लिंकन : पांच वर्ष वकालत के

1847 में लिंकन की मैक्सिको युद्ध नीति को लेकर जो हंगामे हुए उनकी गूंज स्प्रिंगफील्ड तक पहुंच गई। स्प्रिंगफील्ड के निवासी सरेआम लिंकन की निंदा करने लगे। कुछ लोग तो लिंकन को देशद्रोही तक कहने लगे। लिंकन के वकालत के सहयोगी बिली हेन्डरसन को यह बात सहन नहीं हुई। उसने अनेक लोगों से बहसें कीं और उन्हें समझाने का प्रयास किया।

लिंकन : पांच वर्ष वकालत के
I may thruthfully say I never knew Lincoln to read through law book of any kind. But he had occasion to investigate or learn any subject he was thorough in his search. He not only went to the root of the question, but dug up the root and separated and analysed every fibre.
-William Henderson
1847 में लिंकन की मैक्सिको युद्ध नीति को लेकर जो हंगामे हुए उनकी गूंज स्प्रिंगफील्ड तक पहुंच गई। स्प्रिंगफील्ड के निवासी सरेआम लिंकन की निंदा करने लगे। कुछ लोग तो लिंकन को देशद्रोही तक कहने लगे। लिंकन के वकालत के सहयोगी बिली हेन्डरसन को यह बात सहन नहीं हुई। उसने अनेक लोगों से बहसें कीं और उन्हें समझाने का प्रयास किया।
बिली ने लिंकन से कहा – “तुमने यह क्या किया लिंकन, अपने-आपको जनता की नजरों में गिरा लिया?"
"मैंने वही किया जो मेरी अंतर्रात्मा ने मुझसे करने को कहा था। "
"लेकिन लिंकन! यह राजनीति है। राजनीति में शब्द देते समय दस बार विचार किया जाता है। केवल उन्हीं बातों को शब्द देते हैं जो जनता को अच्छी लगें। जो जनता की नजरों में गिरा दें, ऐसे शब्द नहीं कहे जाते।"
“मैं इस तरह चालाकी से शब्दों का चयन करने की राजनीति नहीं कर सकता। अपने असली चेहरे पर एक और चेहरा चढ़ाना मुझे नहीं आता। मैं तो केवल एक ही चेहरा रखता हूं और उसी को सबको दिखाता भी हूं, फिर किसी की इच्छा भला माने या बुरा।
लिंकन के यह शब्द सुनकर बिली हेन्डरसन चुप हो गया। उसे लगा कि उसने लिंकन की दुखती रग दुखा दी है। थोड़ी देर को वह यह भूल गया था कि लिंकन दूसरे राजनीतिज्ञों से बिल्कुल अलग है। सच पूछो तो वह राजनीतिज्ञ है ही नहीं। वह एक सीधा और सरल इंसान है। राजनैतिक छल-कपट की चादर वह ओढ़ ही नहीं सकता।
“शायद मैं कुछ अधिक कह गया। " हेंडरसन थोड़ी चुप्पी के बाद बोला –“माफी चाहता हूं।"
"नहीं करूंगा माफ। " लिंकन ने आत्मीयता से कहा – “तूने मुझे समझने में भूल क्यों की। तू मेरा अंतरंग साथी है। मैं उन साथियों को कभी माफ नहीं कर सकता जो मेरे बिल्कुल अपने होकर भी मुझे समझने में भूल कर देते हैं।"
हेंडरसन चुप रहा।
फिर लिंकन ने हेंडरसन का हाथ पकड़ लिया और बोला ."बिली... अमेरिका की जनता मुझे समझे या न समझे मैं अपने आप को अच्छी तरह समझता हूं। मुझे तनिक भी अफसोस नहीं है इस बात का कि लोगों को मेरे विचार समझ में नहीं आए। मेरे विचार कड़वे और चुभने वाले जरूर हैं। उनमें से सच्चाई की लपटें निकलती हैं जिन्हें लोग सह नहीं पाते, इसलिए तिलमिलाकर मेरे बारे में जल्दबाजी में कोई राय बना लेते हैं। मुझे जल्दी नहीं है, मुझे विश्वास है कि मेरे यही विचार लोगों का और देश का भला करेंगे। एक दिन वे लोगों की समझ में भी जरूर आ जाएंगे, भले ही तब तक इतनी देर हो चुकी हो कि मैं लोगों के बीच मौजूद न रहूं।"
"तू सच कह रहा है।" हेंडरसन ने लिंकन के दोनों हाथ अपने दोनों हाथों में पकड़ते हुए कहा- "मैं समझ गया, लोग भी एक दिन समझ लेंगे... पर ये दिल तोड़ने वाली बातें न कर, चल बाहर चलते हैं। बाहर मौसम बहुत सुहावना है।" इस तरह बातें करते हुए बिली हेंडरसन लिंकन को केबिन से बाहर ले आया। बाहर बड़ी सुहावनी हवा चल रही थी, आकाश में बादल थे। दोनों हाथों में हाथ डाले कोर्ट के अहाते से बाहर निकलते देखे गए।
1848 में राष्ट्रपति के चुनाव की घोषणा हो गई। भिग पार्टी के सामने सवाल आया राष्ट्रपति पद के लिए प्रत्याशी किसे बनाया जाए। लिंकन को हेनरी क्ले बहुत पसंद था। उसके विचार बहुत महत्त्वपूर्ण थे। उसकी सोच में दूरदर्शिता और राष्ट्र के दूरगामी रहने की भावना थी, परंतु जनता की नजरों में वह अब तक चढ़ नहीं पाया था, अतः पार्टी उसे राष्ट्रपति पद के लिए प्रत्याशी बनाने में हिचक रही थी।
पार्टी ने मैक्सिको युद्ध के हीरो जनरल टेलर को अपना प्रत्याशी बनाने का फैसला लिया। जनरल टेलर ने मैक्सिको के साथ युद्ध के समय बहादुरी का ऐसा परिचय दिया था कि पूरे देश की जनता ने उन्हें अपना हीरो मान लिया था। युद्ध के हीरो को मैदान में उतारकर भिग पार्टी ने अपनी जीत सुनिश्चित कर ली थी। भिग पार्टी के अनुभवी नेता जानते थे कि इस समय लोकप्रियता और ग्लेमर में जनरल टेलर से आगे अमेरिका में कोई भी नहीं है, अतः पार्टी के विचारों से मेल न खाते हुए भी उन्होंने जनरल टेलर के नाम पर अपनी सहमति दे दी। जनरल टेलर में मिग पार्टी का एक भी गुण मौजूद नहीं था। वे राजनीति के बारे में कुछ नहीं जानते थे। दास प्रथा के वे भारी समर्थक थे।उनके घर में कई नीग्रो दास बनाकर रखे गए थे। जबकि पार्टी सदन में दास प्रथा के बारे में सबसे अलग किस्म के विचार रखती थी। मैक्सिको युद्ध के बारे में तो पार्टी के विचार सरकार विरोधी रहे थे। पार्टी जानती थी कि उसके युवा नेता लिंकन ने मैक्सिको युद्ध के लिए अपने ही देश की सरकार को दोषी ठहराया है और मैक्सिको को निर्दोष माना है। ऐसे में जनता भिग पार्टी खासकर लिंकन से बुरी तहर नाराज थी। शायद इसी नाराजगी को कम करने की दृष्टि से जनरल टेलर को पार्टी ने अपना प्रत्याशी बनाया था।
पार्टी की यह नीति कामयाब रही। लिंकन ने टेलर के चुनाव प्रचार में पूरे देश में दूर-दूर तक जाकर भाषण दिए और लोगों से भिग पार्टी के उम्मीदवार को जिताने की अपील की।
जहां तक लिंकन का सवाल है, जनता ने उन्हें पंसद नहीं किया। अनेक बार ऐसे अवसर आए जब वाशिंगटन, शिकागो, न्यूयॉर्क आदि नगरों में लिंकन को स्टेज पर बोलते समय जनता का कोप झेलना पड़ा, परंतु टेलर को जनता ने हर जगह हाथों-हाथ लिया। जनरल टेलर की छवि युद्ध हीरो होने के कारण जनता की दृष्टि में पहले स्थान पर थी। अत: लिंकन के प्रति विरोध प्रकट करने तथा पार्टी की युद्ध नीति की आलोचना करने के बावजूद जनता ने जनरल टेलर के पक्ष में मतदान किया और जनरल टेलर अमेरिका के राष्ट्रपति चुन लिए गए। लिंकन ने टेलर की जीत को अपने प्रयासों की जीत माना और चैन की सांस ली।
एक दिन तुम बड़े आदमी बनोगे
1849 में जब लिंकन का कांग्रेस का सदस्यता काल पूरा हुआ तो उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें इलीनॉइस के जनरल लेंड ऑफिस का कमिश्नर नियुक्त कर दिया जाएगा। लिंकन ने इलीनॉइस के प्रत्याशी के लिए भागदौड़ की। लिंकन को अगले सत्र के लिए प्रत्याशी नहीं बनाया गया था। अपनी पार्टी के प्रत्याशी को जिताने के लिए उन्होंने अमेरिका के अनेक नगरों का दौरा किया। अपने एक दौरे में वे वाशिंगटन गए। उनके साथ केंटुकी का एक धनी व्यक्ति था। दोनों एक ही कोच में बैठकर वाशिंगटन गए थे।
रास्ते में उस व्यक्ति ने चबाने के लिए तम्बाकू निकाला और लिंकन की ओर बढ़ाया। लिंकन ने विनम्रता से कहा– “नो सर, आई नैवर चीऊ। (नहीं सर, मैं कभी तम्बाकू नहीं खाता।)
लिंकन के साथ बैठे सज्जन ने तम्बाकू का डिब्बा पीछे खींच लिया और थोड़ा-सा तम्बाकू अपने हाथ में लेकर स्वयं चबाने लगे।
काफी समय बाद उन सज्जन ने एक सिगार बड़े प्यार से लिंकन की ओर बढ़ाया। लिंकन ने वह सिगार भी आदरपूर्वक लौटा दिया। अब एक स्थान पर कोच रुकी। कोच का घोड़ा बदला जाना था और थोड़ी देर ठहरकर वहां से चलना था। उन सज्जन ने बड़े प्यार से बरांडी के दो पैग तैयार किए, उन्हें उम्मीद थी कि लिंकन को बरांडी से कोई ऐतराज नहीं हो सकता। बरांडी तो सभी पीते हैं और इस समय मौसम भी बरांडी के लिए सर्वथा अनुकूल था। उन सज्जन को अब तक यह बात बड़ी खल रही थी कि दो बार उन्होंने लिंकन का खाने-पीने की चीजों से स्वागत करना चाहा, परंतु दोनों बार उन्होंने स्वीकार नहीं किया। अब तीसरी बार वे स्वीकार करेंगे तो बहुत अच्छा लगेगा। साथ-साथ यात्रा करने वाले यात्रियों का यह धर्म है कि साथ-साथ खाएं और पिएं भी। यात्रा का आनंद ऐसा करने से बहुत बढ़ जाता है तथा आपस में आत्मीयता की वृद्धि हो जाती है। उन्होंने बड़ी हसरत से बरांडी का खूबसूरत प्याला अपने हाथ से बनाकर स्वयं लिंकन की ओर बढ़ाया और कहा- "Well stranger, seeing you dont smoke or chew, perhaps you'll like a little of this French Brandy. It is the prime article and a good appetiser besides.” (हे अजनबी! मुझे यह जानकर बड़ी खुशी हुई कि तुम न तम्बाकू खाते हो, न सिगार पीते हो, परंतु यह फ्रांसीसी बरांडी मैंने बड़े प्यार से तुम्हारे लिए भी तैयार की है, मुझे उम्मीद है तुम इसे अवश्य स्वीकार करोगे, यह बहुत अच्छी मेड है, इससे भूख भी बढ़ती है।)
जब लिंकन ने बरांडी के लबालब भरे प्याले को देखा और उन सज्जन की आंखों में उमड़ते प्यार, श्रद्धा व विश्वास को भी, तो उन्हें मना करने में बड़ी कठिनाई हुई। फिर भी उन्होंने बड़ी विनम्रता से कहा- "मुझे इस बार भी आपको क्षमा करना पड़ेगा, यदि मैंने कभी बरांडी पी होती तो आपका कहना नहीं टाल सकता था।" उन सज्जन ने बरांडी के दोनों प्याले एक के बाद एक स्वयं पिए। ऐसा करते समय वे बड़े गद्गद थे।
जब कोच का अंतिम स्टेशन आ गया। तब दोनों जुदा हुए। उन सज्जन ने लिंकन के दाएं हाथ को अपने दोनों हाथों में लेकर कहा–"See here stranger, you are a clever but strange companion. I may never see you again and I dont want to offend you, but I want to say this may experiences have taught me that the man who has no vice damn few virtues, Good day.
(अजनबी! तुम बहुत होशियार हो और विचित्र भी! शायद तुमसे अब इस जिंदगी में कभी मुलाकात न हो, लेकिन चलते-चलते वह बात जरूर कहूंगा जो अनुभव ने मुझे सिखाई है— जो व्यक्ति हर व्यसन से दूर रहता है, उसमें कोई-न-कोई खास बात जरूर होती है.... अलविदा दोस्त!)
लिंकन की यह आदत थी कि वे आगे बढ़कर अपना परिचय तब तक नहीं देते थे, जब तक उसकी आवश्कयता न हो। वे प्राय: चुप रहते थे। यदि अनजबी उनके साथ अपने आपको खोलने के लिए तथा उनके बारे में जानने के लिए प्रयास न करे तो वे अपने पत्ते कभी नहीं खोलते थे।
इस यात्रा में यही हुआ। कंटुकी का रहने वाला वह अमीर व्यक्ति उनकी जन्म स्थली से ताल्लुक रखता था, फिर भी उन्होंने उसे अपना परिचय नहीं दिया, न उनसे उनका परिचय मांगा। उसके द्वारा तीन बार दबाव डालने पर भी उसका आतिथ्य स्वीकार नहीं किया। यह घटना लिंकन के चरित्र की दृढ़ता दर्शाती है। यह घटना बताती है कि आदमी को अपने आत्मसम्मान के साथ, अपने व्यक्तित्व के वजूद के साथ किसी कीमत पर कोई समझौता नहीं करना चाहिए।
दुनिया में सबसे कीमती आदमी स्वयं है और उसका व्यक्तित्व उसकी सबसे बड़ी पूंजी है। यदि वह अपने आत्मसम्मान को जीवित रखेगा, अपने व्यक्तित्व की गरिमा को बनाए रखेगा तो उसे कभी ग्लानि और आत्मप्रवंचना से नहीं गुजरना पड़ेगा। वह सच कहने में कभी हिचकिचाएगा नहीं और गलत बात का विरोध करते समय कोई झिझक या झेंप उसके आड़े नहीं आएगी।
लिंकन ने इस घटना को अपने जेहन में लिख लिया। वे उस अमीर के लिए अजनबी बने रहे और उसके कहे गए शब्द उनके लिए प्रेरणा के स्रोत और चारित्रिक दृढ़ता के स्तम्भ बन गए।
राज्य की राजनीति में जाने से पत्नी ने रोका
लिंकन की पत्नी मैरी टॉड यद्यपि राजनैतिक मामलों में अधिक दखल नहीं देती थीं, उन्हें अपने पति की गरिमा का बहुत ख्याल रहता था। वे एक ऐसी महिला थीं जो अपने पति की प्रतिभा और क्षमताओं को अच्छी तरह समझ गई थीं।
जो स्त्रियां पति की ऊंचाई से ईर्ष्या नहीं करतीं, अपितु उसे अपनी ऊंचाई मानकर पति को आदर देती हैं और स्वयं को गौरवांवित अनुभव करती हैं, वे पति के लिए बड़ी ताकत बन जाती हैं। मैरी टॉड इसी प्रकार की स्त्री थीं। अपनी सारी प्रतिभाओं को उन्होंने पति की राजनैतिक ऊंचाइयों तथा कानून की गहराइयों में पहुंचने के लिए उपयोगी बनाया। इतना ही नहीं पति के अपने बारे में लिए जाने वाले फैसलों पर इस दृष्टि से नजर रखती थीं कि वे उनके कद और भविष्य की दृष्टि से ठीक है या नहीं।
ऐसा ही एक अवसर 1849 में उस समय आया जब लिंकन को ओरगन का सचिव बनाए जाने का प्रस्ताव रखा गया। ओरगन शीघ्र ही नया राज्य बनने वाला था। राज्य बन जाने पर लिंकन उसके गवर्नर बन जाते। गवर्नर का पद अमेरिका में बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
लिंकन की पत्नी ने उन्हें रोक दिया। उन्हें बताया कि उनका कद राष्ट्रीय राजनीति में जाने के योग्य है। उन्हें राज्य स्तर पर कोई पद स्वीकार नहीं करना चाहिए। यदि इस समय राष्ट्रीय राजनीति में जगह नहीं मिल पा रही है तो कोई बात नहीं, कुछ दिन वकालत में अपना मन लगाओ और स्थितियों पर नजर रखो। जब सही वक्त आए और राष्ट्रीय राजनीति में कोई महत्त्वपूर्ण भूमिका दिखाई पड़े तो उसे आगे बढ़कर निभाओ। एक भी कदम ऐसा नहीं रखना है जो उलझा दे और राष्ट्रीय राजनीति में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर हाथ से निकल जाए।
लिंकन को पत्नी की बात समझ में आ गई। उन्होंने यह जिम्मेदारी लेने से विनम्रतापूर्वक इंकार कर दिया और पूरा मन लगाकर वकालत के काम में जुट गए।
अब लिंकन ने अपना ध्यान राजनीति से पूरी तरह हटा लिया था। राजनैतिक उठा-पटक और महत्त्वाकांक्षाओं से बहुत दूर पूरा मन लगाकर वे तीन काम करने लगे – एक, वकालत में व्यस्त रहना तथा अच्छी आमदनी करना, दूसरे, अच्छे साहित्य का अध्ययन करना, तीसरे, राष्ट्रहित व मानवहित को केंद्र में रखकर अपनी भावी राजनैतिक सोच का विकास करना।
1849 से 1854 तक पूरे पांच वर्ष तक लिंकन ने राष्ट्रीय राजनीति से संन्यास ले लिया। यह विचित्र अवधि थी जब लिंकन राजनीति से अलग रहकर दूर से उसका निरपेक्ष विश्लेषण कर रहे थे। निरपेक्ष विश्लेषण से व्यक्ति की अपनी सोच का विकास होता है तथा उसके व्यक्तित्व में एक विशेष प्रकार का निखार आ जाता है जो उसके आत्मविश्वास के स्तर को बहुत ऊंचा उठा देता है।
समीक्षकों का विचार है कि यदि लिंकन पांच वर्ष के लिए राजनीति से अलग हटकर तटस्थ दृष्टा की हैसियत से न रहे होते तो शायद वे राजनीति की वास्तविकता को तथा उसमें अपनी भूमिका को ठीक से समझ नहीं पाते और व्यस्तता में कहीं उलझकर रह जाते। केवल सात वर्ष के दूसरी पारी के प्रयासों के बाद वे सीधे राष्ट्रपति पद पर पहुंचे। लिंकन ने अत्यधिक विषम परिस्थितियों में अमेरिकी संघ को टूटने से बचाया और दास प्रथा का अंतिम अध्याय उन परिस्थितियों में लिखा जब कोई और व्यक्ति फैसला लेने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाता। समीक्षक यहां तक कहते हैं कि पांच वर्ष के इस अंतराल ने लिंकन को ऐसी रचनात्मक शक्तियों से भर दिया था कि वे इसके बाद जब राजनीति में उतरे तो तीर की तरह सीधे निशाने की ओर बढ़े। लक्ष्य की प्राप्ति के बाद उन्होंने जो फैसले लिए वे अमेरिका के इतिहास के ऐसे अध्याय हैं, जो आज के महानायक बने अमेरिका के लिए सुदृढ़ पृष्ठभूमि बन गए। एक विचारक ने लिंकन की इस तटस्थ अवस्था के बारे में लिखा है-
"As he put a side all thoughts of political advancement and devoted himself to personal improvements, he grew tremendously in mind and character.
उनके वकालत के सहयोगी (Law Partener) मिस्टर हेंडरसन का कहना है कि लिंकन उनके बहुत करीब रहे, खासकर पांच वर्ष की इस अवधि (1849-1854) में। वे अध्ययन जरूर करते थे, परंतु विद्वान बनने जैसी कोई धुन उन पर सवार नहीं थी। उन्होंने बाइबिल का अध्ययन किया और श्रेष्ठ साहित्यकारों की महत्त्वपूर्ण रचनाएं भी पढ़ीं।
अपनी पुस्तक 'अब्राहम लिंकन' में लिंकन के समीक्षक 'लॉर्ड लोंगफोर्ड' लिखते हैं—'ऐसा कहा जाता है कि लिंकन पढ़ते बहुत कम थे पर विचार बहुत करते थे। उन्होंने अपने अंदर एक विचार शक्ति को जन्म दिया। तर्क शक्ति को विकसित किया। उनकी विचार व तर्क शक्ति का आयाम कानून और राजनीति तक ही सीमित नहीं था, उसका दायरा बहुत बड़ा था।
उनके साथी हेंडरसन से लिंकन की बहुत स्मृतियां जुड़ी हैं। लिंकन की टांगें बहुत लम्बी थीं। सर्किट में हेंडरसन और लिंकन जब साथ-साथ एक ही बिस्तर पर सोते थे तो लिंकन की टांगें बिस्तर के बाहर लटकती रहती थीं। जब हेंडरसन गहरी नींद में डूब जाते थे, तब लिंकन घंटों जागकर अध्ययन करते थे। यद्यपि उन्होंने बहुत नहीं पढ़ा था, परंतु अपने युग की महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का उन्होंने पूरी गहराई तक जाकर अवश्य अध्ययन किया था। इससे उनके विचारों में बड़ी प्रखरता आई थी और वकालत में भी वे अधिक सफल होने लगे थे। अपनी स्कूली शिक्षा अधूरी रहने के बावजूद लिंकन ने अपनी पढ़ाई की क्षतिपूर्ति की और जरूरी चीजों को पढ़ा। इससे वे अध्ययन के महत्त्व को पूरी तरह स्वीकार करने लगे थे।
एक बार एक युवक ने पत्र द्वारा उनसे पूछा कि सफल एडवोकेट बनने के लिए क्या करना चाहिए, तब उन्होंने उसे लिखित में उत्तर देते हुए लिखा—'बड़ी-बड़ी किताबों का अध्ययन करो। कानून की दुनिया में सफल होने के लिए कानून की धाराओं की अच्छी जानकारी होना जरूरी है। अतः खूब अध्ययन करो और लगकर काम करो। एक दिन तुम एक सफल वकील बन जाओगे।'
पत्र लिखते हुए हेंडरसन ने देख लिया। उन्होंने लिंकन के लिखे जवाब को पढ़ा तो हंसकर बोला– “यह तुमने क्या लिख दिया। कानून की मोटी-मोटी किताबें पढ़ो। जहां तक मैं जानता हूं, मैंने तुम्हें ये किताबें पढ़ते कभी नहीं देखा। जब तक कि किसी केस में इसकी जरूरत न पड़ जाए, फिर भी तुम केस जीत ही लेते हो। मैं कैसे मान लूं कि तुम्हारी सफलता का राज कानून की मोटी-मोटी किताबों का अध्ययन है।"
लिंकन ने जवाब दिया– "मैं नहीं पढ़ पाया तो क्या हुआ, सच्चाई तो यही है कि कानून अध्ययन और जानकारी की मांग करता है। मेरा तो जीवन ही इतना ऊबड़-खाबड़ और बेतरतीब रहा है जिसमें नियमितता के लिए कोई स्थान नहीं रहा। यदि रहता तो शायद मैं अध्ययन को अवश्य महत्त्व देता, लेकिन युवा पीढ़ी के ये उभरते सितारे अध्ययन कर सकते हैं। इसलिए मैं सलाह देता हूं कि वे खूब अध्ययन करें और खूब मेहनत करें, सफलता उनके कदम चूमेगी।"
हेंडरसन की तरह ही जज, डेविड डेविस ने भी लिंकन की आदतों तथा खूबियों को अपनी महत्त्वपूर्ण टिप्पणियों में उजागर किया है।
लिखित रिकॉर्ड नहीं रखते थे
हेंडरसन के साथ लिंकन की व्यावसायिक साझेदारी थी। दोनों ने अपनी कंपनी बनाई हुई थी जिसके तहत होने वाले खर्चे को आधा-आधा भरना होता था तथा आमदनी को आधा-आधा बांटना होता था। जाहिर है कि ऐसी स्थिति में हर केस को हर खर्चे को लिखित रूप में रखा जाता और जो आमदनी होती या खर्च होता उसे लिखित में ही आधा-आधा किया जाता, परंतु वे ऐसा नहीं कर पाते थे। इतनी बड़ी कंपनी केवल विश्वास के आधार पर चल गई रही थी। हेंडरसन जो खर्च कर देते तथा आमदनी करते उसका बंटवारा कर देते थे, लिंकन जो खर्च तथा आमदनी करते उसका बंटवारा स्वयं कर देते थे। दोनों में से किसी ने कभी एक दूसरे पर से अविश्वास नहीं किया, परंतु जज डेविड डेविस कहते हैं– “व्यवसाय की दृष्टि से यह एक बड़ा दोष था जिसे लिंकन जैसे बड़े कद के व्यक्ति की लापरवाही ही कहा जा सकता है।"
वकालत में हिसाब-किताब नहीं रखना और फिर भी छवि पर दाग नहीं लगना। यह दर्शाता है कि लिंकन का दिल बहुत बड़ा था। वे वकालत से पैसा जरूर कमाते थे, परंतु पैसे के प्रति उनके मन में ऐसा लोभ नहीं था कि यदि उनके साथी के हिस्से में ज्यादा चला गया तो क्या होगा। वे वकालत को आमदनी का साधन मानने के साथ-साथ न्याय दिलाने का माध्यम भी मानते थे। अपने मुवक्किल को न्याय दिलाने के लिए वे पूरी मेहनत से मुकदमे की पैरवी करते थे। इसके लिए फिर चाहे उन्हें रात-रात भर जागना पड़े या मित्रों से सलाह लेनी पड़े या किताबों, समाचार-पत्रों व नजीरों की गहराई में जाना पड़े। मेहनताना जो भी मिलता उसे पूरी ईमानदारी से बांटकर इतने खुश होते थे कि उस समय उनका चेहरा देखते बनता था।
इलीनॉइस के सेंट्रल रेलवे का मुकदमा लिंकन ने बड़ी तत्परता से लड़ा। केस बहुत उलझा हुआ था, परंतु लिंकन ने इसकी परवाह नहीं की। वे केस की तह तक गए और एक दिन उन्होंने यह मुकदमा जीत लिया। उन्हें मेहनताने में 15000 डॉलर मिले। उन दिनों यह बहुत बड़ी रकम मानी जाती थी।
खुशी से लिंकन के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। वे सीधे केबिन में पहुंचे और हेंडरसन से बोले–“आओ देखो मैं सेंट्रल रेलवे वाला मुकदमा जीत गया हूं, पूरे 15000 डॉलर मिले हैं, जल्दी बैठो मेरे पास और अपना हिस्सा ले लो।”
लिंकन ने तुरंत डालर निकाले और गिनकर पूरे 7500 डॉलर की गड्डी बनाई और हेंडरसन को पकड़ा दी।
इसके बाद वे अपनी इस खुशी को अपनी पत्नी तथा बच्चों में बांटने के लिए अपने घर चले गए। लिंकन जब केबिन से निकलकर अपने घर की ओर जाने लगे तब हेंडरसन खड़े-खड़े उन्हें देख रहे थे, उनकी दी हुई 7500 डॉलर की गड्डी अब भी हेंडरसन के हाथों में उसी तरह लगी थी।
गलत मुकदमा नहीं लड़ते थे
अब्राहम लिंकन भी गांधी जी की तरह इस बात का ध्यान रखते थे कि जिस केस को वे लड़ रहे हैं उसमें उनका मुवक्किल झूठ तो नहीं बोल रहा है। उनके लिए वकालत न्याय दिलाने का माध्यम थी। झूठे मुकदमों में लोगों को जिताकर मोटी रकम कमाने में माहिर आज के प्रभावशाली कहे जाने वाले वकीलों से लिंकन बिल्कुल अलग थे। उन्होंने जितना भी पैसा और नाम वकालत में कमाया वह सही मुकदमे लड़कर ही कमाया था। यही कारण कि इतने लम्बे समय तक वकालत में रहने तथा राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले वकील होने के बावजूद वे दौलत नहीं कमा पाए।
जज डेविड ने अपने संस्मरणों में लिखा है—'लिंकन अपने मुवक्किलों के मुकदमे लड़ते समय उन्हें जीत की गारंटी नहीं दिया करते थे। वे अपनी पूरी ताकत को मुकदमे में तभी झोंकते थे जब उन्हें पता लग जाता था कि यह मुकदमा जीतना सत्य की भारी जीत होगी। जब उन्हें यह पता लगता कि यह मुकदमा जीतने से किसी गलत आदमी को फायदा होने जा रहा है तो वे बीच में ही ढीले पड़ जाते थे और मुकदमे में हार जाने को तैयार हो जाते थे। केस जीतने को उन्होंने प्रतिष्ठा का प्रश्न सामान्य हालातों में कभी नहीं बनाया। हां, जब किसी गरीब के पेट पर लात पड़ने का सवाल होता अथवा किसी विधवा स्त्री को न्याय दिलाने का सवाल होता, तब वे इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लेते थे और अपने आपसे भी। "
झूठे मुकदमे के एक मुवक्किल को उन्होंने पत्र में सीधा-सीधा लिख दिया — “तुम्हारा मुकदमा झूठा है, मुझे ऐसे मुकदमे को जीतने में कोई रुचि नहीं है। तुम बेकार ही इस मुकदमे में पैसा जाया कर रहे हो, बेहतर हो तुम केस जल्दी-से-जल्दी वापस ले लो, अन्यथा तुम्हारा पैसा भी बेकार जाएगा और अंत में तुम मुकदमा भी हार जाओगे।"
ऐसे ही एक बार जब एक मुकदमा जज के यहां था, उन्हें अचानक पता लग गया कि इस मुकदमे के मुवक्किल ने उनसे झूठ बोला है। वे झट बुरा मान गए और उन्होंने ठीक उस समय पैरवी न करने का फैसला ले लिया जब मुकदमा जज के सामने पेश हुआ। जब उनका नाम पुकारा गया और वे कोर्ट में गए ही नहीं तो मुवक्किल दौड़ता हुआ आया और बोला- "सर, जल्दी चलिए हमारा मुकदमा आ गया है। जज ने आपका नाम पुकारा है। "
लिंकन ने अपने हाथ झाड़ते हुए कहा- "कह दो जज से मेरे पास समय नहीं है। मेरे हाथ गंदे हो गए हैं, मैं हाथ धोने जा रहा हूं।" मुवक्किल देखता रह गया। उसकी समझ में नहीं आया कि क्या करे। अजीब सनकी वकील है, परंतु अब तो बात हाथ से निकल चुकी थी। जज ने मुकदमा खारिज कर दिया। मुवक्किल गुस्सा होकर चला गया।
इस मुवक्किल के साथ ऐसा व्यवहार करने के पीछे उनका उद्देश्य यही था कि वह समझ जाए वकील से झूठ बोलकर गलत मुकदमा लड़वाने का नतीजा क्या होता है, 'हाथ गंदे हैं धोने जा रहा हूं' कहने से उनका तात्पर्य यही था कि तुमने मुझे गलत मुकदमे की पैरवी करने के लिए झूठ बोलकर राजी कर लिया। अब मुझे पता लग गया है कि तुम गलत हो, अतः मैं तुम्हारा मुकदमा लड़ने नहीं जा रहा हूं।
'राइट केस' में विधवा को पेंशन दिलाए जाने का मामला लिंकन ने अपने हाथ में लिया।
जब उन्होंने देखा कि उनका केस हाथ से निकलने लगा है और विश्वास के साथ अन्याय होने जा रहा है तो वे जज डेविड डेविस की अदालत में ही राइट बंधुओं से भिड़ गए।
उन्होंने उन्हें नीच, कपटी और हृदयहीन कहकर अदालत में ही बेइज्जत कर डाला। जज ने जब उन्हें रोका तो बाहर निकल गए और अपने साथी हेंडरसन से अपने क्रोध को प्रकट करते हुए बोले– “मैं इन राइट बंधुओं की खाल खींच लूंगा और उस विधवा की पेंशन का पैसा उनसे निकलवाकर रहूंगा।"
'राइट केस' में समय बीत रहा था और विधवाओं को पेंशन मिलने में देरी हो रही थी। मुकदमे को कानूनी दांव-पेंचों के माध्यम से लम्बा खींचे जाने तथा विधवाओं के साथ अन्याय होने से खीझकर उन्होंने यह वक्तव्य दिया— “कितना लम्बा समय बीत चुका है, 1776 के युद्ध में बहादुर सिपाही अपनी शहादत दे गए। उनकी विधवाएं अनाथ और बेसहारा होकर भटक रही हैं। ये विधवाएं कभी आपके पास आकर गुहार लगाती हैं, कभी मेरे पास। जूरी के सम्मानीय सदस्यो! इनके साथ न्याय क्यों नहीं करते। आज जो स्त्री वीर सैनिक की विधवा के रूप में अपना सब कुछ गंवाकर तुम्हारे सामने खड़ी है, कोई दिन था जब वह इतनी बुरी हालत में नहीं थी। वह बहुत सुंदर थी, जवान थी। उसकी चाल में एक लय थी, उसके चेहरे पर यौवन की लाली थी और जब वह बोलती थी तो चांदी की मधुर घंटियां-सी बजती थीं। इतनी लावण्यमयी और मीठी आवाज वाली घंटियां कि वर्जीनिया की पुरानी पहाड़ियों में भी हचलच मच जाती थी। जिसके पति ने देश की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी, आज वही स्त्री असुरक्षित हालत में यहां खड़ी है। वह कहां पैदा हुई, कहां उसने अपना बचपन और किशोर-काल बिताया, कहां से चलकर कहां पहुंचकर हमसे मदद के लिए गिड़गिड़ा रही है। उसकी आंखों के आंसू सूख चुके हैं, उसकी ऊर्जा की अंतिम बूंद भी जवाब दे गई है। मेरी आप से विनती है जेंटलमैन ऑफ ज्यूरी, इस स्त्री के साथ बिना वक्त गंवाए न्याय किया जाए।"
ऐसी तीव्र अपील वाली दलीलें पेश करते थे एक वकील की हैसियत से अब्राहम लिंकन अदालत में कि जजों के दिल हिल जाते थे।
अदालत में विकसित हुई जन-भावनाओं को उत्तेजित करने वाली यह कला जनता के बीच राजनैतिक सफलता हासिल करने में उसके बहुत काम आई।
रोकर मुकदमा जीता
एक बार लिंकन के सामने उनके न्यू सलेम के एक गरीब दोस्त के लड़के का मुकदमा आया। उनके दोस्त की मृत्यु हो चुकी थी और लड़के विलियम आर्मस्ट्रांग की हत्या हो गई। विधवा मां लिंकन से मिली थी न्यू सलेम में। जैक आर्मस्ट्रॉग ने कुश्ती के समय उस विधवा के लड़के विलियम आर्मस्ट्रांग पर ऐसा वार किया कि उसकी मौत हो गई।
लिंकन ने उस विधवा से कोई फीस नहीं ली। जब मुकदमे की पैरवी करने के लिए वह खड़ा हुआ तो उसने देखा कि विरोधी वकील इस आधार पर मुकदमा जीतने जा रहा है कि अंधेरे में उस पर वार करते हुए जैक आर्मस्ट्रांग को किसी ने देखा नहीं। चश्मदीद गवाह न होने के कारण केस हाथ से छूटा जा रहा था। लिंकन को केस हारने का गम नहीं था, परंतु इस बात से वह बुरी तरह विचलित हो गया कि उसका वह दोस्त जिसने उसकी गरीबी की हालत में मदद की थी, उसकी विधवा स्त्री सामने खड़ी है, उसका बेटा मारा जा चुका है और उसके बेटे के कातिल को सजा दिलवाकर वह उसे न्याय तक नहीं दिलवा पा रहा।
लिंकन का लम्बा शरीर बुरी तरह भावातिरेक से कांपने लगा। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे, उसने जज से कहा– "मिस्टर जस्टिस यह जो सामने खड़ी है, यह स्त्री उस पुरुष की विधवा है जो मुझे आज से 20 वर्ष पहले जब मैं एक गरीब लड़का था, मारा-मारा अनाथ-सा गलियों में भटक रहा था, तब वह व्यक्ति न्यू सलेम में अपने घर ले गया था। इसी स्त्री ने तब मुझे अपने हाथों से खाना खिलाया था। मुझे नहला-धुलाकर अच्छे कपड़े पहनने को दिए थे और मेरे लिए खाने और रहने का इंतजाम किया था। ऐसे सज्जन लोगों के साथ ऐसा क्यों होता है। मैं अपनी आंखों के सामने यह सब क्या दृश्य देख रहा हूं। गवाह की कमी के कारण बेटे को गंवा चुकी मां को न्याय नहीं मिल पा रहा है...।" लिंकन अदालत में रो पड़े। जूरी के जज भी अपने आंसू पोंछते देखे गए।
मुकदमे ने नया मोड़ ले लिया था। उसकी फिर से छान-बीन के आदेश जारी किए गए और बाद में उसे न्याय मिला।
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