General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | स्वतंत्रता संघर्ष का उग्रराष्ट्रवादी चरण (1905-1919)

स्वतंत्रता संघर्ष के प्रथम चरण में उदारवादी राजनेताओं का वर्चस्व था। इनके विचार और कार्य पद्धति पूर्णतः संवैधानिक था ।

General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | स्वतंत्रता संघर्ष का उग्रराष्ट्रवादी चरण (1905-1919)

General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | स्वतंत्रता संघर्ष का उग्रराष्ट्रवादी चरण (1905-1919)

स्वतंत्रता संघर्ष के प्रथम चरण में उदारवादी राजनेताओं का वर्चस्व था। इनके विचार और कार्य पद्धति पूर्णतः संवैधानिक था । उदारवादियों की अंग्रेज सरकार के प्रति नीति के कारण भारत को आजाद होने में समय लग रहा था। इसके इतर अनेकों समस्याएँ थी जिसका उदय उदारवादी विचारधारा के कारण पैदा हो रहा था। इसी क्रम में नवीन एवं उग्र विचारधारा से प्रेरित राष्ट्रवादी नेताओं का स्वतंत्रता संग्राम में आगमन हुआ। कुछ हद तक विचारधारात्मक संघर्ष हुए किंतु स्वतंत्रता संघर्ष में तीव्रता दिखा एवं अन्य विचारधाराओं का भी आगमन हुआ जो भारत को स्वतंत्र कराने में अपने योगदान को सुनिश्चित किए ।

उग्रराष्ट्रवादी विचारधारा के उद्भव के कारण

  • 19वीं शताब्दी के प्रारंभिक दौर में इस विचारधारा का जन्म हुआ। यह एक राजनीतिक क्रियाविधि थी जिसका उद्देश्य कांग्रेस के उदारवादी विचारधारा व उसके अनुनय-विनय की नीति का विरोध करना था।
  • राजनैतिक दृष्टिकोण से इस विचारधारा के संपोषकों का मानना था कि स्वराज मांगने में नहीं अपितु संघर्ष से प्राप्त होता है।
  • इसी क्रम में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक दल इसी राजनीतिक क्रियाविधि का समर्थक था । इस दल का मानना था कि भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का ध्येय स्वराज होना चाहिए जिसे वह आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता से प्राप्त करे।
  • इसी उग्रराष्ट्रवादी विचारधारा के समर्थक विपिनचंद्र पाल ने कहा था हम वस्तु को स्वीकार नहीं कर सकते जिस वस्तु को प्राप्त करने की क्षमता न हो।" यह कथन स्वराज से संबंधित था।
  • ब्रिटिश शासन की आर्थिक शोषण की नीति ने देश को विपन्नता के कागार पर पहुँचा दिया था।
  • 1896 से 1900 के मध्य पड़ने वाले भयंकर दुर्भिक्षों (अकाल ) से लाख से अधिक लोग मारे गए। किंतु अंग्रेज शासक इसके प्रति उदासीन रहे ।
  • इसी क्रम में दक्षिण भारत में आए भयंकर प्लेग से हजारों लोगों की मृत्यु हो गई। इसके अतिरिक्त दक्षिण भारत में ही साम्प्रदायिक झगड़ों में जन-धन की अपार क्षति पहुँचा।
  • इन परिस्थितियों में सरकार की निरंतर उपेक्षा से देश की जनता का ब्रिटिश शासन से मोह भंग हुआ I
  • तात्कालिक राजनीतिक व सामाजिक परिस्थितियों में भारतीय राजनेताओं ने यह महसूस किया कि अंग्रेज भारतीय लोगों के अधिकारों में वृद्धि करन की उपेक्षा उनकी अधिकारों में भी कटौती कर रही है ।
  • इसी क्रम में राष्ट्रवादियों ने तात्कालिक विभिन्न नियमों और अधिकारों की घोर निंदा किया जो लागू किए गए।

उग्रराष्ट्रवाद को प्रेरित करती घटनाएँ

  • समकालीन परिस्थितियों में विचारधारा और तत्कालीन ब्रिटिश सरकार की नीतियों ने भारतीय जनमानस को प्रेरित किया।
  • इसमें निम्नलिखित घटनाओं ने भी उग्रराष्ट्रवादी विचारधारा को प्रेरित किया था।
    1. 1892- इस भारतीय अधिनियम परिषद् ( 1892) की उग्रराष्ट्रवादियों ने इस बात से आलोचना किया कि यह अपने उद्देश्य की पूर्ति में असफल रहा है।
    2. 1897– इस वर्ष पूणे में नाटु बंधुओं को बिना मुकदमा चलाए देश से निर्वासित कर दिया गया तथा तिलक तथा अन्य नेताओं को राजद्रोह फैलाने के आरोप में गिरफ्तार कर लंबे कारावास की सजा सुनाई गई।
    3. 1898 - भारतीय दंड संहिता की धारा 124A का दमनकारी कानून नए प्रावधानों के साथ पुनः स्थापित किया गया। तथा नई धारा 156A जोड़ दी गई थी।
    4. 1899- कलकत्ता कार्पोरेशन एक्ट के द्वारा कलकत्ता निगम के सदस्यों की संख्या कम कर दी गई।
    5. 1904 - इस वर्ष कार्यालय गोपनीयता कानून (official secrets act) द्वारा प्रेस की स्वतंत्रता का दमन ।
    6. 1904– विश्वविद्यालय अधिनियम द्वारा विश्वविद्यालयों पर सरकारी नियंत्रण और कड़ा कर दिया गया। तथा सरकार को सेनेट के द्वारा पारित प्रस्तावों पर विशेषाधिकार दिया गया।
  • ब्रिटिश सरकार के सामाजिक व सांस्कृतिक प्रभाव भी विनाशकारी रहे । इसने शिक्षा के प्रसार में उपेक्षा की नीति अपनायी ।
  • इसी क्रम में तात्कालीन भारतीय राजनीतिज्ञ जिनको उग्रराष्ट्रवाद के संपोषक माना गया। बाल गंगाधर तिलक, विपिन चंद्र पाल, अरविंद इत्यादि ने भारतीय जनमानस से अपील किया कि आप अपनी सांस्कृतिक विरासत एवं शक्तियों को पहचाने। इस अपील ने भारतीय जनमानस में आत्मविश्वास का संचार किया।
  • अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ तथा तात्कालीन शिक्षा पद्धति ने भी अधिकतर लोगों को शिक्षित किया। किंतु साथ में बेरोजगारी और अर्द्धबेरोजगारी में वृद्धि हुई । इस कारण भी ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध उग्रता में विकास हुआ।
  • इसी के बीच लॉर्ड कर्जन जिसका भारत में कुल 7 वर्ष का कार्यकाल था । इसने अपने कार्यों तथा विचार पद्धति से भारतीय जनमानस को उद्वेलित किया था।
  • कर्जन ने भारत को एक राष्ट्र मानने से भी इंकार किया था। तथा कांग्रेस को 'मन के उद्गार निकालने वाली संस्था' कहा था।
  • 1905 के बंगाल विभाजन के पश्चात् भारतीय जनता का आक्रोश अति तीव्र हो गया। साथ ही स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन के माध्यम से अहिंसक उग्रराष्ट्रवादी आंदोलन का प्रारंभ हुआ था I
  • उग्रराष्ट्रवादी विचारधारा को प्रेरित करने वाले आंदोलनकारियों में बाल गंगाधर तिलक प्रमुख थे। उन्होंने अंग्रेजी भाषा में मराठा और मराठी में केसरी के माध्यम से भारतीयों को जुझारू राष्ट्रवाद को प्रेरित किया था।
  • तिलक द्वारा प्रेषित सिद्धांत इस प्रकार थे-
    1. विदेशी शासन से घृणा करो, इससे किसी प्रकार का उम्मीद व्यर्थ है, अपने राजनीतिक अधिकारों के लिए भारतीयों को स्वयं प्रयत्न करना चाहिए।
    2. स्वतंत्रता आंदोलन का मुख्य लक्ष्य स्वराज है ।
    3. राजनीतिक क्रियाकलापों में भारतीय प्रत्यक्ष भागीदारी करे।
    4. निडरता, आत्मविश्वास, आत्मत्याग भी भावना प्रत्येक भारतीय में अवश्य होना चाहिए।
    5. स्वतंत्रता पाने एवं हीन दशा से बाहर निकलने हेतु संघर्ष करना चाहिए।

मुस्लिम लीग की स्थापना, 1906

  • बंगाल विभाजन के पश्चात कर्जन का वास्तविक उद्देश्य का पूर्ति हो चुका था ।
  • मुसलमानों को बंगाल विभाजन के पक्ष में करने के उद्देश्य से अंग्रेजों ने प्रयास करना आरंभ कर दिया था।
  • अंग्रेज सरकार ने भारतीय मुसलमानों को कांग्रेस विरोधी किसी ऐसे संस्था का निर्माण को प्रेरित किया जो भारतीय मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करता हो ।
  • इसी क्रम में अंग्रेजों के समर्थक ढाका के नवाब सलीमउल्ला खां ने मोहम्मडन, एजुकेशन कांफ्रेंस के अवसर पर मुसलमानों के समक्ष एक अलग राजनीतिक संगठन बनाने का लक्ष्य रखा।
  • इस संगठन का प्राथमिक उद्देश्य था भारत के मुसलमानों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देना किंतु कालांतर में इस संगठन की क्रियाविधि ने भारत में साम्प्रदायिकता को भी बढ़ावा दिया।
  • इस संस्था ने कांग्रेस तथा हिंदूवादी संगठनों का विरोध तथा मुस्लिम हितों की रक्षा की इसका परिणाम साम्प्रदायिकता को बढ़ना था।
  • ध्यातव्य है कि 1906 में आगा खां के नेतृत्व में शिमला प्रतिनिधि मंडल ने एक ऐसी मुस्लिम सभा का विचार किया था जो मुस्लिमों की राजनीतिक हितों का संरक्षण हो ।
  • इसी क्रम में ढाका में अखिल भारतीय मुस्लिम शैक्षिक सम्मेलन के दौरान दिसम्बर 1906 में स्वागत समिति के अध्यक्ष तथा राजनीतिक बैठकों के संयोजक ढाका के नवाब सलीमुल्ला खां ने अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के गठन का प्रस्ताव किया था।
  • इसके अध्यक्ष वकार उल मुल्क थे। 56 सदस्यीय समिति का चयन किया गया था तथा मोहसिन मुल्क तथा वकार-उल-मुल्क को संयुक्त रूप से संगठन का सचिव नियुक्त किया गया ।
  • इसी क्रम में लखनऊ में मुस्लिम लीग का मुख्यालय बनाया गया । तथा आगा खां इसके प्रथम अध्यक्ष नियुक्त किए गए।
  • इस संगठन के तीन उद्देश्य थे-
    1. ब्रिटिश सरकार के प्रति मुसलमानों की निष्ठा को बढ़ाना
    2. लीग के अन्य उद्देश्यों को बिना प्रभावित किए अन्य सम्प्रदायों के प्रति कटुता की भावना को बढ़ाने से रोकना
    3. मुसलमानों की राजनीतिक अधिकारों की रक्षा करना तथा उसको विस्तारित करना । 
  • ज्ञातव्य हो इस संगठन की स्थापना से अंग्रेजी सरकार व उसके अधिकारी अति उत्साहित थे।
  • इसी क्रम में वायसराय लार्ड मिंटों के निजी सचिव 'डनलप स्मिथ' ने अलीगढ़ कॉलेज के प्रधानाचार्य आर्कबोल्ड को पत्र लिखकर मुसलमानों का एक शिष्ट मंडल अपनी मांगों के साथ वायसराय से मिलने को आमंत्रित किया था।
  • 1 अक्टूबर, 1906 को सर आगा के नेतृत्व में एक मुस्लिम शिष्ट मंडल लार्ड मिण्टो से मिला था ।
  • इस प्रतिनिधि मंडल ने वायसराय के समक्ष माँगें रखी थी-
    1. मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचक क्षेत्र
    2. विधानमंडलों में मुसलमानों को जनसंख्या के अनुपात में स्थान
    3. मुस्लिम शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना तथा सरकारी सहायता
  • ज्ञातव्य हो कि मुस्लिम लीग की वार्षिक अधिवेशन 1908 में अमृतसर में हुआ था। इसी अधिवेशन में आधिकारिक रूप से पृथक निर्वाचक मंडल की मांग की गई थी।
  • ध्यातव्य है कि 1909 के मार्ले-मिंटो सुधार में उपर्युक्त सभी मांगें मान ली गई थी।
  • इसी क्रम में मुस्लिम लीग की एक शाखा 1908 में लंदन में सैयद अमीर अली ने स्थापित किया था ।
  • ज्ञातव्य है कि मुस्लिम लीग के अधिवेशन कभी भी नियमित रूप से नहीं होते थे। यह हमेशा अनियमित रूप से चलता था।

कांग्रेस का कलकता और सूरत अधिवेशन

  • स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान कांग्रेस में दो वैचारिक धड़ों का विकास हो चुका था एक पक्ष था नरम पंथी और दूसरा गरमपंथी । 
  • इसी क्रम में 1905 और 1907 के बीच एक ही नरमपंथियों और गरमपंथियों के बीच परस्पर मतभेद खुलकर सामने आये थे।
  • गरमपंथी विचारधारा के संपोषक क्रांतिकारी स्वदेशी व बहिष्कार आंदोलन को राष्ट्रव्यापी बनाना चाहते थे। जबकि नरमपंथी इसको सिर्फ केवल बंगाल तक ही सीमित रखना चाहते थे।
  • इसी क्रम में 1906 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में अध्यक्ष पद को लेकर दोनों पक्षों के बीच विवाद अति उग्र हो गया था। और दोनों पक्ष दल के विभाजन तक पहुंच गए थे।
  • कलकना अधिवेशन में दोनों पक्षों की उग्रता को शांति मिली जब दादाभाई नौरोजी ने अध्यक्ष पद को ग्रहण किया था।
  • तिलक लाला लाजपत राय को अध्यक्ष बनाना चाह रहे थे तथा विपिन चंद्र पाल तिलक को अध्यक्ष बनाना चाहते थे।
  • इसी क्रम में राष्ट्रवादियों (गरमपंथी) को अध्यक्ष पद से दूर रखने हेतु नरम पंथ के क्रांतिकारियों ने एक कूटनीति कर दिया ।
  • इसी के बीच भूपेन्द्र नाथ बसु ने दादाभाई नौरोजी को कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया था।
  • इसी अधिवेशन में गरमपंथियों ने

           

  • उपरोक्त सभी विषयों पर प्रस्ताव पारित कराया गया। पहली बार दादाभाई नौरोजी ने स्वराज को राष्ट्रीय आंदोलन घोषित किया था।
  • कांग्रेस में विरोध का स्वर 1906 के अधिवेशन में ही प्रखर हो चुका था। 1907 का कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन का स्थल नागपुर निर्धारित था। किंतु नरमपंथियों ने इसको अपने युक्ति के द्वारा सूरत में परिवर्तित करा लिया था ।
  • सूरत की स्वागत समिति में उदारवादियों की बहुमत थी। जबकि नागपुर के स्वागत समिति में उग्रपंथियों का बहुमत था ।
  • सूरत के कांग्रेस अधिवेशन (1907) में उदारवादियों ने पुनः एकबार कूटनीतिक चाल के द्वारा अपने ग्रुप के व्यक्ति रासबिहारी बोस को अध्यक्ष चयनित करवा दिया था।
  • इसी कारण सूरत के अधिवेशन में कांग्रेस में फूट पड़ गई थी । तिलक को अपने साथियों के साथ कांग्रेस छोड़कर अलग होना पड़ा था।
  • तिलक ने भी कांग्रेस से अलगाव के पश्चात भी अपना उग्रवादी आंदोलन जारी रखा था। इसी क्रम में अंग्रेजों ने बाल गंगाधर तिलक को कमजोर पाकर अंग्रेजों ने उन पर राजद्रोह का मुकदमा लगा दिया था।
  • वर्ष 1908 में तिलक पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया था। 6 वर्ष की कारावास की सजा सुनाई गई थी। तथा मांडले जेल में रखा गया था।
  • इसी क्रम में तिलक ने 1910 में लंदन के टाइम्स अखबार के वैदेशिक संवाददाता तथा इंडियन अनरेस्ट (Indian unrest) के लेखक वेलेंटाइन चिरोल के विरुद्ध मानहानि का मुकदमा भी दायर किया था ।

मार्ले-मिन्टो सुधार (1909)

  • मार्ले-मिन्टो सुधार का लक्ष्य बढ़ते हुए उग्रवाद और राष्ट्रवाद को समाप्त करना तथा 1892 के अधिनियम के दोषों को समाप्त करना था।
  • इस अधिनियम को तत्कालीन भारत सचिव मार्ले तथा वायसराय मिन्टो के नाम पर मार्ले-मिन्टो सुधार अधिनियम (भारत परिषद् 1909 ई.) कहा जाता है।
  • ज्ञातव्य है कि सर अरुण्डेल समिति रिपोर्ट के आधार पर इसे फरवरी 1909 को पारित किया गया था।
  • मार्ले-मिण्टो सुधार अधिनियम को भारत परिषद् अधिनियम 1909 भी कहा जाता है।
  • इस अधिनियम के द्वारा केन्द्रीय विधान सभा तथा प्रांतीय विधान परिषद् में सीटों की संख्या में वृद्धि की गई थी।
  • इसी अधिनियम में भारत में 'फूट डालो और राज करो' नीति के अन्तर्गत मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र तथा मताधिकार की व्यवस्था की गई थी।
  • नरमपंथी विचारधारा के क्रांतिकारियों ने कांग्रेस में मार्ले-मिन्टो सुधार को पूरा समर्थन दिया था।
  • 1911 में सरकार ने उग्रवादी खेमे में बढ़ रही क्रांतिकारी गतिविधियों को रोकने के लिए “राजद्रोह सभा अधिनियम 1911'' पारित किया था।

दिल्ली दरबार, 1911

  • स्वदेशी आंदोलन का दमन करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने उग्रपंथियों पर आक्रामकता की नीति से कार्य किया।
  • इसी क्रम में लाला लाजपत राय को 9 मई 1907 को गिरफ्तार कर मांडले जेल भेज दिया गया था।
  • इसी क्रम में सितम्बर 1907 को बिपिनचंद्र पाल को भी गिरफ्तार किया गया था।
  • 24 जून 1908 में अपने पत्र केशरी में लिखे दो लेखों हवाला देकर तिलक को राजद्रोह के अंतर्गत मुकदमा लगाकर गिरफ्तार कर लिया गया।
  • अंग्रेजों ने उदारपंथियों पर दमनकारी हमले नहीं किए।
  • 6 मई 1910 को जार्ज पंचम इंग्लैंड के सम्राट बने थे। इसके उपलक्ष्य में 12 दिसम्बर 1911 को दिल्ली में एक राजदरवार का आयोजन किया गया था।
  • इसी आयोजन में लार्ड हार्डिंग द्वितीय ने सम्राट के तरफ से बंगाल विभाजन को रद्द करने की घोषणा किया था।
  • ज्ञातव्य है कि यह घोषणा अरूण्डेल समिति की सिफारिश पर किया था ।
  • इसी समय (1911) में भारत की राजधानी को कलकत्ता से हटाकर दिल्ली में स्थापित किया गया था। इसे 1912 में मूर्त रूप दिया गया था।

लखनऊ पैक्ट (1916 ई.)

  • कांग्रेस का लखनऊ अधिवेशन का ऐतिहासिक महत्व था कि इस सम्मेलन में कांग्रेस के नरमपंथी और गरमपंथी दलों का सम्मेलन हुआ था।
  • इसी सम्मेलन में मुस्लिम लीग और कांग्रेस में समझौता हुआ था । यद्यपि ब्रिटिश शासन ने हमेशा एक बात का ध्यान रखा कि कांग्रेस व मुस्लिम लीग के बीच इससे भारतीय स्त्र स्वतंत्रता संघर्ष को कमत्तर किया जा सकता था ।
  • मुस्लिम लीग ने 1913 में अपने 7वें अधिवेशन में यह घोषणा किया कि मुस्लिम लीग का उद्देश्य है कि साम्राज्य के अंदर हिन्दुस्तान के लिए स्वराज घोषित करना।
  • इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह हिंदुस्तान के अंदर अन्य पार्टियों की सहयोग करेगी।
  • इसी क्रम में एक ऐतिहासिक घटना घटी थी। 1915 ई. में मुस्लिम लीग तथा कांग्रेस का अधिवेशन में मुंबई में एक साथ हुआ था। यह पहला अवसर था जब लीग और कांग्रेस का अधिवेशन एक साथ हुआ था ।
  • इसी अधिवेशन के पश्चात 1916 का अधिवेशन भी लखनऊ में कांग्रेस के साथ लीग का भी अधिवेशन हुआ था।
  • ज्ञातव्य हो कि मुहम्मद अली जिन्ना तथा बाल गंगाधर तिलक, लीग-कांग्रेस समझौते के मुख्य सूत्रधार थे।
  • ध्यातव्य है कि 1916 से 1922 ई. तक का कालखण्ड इंडियन नेशनल कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के बीच मतैक्य का कालखण्ड था।
  • लखनऊ समझोता महज एक अस्थायी समझौता था। मुस्लिम लीग ने इस समझौते के बावजूद पृथक अस्तित्त्र बनाए रखा तथा पृथक राजनीतिक अधिकारों की वकालत करती रही थी ।
  • लखनऊ पैक्ट की राजनैतिक समझौता 1922 तक चलता रहा और असहयोग आंदोलन के पश्चात् पुनः स्थित यथावत हो गई। क्योंकि लीग ने पुनः अपना पुराना रास्ता पकड़ लिया था।
  • ज्ञातव्य है कि सूरत अधिवेशन (1907) में जहाँ गरमपंथी विचारधारा के कांग्रेसियों को कांग्रेस से अलग किया गया था। 1916 के लखनऊ अधिवेशन में उनको पुनः प्रवेश दिया गया।
  • ज्ञातव्य है कि 1916 के लखनऊ अधिवेशन में ही कांग्रेस ने मुस्लिम लीग की 'पृथक निर्वाचन' की माँग स्वीकार किया था। जो मुस्लिम लीग के एि सकारात्मक उपलब्धि थी ।
  • ज्ञातव्य है कि इतिहासकारों का मत है कि लखनऊ अधिवेशन ने भारत की राजनीति में साम्प्रदायिकता के उदय का मार्ग प्रशस्त किया था।
  • इसी क्रम में रमेशचंद्र मजूदमार ने माना है कि भविष्य में पाकिस्तान के विभाजन की नींव भी लखनऊ पैक्ट में पड़ा था।
  • ज्ञातव्य है कि 1907 के निष्कासित उग्रवादी कांग्रेसी पुनः कांग्रेस में वापसी किए थे। 1916 के लखनऊ अधिवेशन में। इस समझौता का सूत्रधार ऐनी बेसेंट एवं बाल गंगाधर तिलक थे।

होमरूल लीग (1916)

  • ज्ञातव्य हो 6 वर्ष की लंबी सजा के पश्चात 16 जून, 1914 को तिलक को मांडले जेल से रिहा किया गया था।
  • इसी क्रम में तिलक के राष्ट्रीय आंदोलन में पुनः सक्रिय वापसी से राष्ट्रवादी सक्रिय और उत्साहित हो गए थे।
  • इन लोगों ने स्वराज की प्राप्ति के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाने के लिए एक संगठन की स्थापना का विचार किया।
  • इसी क्रम में बाल गंगाधर तिलक ने 28 अप्रैल, 1916 को बेलगाम (पूना) में 'होमरूल लीग' की स्थापना की घोषणा किया था।
  • एक अन्य होमरूल की स्थापना आयरिश मूल की महिला ऐनी बेसेंट ने किया था। इसकी स्थापना 1 सितम्बर, 1916 को हुआ था।
  • ऐसी बेसेंट ने 1914 में भारतीय राजनीति में प्रवेश किया। इनके दो समाचार पत्र थे, न्यू इंडिया एवं कॉमनवील थे।

महाराष्ट्र में क्रांतिकारी घटनाएँ

  • भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन सत्ता के विरुद्ध उग्र क्रांतिकारी घटनाओं का आगाज महाराष्ट्र में हुआ था। किंतु कालांतर में इसका प्रधान केंद्र बिन्दु बंगाल में स्थापित हो गया ।
  • उग्र हिंसक क्रांतिकारियों की कार्य करने की पद्धति पुरातन और विदेशों के क्रांतियों से प्रेरित था।
  • उग्र हिंसक क्रांतिकारी गुप्त संगठन स्थापित करते तथा हथियार इकट्ठा करते, सरकारों के खजाना को लूटते तथा देशद्रोहियों की हत्या करते थे।

महाराष्ट्र में क्रांतिकारी घटनाएँ

  • महाराष्ट्र में क्रांतिकारी आंदोलन का प्रारंभ 1879 के रामोसी आंदोलन के प्रणेता बासुदेव बलवंत फड़के के द्वारा किया गया था।
  • रामोसियों ने सर्वप्रथम अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए पहली बार सशस्त्र विद्रोह किया था ।
  • इसी क्रम में सर्वप्रथम 22 जून 1897 को यूरोपियों की राजनीतिक हत्याएँ हुई थी।
  • इसी क्रम में चापेकर बंधुओं ने के प्लेग समिति के प्रधान वाल्टर चार्ल्स रैंड तथा लेफ्टिनेंट आयर्स्ट (Lt. Ayerst) की हत्या कर दी थी।
  • चापेकर बंधु पकड़े गए हत्याओं के अभियुक्त बने तथा 18 अप्रैल, 1898 को फांसी पर लटका दिया गया था।
  • इसी क्रम में चापेकर बंधुओं को गिरफ्तार करवाने वाले द्रविड़ बंधुओं (गणेश शंकर और रामचंद्र द्रविड़ ) को व्यापम मंडल के सदस्यों ने उन्हें मार डाला ।
  • कुछ समय के पश्चात व्यापम मंडल के उन सदस्यों को भी फांसी तथा आजीवन कारावास की सजा सुना दिया गया।
  • इस घटना पर टिप्पणी करते हुए बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केशरी में एक लेख लिखा । यह लेख अप्रत्यक्ष रूप से चापेकर बंधुओं के समर्थन में था ।
  • तिलक ने इस लेख में चापेकर बंधुओं के द्वारा किया गया अंग्रेज अधिकारियों की हत्या की तुलना शिवाजी द्वारा अफजल खां की हत्या से किया था ।
  • इसी क्रम में राजगृह की धारा 124A लगाकर ब्रिटिश सरकार ने तिलक को 18 माह के लिए कारावास में डाल दिया था ।

व्यापम मंडल (Vaypam Mandal)

  • इसके संस्थापक दामोदर हरि और बालकृष्ण हरि चापेकर बंधु थे।
  • इस संस्था की स्थापना वर्ष 1896-97 में किया गया था ।
  • इसकी स्थापना का स्थान पूना (महाराष्ट्र) था ।
  • इस संस्था के स्थापना का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध युववाओं को इकट्टा एवं जागृत करना था ।
  • इस संस्था में व्यापम एवं शस्त्र शिक्षा के माध्यम से ऐसे युवाओं को तैयार किया जाता था जो देश के लिए अपने प्राणों की आहुति लगा सके।

मित्र मेला और अभिनव भारत

  • गणपति उत्सव मनाने के उद्देश्य से 1899 में वी. डी. सावरकर के द्वारा नासिक में मित्र मेला की स्थापना किया गया था।
  • 1904 में मित्र मेला ही अभिनव भारत के रूप में परिणत हो गया था।
  • ज्ञातव्य है कि अभिनव भारत का महाराष्ट्र के क्रांतिकारी संगठनों में प्रथम स्थान था ।
  • इस संस्था की स्थापना का प्रेरणा मेजिनी की तरुण इटली जैसे गुप्त संस्था थी । इस संस्था का उद्देश्य भूमिगत क्रांतिकारी घटनाओं को संपादित करना था ।
  • इस संस्था के प्रमुख सदस्य गणेश सावरकर को 9 जून 1909 को नासिक के जिला दण्डनायक (DM) ने उनको काले पानी की सजा दी थी।
  • इस संस्था की अन्य शाखाएँ भारत के अन्य भागों में फैली हुई थी।
  • इस संस्था ने महादेव वापट को बम बनाने की कला सिखने के लिए पेरिस भेजा था।
  • इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य हिंसक घटनाओं के माध्यम से अंग्रेजों को भारत से बाहर कर राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त करना था ।
  • इसी क्रम में 1906 में वी. डी. सावरकर कानून की पढ़ाई करने ब्रिटेन चले गए थे किंतु फिर भी यह संस्था अबाध रूप से कार्य करती रही थी। 

अलीपुर षडयंत्र केस (Alipur Shadyantra case, 1908)

  • सरकार के कलकत्ता तथा मनिकटोला उधान में अवैध हथियारों के तलाशी के लिए अनेक स्थानों पर छापे मारे थे।
  • इसमें बहुत सारे क्रांतिकारी गिरफ्तार किए गए। इसमें दो घोष बंधु अरविन्द और बारीन्द्र घोष भी शामिल थे।
  • यही मुकदमा कालांतर में अलीपुर षडयंत्र केस के नाम से जाना गया।
  • इस केस में नरेन्द्र गोसाई सरकारी गवाह बन गए। 31 अगस्त 1908 को सत्येन्द्र बोस एवं कन्हाई लाल दत्त ने नरेन्द्र को जेल में ही मार दिया था।
  • इस केस में वरीन्द्र घोष गुट के सभी सदस्यों को आजीवन कालापानी की सजा दी गई थी।
  • प्रसिद्ध वकील चित्तरंजन दास के अथक प्रयास से अरविन्द घोष बरी हो गए। कालांतर में अरविंद घोष पांडिचेरी चले गए और ऑरोविले आश्रम की स्थापना किया एवं राजनीतिक गतिविधियों से संन्यास ले लिया।
  • ज्ञातव्य है कि 11 दिसम्बर, 1908 को अनुशीलन समिति को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया था।

हावड़ा षडयंत्र केस (1910)

  • इसके प्रणेता जतीन्द्रनाथ मुखर्जी थे। इनको 'बाधा जतिन' के नाम से भी संबोधित किया जाता था।
  • डिप्टी पुलिस सुपरिटेंडेट शमशुल आलम की हत्या के आरोप में बाघा जतिन पर हावड़ा षडयंत्र केस चलाया गया था।
  • इस केस में 1 वर्ष की सजा हुई थी। ये युगांतर पार्टी के प्रमुख नेता थे।

दिल्ली में क्रांतिकारी आंदोलन

  • इस घटना को प्रणेता रास बिहारा बोस एवं सचीन्द्र सान्याल थे । तथा इसको मूर्त रूप मास्टर अमीर चन्द्र, मास्टर अवध बिहारी, बाल मुकुंद तथा बसंत कुमार ने दिया ।
  • पुलिस ने इस घटना में कुल 13 लोगों को गिरफ्तार किया था ।
  • इस घटना को दिल्ली षडयंत्र केस कहा गया क्योंकि इसको दिल्ली के चांदनी चौक में अंजाम दिया गया था।
  • भारत की राजधानी परिवर्तन 1912 में हो रहा था। इसी क्रम में वायसराय लार्ड हार्डिंग कलकत्ता से दिल्ली आए थे।
  • 23 दिसम्बर, 1912 को वायसराय लार्ड हार्डिंग के सवारी पर चांदनी चौक इलाके में बम फेंका गया।
  • इस घटना में लार्ड हार्डिंग बच गया जबकि अन्य सारे लोगों मारे गए थे।
  • इस घटना में गिरफ्तार किए गए 13 लोगों में : लोगों को फांसी दी गई तथा अन्य को देश से निर्वासित कर दिया गया।
  • इसी घटना के पश्चात रास बिहारी बोस जापान चले गए थे। जहां उन्होंने इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना किया था।
  • आजाद हिंद फौज की स्थापना में सुभाष चंद्र बोस की सहायता किया था रास बिहारी बोस ने ।

पंजाब में क्रांतिकारी आंदोलन

  • ज्ञातव्य है कि 1906 ई. के प्रारंभ में क्रांतिकारी आंदोलन फैल रहा था। पंजाब सरकार के उपनिवेशीकरण विधेयक के कारण किसानों में व्यापक जन असंतोष व्याप्त था।
  • इसका उद्देश्य चिनाब नदी क्षेत्र में भूमि चकबंदी को हतोत्साहित करना तथा संपत्ति के विभाजन के अधिकारों में हस्तक्षेप करना था।
  • इस समय ब्रिटिश सरकार ने जलकर में वृद्धि किया जनता में असंतोष फैल गया था।
  • इस आंदोलन के प्रणेता अजीत सिंह तथा लाला लाजपत राय थे। दोनों को गिरफ्तार कर मांडले जेल भेज दिया गया था।
  • इसी क्रम में अजीत सिंह ने लाहौर में अंजुमन - ए - मोहिब्बान-ए-वतन नामक संस्था की स्थापना किया था।

कामागाटामारू प्रकरण

  • कामागाटामारू प्रकरण का भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में विशेष स्थान है। इस घटना ने समूचे पंजाब प्रांत में उग्रराष्ट्रवादी घटनाओं को पुनर्जीवित तथा प्रेरित किया था ।
  • पंजाब के एक क्रांतिकारी बाबा गुरूदत्त सिंह ने एक जापानी जलपोत कामाटागारू को भाड़े पर लिया ।
  • इस जहाज पर 351 पंजाब सिख एवं 21 मुस्लिम यात्री थे। इन सभी यात्रियों के साथ वे सिंगापुर से बैंकुवर जाने का प्रयास किए।
  • बाबा गुरुदत्त का उद्देश्य इन सभी यात्रियों के साथ में वैकूवर पहुँचकर स्वतंत्र एवं सुखमय जीवन व्यतीत करना तथा भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में हिस्सा लेना था।
  • कनाडा सरकार ने इस जहाज को अपने बंदरगाह पर रुकने की अनुमति नहीं दिया। जहाज 27 दिसम्बर, 1914 को पुन: कलकत्ता लौट आया।
  • इस जहाज के सभी यात्रियों का विश्वास था ब्रिटिश सरकार के दबाव में कनाडा सरकार ने इन यात्रियों को बंदरगाह पर उतरने की अनुमति नहीं दिया था।
  • कलकत्ता बंदरगाह पर बाबा गुरुदत्त को गिरफ्तार करने का प्रयास किया गया। किंतु वे बच निकले।
  • इस जहाज के अन्य सभी यात्रियों को जबरदस्ती पंजाब भेजा जा रहा था। पुलिस व यात्रियों के बीच झड़प हुई और 22 यात्री मारे गए।
  • कामाटागारू यात्रियों ने शामिल लगभग सभी ने जो गदर पार्टी के सदस्य थे। भावष्य में पंजाब में क्रांतिकारी घटनाओं में हिस्सा लिया तथा लाहौर षडयंत्र ( लूट) घटना में मुख्य किरदार निभाए ।
  • ज्ञातव्य है कि वर्ष 2014 में भारत सरकार ने इस घटना के या में 100 रु० का सिक्का भी जारी किया था।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • 1916 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन की अध्यक्षता अम्बिका चरण मजूमदार ने किया था।
  • 1916 ई. में मुस्लिम लीग तथा कांग्रेस के मध्य मुहम्मद अली जिन्ना तथा बाल गंगाधर तिलक ने समझौता कराया था ।
  • कांग्रेस के 1916 के अधिवेशन में बिहार ( चंपारण) के किसान राजकुमार शुक्ला ने गांधीजी को चंपारण के किसानों की समस्या से अवगत कराया था।
  • भारत में होमरूल लीग की शुरूआत सर्वप्रथम बाल गंगाधर तिलक ने किया था।
  • होमरूल लीग आंदोलन को गृह शासन आंदोलन के नाम से भी पुकारा जाता था ।
  • होमरूल लीग स्वतंत्रता संघर्ष युग का महत्वपूर्ण आंदोलन था क्योंकि इस आंदोलन में देश के समक्ष स्वशासन की एक ठोस योजना रखा गया था।
  • 1918 में तिलक तथा ऐनी बेसेंट द्वारा बनाए गए होमरूल लीग को एक कर दिया गया था ।
  • वर्ष 1914-18 तक प्रथम विश्वयुद्ध चला था।
  • ज्ञातव्य है कि कामाटागारू प्रकरण बाबा गुरूदीप सिंह से संबंधित था। यह एक जहाज का नाम था।
  • 1918 के विद्रोह समिति की रिपोर्ट के अनुसार भारत में क्रांतिकारी आंदोलन महाराष्ट्र में प्रारंभ हुआ था।
  • 21 दिसम्बर, 1909 को नासिक के जिला मजिस्ट्रेट जैक्सन की हत्या अनंत लक्ष्मण कन्हारे ने किया था।
  • नासिक "डयंत्र केस जिसमें मजिस्ट्रेट जैक्सन की हत्या की गई थी। इसी में विनायक दामोदर सावरकर एवं अन्यों को अभियुक्त बनाया गया था।
  • क्रांतिकारियों की गुप्त अभिनव भारत की स्थापना 1904 में दामोदर सावरकर के द्वारा किया गया था।
  • मित्र मेला संघ की शुरूआत भी विनायक दामोदर सावरकर ने की थी।
  • राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) स्थापना 27 सितम्बर, 1925 को विजय दशमी दिन केशव बलिराम हेडगवार ने किया था।
  • ज्ञातव्य है कि 1910 में दामोदर सावरकर ने ब्रिटिश जहाज से मुक्त होने के लिए एस. एस. मोरियो नामक जहाज से फ्रांस के मारसेलेस नामक बंदरगाह के करीब छलांग लगा दिया था। 
  • 1897 में रैंड की हत्या के साजिश के विरुद्ध संघर्ष में जनता के द्वारा बाल गंगाधर तिलक को लोकमान्य की उपाधि प्रदान किया गया था।
  • बंगाल में क्रांतिकारी विचारधारा का विस्तार करने का श्रेय वरीन्द्र कुमार घोष तथा भूपेन्द्र नाथ दत्त को जाता है।
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