्नता का कोई चिन्ह दूर-दूर तक नजर नहीं आता था।
इस युद्ध में दोनों ओर से शहीद हुए लाखों सैनिकों, उनकी विधवाओं तथा अनाथ बच्चों का ख्याल उनके जेहन से एक क्षण को भी नहीं निकल पा रहा था तथा संघीय एकता कैसे स्थापित होगी, यह चिंता भी उन्हें सताए जा रही थी।
आंखों में आई थी खुशी की एक चमक और बुझ गई
शुक्रवार को राष्ट्रपति लिंकन बहुत खुश थे। उनके दिमाग में एक ही बात चल रही थी कि पुरानी बातें भुलाकर दक्षिणी राज्यों तथा अन्य बागी राज्यों को फिर से अमेरिकी संघ में कैसे शामिल किया जाए। दक्षिणी सेनाओं का कमांडर इन चीफ जनरल ली अब उनके कब्जे में था। अन्य अनेक जनरल गिरफ्तार किए जा चुके थे।
राष्ट्रपति लिंकन जनरल ली तथा अन्य सभी जनरलों से मिले। उनके दिल में यह शिकायत लेशमात्र भी नहीं थी कि वे दक्षिण की ओर से क्यों लड़े। वे सारे कंफीडरेट जनरलों को अपना मित्र मान रहे थे और संघीय समझौता हो जाने के बाद उन सबको माफ करने का उन्होंने मन बना लिया था। जनरल ली से मिलकर उन्होंने कहा–“Frighten the hatred and revenge out of country. Enough blood has been shad. Open the gates, let down the bars, scare them off."
अपनी पत्नी के साथ दोपहर बाद गाड़ी में घूमने गए। उन्होंने अपनी पत्नी से रास्ते में कहा – “देखो मैरी! जब से मैं राष्ट्रपति बना हूं, पता ही नहीं चला, पूरे चार साल युद्ध में बीत गए, इस बीच हमारा प्यारा बेटा विली हमें गहरी चोट देकर परलोक सिधार गया। अब लगता है कि हमारा भविष्य अच्छा होगा। युद्ध अब समाप्त है, बस किसी तरह शांतिपूर्ण ढंग से संघीय एकता कायम हो जाए।"
लौटकर व्हाइट हाउस आए तब उनके चेहरे पर मुस्कान थी और पहली बार खुशी के चिन्ह दिखाई पड़े थे।
उन्होंने मन बनाया कि फोर्ड थियेटर में नाटक देखा जाए। थोड़ा मन हल्का हो जाएगा। बहुत दिनों से पीड़ा और घावों की टीस ढोते-ढोते मन बोझिल हो चुका है। आज थोड़ा समय मानसिक सुकून के लिए निकाला जाए। थियेटर में America Cousin नामक नाटक चल रहा था।
रात को साढ़े आठ बजे व्हाइट हाउस की कोच में बैठकर राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन अपनी पत्नी मैरी टॉड तथा मेजर रेंथबोन व मिस हेरिस के साथ थियेटर पहुंचे। थियेटर के सामने कोच रुकते ही राष्ट्र के प्रथम पुरुष राष्ट्रपति लिंकन पत्नी व मेहमानों के साथ कोच से उतरे।
थियेटर के विशेष केबिन में शाही मेहमानों के लिए बैठने की व्यवस्था की गई थी। मेजर रेंथबोन तथा मिस हेरिस को राष्ट्रपति ने बड़े प्यार से सामने की सीट पर बैठाया और स्वयं पीछे की सीट पर अपनी पत्नी के साथ बैठ गए। नाटक शुरू हो गया। मेजर ने मिस हेरिस का हाथ अपने हाथ में ले लिया। राष्ट्रपति ने जब यह देखा तो उन्होंने भी अपना हाथ मैरी के हाथ को पकड़ने के लिए बढ़ाया। तब मैरी ने कहा– "छोड़िए न मेजर रेंथबोन क्या कहेंगे। "
"नहीं। वे कुछ नहीं कहेंगे, वे तो सामने देख रहे हैं।" राष्ट्रपति ने रोमांटिक होते हुए कहा और अपनी पत्नी को खींचकर अपने से सटा लिया।
जॉन विल्कस बूथ नामक युवक पहले थियेटर में काम कर चुका था। वह दक्षिण का रहने वाला था। दक्षिणी राज्यों की हार से और राष्ट्रपति लिंकन की जीत से वह बुरी हर खिसिया गया था। काले नीग्रो लोगों को दासता से मुक्त किए जाने का वह घोर विरोधी था।
उसे जब यह पता लगा कि राष्ट्रपति लिंकन विशेष केबिन में अपनी पत्नी के साथ थियेटर में नाटक देख रहे हैं और उनके साथ वहां कोई सुरक्षा गार्ड नहीं है, न ही कोई हथियार है, तो उसने राष्ट्रपति की हत्या के लिए इसे बहुत उचित अवसर माना। वह कुछ ऐसा कर दिखाने के लिए वर्षों से तड़प रहा था जिससे दक्षिणी राज्यों की दृष्टि में वह ऊंचा उठ जाए, घर-घर उसकी चर्चा हो। अखबार में उसके फोटो छपें।
उसे लगा कि थियेटर में निहत्थे राष्ट्रपति की हत्या करके वह दक्षिण की हार का बदला भी चुका सकता है, दास प्रथा की समाप्ति के विरुद्ध अपनी असहमति भी प्रकट कर सकता है और देश-भर में चर्चित भी हो सकता है।
थियेटर के चप्पे-चप्पे से बूथ परिचित था। जब नाटक का तीसरा दृश्य चल रहा था और लोगों का ध्यान पूरी तरह दृश्य में केंद्रित था, वह दाहिने हाथ में पिस्तौल तथा बाएं हाथ में कटार लिए छिपते-छिपाते केबिन के पिछवाड़े पहुंच गया। जिस स्थान पर लिंकन की कमर थी उसे निशाना बनाते हुए उसने बहुत पास से पिस्तौल से गोली चलाई और नाटकीय ढंग से नारा लगाया – " Sic Sember Tyrannus.
शेक्सपीयर के प्रसिद्ध नाटक जूलियस सीजर में सीजर की हत्या करते समय ब्रूटस ने ये ही शब्द कहे थे।
गोली राष्ट्रपति के सिर के पिछले हिस्से में लगी और दिमाग में घुस गई। राष्ट्रपति उल्टे गिर गए, मैरी उनके ऊपर गिर पड़ी। मेजर रेंथबोन फुर्ती से हत्यारे पर झपटे, परंतु उसने खुली कटार से वार करते हुए उन्हें घायल किया और तुरंत केबिन की रेलिंग से ग्यारह फुट नीचे सीधा स्टेज पर कूद गया। कूदते समय झंडे में उसका पैर उलझ गया, उसका पैर टूट गया, लेकिन फिर भी पता नहीं कैसे लंगड़ाते-लंगड़ाते गायब हो गया और बाद में पकड़ा गया।
मैरी लिंकन की दर्द-भरी चीखों से थियेटर गूंज उठा। पूरे थियेटर में भगदड़ मच गई। सेना का युवा डॉक्टर केबिन में पहुंचा। मैरी का रोते-रोते बुरा हाल था। राष्ट्रपति का खून केबिन के फर्श पर बह रहा था।
बड़ी मुश्किल से राष्ट्रपति के घायल शरीर को केबिन से निकालकर चिकित्सा के लिए ले जाया गया। डॉक्टरों ने बहुत कोशिश की कि वे अपने महान राष्ट्रपति की जान बचा लें, परंतु गोली दिमाग में ऐसी सम्वेदनशील जगह पर लगी थी कि उन्हें न बचाया जा सका।
राष्ट्रपति लिंकन की अचानक हत्या से पूरे अमेरिका में हड़कम्प मच गया जिसने सुना वही दहल गया। लाखों महिलाएं चीख-चीखकर रो पड़ीं। हजारों सैनिकों और सैन्य अधिकारियों की आंखों में आंसू आ गए। पत्नी मैरी और बेटों का तो रोते-रोते इतना बुरा हाल हो गया कि वे अपने आपको संभाल ही नहीं पा रहे थे। ऐसी अनहोनी हुई थी अमेरिका में वह भी ऐसे महान जन-नायक महा मानवतावादी, राष्ट्रवादी लिंकन के साथ। लोग अपने दिल पर लगी चोटों को सह नहीं पा रहे थे।
दक्षिणी राज्यों के बागी, बगावत के लिए जिम्मेदार लोग, अमेरिकी संघ को नुकसान पहुंचाने वाले लोग कंफीडरेट सेनाओं के गिरफ्तार जनरल तक राष्ट्रपति लिंकन की जघन्य हत्या से सन्न रह गए, लिंकन ने साढ़े चार वर्ष में युद्ध के दौरान अपनी मानवीय भूमिका से विरोधियों के भी दिल जीत लिए ।
संघीय सेनाओं के सारे जनरल जो राष्ट्रपति लिंकन के साथ जीत का जश्न मनाने की प्रतीक्षा कर रहे थे राष्ट्रपति की हत्या से अधकटे वृक्ष की तरह जहां के तहां खड़े रह गए। जनरल ग्रांट तो भावुक होकर रो पड़े। उनसे सदमा बर्दाश्त नहीं हुआ और शराब पीने बैठे तो पीते ही चले गए और नशे में होश गंवाकर गिर पड़े।
सबसे ज्यादा रोए दक्षिणी राज्यों के चालीस लाख नीग्रो। जिस महान राष्ट्रपति ने उन्हें दासता से मुक्त किया था, वे उसका शुक्रिया अदा करना चाहते थे, उसके चरणों में गिरकर रोना चाहते थे, ताकि अपनी खुशी का इजहार आंसुओं से कर सकें, परंतु क्रूर विधाता ने उनसे वह अवसर छीन लिया। जब उन्हें पता लगा कि किसी 'बूथ' नामक व्यक्ति ने निर्ममता से, राष्ट्रपति को मार डाला है तो रोते-रोते उनकी आंखों में हत्यारे के प्रति खून उतर आया।
लिंकन परिवार तो ढह गया। पत्नी मैरी अपने तीनों बेटों को सीने से लगाकर रोती, पागलों की तरह चीखती और बेहोश हो जाती थीं।
फिर लिंकन का जनाजा निकला। चालीस लाख लोगों का विशाल काफिला। रोते-सिसकते आंसू बहाते लोग ही लोग।
वाशिंगटन से स्प्रिंगफील्ड तक काफी लम्बा काफिला, जनाजे के पीछे चला। रास्ते में जो जहां था वहीं से काफिले में शामिल हो गया और जहां तक वह चल सकता था साथ चला। उनके शरीर को स्प्रिंगफील्ड में दफनाया गया था। यहां लिंकन का अपना घर था। उनके सैकड़ों हितैशी व मित्र थे।
लिंकन के वकालत के साथी हेंडरसन ने डबडबाई आंखों से वकालत स्थल पर लगे उस बड़े बोर्ड को देखा जिस पर लिंकन व हेंडरसन लिखा था। उन्होंने उस बोर्ड को लक्ष्य करके यह कहा- “तू मुझे धोखा दे गया न! तू तो कहता था, राष्ट्रपतिकाल पूरा करके फिर स्प्रिंगफील्ड आएगा और मेरे साथ फिर वकालत करेगा, इसी आशा में यह बोर्ड तेरे कहे अनुसार मैंने नहीं हटाया। अब तू स्प्रिंगफील्ड आया भी है तो इस हालत में... मेरे राष्ट्रपति... मेरे दोस्त बता मैं अब क्या करूं, क्या अब भी यह बोर्ड यूं ही लगा रहने दूं या इसे उखाड़ फेंकूं।" कहते कहते हेंडरसन रो पड़े।
पति की मृत्यु के बाद मैरी लिंकन अपने बेटों के साथ अपने घर में न रह सकीं। वे अपनी बहन के साथ उन्हीं के घर में गईं। जिस पलंग पर मैरी लिंकन अपने राष्ट्रपति पति के साथ सोया करती थीं, उसे वे अपने साथ ले आई थीं। अपनी बहन के घर के एक कमरे में उन्होंने वह पलंग डलवाया था। वे बिल्कुल चुप रहती थीं। रात को जब सोतीं तो पलंग की वह जगह खाली छोड़ देती थीं जिस पर राष्ट्रपति लिंकन सोया करते थे।
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