General Competition | Economics & Economy | वित्त बाजार

किसी भी देश के आर्थिक विकास में वहाँ के वित्त बाजार (Financial Market) का महत्वपूर्ण स्थान होता है। वित्त बाजार, उन क्षेत्रों से जहाँ बचत अधिक बचत निकाल कर उन क्षेत्रों तक पहुँचाता है जहाँ बचत की माँग है।

General Competition | Economics & Economy | वित्त बाजार

General Competition | Economics & Economy | वित्त बाजार

  • किसी भी देश के आर्थिक विकास में वहाँ के वित्त बाजार (Financial Market) का महत्वपूर्ण स्थान होता है। वित्त बाजार, उन क्षेत्रों से जहाँ बचत अधिक बचत निकाल कर उन क्षेत्रों तक पहुँचाता है जहाँ बचत की माँग है। 
  • वित्त की माँग तथा पूर्ति करने वाले में निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है-

  • वित्त बाजार का प्रमुख कार्य-
  1. वित्तीय बाजार लोगों के बचत को गतिशील बनाता है। यह बाजार बेकार पड़े वित्त को ऐसी जगह ले जाता है जहाँ वास्तव में इसकी जरूरत है। 
    • वित्त (Finance) को एक पक्ष से दूसरे पक्ष को हस्तांतरित करने हेतु वित्त बाजार में अनेक वित्तीय प्रपत्र ( प्रतिभूति ) होते हैं। निवेशक अपने इच्छानुसार किसी भी वित्तीय प्रपत्र में निवेश कर सकते हैं।
  2. वित्त बाजार वित्त के मांग पक्ष तथा पूर्ति पक्ष को एक मंच पर लाकर प्रतिभूति के मूल्य तय करने में सहायक करते हैं। वित्त बाजार में प्रतिभूति का मूल्य मांग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होता है।
  3. वित्त बाजार एक ऐसा मंच है- जहाँ सभी प्रतिभूति के क्रेता तथा विक्रेता हर समय मौजूद रहता हैं जिससे प्रतिभूति में तरलता बनी रहती हैं। वित्त बाजार में निवेशक को यह सुविधा रहती है कि वे जब चाहे निवेश कर सकते हैं और जब चाहे निवेश को पुनः निकाल सकते हैं।
  4. किसी प्रतिभूति को खरीदने या बेचने के लिए प्रतिभूति के संबंध में कई प्रकार के सूचनाओं की आवश्यकता होती है। वित्त बाजार इस सूचनाओं को बिना किसी लागत के निवेशकों को उपलब्ध करवाता है।
  • वित्त बाजार में अनेक प्रकार के प्रतिभूति खरीदे - बेचे जाते हैं। इन प्रतिभूति में कुछ प्रतिभूति अल्पकालीन ( 1 वर्ष से कम) तथा कुछ दीर्घकालीन होते हैं। वित्तीय बाजार में व्यवहार की जानीवाली प्रतिभूति की भुगतान अवधि के आधार पर इसे दो भागों में विभक्त किया जाता है-

मुद्रा बाजार

  • मुद्रा बाजार वह बाजार है जिसमें अल्पकालीन प्रतिभूति व्यवहार ( खरीद-बिक्री) किया जाता है इस अल्पकालीन प्रतिभूति की भुगतान अवधि 1 वर्ष तक का होता है जिस कारण इसे निकट मुद्रा (Near Money) भी कहते हैं।
  • मुद्रा बाजार की प्रमुख विशेषताएँ-
    1. मुद्रा बाजार में तरलता काफी अधिक होती है। इस बाजार में तरलता बनाये रखने हेतु Discount Finance House of India (DFHI) की स्थापना की गई है।
    2. मुद्रा बाजार में होने वाले व्यवहारों के लिए दलाल की आवश्यकता नहीं होती है जिससे इस बाजार में क्रय-विक्रय पर कम खर्च होता है। 
    3. इस बाजार में व्यवहार की जाने वाली समस्त प्रतिभूति की भुगतान अवधि अधिकतम 1 वर्ष होता है।
    4. मुद्रा बाजार में किए जाने वाले व्यवहार बहुत तेज गति से होता है। अधिकांश व्यवहार तो टेलीफोन पर ही होता है जबकि कागजी कार्यवाही बाद में होती रहती है।
  • मुद्रा बाजार की प्रमुख प्रतिभूति-
  1. खजाना बिल (Treasury Bill)
    • यह प्रतिभूति सरकार अपनी अल्पकालीन आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु वित्तीय संस्थान अथवा जनता को जारी करती है।
    • इस प्रतिभूति को RBI सरकार की ओर से जारी करती है। इनकी अवधि प्राय: 14 दिन, 91 दिन, 182 दिन और 364 दिन की होती है जिसको प्रायः व्यापारिक बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनी (LIC, GIC, UTI) खरीदते हैं।
    • खजाना बिल पर RBI कोई ब्याज नहीं देता है। इसे RBI सदा कटौती पर खरीदने के लिए तैयार रहता है। खजाना बिल खरीदने के न्यूनतम राशि ₹25,000 है और इसे 25m के गुणक (Multiple) में खरीदा जा सकता है।
    • कटौती (Discount )- खजाना बिल को RBI हमेशा अंकित मूल्य से कम पर बेचता है जबकि अवधि पूर्ण होने . पर RBI इसका भुगतान अंकित मूल्य के बराबर करता हैं। इस दोनों मूल्य के अंतर को कटौती कहते हैं।
    • जीरो कूपर बॉण्ड (Zero Coupon Bond)- ऐसी प्रतिभूति जिसपर निश्चित दर से कोई ब्याज नहीं दिया जाता है जीरो कूपर ब बॉण्ड कहलाता है। खजाना बिल जीरो कूपन बॉण्ड के उदाहरण हैं।
  2. कॉमर्सियल पेपर (Commercial Paper-CP)
    • इस प्रतिभूति को अच्छी साख वाली कम्पनी अल्पकालीन, मौसमी तथा कार्यशील पूंजी की आवश्यकता को पूरा करने हेतु जारी करती है।
    • CP 15 दिन से 12 महीने तक के लिए जारी किए जाते हैं तथा यह कटौती पर ही जारी किया जाता है परन्तु कभी-कभी इसे निश्चित ब्याज दर भी जारी किया जाता है।
    • इस प्रतिभूति को सामान्यतः बैंक, बीमा कम्पनी, या अन्य कोई फर्म खरीदती है। एक CP का मूल्य कम-से-कम ₹5 लाख होता है।
  3. अल्पसूचना ऋण (Call Money or Call Loans )
    • इस प्रकार के ऋण (प्रतिभूति) का व्यवहार प्राय: दोनों पक्ष (ऋणदाता एवं ऋणी) फोन पर ही कर लेते है तथा कागजी कार्यवाही बाद में की जाती है इस लिए इसे कॉलमनी कहा जाता है।
    • यह ऋण या प्रतिभूति मुद्रा बाजार में सार्वजनिक तरल प्रकृति के होते है क्योंकित इसकी भुगतान अवधि 1 दिन से लेकर 15 दिन तक होती है।
    • यह ऋण का प्रयोग प्रायः बैंक ही निम्न दो कारणों से करते है-
      1. वैधानिक तरलता अनुपात ( SLR ) को नियंत्रण करने हेतु
      2. आवश्यकता से अधिक नगदी को अल्पकाल में निवेश करने हेतु
    • कॉल मनी की न्यूनतम राशि ₹10 करोड़ होती है परन्तु अधिकांश लेन-देन ₹100 करोड़ के ही होते हैं।
  4. जमा प्रमाण पत्र (Certificate of Deposite or CD)
    • इस प्रतिभूति को भारतीय व्यापारिक बैंक, भारतीय वित्तीय संस्था (IDBI, IFCI, ICICI, SIDBI, EAXIM Bank) जारी करता है जिसके खरीददार व्यक्ति, संघ, कम्पनी या कोई निगम हो सकता है।
    • CD का अंकित मूल्य कम-से-कम 5 लाख होता है। एक निवेश को न्यूनतम ₹25 लाख का CD लेना आवश्यक होता है। इसे कटौती पर ही जारी किया जाता है ।
    • CD 91 दिन से 1 वर्ष के लिए जारी किए जाते तथा निवेशक क्रय करने के 45 दिन बाद अन्य व्यक्ति को यह प्रतिभूति हस्तांरित ( बेच) कर सकता है।
  5. वाणिज्यिक बिल ( Commerical Bill )
    • इस प्रतिभूति की आवश्यकता उधार बिक्री के लिए वित्त व्यवस्था करने हेतु पड़ती है।
    • इस बिल को विक्रेता द्वारा लिखा जाता है तथा क्रेता द्वारा स्वीकार किया जाता है तथा क्रेता देय तिथि को भुगतान कर देता है।
    • अगर विक्रेता को देय तिथि से पहले धन की जरूरत होती है तो वह इस बिल को बैंक से भुना सकता है।
    • इस प्रतिभूति की अधिकतम अवधि 90 दिन होती है।

पूंजी बाजार (Capital Market)

  • पूंजी बाजार ऐसे बाजार होते हैं जिसमें दीर्घकालीन (1 वर्ष से अधिक) प्रतिभूति का व्यवहार होता है। इस बाजार की प्रमुख प्रतिभूति अंश (Shares) तथा ऋणपत्र ( Debentures) है।
  • पूंजी बाजार व्यावसायिक स्वामित्व में भिन्नता पैदा करते हैं। इस बाजार में लोग कम्पनी के शेयर खरीदते हैं जिसके फलस्वरूप कम्पनी का स्वामित्व अनेक लोगों के पास हस्तारित हो जाते हैं।
  • पूंजी बाजार के दो भाग होते हैं- 
    i. प्राथमिक बाजार (Primary Market) 
    ii. गौण बाजार ( Secondary Market)
  • प्राथमिक बाजार
    • प्राथमिक बाजार किसी स्थान विशेष का नाम नहीं है बल्कि कम्पनी जब अपना शेयर या ऋणपत्र पहली बार जनता को बेचती हैं तो इसी प्रक्रिया को प्राथमिक बाजार कहते हैं।
    • प्राथिमक बाजार वह बाजार है जहाँ पूँजी की तलाश में कम्पनी पहली बार पब्लिक के सम्पर्क में आती है।
    • इस बाजार के माध्यम से नई स्थापित एवं पुरानी दोनों प्रकार की कम्पनी पूंजी एकत्र करती है। जब नयी कम्पनी पहली बार प्राथमिक बाजार में अपना शेयर जारी करती है तो इसे आई.पी.ओ. (Initial Public Offer) कहते हैं। पुरानी कम्पनी जब कोई नया शेयर प्राथमिक बाजार में जारी करती है तो इसे एफ.पी.ओ. (FPO) कहते हैं।
    • मुद्रा बाजार में कोई कम्पनी निम्न तरीके से पूंजी एकत्रित करती हैं-
      1. पब्लिक निर्गमन (Public Issue ) - इस विधि में कम्पनी विवरण पत्र (Prospectus ) जारी कर जनता को शेयर या ऋणपत्र खरीदने हेतु आमंत्रित करती है। यह विधि का प्रयोग वह कम्पनी करती है जिसकी लिस्टिंग नहीं हुई है जो बिल्कुल नयी है। यह कम्पनी विवरण पत्र द्वारा कम्पनी का अधिकृत पूंजी, कम्पनी का उद्देश्य, कम्पनी के चाटर्ड एकाउन्टेंट, कम्पनी के फाउण्डर डाइरेक्टर के बारे में जनता को बताती है।
      2. बिक्री का प्रस्ताव (Offer for sale )- इस विधि में कम्पनी अपनी प्रतिभूति (शेयर या ऋण पत्र ) को पहले एक निश्चित मूल्य पर किसी मध्यस्थ ( दलाल या बैंक) को बेच देती है, पुनः यह मध्यस्थ ऊँचे मूल्य पर प्रतिभूति को जनता को बेचता है।
      3. निजी प्लेसमेंट (Private Placement )- इस विधि में कम्पनी प्रतिभूति को जनता को बेचने के स्थान पर बड़ी वित्तीय संस्था या दलाल को बेच देती है । पुनः ये वित्तीय संस्था या दलाल इस प्रतिभूति को अपने विशेष ग्राहक को ऊँचे मूल्य पर बेचती है।
        • कम्पनी Public Issue के तुलना में Private Placement को प्राथमिक देती है क्योंकि यह सस्ती विधि है।
      4. स्वत्व निर्गमन (Right Issue ) - इस विधि का प्रयोग वह कम्पनी करती है जो पहले भी शेयर बेच चुका है। 
        • पुरानी कम्पनी जब नया शेयर जारी करती है तो शेयर बेचने के लिए पहले कम्पनी को अपने पुराने शेयरधारक को आमंत्रित करना जरूरी होता है। पुराने शेयर धारक को यह अधिकार होता है कि वह कम्पनी के सारे नये शेयर खरीद ले, या कुछ ही खरीदे या सभी शेयर किसी दूसरे पक्ष को हस्तांतरित कर दें।
      5. Electronic Initial Public Offer e : IPO - कम्पनी जब इंटरनेट के माध्यम से अपनी प्रतिभूति बेचती है तो इसे e : IPO कहते हैं। इस विधि द्वारा शेयर बेचने के लिए SEBI द्वारा बनाये गये नियम का पालन करना होता है। 
  • शेयर दो प्रकार के होते हैं-
    1. समता या इक्विटी शेयर (Equity Shares ) - ये वो शेयर हैं है जिनके धारक, कम्पनी के स्वामित्वधारी होते हैं तथा इन्हें कम्पनी के प्रबन्ध में हिस्सेदारी दी जाती है, इन्हें वोटिंग का अधिकार प्राप्त होता है।
    2. वरीयता प्राप्त शेयर (Preference Shares ) - इस शेयर धारक को वोटिंग प्राप्त नहीं होता है, परन्तु इन्हें लाभांश (Divident) प्राप्त करने में वरीयता प्राप्त होती है, चाहे कम्पनी को लाभ हो या हानि । 

गौण बाजार (Secondary Market)

  • जब प्रतिभूति (शेयर अथवा ऋणं पत्र) पहली बार बेची जाती है तो वह प्राथमिक बाजार की क्रिया कहलाती है । प्राथिमक बाजार में बिक चुके प्रतिभूति जब पुनः बेचा जाता है तो यह गौण बाजार की क्रिया कहलाती है। गौण बाजार की सभी क्रिया शेयर बाजार (Stock Exchange) के माध्यम से होता है।
  • गौण बाजार में वे कम्पनी भाग नहीं लेती है जो शेयर अथवा ऋण पत्र के प्राइमरी धारक (प्राथमिक बाजार के खरीददार) है।
  • कम्पनी अपने लिए फण्ड की उगाही प्राथमिक बाजार करते हैं, गौण बाजार में नहीं। गौण बाजार कम्पनी के प्रतिभूति में तरलता बनाये रखता है। जिससे कम्पनी के विनिमेय क्षमता (Marketability) बनती है।
  • गौण बाजार में प्रतिभूति के व्यहार से कम्पनी को न तो कोई लाभ होता है न कोई हानि । लाभ और हानि कम्पनी के प्राइमरी धारक को होता है।
  • गौण बाजार में शेयर की खरीद-बिक्री तब तक होती रहती है जब तक शेयर जारी करने वाले कम्पनी बन्द नहीं हो जाती है। प्राथमिक बाजार में जारी किए गये ऋण- पत्र गौण बाजार में अपनी परिपक्वता अवधि (Maturity Period) तक ही बने रहते हैं।

शेयर बाजार (Stock Exchange)

  • शेयर बाजार एक संगठित बाजार है जहाँ कम्पनियों, सरकार व अर्द्ध सरकारी संस्थानों द्वारा जारी प्रतिभूति का क्रय विक्रय होता है।
  • प्रत्येक शेयर बाजार की एक प्रबन्ध समिति होती है। शेयर बाजार के सभी व्यवहार प्रबन्ध समिति के नियंत्रण में होते हैं। प्रबन्ध समति ही कम्पनियों को शेयर बाजार में सूचीबद्ध ( Listing) करते हैं। बिना कम्पनी को सूचीबद्ध कराये, उस कम्पनी के शेयर को नहीं बेचा जा सकता है।
  • शेयर बाजार का सबसे बड़ा फायदा यह है, निवेशक जब चाहे प्रतिभूति में निवेश कर सकते हैं और जब जाहे निवेश को धन में बदल सकत हैं।
  • शेयर बाजार में सरकारी प्रतिभूति का व्यवहार (खरीद-बिक्री) सब्सिडियरी जेनरल लेजर (SGL) के माध्यम से होता था परन्तु 1994 से इन प्रतिभूति में व्यवहार थोक ऋण बाजार के माध्यम से होता है।
  • जब कोई निवेशक प्रतिभूतियों का क्रय उनके बाजार मूल्य में परिवर्तन से लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से करते हैं तो इसे सट्टा कहा जाता है। शेयर बाजार में नियमों के अधीन सट्टा भी लगाने की सुविधा उपलब्ध कराता है।
  • वर्तमान में भारत में 24 शेयर बाजार हैं जिसमें कोयम्बटूर शेयर बाजार निकासी चाहता है, इसका मामला वर्तमान में न्यायालय के अधीन है-

बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज (Bombay Stock Exchange)

  • BSE भारत का ही नहीं एशिया का सबसे पुराना शेयर बाज़ार है जिसकी स्थापना 1875 में हुई थी, स्वतंत्रता के बाद सरकार ने 1956 में इसे शेयर बाजार की मान्यता दिया ।
  • BSE के सूचकांक (INDEX) को BSE Sensitive Index या SENSEX कहते हैं। यह सूचकांक 30 अग्रनी कम्पनी के शेयर पर आधारित है जिसकी शुरूआत 1986 में हुआ था।
  • शेयर बाजार का सूचकांक शेयर बाजार के रूझान को प्रदर्शित करता है। यदि सूचकांक बढ़ रहा है तो इसका अर्थ है, निवेशक यह मान रहे अर्थव्यवस्था की स्थिति अच्छी है और कम्पनियां भविष्य में लाभ अर्जित करेगा।
  • BSE में शेयर खरदी-बिक्री हेतु ऑन-लाईन ट्रेडिंग की भी व्यवस्था है।

National Stock Exchange (NSE)

  • BSE में केवल बड़े-बड़े कम्पनी का ही शेयर बिकते थे अतः शेरवानी कमेटी के सिफारिश पर NSE की स्थापना नवम्बर 1992 में एक Public Limited कम्पनी के रूप में किया गया।
  • NSE में ट्रेडिंग हेतु कोई विशेष स्थान नहीं है, यह शेयर बाजार पूरे देश के प्रमुख शहरों में अपनी टर्मिनल स्थापित किए हैं। निवेशक . किसी भी टर्मिनल पर जाकर पूर्णतः कम्प्यूटरीकृत माध्यम से शेयर खरीद-बेच सकते हैं। किसी एक शेयर का मूल्य NSE के सभी टर्मिनल पर समान होते हैं।
  • NSE के सूचकांक को NIFTY कहते हैं जो NSE में सूचीबद्ध 50 बड़ी कम्पनी के शेयर पर आधारित हैं।
  • NSE के प्रवर्तक निम्न हैं-
    1. IDBI
    2. IFCI
    3. ICICI
    4. LIC
    5. GIC
    6. The SBI Capital Market Limitd
    7. The Stock Holding Corporation of India Limited
    8. The Infrastructure Leasing and Financial Limited

Over The Counte Exchange of India (OTCEI)

  • छोटे कम्पनी में भी निवेशक निवेश कर सके इस हेतु OTCEI की स्थापना भारतीय कम्पनी अधिनियम 1956 की धारा 25 के अंतर्गत अक्टूबर 1990 में की गई।
  • OTCEI पर मध्यम एवं छोटी आकार की कम्पनी जिनकी प्रदत्त पूंजी 30 लाख से 20 करोड़ रुपये है, वे ही सूचीबद्ध हो सकती हैं।
  • OTCEI पर भी प्रतिभूति के सौदे करने के लिए कोई विशेष स्थान नहीं है। इस एक्सचेंज के काउंटर/ कार्यालय पूरे देश के प्रमुख शहरों में खुले हैं। शेयर खरीद-बिक्री हेतु कोई भी व्यक्ति काउंटर पर जाकर काउंटर ऑपरेटर के माध्यम से सौदा कर सकता है।
  • OTCEI के प्रवर्तक निम्न हैं-
    1. UTI
    2. ICICI
    3. IDBI
    4. IFCI
    5. IFCI
    6. LIC 
    7. GIC
    8. SBI Capital Market Ltd.
    9. Canbank Financial Service Ltd. 
  • शेयर बाजार पर ट्रेडिंग निम्न 5 चरणों में पूरा होता है- 
    1. शेयर बाजार में शेयर की खरीद-बिक्री करने के लिए सर्वप्रथम, दलाल (Broker) का चयन करना पड़ता है। दलाल का संबी में पंजीकृत होना अनिवार्य है।
      • दलाल एक व्यक्ति, साझेदारी फर्म, बैंक अथवा कंपनी हो सकता है।
    2. शेयर की खरीद-बिक्री हेतु डिमेट खाता (Demate Account) खोलना अनिवार्य है। इसी डिमेट खाता में इलेक्ट्रॉनिक रूप से शेयर रखा जाता है या निकाला जाता है।
      • इस समय भारत में दो डिपॉजटरी संस्थान (Depository Institution) हैं जो डीमेंट खाता खोलती है।
        1. National Securities Depository Limited (NSDL)
        2. Central Depository Services Limited (CDSL)
      • निवेशक डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट के माध्यम से इन डिपॉजिटरी संस्थान के संपर्क में आते हैं। डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट SEBI के अनुसार, दलाल, बैंक या अन्य संस्था हो सकता है।
    3. आदेश देना (Placing an order )- डीमेट खाता खुलते हैं निवेशक दलाल को प्रतिभूति खरीद/बिक्री हेतु आदेश दे सकता है। यह आदेश व्यक्तिगत रूप से, मोबाइल/लैंडलाइन अथवा ई-मेल पर दी जा सकती है।
      • आदेश देते समय निवेशक दलाल को क्रय विक्रय की जानेवाली शेयर की जानकारी देता है और यह भी बता देता है सौदा किस मूल्य तक क़रना है।
    4. आदेश को पूरा करने के बाद दलाल एक Contract Note तैयार करता है और हस्ताक्षरित करके निवेशक को दे देता है। निवेशक इस Contract Note को अपने पास Proof of Transaction के रूप में रखता है।
      • Contracte note क्रय विक्रय की जाने वाले शेयर के नाम, उनकी संख्या उनका मूल्य तथा दलाली (Brokerage) लिखी रहती है।
    5. निबटारा (Settlement)- शेयर बाजार में शेयर की खरीद/बिक्री का यह अंतिम चरण है। निबटारा का अर्थ है शेयर का विक्रेता के डीमेट खाते से क्रेता क डीमेट खाते में चला जाना । निबटारा दो प्रकार से होता है-
      1. T+2 निबटारा- इसका अर्थ है, प्रतिभूति में व्यवहार (शेयर खरीद / बिक्री) सोमवार को हुआ है तो वह बुधवार को निपट जाएगा।
      2. अग्रिम निबटारा या T + 5 or T - 7 निबटारा।
    • शेयर बाजार में सभी प्रकार के शेयर की खरीद बिक्री सोमवार से शुक्रवार सुबह 9:55 बजे से 3:30pm तक होता है । 
  • यदि शेयर बाजार में प्रतिभूति में व्यवहार निर्धारित समय ( 9:55 am to 3:30 pm) के पूर्व या पश्चात् किया जाता है तो इसे कर्ब ट्रेडिंग (Kerb Trading) कहते हैं।

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड Securities and Exchange Board of India (SEBI)

  • निवेशकों को हितों की रक्षा करने के लिए शेयर बाजार को नियंत्रण किया जाना अति आवश्यक है। शेयर बाजार पर नियंत्रण स्थापित करने हेतु पूंजी निर्गमन अधिनियम 1947 पारित कर इसे लागू किया गया। लेकिन यह अधिनियम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल रहा ।
  • शेयर बाजार पर नियंत्रण स्थापित करने हेतु 1992 में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) की स्थापना की गई। सरकार द्वारा सेवी की स्थापना के मुख्य उद्देश्य निम्न थे-
    1. शेयर बाजार पर नियंत्रित स्थापित कर, वहाँ पर व्यवहार करने वाले सभी पक्षकार को कुशल सेवा उपलब्ध कराना ।
    2. सेबी का प्रथम उद्देश्य है निवेशकों की सुरक्षा प्रदान करना क्योंकि निवेशकों के अभाव में शेयर बाजार का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा।
    3. आंतरिक ट्रेडिंग को रोकना और करने वाले को दंडित करना ।
      • आंतरिक ट्रेडिंग (Insider Trading )- कम्पनियों के संबंध में गुप्त जानकारी रखने दलाल सट्टेबाजी के दौरान प्रतिभूति खरीद/बिक्री करता है, तो वह हमेशा लाभ की स्थिति में ही रहता है जिससे आम निवेशकों के हितों को ठेस पहुँचाती है। इसे इनसाइडर ट्रेडिंग कहते हैं । 
    4. दलालों पर नियंत्रण रखना ।
  • SEBI के कार्य-
    1. शेयर बाजार से संबंधित अनुचित व्यवहार ( गलत तरीके से खरीद / बिक्री) को रोकना तथा आचार-संहिता (Code of Conduct) लागू करना।
    2. दलाल, उप-दलाल, एजेण्ट का रजिस्ट्रेशन करना |
    3. निवेशकों को खरीद/बिक्री करने हेतु सूचनाएँ उपलब्ध करवाना तथा प्रतिभूति में व्यवहार संबंधी शिक्षा प्रदान करना ।
    4. शेयर बाजार का अंकेक्षण (Audit) करना ।
    5. क्रेडिट रेटिंग एजेंसी का रजिस्ट्रेशन एवं संचालन करना ।

क्रेडिट रेटिंग

  • क्रेडिट रेटिंग ऋणी या उधार लेने वाले की साख क्षमता या उधार लौटाने की क्षमता का निर्धारण करते हैं।
  • क्रेडिट रेटिंग का मुख्य कार्य यह है उधार देने वाले को उधार लेने वाले की भुगतान क्षमता का मूल्यांकन कर प्रस्तुत करना ताकि उधार देने वाले यह जान सके उसका मूलधन तथा ब्याज की अदायगी की संभावना कितनी है।
  • क्रेडिट रेटिंग वित्तीय बाजार को विकसित होने क्रेडिट रेटिंग के विभिन्न श्रेणी- सहायक है। क्रेडिट रेटिंग की अवधारणा की शुरूआत 1909 में अमेरिका में हुई ।
  • क्रेडिट रेटिंग के विभिन्न श्रेणी-
    AAA- यह रेटिंग प्रदर्शित करता है कि मूलधन और ब्याज अदायगी करने में कम्पनी पूरी तरह से सुदृढ़ है कोई भी प्रतिकूल परिवर्तन इसे प्रभावित नहीं करेगी।
    AA- यह AAA के तुलना में थोड़ा खराब है।
    A- AA के तुलना में खराब। यह रेटिंग प्रदर्शित करता है कि अर्थव्यवस्था के प्रतिकूल परिस्थिति में कम्पनी प्रभावित हो सकती है।
    BBB- यह रेटिंग का अर्थ है निवेश भुगतान की दृष्टि से सामान्य रूप से सुरक्षित है।
    C- पर्याप्त जोखिम भरा ।
  • भारत प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेन्सी-
    1. CRISIL (क्रेडिट इनफार्मेशन सर्विसेज ऑफ इण्डिया लि.)
    2. ICRA (इनवेस्टमेंट इनफार्मेशन एण्ड क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ऑफ इण्डिया लि. )
    3. CARE (क्रेडिट एनालिसिस एण्ड रिसर्च लि.)
    4. FRIPL (फिच रेटिंग इण्डिया प्राइवेट लि. )
    5. CIBII (क्रेडिट इनफार्मेशन ब्यूरो इण्डिया लि. )
    6. CRIS (Comparative Rating Index of Sovereigns) - इस रेटिंग की शुरूआत 31 जनवरी 2012 को वित्त मंत्रालय द्वारा किया गया है। यह स्वतंत्र देशों की क्रेडिट रेटिंग का तुलनात्मक आकलन प्रस्तुत करता है।
  • विश्व की तीन प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेन्सी-
    1. स्टैंडर्ड एण्ड पुउर्स
    2. मूडीज
    3. फिच (FITCH)

विश्व के प्रमुख स्टॉक मार्केट इन्डेक्स

  1. डीजोन्स : न्यूयॉर्क (USA) स्टॉक एक्सचेंज का सूचकांक है जो 30 कम्पनियों के शेयर पर आधारित है। यह व्यापक रूप से पूरे विश्व में देखे जाने वाला सूचकांक है।
  2. नसडाक (Nasdap) कम्पोजिट इन्डेक्स - यह USA के शेयर बाजार का सूचकांक है जिसकी शुरूआत 8 फरवरी 1971 को हुई ।
  3. SP500– इस इन्डेक्स में USA स्टॉक मार्केट की 500 बड़ी कम्पनी के शेयर शामिल हैं।
  4. FTSE100— यह लन्दन स्टॉक मार्केट का सूचकांक है जो यूरोपीयन मार्केट की गतिविधियों पर प्रकाश डालता है।
  5. निक्की- यह टोकियो स्टॉक एक्सचेंज का इन्डेक्स है।
  6. मिडडेक्स- फ्रैंकफर्ट (जर्मनी)
  7. हैग सेना- हांगकांग
  8. सिमेक्सव- स्टेट्स टाइम्स - सिंगांपुर
  9. KOSPI- दक्षिण कोरिया
  10. SET- थाइलैंड
  • बाजार पूंजीकरण की दृष्टि से विश्व के पाँच बड़े स्टॉक एक्सचेंज-
    1. न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज
    2. NASDAQ
    3. टोकियो स्टॉक एक्सचेंज
    4. लन्दन स्टॉक एक्सचेंज
    5. बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज

राष्ट्रीय बचत पत्र (NSC) (National Saving Certificates)

  • राष्ट्रीय बचत पत्र योजना डाक विभाग के माध्यम से चलता है। इस योजना के अन्तर्गत कोई भी व्यक्ति (निवेशक) एक निश्चित धनराशि 5 वर्षों के लिए किसी भी डाकघर में जमा कर सकता है। डाक विभाग 5 वर्ष बाद NSC में निवेशित धनराशि निवेशक को चक्रवृद्धि ब्याज रहित वापस कर देता है।
  • NSC में निवेश किए गए धन पर आयकर में छूट का प्रावधान है, इस कारण वेतन भोगी (जो आयकर के दायरे में आते हैं) इसकी ओर आकर्षित होते हैं और इसमें निवेश करते हैं।
  • NSC पूरे देश के सभी अधिकृत डाकघर व मुख्य डाकघर में उपलब्ध रहते हैं। NSC में निवेश की न्यूनतम सीमा ₹500 है और अधि कतम की कोई सीमा नहीं है। डाक विभाग NSC पर 8.5% वार्षिक दर से ब्याज का भुगतान करता है।
  • NSC में निवेशित राशि को 5 वर्ष से पहले नहीं निकाला जा सकता है। लेकिन निवेशक की मृत्यु होने पर अथवा न्यायपालिका के आदेश से 5 वर्ष पूर्व भी निवेशित राशि निकाला जा सकता है।
  • NSC में निवेशित राशि पर बैंक आसानी से लोन (ऋण) देने हेतु भी तैयार रहता है।

किसान विकास पत्र (KVP) (Kisan Vikas Patra)

  • KVP भारत सरकार की ऐसी योजना है जिसमें निवेशित धनराशि 8 वर्ष 7 महिना में दुगुणा हो जाता है।
  • इस योजना भारत सरकार के लघु बचत सचिवालय (Directorate of small saving) द्वारा चलायी जाती है, जिसका मुख्य उद्देश्य है किसानों की मदद करना।
  • किसान विकास पत्र का यह अर्थ नहीं की इसमें केवल किसान ही निवेश कर सकते हैं बल्कि इसका अर्थ यह है कि इस योजना से जो धन इकट्ठा होगा सरकार उसका प्रयोग किसानों के हित में ही करेगी। 
  • KVP में निवेश की न्यूनतम सीमा ₹100 है अधिकतम की कोई सीमा नहीं है। KVP में ट्रस्ट, कम्पनी, व्यावसायिक ईकाई, NRI निवेश नहीं कर सकते हैं।
  • KVP में निवेशित राशि समय से पहले भी निकाला जा सकता है। यह सुविधा निवेश के ढाई वर्ष बाद कटौती पर उपलब्ध होती है।
  • सकरार ने 01.12.2011 से इस योजना को बंद कर दिया है। 

सार्वजनिक भविष्य निधि (PPF) (Public Provident Fund).

  • PPF सरकार की एक ऐसी बचत योजना है जिसमें कोई भी व्यक्ति (सरकारी अथवा गैर-सरकारी नौकरी करने वाले या अन्य व्यक्ति ) निवेश कर सकता है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को वृद्धावस्था आय सुरक्षा प्रदान करना है।
  • PPF खाते डाकघरों द्वारा संचालित होते हैं जिसमें 15 वर्ष तक प्रतिवर्ष निश्चित धनराशि (न्यूनतम ₹1000 अधिकतम ₹100000 ) जमा करना पड़ता है। यह राशि एकमुश्त या किश्तों में जमा किया जाता है। इस खाते में जमा राशि पर 8.70% (संशोधित होता रहता हैं) वार्षिक दर से चक्रवृद्धि ब्याज दिया जाता है।
  • PPF खाते में से 15 वर्ष से पहले धन नहीं निकाला जा सकता है। लेकिन आकस्मिक समय में एक सीमा तक धन को निकाला जा सकता है परन्तु यह सुविधा सातवें वर्ष से प्राप्त होती है।
  • PPF खाते को एक डाकघर से दूसरे डाकघर में हस्तांतरित करवाया जा सकता है।

मासिक आय योजना (MIS) (Monthly Income Scheme)

  • यह योजना डाक विभाग के माध्यम से संचालित होता है। इस योजना के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति निश्चित धनराशि जमा करके निर्धारित अवधि तक प्रतिमाह ब्याज प्राप्त कर सकता है तथा जमा राशि की परिपक्वता (Maturity) पूर्ण होने पर मूलधन प्राप्त कर सकता है।
  • इस खाते की परिपक्वता अवधि 5 वर्ष है। यदि आज कोई व्यक्ति खाते में धनराशि जमा करता है तो 5 वर्ष तक प्रतिमाह ब्याज मिलते रहेगा और पाँच वर्ष बाद मूलधन वापस हो जाएगा। जिनका खाता 08.12.2008 से 30.11.2011 के बीच खुला है उसे परिपक्वता पूरा होने पर मूलधन का 5% बोनस भी प्राप्त होगा ।
  • MIS में संयुक्त (Joint) तथा एकल (Single) दोनों प्रकार के खाते खुलते हैं। एकल खाते में न्यूनतम ₹6000 अधिकतम ₹ 4,50.000 जमा किया जा सकता है। संयुक्त खाते में न्यूनतम ₹6000 तथा अधिकतम ₹9 लाख जमा किया जा सकता है।
  • MIS खाते को 1 वर्ष बाद कभी भी बंद किया जा सकता है। लेकिन इस पर कुछ कटौती देनी होती है।
  • MIS खाते को एक डाकघर से दूसरे डाकघर में हस्तांतरित करवाया जा सकता है।

बीमा (Insurance)

  • मानव जीवन व मानव की सम्पत्ति की क्षति से होने वाले हानि को कम अथवा समाप्त करने का एक ही माध्यम है, जिसे बीमा कहते हैं।
  • बीमा एक ऐसा अनुबंध (Contract) है जिसमें बीमा कम्पनी एक निश्चित शुल्क लेकर बीमाधारी (Insured ) का जोखिम का उत्तरदायित्व अपने ऊपर ले लेता है।
  • बीमा कम्पनी जोखिम वहन करने हेतु जो शुल्क लेती है उसे Premium कहते हैं तथा जितनी राशि की बीमा कराया जाता है उसे Sum Assured कहते हैं। वह contract list जिस पर बीमा समझौता की शर्तें लिखी जाती है उसे Policy कहते हैं।
  • बीमा के प्रकार (Types of Insurance) 
    • बीमा मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं जीवन बीमा (Life Insurance ) तथा सामान्य बीमा ( Genral Insurance)। लेकिन आज ऐसा कोई भी जोखिम नहीं है, जिसका बीमा न हो सके। वर्त्तमान समय कालाकार अपनी अंगुलियों का, गायिका अपने मधुर स्वर का, नर्तकी अपने पैरों का, अभिनेत्री अपने सौंदर्य का भी बीमा करा सकती है।
      1. जीवन बीमा (Life Insurance)
        • यह बीमा व्यवसाय सर्वाधिक प्रचलित है। इसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति अपने जीवन का बीमा करा सकता है ताकि व्यक्ति के जीवन की क्षति होने पर, उसके परिवार का जोखिम कम हो सके।
        • जीवन बीमा में सुरक्षा तथा विनियोग दोनों तत्व निहित होते हैं। यदि पॉलिसी की अवधि समाप्त होने से पहले ही बीमाधारी की मृत्यु हो जाये तो बीमित राशि बोनस रहित परिवार को मिल जाती है, यह सुरक्षा तत्व है और इस अवधि में मृत्यु न हो तो बीमाधारी को ही बीमित राशि बोनस रहित प्राप्त हो जाती है, यह विनियोग तत्व है।
      2. सामान्य बीमा (General Insurance)- जीवन बीमा के अतिरिक्त अन्य सभी बीमा सामान्य बीमा के अंतर्गत आते हैं। सामान्य बीमा निम्न प्रकार के हो सकते हैं-
        1. स्वास्थ्य बीमा (Health Insurance)- अगर कोई व्यक्ति बिमार पड़ जाये और बिमारी के इलाज पर उसे खर्च करना पड़े तो बीमा कम्पनी से मुक्ति दिला सकता है। यह सुविधा प्राप्त करने हेतु स्वास्थ्य बीमा करवाना पड़ता है।
          • स्वास्थ्य बीमा 'के अंतर्गत बीमा कम्पनी व्यक्ति को प्रीमियम के बदले, किसी विशेष बिमारी में होने वाले खर्चे को, विशेष सीमा तक पूरा करने का वचन देती है ।
        2. मोटर बीमा (Motor Insurance)-
          • यह बीमा वाहन मालिक को अपने वाहन की क्षति के प्रति सुरक्षा देता है तथा वाहन को चलाने से तृतीय पक्ष को हुए नुकसान / क्षति का जोखिम वहन करता है ।
          • मोटर बीमा कराना अनिवार्य होता है क्योंकि तीसरे पक्ष को हुए नुकसान / क्षति के लिए वाहन का मालिक कानूनन जवाबदेह होता है।
      3. अग्नि बीमा (Fire Insurance ) - इसके अंतर्गत बीमा कम्पनी बीमाधारी को निश्चित प्रीमियम बदले यह अश्वासन देती है कि यदि उसकी संपत्ति को अग्नि से क्षति होती है तो वह बीमे के राशि तक क्षति को पूरा करेगी।
      4. चोरी बीमा (Theft Insurance ) - यह बीमा बीमाधारी को संपत्ति की चोरी से होने वाली क्षति से सुरक्षा प्रदान करता है । बीमा कम्पनी बीमित राशि तक संपत्ति की चोरी से होने वाली क्षति को पूरा करने का वचन देती है ।
        • यह बीमा अनुबंध प्राय: एक वर्ष के अवधि के लिए होता है ।
      5. सामुद्रीक बीमा (Marine Insurance ) - विदेशी व्यापार समुद्र मार्ग से किया जाता है। समुद्र के अंदर, जहाज और माल दोनों असुरक्षित होते हैं। जहाज और माल अथवा कर्मचारी को हुए हानि से समुद्रीक बीमा सुरक्षा प्रदान करता है।
      6. विश्वस्तता बीमा (Fidelity Insurance )- यह बीमा अनुबंध बीमा कम्पनी एवं किसी नियोक्ता (Employer) के मध्य होता है। इसके अंतर्गत बीमा कम्पनी नियोक्ता को उसके कर्मचारी के द्वारा किए जाने वाले कपट, बेईमानी तथा गबन से होने वाले क्षतिपूर्ति की गारंटी देता है।
        • जिस कर्मचारी अथवा कर्मचारी के लिए यह बीमा करवाया जाता है उसकी सेवा शर्तों में परिवर्तन बीमा कम्पनी के विचार-विमर्श किए बिना नहीं किया जा सकता है।
    • सामान्य बीमा में केवल सुरक्षा तत्व ही विद्यमान होते हैं। बीमा कम्पनी केवल वास्तविक हानि का क्षतिपूर्ति करता है, इनसे किसी प्रकार का लाभ नहीं कमाया जा सकता है।

इंश्योरेंस एवं एश्योरेंस में अंतर (Difference between Insurance and Assurance)

  • Assurance - एश्योरेंस शब्द का प्रयोग जीवन बीमा के लिए किया जाता है। जीवन बीमा शब्द का अर्थ है कि बीमाधारी को बीमा कम्पनी से भुगतान अवश्य मिलेगा । अर्थात् एक निश्चित अवधि में बीमाधारी की मृत्यु होने पर भी और उस अवधि तक उसके जीवित रहने पर भी । LIC का प्रसिद्ध टैग लाइन "जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी " इसी Assurance शब्द की पुष्टि करता है।
    • एक व्यक्ति अपने जीवन पर दो या अधिक पॉलिसी ले सकता है। निश्चित समय बाद उसकी मृत्यु होने पर उसके उत्तराधिकारी अथवा निश्चित समय बाद स्वयं उसे प्रत्येक पॉलिसी से राशि प्राप्त करने का अधिकार होता है।
  • Insurance इस शब्द का प्रयोग सामान्य बीमा ( अग्नि बीमा, स्वास्थ्य बीमा आदि) के लिए किया जाता है। यहां इस शब्द का अर्थ है कि बीमाधारी को बीमा कम्पनी केवल क्षति के दशा में ही भुगतान करेगा अगर क्षति नहीं होती है तो बीमा कम्पनी कोई भुगतान नहीं करेगा।
    • कोई व्यक्ति अपने संपत्ति एक से अधिक बीमा कम्पनी से बीमा करवाता है तो इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि क्षति होने पर सभी कम्पनी हानि को अलग-अलग पूरा करेगी बल्कि क्षति का भुगतान सभी कम्पनी मिलकर एक निश्चित अनुपात में करेगा ।
    • संपत्ति के होने वाले क्षति का बीमा करा लेने से संपत्ति के प्रति व्यक्ति का कर्त्तव्य कम नहीं होता है। एक व्यक्ति अगर गोदाम की बीमा करा लिया है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि गोदाम आग लग जाने पर व्यक्ति खड़ा खड़ा तमाशा देखता रहेगा और सोचेगा की गोदाम का बिमा तो करवाया हुआ है। बीमा कम्पनी सबसे पहले देखेगा कि व्यक्ति आग बुझाने का सभी संभावित प्रयास किया है कि नहीं अगर ऐसा नहीं हुआ तो बीमा कम्पनी क्षति के भुगतान से मनाकर सकता है।

भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (Insurance Regulatory and Development Authority of India or IRDAI)

  • IRDA की स्थापना मल्होत्रा समिति के सिफारिशों के आधार पर वर्ष 2000 में हुई। भारत सरकार द्वारा पारित अधिनियम के तहत् IRDA की स्थापना हुई है। IRDA का मुख्यालय हैदराबाद में है ।
  • IRDA की स्थापना एक सवायत्त संस्था के रूप में किया गया है, इसके लिए 1 अध्यक्ष 5 पूर्णकालीन सदस्य तथा 4 अंशकालिक सदस्य की व्यवस्था की गई है। इन सभी की नियुक्ति भारत सरकार द्वारा किया जाता है।
  • IRDA के प्रमुख कार्य-
    1. बीमा कंपनियों का पंजीयन करना तथा उस पर नियंत्रण बनाये रखना ।
    2. पॉलिसी धारक के हितों की रक्षा करना ।
    3. प्रीमियम का दरें तथा शर्तों पर निगरानी रखना ।
    4. बीमा के क्षेत्र में व्यावसायिक संगठनों का बढ़ावा देना ।
    5. बीमा कम्पनी की वित्तीय स्थिति तथा उसके द्वारा किये जाने वाले निवेश का मापदंड तैयार करना ।

भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) (Life Insurance Corporation of India)

  • 19 जनवरी 1956 को भारत में कार्य कर रहे लगभग 245 भारतीय एवं विदेशी बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया । 1 सितबंर 1956 को सभी राष्ट्रीयकृत बीमा कंपनियों को मिलाकर " भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) " की स्थापना किया गया तथा 1956 में बीमा क्षेत्र में निजी कम्पनियों के खुलने पर रोक लगा दिया गया।
  • 1956 में बीमा कम्पनी का राष्ट्रीयकरण करने के दो मुख्य उद्देश्य थे-
    1. बेहतर जिंदगी जिने हेतु लोगों के बीच बीमा का प्रचार-प्रसार करना ।
    2. प्रीमियम के माध्यम से इकट्ठा हुए पूंजी का उपयोग राष्ट्र निमाण हेतु किया जा सके।
  • 1993 में गठित मल्होत्रा समिति के सिफारिश पर बीमा क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भारतीय एवं विदेशी कंपनियों के खुलने पर लगी रोक को हटा दिया गया है।

साधारण बीमा निगम (GIC) (General Insurance Corporation)

  • भारत सरकार ने अधिनियम पारित कर साधारण बीमा क्षेत्र में कार्य कर रहे लगभग 107 भारतीय एवं विदेशी बीमा कम्पनी का 1972 में राष्ट्रीयकरण कर दिया।
  • इन सभी राष्ट्रीयकृत कम्पनी को मिलाकर कंपनी अधिनियम 1956 के तहत 22 नवंबर 1972 को 'भारतीय साधारण बिमा निगम' (GIC) की स्थापना की।
  • 1 जनवरी 1973 को GIC अपने चार धारक कम्पनी के साथ कार्य करना शुरू किया । GIC के चार धारक कम्पनी-
    1. नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
    2. दि न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
    3. दि ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
    4. यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
  • वर्तमान समय GIC में दो परिवर्तन आ गये हैं-
    1. नवंबर 2000 में GIC को भारतीय पुन बीमाकर्ता के रूप में अधिसूचित कर दिया गया है। GIC का नया नाम GIC Re. कर दिया गया है।
    2. मार्च 2000 में GIC के चारों धारक कम्पनी को स्वतंत्र कर दिया गया। अब ये चारों कम्पनियाँ सीधे भारत सरकार के स्वामित्व के अधीन आ गये हैं।

एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कम्पनी (AIC) (Agriculture Insurance Company of India Limited)

  • कृषि बीमा को बढ़ावा देने हेतु AIC की स्थापना 20 दिसंबर 2002 को कंपनी अधिनियम 1956 के तहत किया गया।
  • यह 1 अप्रैल 2003 को कार्य करना शुरू किया।
  • 1999 में प्रारंभ की गई " राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना" तथा जनवरी 2016 में प्रारंभ की गई " प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना" का संचालन AIC के द्वारा ही किया जा रहा है।

पुनर्बीमा एवं दोहरा बीमा (Re. Insurance and Double Insurance )

  • पुनर्बीमा जब एक बीमा कम्पनी किसी दूसरी बीमा कम्पनी को अपना जोखिम हस्तांतरित करने के उद्देश्य से बीमा करवाती है तो इसे पुनर्बीमा कहते हैं। यह बीमा अनुबंध दो कम्पनियों के बीच होता है । पुनर्बीमा से मूल बीमाधारी की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आता । उसका संबंध तो केवल उसी कम्पनी से रहता है जिसका बीमा पत्र उसके पास है।
  • दोहरा बीमा (Double Insurance ) - जब एक ही संपत्ति अथवा व्यक्ति अपने जीवन का दो बार बीमा करवाता है तो उसे दोहरा बीमा कहते हैं। जीवन को दो बीमा करवाने से व्यक्ति लाभ प्राप्त कर सकता है परंतु संपत्ति का दोहरा बीमा करवाने से कोई लाभ प्राप्त नहीं होता है।

बीमा कानून (संशोधन) अधिनियम 2015

  • अधिनियम के प्रमुख प्रावधान-
    1. इस अधिनियम के तहत् बीमा अधिनियम 1938, साधारण बिमा अधिनियम 1972, तथा IRDA अधिनियम 1999 में व्यापक संशोधन किए गए है। 
    2. बिमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सीमा 26% से बढ़ाकर 49% कर दिया गया है।
    3. जीवन बिमा परिषद् तथा साधारण बिमा परिषद की स्थापना की गई है।
    4. IRDA से बिना पंजीकरण कराये पॉलिसी बेचने पर 10 वर्षों तक कारावास ।
    5. नियमों का उल्लंघन करने पर बीमा ऐंजटों या बीमा कम्पनी पर ₹1 करोड़ से ₹25 करोड़ तक जुर्माना का प्रावधान किया गया है।
    6. पॉलिसी धारक के हित में उस अवधि को 3 वर्ष तक सीमित कर दिया जाएगा जिसमें पॉलिसी को गलत विवरण आदि के आधार पर खारिज कर दिया गया है।

वित्त बाजार

Objective

1. निम्नलिखित में से कौन-सी कम्पनी एक शेयर बाजार की क्रियाओं के नियन्त्रण से सम्बन्धित है ?
(A) सेल
(B) सेबी
(C) सिडबी
(D) स्टॉक होल्डिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया
2. संवेदी सूचकांक (Sensex) में चढ़ाव का तात्पर्य है
(A) बम्बई शेयर बाजार के साथ पंजीकृत सभी कम्पनियों के शेयरों के मूल्य में चढ़ाव
(B) राष्ट्रीय शेयर बाजार के साथ पंजीकृत सभी कम्पनियों के शेयरों के मूल्य में चढ़ाव
(C) बम्बई शेयर बाजार के साथ पंजीकृत एक कम्पनी समूह के शेयरों के मूल्य में समग्र चढ़ाव
(D) बम्बई शेयर बाजार के साथ पंजीकृत एक कम्पनी समूह से सम्बन्धित सभी कम्पनियों के शेयरों के मूल्य में चढ़ाव
3. निम्नलिखित पर विचार कीजिए
1. बाजार ऋणादान (Market Borrowing)
2. ट्रेजनी बिल्स (Treasury Bill)
3. भारतीय रिजर्व बैंक को निर्गमित विशेष प्रतिभूतियाँ (Special Securities Issued to RBI)
इनमें से कौन-से आन्तरिक ऋण (Internal Debt ) का/के घटक हैं/हैं?
(A) केवल ।
(B) 1 और 2
(C) केवल 2
(D) ये सभी
4. विघटित UTI - II से प्रबन्धन में निम्नलिखित में से कौन-सी संस्था सम्मिलित नहीं है ? 
(A) भारतीय स्टेट बैंक
(B) बैंक ऑफ इंडिया
(C) सामान्य जीवन बीमा निगम 
(D) जीवन बीमा निगम (LIC)
5. सेबी (SEBI) के कार्यों में सम्मिलित है
(A) स्टॉक एक्सचेंजों के कार्यों को विनियमित करना
(B) शेयर बाजारों से सम्बन्धित अनुचित एवं धोखाधड़ी से परिपूर्ण व्यापारिक कार्यों पर रोक लगाना
(C) प्रतिभूतियों के अन्तरंग व्यापार (Inside Trading) को नियन्त्रित करना
(D) उपरोक्त सभी
6. गिल्ट आधारित बाजार के मायने क्या हैं?
(A) सर्राफा बाजार
(B) सरकारी प्रतिभूतियों का बाजार
(C) शस्त्र बाजार
(D) धातु बाजार
7. 'गिल्ट - एज्ड' में बिपणु सम्बन्धित है।
(A) धातुओं के व्यापार से
(B) ऋणपत्रों के व्यापार से
(C) सरकारी प्रतिभूतियों के व्यापार से
(D) शस्त्रों के व्यापार
8. इन्साइड ट्रेडिंग सम्बन्धित है
(A) शेयर बाजार से
(B) घुड़दौड़ से
(C) करारोपण से
(D) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से
9. पूँजी बाजार से आशय है
(A) शेयर बाजार से
(B) वस्तु बाजार से
(C) मुद्रा बाजार से
(D) उपरोक्त सभी
10. वित्तीय निवेशों के विशिष्ट व्यवहार में, मन्दड़िया (Bear) शब्द किसका द्योतक है?
(A) उस निवेशक का, जो यह महसूस करता है कि अमुक प्रतिभूति की कीमत गिरने वाली है.
(B) उस निवेशक का, जो यह महसूस करता है कि अमुक शेयरों की कीमत बढ़ने वाली है
(C) उस शेयरधारक या बॉण्डधारक का, जिसकी किसी वित्तीय अन्यथा, कम्पनी में हिस्सेदारी
(D) उस उधारदाता का, जो कर्ज देता है या बॉण्ड खरीदता है
11. इरडा (IRDA) नियमन करती है
(A) बैंकिंग कम्पनियों का 
(B) बीमा कम्पनियों का
(C) फुटकर व्यापार का
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
12. स्थापना वर्ष के अनुसार निम्न को बढ़ते हुए क्रम में व्यवस्थित करें
1. एलआईसी
2. आईडीबीआई
3. सेबी
4. यूटीआई
सही उत्तर नीचे लिखे कूट से दें
(A) 1, 2, 4, 3
(B) 2, 1, 3, 4
(C) 1, 2, 3, 4
(D) 1, 3, 4, 2
13. वर्ष 2000-01 के दौरान भारत के निम्नलिखित प्रमुख शेयर बाजारों में सर्वाधिक कारोबार करने वाला बाजार है
(A) बम्बई शेयर बाजार
(B) कलकत्ता शेयर बाजार
(C) दिल्ली शेयर बाजार
(D) राष्ट्रीय शेयर बाजार
14. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
1. सेंसेक्स, बम्बई स्टॉक एक्सचेंज (BSE) में उपलब्ध 50 अधिकतम महत्त्वपूर्ण स्टॉकों पर आधारित होता है।
2. सेंसेक्स के परिकलन के लिए सभी सेंसेक्स स्टॉकों को - आनुपातिक भारिता दी जाती है। 
3. न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज विश्व की सबसे पुरानी स्टॉक एक्सचेंज
उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(A) केवल 2
(B) 1 और 3
(C) 2 और 3
(D) इनमें से कोई नहीं
15. पूँजी बाजार, मुद्रा बाजार से किस सन्दर्भ में भिन्न है ?
(A) पूँजी बाजार केवल एक राज्य में कार्य करता है जबकि मुद्रा बाजार कई राज्यों में
(B) पूँजी बाजार दीर्घावधि वित्त आधार के लिए है, जबकि मुद्रा बाजार लघु अवधि के लिए
(C) पूँजी बाजार मुद्रा बाजार के मुकाबले विकासशील राष्ट्रों में अधिक व्यवहार में है
(D) पूँजी बाजार पूँजीवादी राष्ट्रों का ही पहचान चिह है
16. निम्नलिखित युग्मों में से कौन-सा एक सही सुमेलित नहीं है ? 
(A) जापान : निक्की
(B) सिंगापुर : शॅकाम्प
(C) यू के : एफ टी एस ई
(D) यू एस ए : नास्दाक
17. निक्की क्या है ?
(A) जापान का विदेशी विनिमय बाजार
(B) देश के योजना आयोग का जापानी नाम
(C) जापान के केन्द्रीय बैंक का नाम
(D) टोक्यो स्टॉक एक्सचेंज में अंश मूल्य सूचकांक
18. भारतीय यूनिट ट्रस्ट का उद्देश्य है
(A) अपनी आय का लाभ लघु विनियोजकों को प्रदान करना 
(B) धन को इस प्रकार विनियोजित करना जिससे औद्योगिक विकास का संवर्धन हो
(C) लोगों की बचत को एकत्र करना
(D) उपरोक्त सभी
19. सरकार ने बीमा व्यवसाय के नियमन के लिए गठन किया है 
(A) सेबी को
(B) भारतीय रिजर्व बैंक को
(C) इन्श्योरेंस नियमन एवं विकास प्राधिकरण को 
(D) साधारण बीमा निगम को
20. रिसर्जेन्ट इण्डिया. बॉण्ड ( Resurgent India Bond) जारी किए गए थे। यूएस डॉलर में पाउण्ड स्टलिंग में और
(A) जापानी येन में
(B) जर्मन मार्क में
(C) यूरो में
(D) फ्रांसीसी फ्रैंक में
21. 'एक्चुअरीज' शब्द सम्बन्धित है
(A) बैंकिंग से
(B) बीमा से
(C) शेयर बाजार से
(D) इनमें से कोई नहीं
22. बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज ने पर्यावरण अनुकूल इक्विटी सूचकांक भी जारी करना शुरू किया है जिसे क्या नाम दिया गया है? 
(A) ग्रीनंक्स 
(B) डॉलेक्स 
(C) राष्ट्रीय ग्रीन इण्डेक्स 
(D) मंगलौर ग्रीन इण्डेक्स 
23. BOLT-BSE Online Trading की शुरुआत वर्ष क्या थी? 
(A) 1980 
(B) 1990
(C) 1995
(D) 2000
24. वायदा बाजार आयोग का विलय किसके साथ हुआ? 
(A) भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड
(B) भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण
(C) भारतीय औद्योगिक प्राधिकरण
(D) वित्त कम्पनी विकास प्राधिकरण
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