General Competition | Economics & Economy | मुद्रा एवं मुद्रास्फीति

विनिमय (Exchange) मानव जीवन की सामान्य प्रक्रिया है । अर्थशास्त्र में विनिमय की जरूरत तब पड़ती है जब जितना मानव के अधिकार में है या जितनी मात्रा में मानव उत्पादन करते हैं वह मानव के जरूरत से अधिक होता है।

General Competition | Economics & Economy | मुद्रा एवं मुद्रास्फीति

General Competition | Economics & Economy | मुद्रा एवं मुद्रास्फीति

  • विनिमय (Exchange) मानव जीवन की सामान्य प्रक्रिया है । अर्थशास्त्र में विनिमय की जरूरत तब पड़ती है जब जितना मानव के अधिकार में है या जितनी मात्रा में मानव उत्पादन करते हैं वह मानव के जरूरत से अधिक होता है।
  • मुद्रा का जन्म विनिमय की आवश्यकता को पूरा करने के लिए हुआ है, इसलिए मुद्रा की परिभाषा एक ऐसी वस्तु के रूप में की जाती है जो सामान्य रूप से विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार की जाती है।

वस्तु विनिमय प्रणाली (Barter System)

  • वस्तु विनिमय प्रणाली, उस प्रणाली को कहते हैं जब किसी वस्तु या सेवा का विनिमय किसी अन्य वस्तु या सेवा के साथ प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है।
  • विनिमय की प्रारंभिक अवस्था में व्यापार वस्तु विनिमय पर ही आधारित था । यह प्रणाली काफी समय तक प्रचलित रही, लेकिन वस्तुओं के प्रत्यक्ष विनिमय में अनेक कठिनाई और असुविधाएँ थी ।

वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयाँ (Drawbacks of the Barter System)

  • इस प्रणाली में आवश्यकताओं के दोहरे संयोग में कठिनाई थी। आवश्यकताओं के दोहरे संयोग से तात्पर्य यह है कि किसी एक व्यक्ति . की वस्तु दूसरे की आवश्यकता और दूसरे व्यक्ति की वस्तु पहले की आवश्यकता से पूरा करती है।
  • आवश्यकताओं का दोहरा संयोग के अभाव के कारण वस्तु विनिमय प्रणाली में व्यापार करने की लागतें बहुत ऊँची होती है।
  • वस्तु विनिमय प्रणाली में मूल्य की समान ईकाई का अभाव पाया जाता है। इसके अभाव में वस्तु का मूल्य व्यक्त करना बहुत कठिन होता है।
  • इस प्रणाली में भविष्य में किए जाने वाले भुगतान या स्थगित भुगतान करना बहुत कठिन है ।
  • वस्तु विनिमय प्रणाली में मुद्रा के अभाव में धन का संचय करना संभव नहीं होता है।
  • वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं के मूल्य का हस्तांतरण करना अर्थात् एक स्थान से दूसरे स्थान भेजना कठिन है।

मुद्रा की परिभाषा (Definition of Money)

  • अर्थव्यवस्था में मुद्रा का प्रवेश सर्वप्रथम विनिमय के माध्यम के रूप से हुआ था। अतः कोई भी वस्तु जो विनिमय का माध्यम का कार्य करती है उसे मुद्रा कहा जाता है।
  • वर्तमान समय में मुद्रा का कार्य इतना विस्तृत हैं कि मुद्रा की एक सर्वसम्मत परिभाषा देना कठिन हैं। विभिन्न अर्थशास्त्री ने मुद्रा को अलग-अलग तरकेि से परिभाषित करता किया है।
    1. डॉ. मार्शल की परिभाषा:- "मुद्रा में वे सभी वस्तुएँ सम्मिलित की जाती है, जो बिना संदेह अथवा विशेष जाँच के वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने तथा खर्चों को चुकाने में साधारणतया प्रचलित रहती है। "
    2. रॉबर्टसन की परिभाषा:- " मुद्रा वह वस्तु है जिसे वस्तुओं का मूल्य चुकाने तथा अन्य प्रकार के व्यावसायिक दायित्व को निबटाने के लिए व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है। "
    3. सेलिगमैंन की परिभाषा :- " मुद्रा वह वस्तु है, जिसे सामान्य स्वीकृति प्राप्त है । "
    4. क्राउथर की परिभाषा:- "कोई भी ऐसी वस्तु मुद्रा है जो विनिमय के साधन के रूप में सामान्यतः स्वीकार की जाती है तथा मूल्यमापन एवं मूल्य संचय का भी कार्य करती है।"
    5. कोलर्बन की परिभाषा:- " मुद्रा मूल्यमापन तथा भुगतान का साधन है।"
    6. प्रो. हार्टले बिदर्स की परिभाषा:- " मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार्य करती हो ।
    7. प्रो. नैप की परिभाषा:- "कोई की वस्तु जो राज्य मुद्रा घोषित कर दी जाए, मुद्रा कहलाती है। "

आदेश तथा न्यास मुद्रा (Fiat and fiduciary Money)

  • आदेश मुद्रा (Fiat Money) - आदेश मुद्रा उस मुद्रा को कहा जाता है जो सरकार के आदेश से अर्थव्यवस्था में प्रचलित रहती है। इसके अंतर्गत सभी प्रकार के नोट तथा सिक्के आते हैं।
  • न्यास मुद्रा (Fiduciary Money)- न्यास मुद्रा उस मुद्रा को कहते हैं जो प्राप्तकर्त्ता तथा अदाकर्ता के बीच परस्पर विश्वास पर आधारित होती है।
    उदाहरण:- चेक, सोना, चाँदी।

मुद्रा के मौद्रिक मूल्य तथा मुद्रा के वस्तु मूल्य अंतर

  • मुद्रा का मौद्रिक मूल्य:- किसी नोट या सिक्के पर जो मूल्य अंकित रहता है, वह मूल्य मुद्रा का मौद्रिक मूल्य कहलाता है।
  • मुद्रा का वस्तु मूल्य:- मुद्रा जिस वस्तु या धातु से बनी होती है, उस वस्तु या धातु के मूल्य को मुद्रा का वस्तु मूल्य कहते हैं।

मुद्रा का वर्गीकरण (Classification of Money)

  • मुद्रा का वर्गीकरण मुख्यतः पाँच भागों में किया जाता है-.
    1. पूर्ण काय मुद्रा (Full Bodied Money):- मुद्रा पर अंकित मूल्य उसके वस्तु मूल्य के बराबर होते हैं तो उसे पूर्ण काय मुद्रा कहते हैं।
      • पूर्ण काय मुद्रा सिक्कों के रूप में प्राय: होती है। अंग्रेजी शासनकाल से चलने वाला चाँदी का एक रूपया का सिक्का पूर्ण काय मुद्रा था।
    2. प्रतिनिधि पूर्ण काय मुद्रा (Representative full Bodied Money)- प्रतिनिधि पूण काय मुद्रा के अंतर्गत कागजी नोट आते हैं जिसे सरकारी जारी करती है। ये नोट पूर्ण काय मुद्रा का प्रतिनिधित्व करता है।
    3. साख मुद्रा (Credit Money)- साख मुद्रा वह मुद्रा है जिसका मौद्रिक मूल्य उसके वस्तु मूल्य से काफी अधिक होता है।
    4. करेंसी मुद्रा (Currency Money)- यह वह मुद्रा है जो नोटों और सिक्का के रूप में प्रचलन में होता है। इस मुद्रा को स्वीकार करना कानूनन रूप से आवश्यक है।
    5. बैंक मुद्रा (Bank Money)- बैंक मुद्रा से तात्पर्य बैंकों द्वारा किए गये साख निर्माण से है। बैंक इस साख का निर्माण, लोगों को रूपया उधार देकर करते हैं।
    6. प्रामाणिक मुद्रा (Standard Money)- प्रामाणिक मुद्रा उस मुद्रा को कहते हैं जिसका सरकार या मौद्रिक नीति के आदेश द्वारा अर्थव्यवस्था के परिचालन होता है। इसी के प्रयोग द्वारा सरकार अपने दायित्वों का पूरा करती है ।
मुद्रा के अन्य प्रकार
  1. प्लास्टीक मनी:- विभिन्न बैंक अथवा वित्तीय संस्था द्वारा जारी डेबिट कार्ड तथा क्रेडिट कार्ड को प्लास्टीक मनी कहा जाता है।
    • डेबिट कार्ड (Debit Card) - डेबिट कार्ड बैंक के ग्राहक को उसकी बैंक में जमा राशि के बदले में जारी किया जाता है।
    • क्रेडिट कार्ड (Credit Card)- क्रेडिट कार्ड बैंक अपने उन ग्राहकों को जारी करता है जिनकी साख बैंक की नजरों में बहुत अच्छी है। क्रेडिट कार्ड प्राप्त करने के लिए बैंक खातों में रूपया होना जरूरी नहीं है।
  2. नजदीकी मुद्रा (Near Money) वह संपत्ति जिसे आसानी तथा कम समय में मुद्रा में परिवर्तित किया जा सकता है नजदीकी मुद्रा कहलाता है।
    उदाहरण :- सोना, हीरा, चाँदी आदि ।
  3. गर्म मुद्रा (Hot Money) वह मुद्रा जिसके विनिमय दर गिरने की संभावना हमेशा बनी रहती है तथा जिसमें शीघ्र पलायन कर जाने की प्रवृत्ति हो, उसे गर्म मुद्रा कहते हैं।
  4. दुर्लभ मुद्रा (Hard Currency )- अंतराष्ट्रीय बाजार में जिस मुद्रा की आपूर्ति, माँग के अनुसार कम होती है उसे दुर्लभ मुद्रा कहते हैं। जैसे- डॉलर, पौंड, यूरो
  5. सुलभ मुद्रा (Soft Currency)- अंतराष्ट्रीय बाजार में जिस मुद्रा की आपूर्ति, माँग के अपेक्षा अधिक होती है या वह मुद्रा जो अंतराष्ट्रीय बाजार में आसानी से उपलब्ध हो जाती है सुलभ मुद्रा कहलाता है।
  6. कॉशन मनी (Caution Money)- किसी भी संविदा (ठेका) और दायित्व को पूर्ण करने के लिए जमानत के तौर पर मांगी जाने वाली राशि को कॉशन मनी कहते हैं। 

मुद्रा के कार्य (Function of Money)

मुद्रा के प्राथमिक कार्य-
  1. मुद्रा का प्रमुख कार्य है विनिमय का माध्यम होना । मुद्रां क्रय तथा विक्रय दोनों में ही एक मध्यस्थ का कार्य करता है।
  2. मुद्रा का दूसरा प्रमुख कार्य है वस्तु तथा सेवाओं के मूल्य का मापन करना । मुद्रा के द्वारा सभी वस्तु के मूल्य को मापा जा सकता है तथा व्यक्त किया जा सकता है।
मुद्रा के द्वितीयक कार्य-
  1. मुद्रा के फलस्वरूप स्थगित भुगतान तथा उधार लेन देन की प्रक्रिया सरल हो जाती है।
  2. मुद्रा मूल्य संचय का कार्य करती है। मूल्य संचय का तात्पर्य आय के उस हिस्से से है जिन्हें व्यक्ति भविष्य के लिए बचा कर रखता है।
  3. मुद्रा के रूप में पूँजी को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तथा एक स्थान से दूसरे मुद्रा के कारण पूँजी में गतिशीलता आंती स्थान तक भेजना आसान हो जाता है।
मुद्रा के आकस्मिक कार्य-
  1. वर्त्तमान समय से विश्व के सभी देशों में चैक, ड्राफ्ट का प्रचलन है। इन साख पत्रों का आधार मुद्रा ही है।
  2. मुद्रा के रूप में धन खर्च करके एक उपभोक्ता अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करता है वहीं उत्पादक अधिकतम लाभ को प्राप्त करता है।
  3. मुद्रा के प्रचलन होने से किसी देश के राष्ट्रीय आय का मापन आसान हो जाता है। वस्तु विनिमय प्रणाली में राष्ट्रीय आय को मापना संभव नहीं है।
  4. मुद्रा उपभोक्ता को निर्णय लेने में सहायता करते हैं । अर्थशास्त्री प्रो. ग्राहम के अनुसार मुद्रा के रूप में धन संचय करके उपभोक्ता रिस्थितियों के अनुसार वस्तुओं को खरीदने के संबंध में सही निर्णय ले सकता है।
अर्थशास्त्री प्रो. कोलर्बन तथा पाल इन्जिंग ने मुद्रा के सभी कार्यों को केवल दो भागों में बाँटा है-
  1. अगत्यात्मक कार्य (Static function)- अगत्यात्मक कार्य से तात्पर्य मुद्रा के स्थिर तथा निष्क्रिय कार्यों से है। मुद्रा के ये कार्य अर्थव्यवस्था का संचालन करते हैं, उसमें गति पैदा करने में कोई सहायता नहीं करते । अगत्यात्मक कार्य के अंतर्गत मुद्रा के प्राथमिक तथा द्वितीयक कार्य शामिल हैं।
  2. गत्यात्मक कार्य (Dynamic Function)- इसमें मुद्रा के उस कार्य को सम्मीलित किया गया है जो अर्थव्यवस्था में गति प्रदान करते हैं।
मुद्रा के प्रमुख गत्यात्मक कार्य-
(i) मुद्रास्फीति व अवस्फीति जैसे स्थिति को दूर करना
(ii) अंतराष्ट्रीय व्यापार के विस्तार में सहायता
(iii) मौद्रिक नीति का प्रयोग करके अधिकतम सामाजिक कल्याण को प्राप्त करना 
(iv) मानवीय तथा प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण उपयोग संभव बनाना।

बचत एवं साख (Saving and Credit)

  • अर्थशास्त्री प्रो. केन्स के अनुसार किसी भी देश में पूंजी का निर्माण वहाँ के नागरिकों के बचत की प्रवृत्ति पर निर्भर है। बचत जितनी अधिक होगी, पूँजी का निर्माण उतना ही अधिक होगा ।
  • देश में पर्याप्त पूंजी उपलब्ध होने पर निवेश के अधिक अवसर उपलब्ध हो पाते हैं, जिससे देश के आर्थिक विकास को बल मिलता है।
  • व्यक्ति का बचत उसके आय का वह हिस्सा है जो वर्त्तमान आवश्यकताओं की संतुष्टि पर होने वाले व्यय के बाद शेष रह जाता है।
    बचत = कुल आय - उपभोग व्यय 
  • देश के नागरिकों की बचत की प्रवृत्ति बचत करने की शक्ति, बचत करने की इच्छा तथा बचत करने की सुविधाओं से प्रभावित होती है।
  • साख (Credit)– क्रेडिट शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के 'क्रेडो' शब्द से हुई हैं, जिसका अर्थ है विश्वास करना । साख का संबंध विश्वास अथवा भरोसा करने से है।
    • किसी व्यक्ति अथवा संस्था की साख का तात्पर्य उसकी ईमानदारी तथा ऋण लौटाने की क्षमता से है।
    • अर्थशास्त्री प्रो. किनले ने साख को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है- 'साख व्यक्ति का वह शक्ति है, जिससे वह किसी अन्य व्यक्ति को भविष्य में भुगतान करने की प्रतिज्ञा पर अपनी आर्थिक वस्तु सौंप देता हैं। "
    • साख को पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का आधार स्तंभ कहा जाता है। अर्थव्यवस्था जब वस्तु विनिमय प्रणाली पर आधारित था तब भी साख का इस्तेमाल होता था । मुद्रा के प्रचलन के बाद साख- प्रणाली का बहुत अधिक विस्तार हुआ है।
साख के लाभ (Advantages of Credit)
  1. साख पूँजी को गतिशीलता प्रदान कर उद्योग एवं व्यापार के विकास में सहायता करते हैं।
  2. साख पूँजी के उत्पादकता में वृद्धि करते हैं। इसके द्वारा बैंक बेकार पड़ी पूँजी को, उन लोगों तक पहुँचाता है जो इसका उपयोग उत्पादक कार्यों में करते हैं।
  3. साख बचत एवं पूँजी निर्माण को प्रोत्साहित करती है।
  4. मुद्रा की तुलना में साख का विस्तार एवं संकुचन अधिक सरलता एवं शीघ्रता से किया जा सकता है।

भारत की मौद्रिक प्रणाली (Monetary System of India)

  • भारत के मौद्रिक प्रणाली को कागजी मुद्रा मान (Managed Currency Standard) कहा जाता है तथा नोटों को जारी करने की व्यवस्था को न्यूनतम सुरक्षित प्रणाली (Minimum Reserve System) कहा जाता है।
  • भारत में धातु के सिक्कं तथा कागजी नोट दोनों ही साख मुद्रा है। सिक्कं सीमित विधि ग्राह्य (Limited Legal Tender) है तथा कागजी नोट असीमित विधि ग्राह्य (Unlimited Legal Tender) है।
  • भारत में सभी कागजी नोट रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए जाते हैं, किन्तु Rs. 1 का नोट तथा सभी सिक्के भारत सरकार द्वारा जारी किए जाते हैं। इन्हें Indian Coinage Act. के अधीन जारी किया जाता है। किंतु समस्त करेंसी ( नोट + सिक्के) को केवल RBI ही जारी (Issue) करता है।
  • RBI समस्त जारी की गई करेंसी के पीछे एक न्यूनतम सुरक्षित कोष रखता है । सुरक्षित कोष में न्यूनतम Rs. 115 करोड़ का सोना तथा Rs. 85 करोड़ की विदेशी प्रतिभूतियां होती हैं अर्थात् सुरक्षित कोष का कुल मूल्य केवल Rs. 200 करोड़ है।
  • RBI का सुरक्षित कोष अर्थव्यवस्था में चलित करेंसी का एक छोटा सा भाग है। सुरक्षित कोष का सोना केवल कागजी मुद्रा का आधार है, कागजी नोट को सोने में परिवर्तित करनेवाला भंडार नहीं। भारत की करेंसी अपरिवर्तनीय है।

मुद्रा एवं मुद्रास्फीति

Objective

1. वस्तु विनिमय प्रणाली वह प्रणाली है जिसमें- 
(A) वस्तु के बदले वस्तु का ही लेन-देन होता है
(B) वस्तु का विनिमय वस्तु से नहीं किया जाता है
(C) वस्तु का विनिमय धातुओं से किया जाता है
(D) उपरोक्त सभी
2. किसी अर्थव्यवस्था में व्यापारी वर्ग हिसाब की ईकाई के रूप में प्रयोग कर सकते हैं-
(A) सिर्फ एक पाई जाने वाले वस्तु
(B) केवल मुद्रा
(C) कोई भी वस्तु चाहे वह पाई जाती है या नहीं
(D) कोई मुद्रा जो वर्त्तमान समय प्रचलन में है
3. वस्तु-वस्तु अर्थव्यवस्था की धारणा में -
(A) वस्तुओं को वस्तुओं में बदला जाता है
(B) वस्तु विनिमय प्रणाली प्रचलन में होती है
(C) मुद्रा का प्रयोग किया जाता है
(D) A तथा B दोनों
4. निम्नलिखित में से कौन-सी मुद्रा की पर्याप्त परिभाषा है-
(A) कोई भी वस्तु जिसे कम भुगतान के रूप में स्वीकार किया जाता है
(B) कोई भी वस्तु जिसका सोने की एक निश्चित दर पर विनिमय किया जाता है 
(C) कोई भी वस्तु जिसे बैंक स्वीकार करने को तैयार है
(D) कोई भी वस्तु जो सामान्य रूप से वस्तुओं तथा सेवाओं के विनिमय के रूप में स्वीकार की जाती है।
5. वस्तु विनिमय प्रणाली की निम्नलिखित में कौन सी कठिनाई नहीं है ?
(A) आवश्यकताओं का दोहरा संयोग
(B) मूल्य के सामान्य इकाई का पाया जाना
(C) स्थगित भुगतान की प्रणाली का अभाव
(D) स्थगित भुगतान की प्रणाली का अभाव
6. किसी देश की मुद्रा की कुल मात्रा में शामिल होता है- 
(A) सिक्के 
(B) बिल
(C) करेंसी और बैंक जमा
(D) सोना तथा नोट
7. मुद्रा के लिए अपना कार्य करने से पहले निम्नलिखित में से कौन - सा गुण आवश्यक है ?
(A) स्वीकृति
(B) मूल्य की स्थिरता
(C) टिकाऊपन
(D) पहचान
8. वस्तु विनिमय प्रणाली की मुख्य कठिनाई थी -
(A) आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव
(B) मूल्यमापन की कठिनाई
(C) A तथा B दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
9. मुद्रा का प्राचीनतम रूप है-
(A) धातु मुद्रा
(B) सिक्के
(C) वस्तु मुद्रा
(D) पत्र मुद्रा
10. किस धातु का मुद्रा के रूप में सर्वाधिक प्रयोग हुआ है ?
(A) लोहा
(B) ताँबा
(C) पीतल
(D) चाँदी और सोना
11. मुद्रा का प्राथमिक कार्य कौन-सा है ?
(A) मूल्य का संचय
(B) विलंबित भुगतान का मान
(C) मूलय का हस्तांतरण
(D) विनिमय का माध्यम
12. बचत को प्रभावित कराने प्रमुख तत्व है-
(A) बचत करने की क्षमता
(B) बचत करने की इच्छा
(C) बचत करने की सुविधाएँ
(D) इनमें सभी
13. निम्नलिखित में से मुद्रा का प्राथमिक कार्य कौन-सा है ?
(A) मूल्य का संचय
 (B) मूल्य का हस्तांतरण
(C) मूल्य का मापदंड
(D) साख का आधार
14. केंद्रीय बैंक द्वारा कौन-सी  मुद्रा जारी की जाती है ?
(A) चलन मुद्रा .
(B) साख मुद्रा
(C) सिक्के
(D) इनमें से सभी
15. निम्नलिखित में से कौन-सी निकट मुद्रा है ?
(A) समय जमा
(B) विनिमय पत्र
(C) ट्रेजरी बिल
(D) उपरोक्त सभी
16. किसने कहा- "मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार्य करें" ?
(A) केन्ज
(B) प्रो. थामस
(C) हाद्रे
(D) हार्टले विदर्स
17. पूर्ण कार्य मुद्रा वह मुद्रा है जिसमें सिक्के पर अंकित मूल्य और उसमें लगी धातु का -
(A) मूल्य बराबर है
(B) मूल्य कम है
(C) मूल्य अधिक है
(D) मूल्य शून्य है
18. निम्नलिखित में से मुद्रा का गौण कार्य कौन-सा नहीं है ?
(A) स्थगित भुगतानों का मान
(B) मूल्य का मापदंड
(C) मूल्य का संचय
(D) मूल्य का हस्तांतरण
19. साख मुद्रा वह मुद्रा है जिसमें मौद्रिक मूल्य वस्तु मूल्य से होता है-
(A) अधिक
(B) कम
(C) बराबर
(D) इनमें से कोई नहीं
20. प्रतिनिधि सांकेतिक मुद्रा वह मुद्रा है जिसमें मुद्रा पर अंकित मूल्य तथा वास्तविक मूल्य-
(A) बराबर नहीं होते
(B) बराबर होते हैं
(C) एक-दूसरे से अधिक होते हैं
(D) एक-दूसरे से कम होते हैं
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