General Competition | Economics & Economy | कर - संरचना

कर ऐसा भुगतान है जो अनिवार्य रूप से सरकार को परिवारों कम्पनी या संस्थागत ईकाई द्वारा दिया जाता है। कर देने वाला कर के बदले किसी सेवा प्राप्ति का दावा नहीं कर सकता है।

General Competition | Economics & Economy | कर - संरचना

General Competition | Economics & Economy | कर - संरचना

Tax Structure in India ( कर संचय)

कर (Tax)

कर ऐसा भुगतान है जो अनिवार्य रूप से सरकार को परिवारों कम्पनी या संस्थागत ईकाई द्वारा दिया जाता है। कर देने वाला कर के बदले किसी सेवा प्राप्ति का दावा नहीं कर सकता है।

    • कर सरकार के द्वारा इसलिए लगाया जाता है कि वे अपनी व्यय संबंधी दायित्वों को पूरा कर सके तथा समाज आय का पुनर्वितरण हो । 
    • प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एनातोल मुराद (Anatol Murad ) ने कर को निम्न रूप से परिभाषित किया है- कर वह आवश्यक भुगतान है जो एक व्यक्ति या फर्म द्वारा सरकार को दिया जाता है। करदाता को सरकार से मिलने वाले लाभ का इससे कोई भी संबंध नहीं होता है ।"
    • कर भुगतान करना व्यक्ति की निजी जिम्मेवारी है। कर न देने पर सरकार की ओर से दण्ड दिया जाता है।

कराघात ( Impact of Tax)

सरकार द्वारा लगाये गये कर का तात्कालिक मौद्रीक बोझ जहाँ पड़ता है या सरकार के खजाने में कर जमा करने का दायित्व जिसके ऊपर है, वह बिंदु " कराघात" कहलाती है।

करापात (Incidence of Tax)

किसी कर के लगाये जाने के उपरांत इसका भुगतान वास्तव में जिसके द्वारा किया जात है उस बिंदु को 'करापात' कहते है।

कर विवर्तन (Shifting of Tax)

सरकार जिसके ऊपर कर लगाता है, वह इस स्थिति में हो की कर का कुछ या पूरा भाग दूसरो पर टाल सके. टालने की प्रक्रिया को ही कर विवर्तन कहते है ।

कराधान की विधियां (Methods of Taxsation)

1. प्रतिगामी कर प्रणाली (Regressive Tax System)
  • यदि कर की दर आय (या मात्रा) में वृद्धि के साथ क्रमशः घटती जाए तो उसे प्रतिगापी कर प्रणाली कहते है।
  • इस कर प्रणाली में कर का वास्तविक भार धनी वर्ग के अपेक्षा निर्धन वर्ग पर अधिक पड़ता है।
  • आधुनिक लोकतांत्रिक एवं समाजवादी दृष्टिकोण से यह एक अलोकप्रिय कर प्रणाली है तथा इसका प्रचलन न के बराबर है।
2. आनुपातिक कर प्रणाली (Proportional Tax System)
  • जब विभिन्न आयवर्ग (या उत्पादन) पर कर की दर एक समान हो तो कर की इस प्रणाली को आनुपातिक कर प्रणाली कहते है।
  • कर की यह प्रणाली न्यायसंगत नहीं है क्योकि इस प्रणाली में अमीर व गरीब दोनों पर समान बोझ पड़ता है।
3. प्रगतिशील कर प्रणाली (Progressive Tax System)
  • इस विधी के कर की दर आय बढ़ने के साथ-साथ बढ़ता जाता है। इस कर प्रणाली में अपेक्षाकृत कम आय पर कर की दर कम तथा अधिक आय पर कर की दर अधिक होती है।
  • इस कर प्रणाली में कर का वास्तविक भार निर्धन व्यक्ति पर कम तथा धनी व्यक्ति पर अधिक पड़ता है।
  • विश्व के अधीकांश देशों में यही कर प्रणाली प्रचलित है क्योंकि यह प्रणाली गरीबो के प्रति मित्रवत है।
4. अवक्रमिक कर प्रणाली (Degressive Tax System)
  • यह कर प्रणाली प्रगतिशील एवं आनुपातिक कर प्रणाली का मिश्रण है।
  • इस कर प्रणाली में प्रारंभ कर की दर आय बढ़ने के साथ बढ़ता है और एक निश्चित सीमा के बाद कर की दर स्थिर हो जाती है, चाहे आय कितनी भी क्यो न हो ।
एक अच्छी कर प्रणाली में निम्नलिखित पाँच विशेषताएँ होनी चाहिए-
  1. न्यायसंगत (Fairness) - जब करो को लोगो के भुगतान क्षमता के आधार पर लगया जाता है तो इसे करो में न्यायशीलता की स्थिति कहा जाता है। इसका अर्थ ये है कि कर की दर उच्च आय वर्ग के लिए अधिक होनी चाहिए तथा निम्न आय वर्ग के लिए कम होनी चाहिए ।
    • अर्थशास्त्री करो के न्यायशीलता के लिए दो तत्वो के समावेश पर बल देते है। ये दो तत्व है क्षैतिज तथा उर्ध्वाधर समानता ।
    • जब समान स्थितियों में व्यक्तियों द्वारा समान कर दिया जाए तो इसी क्षैतिज समानता कहते है। इसी तरह अगर आर्थीक रूप से ज्यादा सम्पन्न व्यक्तियों द्वारा अपेक्षाकृत अधिक कर दिया जा रहा तो इसे "उर्ध्वाधर समानता" कहते है ।
  2. दक्षता (Efficiency)- दक्षता किसी कर प्रणाली की वह क्षमता है, जिससे वह अर्थव्यवस्था के निष्पादन क्षमता को प्रभावित करती है।
    • अगर कर व्यवस्था अर्थव्यवस्था की बचत, निवेश तथा व्यय को प्रभावित नहीं करता है तो हम कह सकते है इस कर व्यवस्था में दक्षता का तत्व विद्यमान है।
  3. प्रशासनिक सरलता (Administrative Simplicity)
    • कर व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए ताकि करो की गणना, इसकी फाईलिंग तथा इसकी वसूली करना आसान हो। इसे ही प्रशासनिक सरलता कहते है।
  4. लचीलापन (Flexibility)- एक अच्छी कर व्यवस्था में लचीलापन होना अति-आवश्यक हैं। लचीलापन का अर्थ है कर में संसोधन करना आसान हो ताकि सरकार अपने आवश्यकता के अनुरूप जब भी चाहे कर की दर को बढ़ा सके या कर की दर को घटा सके।
  5. पारदर्शिता (Transparancy)- पारदर्शिता से तात्पर्य यह है, करदाताओं को यह बात पता होनी चाहिए कि उनके द्वारा चुकाये गये कर का उपयोग सरकार कैसे एवं किन-किन क्षेत्रों में कर रही है।

करो के प्रकार (Types of Tax)

  • कर मुख्यतः दो प्रकार के होते है- प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर
1. प्रत्यक्षकर (Direct Tax)
  • प्रत्यक्ष कर वह कर है जिसका अंतिम भार उस व्यक्ति को उठाना पड़ता है, जिसपर कर आरोपित होता है। प्रत्यक्ष कर के सम्बन्ध में कर से उत्पन्न कराघात तथा करापात दोनों ही एक ही व्यक्ति पर पड़ता है। इस कर का भार दूसरे व्यक्ति पर टाला नही जा सकता है।
  • प्रत्यक्ष कर में निम्नलिखित गुण पाये जाते है-
    1. प्रत्यक्ष कर प्रगतिशील होते हैं। इसका भार निर्धन व्यक्ति पर कम तथा धनी व्यक्ति पर अधिक पड़ता है। ये कर आय की असमानता को दूर करते है । 
    2. इस कर को एकत्र करने के सरकार को अधिक व्यय नही करना पड़ता है। करदाता को स्वयं ही ये कर सरकार के पास जमा करने पड़ते है ।
    3. यह कर निश्चितता के सिद्धांत पर आधारित होते है । करदाता को पता होता है कि उनको कितना कर कब, कहाँ और कैसे देना है।
    4. यह कर लोचदार होते है। सरकार इस कर की दर को आसानी से घटा बढ़ा सकती है।
    5. प्रत्यक्ष कर सरल होते है तथा इनसे संबंधित कानून काफी स्पष्ट होते है। इनको समझना व इनका ब्योरा रखना कोई कठिन कार्य नहीं है।
    6. इस कर का भुगतान करना आसान होता है। इन करो का भुगतान अधिकतर उसी समय करना होता है जब लोगों के पास भुगतान करने की सुविधा होती है।
  • प्रशासनिक कठिनाइयों के कारण प्रत्यक्ष कर में कई प्रकार के दोष (Demerits) पाये जाते है। प्रत्यक्ष कर में पाये जाने वाले प्रमुख दोष निम्न है- 
    1. प्रत्यक्ष कर लोकप्रिय नहीं पाते है। करदाता को ये कर अधिक कष्ट दायक प्रतीत होते है। इन करो से बचने के लिए वह कपटतापूर्ण तरीके अपनाने के लिए मजबूर हो जाता है। 
    2. प्रत्यक्ष कर से बचना आसन होता है। व्यक्ति अपनी आय को कम बताकर इस कर से बच जाते है।
    3. इन करो में कभी-कभी भुगतान संबंधी कठिनाइयाँ का भी सामना करना पड़ता है। करदाता को कर के रूप में दी जाने वाली राशि को निर्धारित करने के लिए आयकर अधिकारियों के पास कई बार जाना पड़ता है, उसे अपना हिसाब-किताब दिखाना पड़ता है।
    4. कुछ प्रत्यक्ष कर ऐसे है जिन्हे एकत्र करने में सरकार को काफी खर्च करना पड़ जाता है।
    5. प्रत्यक्ष कर को लगाने का कोई स्पष्ट तरीका नहीं होने के कारण सरकारी अधिकारी मनमाने ढंग से इस कर को आरोपित कर देते है जिससे भ्रष्टाचार की संभावना बढ़ जाती है।
    6. प्रत्यक्ष कर पूंजी निर्माण में बाधक होते है। इस कर से लोगों का बचत कम हो जाता है जिससे पूंजी निर्माण की दर घट जाती है।

प्रमुख प्रत्यक्ष कर

1. आयकर (Income Tax)
  • भारत में आयकर सबसे पहले 24 जुलाई, 1860 में लगाया गया था। भारत में बजट के जनक माने जाने वाले जेम्स विल्सन ने 1860 में भारत के पहले बजट में आय कर लगाया था। उस समय भारत के वायसराय लॉर्ड केनिंग थे।
  • 24 जुलाई 2010 को आयकर लगाये जाने का 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में 24 जुलाई को आयकर दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • आय कर व्यक्ति के विभिन्न आय स्त्रोतो पर लगाया जाता है। व्यक्ति के आय के प्रमुख स्त्रोत है- वेतन, व्यापार, व्यवसाय, सम्पत्ति, ब्याज प्राप्ति, लाभांस आदि ।
  • 2019-20 की बजट के अनुसार रू 5 लाख वार्षीक आय पर कोई आय कर देय नही होगा ।
  • वर्तमान में आय कर का नियमन आयकर अधिनियम 1961 द्वारा होता है।
  • कृषि से हुए आय पर कर लगाने का सुझाव सबसे पहले के. एन. राज समिति (1972) ने दिया था। यह कर सबसे पहले बिहार में 1938 में लगा था।
2. निगम कर (Corporate Tax)
  • कम्पनियों की निवल लाभ (आय) पर लगाये गये कर को निगम कर या कंपनी लाभ कर कहा जाता है। इस कर को कंपनी अधिनियम 1956 के तहत आने वाले सभी निजी और सार्वजनिक कम्पनी पर लगाया जाता है।
  • यह कर भी आयकर अधिनियम 1961 के तहत लगाया जाता है। 1960-61 के पूर्व कम्पनियों के लाभ पर जो कर लगता था उसे सुपर टैक्स कहा जाता था ।
  • 2019-20 में निगम कर रू 400 करोड़ टर्नओवर तक 25% तथा इसके ऊपर 30% है।
  • वर्तमान समय में निगम कर भारत सरकार के राजस्व प्राप्त करने का सबसे बड़ा स्त्रोत है और यह कर केंद्र सरकार राज्यों के मध्य विभाजित नहीं करता है।
3. न्यूनतम वैकल्पिक कर (Minimum Alternative Tax MAT)
  • शून्य कर कम्पनी (Zero Tax Company)- एसी कम्पनी जिसका शुद्ध लाभ धनात्मक है परंतु सरकार द्वारा प्रदान की गई रिसायत के कारण कम्पनी का कर योग्य लाभ शून्य हो जाता है, तो इसे शून्य कर कम्पनी कहते है। यह कम्पनी निगम कर के दायरे से बाहर हो जाती है।
  • शून्य कर कम्पनी को कर दायरे में लाने हेतु 1988-89 में MAT लागू किया गया परन्तु 1991-92 के आर्थिक सुधारों के दौरान इसे वापस ले लिया गया।
  • इस कर को पुनः 1997-98 के बजट में वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम के द्वारा लागू किया गया। MAT की दर निगम कर की दर से कम होता है। MAT उन्ही कम्पनी पर लागू होता है जिसका शुद्ध लाभ कम से कम रू. 20 लाख हो |
4. संपत्ति कर (Property Tax)
  • लोगों द्वारा अर्जित आय के कारण आर्थीक बिषमता में वृद्धि न हो इस कारण केंद्र सरकार एक सीमा के बाद सम्पत्ति पर भी कर लगाती है।
  • सम्पत्ति कर के अंतर्गत तीन कर आते है- धन कर ( Wealth Tax), उपहार कर (Gift Tax) तथा इस्टेट ड्यूटी (Estate duty)
  • इस्टेट ड्यूटी (Estate duty)- यह पूर्वजों से प्राप्त संपत्ति पर लगाने वाला Tax है, जिसे उत्तराधिकारी से वसूला जाता है। इस कर को उत्तराधिकार कर भी कहते है।
  • इस्टेट ड्यूटी भारत में पहली बार 1953 में लगाया गया था। इस कर को एल. के. झा कमिटी के सिफारिश पर 1985 में समाप्त कर दिया गया।
  • भारत में 1953 से 1986 कर इस्टेट ड्यूटी लागू रहा । इस कर की वित्त मंत्री सी. डी. देशमुख द्वारा लागू किया गया तथा जिस समय समाप्त किया गया उस समय वी. पी. सिंह वित्त मंत्री थे।
  • उपहार कर (Gift Tax) - किसी व्यक्ति से बिना किसी प्रतिफल के प्राप्त चल/अचल संपत्ति को उपहार कहा जाता है और इस. पर जो कर आरोपित होता है उसे उपहार कर कहते है। यह कर पहली बार 1958 में लगाया गया था परंतु 1998 में इसे समाप्त कर दिया गया। :
  • 2002-03 में इसे नये सिरे से फिर से लागू किया गया। 2002-03 में यह व्यवस्था बनायी गई कि व्यक्ति को रू 25,000 (वर्तमान में रू.50,000) से अधिक का उपहार प्राप्त होता है तो यह राशि उसके आय में जोड़कर अन्य आय की ही तरह इस पर भी आयकर देय होगा ।
  • उपहार कर वर्तमान में उपहार की इस कर समाप्त कर दिया गया है। यह कर को आयकर में ही समाहित कर दिया गया है। विवाह के समय प्राप्त बाहर रखा गया है।
  • धन कर (Wealth Tax) - इस कर को लगाने की संस्तुति निकोलस केल्डार ने 1957 में की थी। यह कर राज्य सरकार लगाती है। इसके तहत प्रत्येक वर्ष संपत्ति का मूल्यांकन करके कर लगाया जाताह है। इस कर की दर 1 प्रतिशत थी परंतु 2009-10 के बजट में इसे कर को समाप्त कर दिया गया।
  • इस तरह से तीनों ही सम्पत्ति कर इस्टेट ड्यूटी, उपहार कर, धन कर वर्तमान के समाप्त कर दिये गये है।
5. पूंजी लाभ कर (Capital Gains Tax)
  • जब कोई प्रतिभूती ( शेयर, बॉण्ड, डिवेन्चर ) या मकान अपने निर्माण लागत / क्रयलागत से अधिक मूल्य पर बिकता है तो इसे पूंजी लाभ कहते है। इस पर जो कर आरोपित होता है, वह पूंजी लाभ कर कहलाता है।
6. फ्रिंज लाभ कर (Fringe Benefit Tax)
  • एक नियोक्ता अपने कर्मचारी को वेतन के अतिरिक्त मनोरंजन, उपहार, रहने के लिए घर, यातायात सुविधा, फोन, रिटायरमेंट फण्ड आदि जैसे सुविधा देती है। इसे ही फ्रिंज लाभ कहते है।
  • इस पर जो कर आरोपित होता है उसे फ्रिंज लाभ कहते है। इस कर की शुरूआत 2005-06 में किया गया था जिसे 1 अप्रैल 2009 को समाप्त कर दिया गया।
7. प्रतिभूति विनिमय कर ( Securities Transaction Tax)
  • घरेलु स्टॉक एक्सचेंज में प्रतिभूतियों (शेयर, बॉण्ड, आदि) के लेन-देन पर लगाये जाने वाले कर को प्रतिभूति विनिमय कर कहते है।
  • इस कर की शुरूआत 1 अक्टूबर 2004 में हुई थी। इस कर की दरें केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित की जाती है एवं यह कर स्टॉक एक्सचेंज से वसूला जाता है।
  • प्रत्यक्ष करो की उगाही से जुड़े सभी मामलों का निपटारा तथा प्रत्यक्ष कर से संबंधित कानूनों के नियमन हेतु " सेंट्रल बोर्ड ऑफ डाइरेक्ट टैक्सज' (CBDT) उत्तरदायी है ।
  • CBDT की स्थापना सेंट्रल बोर्ड ऑफ रेवेन्यू एक्ट 1963 के अंतर्गत किया गया। इसने 1 जनवरी 1963 से काम करना शुरू किया ।
  • CBDT राजस्व विभाग के अंतर्गत आते है। इसमें अध्यक्ष के अलावे 5 सदस्य होते है।
  • कमोडिटीज ट्रैंजेक्शन टैक्स (CTT) ऐसा प्रत्यक्ष कर है जो लागू से पहले ही समाप्त हो गया । CTT की में कई गई थी जबकि 1 अप्रैल 2009 को इसे समाप्त कर दिया गया ।

अप्रत्यक्ष कर ( Indirect Tax)

  • अप्रत्यक्ष कर वे कर है जिन का प्रारंभिक भार एक व्यक्ति पर पड़ता है, परंतु उस भार को वह दूसरो पर टालने में सफल हो जाता है।
  • अप्रत्यक्ष कर के संबंध में कराधान (Impact) एक व्यक्ति पर पड़ता है जबकि करापात (Incidence) किसी और व्यक्ति को उठाना पड़ता है।
  • अप्रत्यक्ष कर में निम्नलिखित गुण पाये जाते है-
    1. अप्रत्यक्ष कर प्रत्यक्ष कर के तुलना में सुविधा जनक होते है। करदाता को कर का भार अनुभव नही होता है। जैसे- कोई समान खरीदते समय ग्राहक ब्रिकी कर अदा करते है जिसका अनुभव भी उन्हें नही होता है ।
    2. अप्रत्यक्ष क़र अधिकांशतः वस्तु के कीमत में शामिल रहते हैं अत: इस प्रकार के करो से बचना प्रत्यक्ष करो की अपेक्षा कठिन है I
    3. अप्रत्यक्ष कर लोचदार स्वरूप के होते हैं। कर की आ जाती है। र को बढ़ाने या कमी करने पर सरकार की आय में काफी वृद्धि या कमी आ जाती है ।
    4. इस कर की सहायता से सरकार हानिकारक उपभोग पर प्रतिबंध लगाते है। जैसे- शराब, सिगरेट पर भारी मात्रा में ब्रिकी कर आरोपित कर कीमते बढ़ा दी जाती है ताकि त्रिकी कम से कम हो ।
    5. प्रत्यक्ष कर के तुलना में अप्रत्यक्ष कर का दायरा काफी विस्तृत होता है। वास्तव में लगभग प्रत्येक व्यक्ति को किसी न किसी रूप में ये कर देने पड़ते है।
    6. इन करो की सहायता से देश के आंतरिक उद्योगों को विदेशी प्रतियोगिता से बचाया जा सकता है। आयात-निर्यात करो का उपयोग इसी उद्देश्य के लिए किया जाता है।
  • अप्रत्यक्ष करो में पाये जाने वाले प्रमुख दोष-
    1. अर्थशास्त्रियों के अनुसार अप्रत्यक्ष कर प्रतिगामी स्वरूप के होते है। इसका भार धनी व्यक्ति पर कम तथा निर्धन व्यक्ति पर अधिक पड़ता है।
    2. इस कर की मात्रा अनिश्चित होती है। इस कर के संबंध में यह अनुमान नही लगाया जा सकता कि वास्तव में सरकार को कितनी आय प्राप्त होगी । 
    3. अप्रत्यक्ष कर की एकत्र करने में सरकार को काफी अधिक धन का व्यय करना पड़ता है।
    4. अप्रत्यक्ष कर का अंतिम रूप से भुगतान देश के नागरिक ही करते है परंतु उन्हें यह पता ही नही चलता है कि उन्होनें कब और कितनी मात्रा में कर अदा किये है।
    5. प्रत्यक्ष कर की तरह अप्रत्यक्ष कर की भी चोरी की जाती है। जैसे- दुकानदार कई बार ग्राहक से ब्रिकी कर वसूल तो कर लेते है परंतु उन्हें कैशमेमो नहीं देते हैं और दुकानदार ये कर सरकार को नहीं चुकाते है।
    6. अप्रत्यक्ष कर वस्तु के कीमत को बढ़ाते है जिससे लोगों को अपनी आय का अधिक भाग वस्तुओं को खरीदने पर व्यय करना पड़ता है जिसके कारण बचत प्रभावित होता है।

प्रमुख अप्रत्यक्ष कर

1. सीमा शुल्क (Custom Duty)
  • देश में आयातित वस्तु अथवा देश से निर्यातित वस्तु पर लगाये जाने वाले कर को सीमा शुल्क कहते है।
  • आयातित की जाने वस्तु पर लगे शुल्क आयात शुल्क कहलाते है तथा निर्यात की जाने वाले वस्तु पर लगे को निर्यात शुल्क कहते है। परंतु वर्तमान में निर्यात शुल्क नहीं लगाये जाते है इसलिए आयात शुल्क ही सीमा शुल्क का पर्याय हो गया है।
  • आर्थिक सुधारों से पहले सीमा शुल्क की दर काफी उच्च थी, कुछ मामलो में इस कर की दर 300% से भी ज्यादा था परंतु 1995 में इस कर को घटाकर 50% तक ला दिया गया है। 
2. सेवा कर (Service Tax)
  • यह कर चैलैया समिति के सिफ़ारिश पर 1994-95 के केंद्रीय बजट में शुरू किया गया था ।
  • सर्वप्रथम 1994-95 में तीन सेवा - टेलीफोन, सामान्य बीमा तथा स्टॉक ब्रोकर्स पर 5% की दर से सेवा कर लगाया गया था।
  • वर्तमान में इस कर को GST से मिला दिया गया है।
3. केंद्रीय उत्पाद शुल्क (Central Excise Duty)
  • देश के भीतर उत्पादित वस्तु पर लगाये जाने वाले कर को उत्पाद शुल्क कहते है। केंद्र सरकार औद्योगिक तथा कृषि वस्तुओं (चाय, कॉफी छोड़कर) पर उत्पाद शुल्क लगा सकती है।
  • मादक वस्तु जैसे- शराब, तम्बाकू उत्पाद, गाँजा पर राज्य सरकार उत्पाद शुल्क लगाता है। परंतु सिगरेट के उत्पादन पर केंद्र सरकार उत्पाद शुल्क लगाता है।
4. मूल्यवृद्धि कर या वैट (Value Added Tax)
  • यह वह अप्रत्यक्ष कर है जो उत्पादन की विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले मूल्यवृद्धि पर लगाया जाता है। उत्पाद के मूल्य तथा मध्यवर्ती वस्तुओं के मूल्य के अंतर को मूल्य वृद्धि कहते है।
  • VAT वास्तव में उत्पादन के प्रत्येक वरण बिक्री कर है जो उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर मूल्यवृद्धि पर ही लगाया जाता है। इस विधी में पहले स्तर पर बिक्री कर लगाया जाता है। इसके बाद उत्पादक को मध्यवर्ती वस्तुओं की खरीद पर अदा किए गये करो की पूर्ण कटौती कर दी जाती है। इस प्रकार उत्पादक सरकार को केवल मूल्य वृद्धि पर ही कर का भुगतान करता हैं ।
  • भारत में केंद्र सरकार उत्पादन शुल्क के स्थान पर VAT आरोपित करती है जिसे CENVAT ( वेनवैट) कहते है और राज्य सरकार बिक्री कर (या व्यापार कर) के स्थान पर VAT आरोपित करती है।

VAT : टाइमलाइन

→ वैट का प्रथम प्रतिपादन 1918 में एफ. वान सीमेन्स ने किया था आगे चलकर मारिश फोर तथा कार्लशूप जैसे अर्थशास्त्रियों ने इसे और विकसीत किया।
→ सर्वप्रथम वैट 1918 में जर्मनी में लागू हुआ परंतु जर्मनी में यह सफल नही रहा ।
→ सफलतापूर्वक वैट को लागू करने वाला प्रथम देश फ्रांस है जहाँ VAT 1954 में लागू किया गया। 1967 तक यह समस्त यूरोपियन देश में लागू हो गया।
→ वर्तमान में लगभग सभी एशियाई देशों में VAT लागू है। परंतु USA (अमेरिका) में अब तक VAT को लागू नही किया है।
→ भारत में अप्रत्यक्ष कर के वर्तमान स्वरूप जाँच हेतु 1976 में एल. के. झा समिति का गठन हुआ था। झा कमेटी ने यह सुझाव दिया कि भारत के वर्तमान प्रशासनिक व्यवस्था के तहत VAT को लागू करना संभव नहीं है हाँलाकि कमेटी ने यह सिफारिश की प्रायोगिक तौर पर इसे विनिर्माण क्षेत्रों के उत्पादन पर लगाया जा सकता है। विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन पर लगाये गये VAT को MANVAT (मैन्युफैक्चरिंग वैट) कहा गया । परंतु यह लागू नही हो पाया
→ उत्पाद शुल्क के इतिहास में 1986 का वर्ष एक ऐतिहासिक वर्ष माना जाना चाहिए क्योकि इसी वर्ष 1 मार्च 1986 को बी. पी. सिंह (तात्कालिन वित्तमंत्री) ने MODVAT लागू किया। MODVAT MANVAT का सुधारा गया रूप है जिसे Modified VAT या MODVAT कहा गया।
→ MODVAT के तहत यह व्यवस्था की गई कि किसी उत्पादक ईकाई (उत्पादन करने वाला कम्पनी) ने अपने उत्पाद में प्रयुक्त आगत (कच्चा माल) पर जो उत्पाद कर दिया है उसे उसके कुल दर दायित्व से घटा दिया जाएगा।
→ 1991 में उत्पाद शुल्क के संदर्भ में 2 प्रकार के दर लागू थी जिससे कर ढाचाँ काफी जटिल बन गया था। इस कर ढाचाँ के कभी वस्तुओं (उत्पाद) के वर्गीकरण को लेकर झगड़े होते थे तो कभी भ्रष्टाचार की समस्या उजागर होती थी ।
→ 2000-01 के बजट के उत्पाद शुल्क के विभिन्न दरो को मिलाकर 16% की एक मानक उत्पादन शुल्क दर सभी उत्पाद पर लागू कर दिया गया और इसे CENVAT (Central VAT) का नाम दिया गया।
→ इस प्रकार सैनवैट (CENVAT), मॉडवैट (MODVAT) का एक रूप है और इसे भी उत्पाद शुल्क के स्थान पर प्रत्यारोपित किया गया। MODVAT तथा CENVAT में मुख्य अंतर यह है कि MODVAT के अन्तर्गत कई प्रकार के उत्पाद शुल्क की दरे प्रचलित थी जबकि . CENVAT प्रणाली में 16% की एक मात्र दर प्रचलित होगी ।
→ 1991 में गठित चेलैया समिति ने यह सुझाव दिया किं धीरे-धीरे राज्य स्तर पर बिक्री कर के जगह स्टेट बैट लागू कर देना चाहिए। VAT को दर पर केंद्र सरकार द्वारा लगाया जाना चाहिए तथा वसूली गयी राशि राज्यों को मिलनी चाहिए।
→ 1 अप्रैल 2003 से वैट लागू करने पर केंद्र तथा राज्यों के बीच सहमति बनी और इसे लागू कर दिया गया परंतु इस तिथी को एकमात्र राज्य हरियाणा ने अपने यहाँ वैट को लागू किया।
→ धीरे-धीरे भारत के सभी राज्यों में वैट लागू हो गया। सबसे अंत में वैट उत्तर प्रदेश द्वारा 1 जनवरी 2008 को लागू किया गया।
→ वैट (VAT) के तीन रूप है- उपभोग प्रकार का वैट (Consumption type VAT), आय वैट (Incomé VAT) तथा उत्पाद प्रकार का वैट (Product type VAT)
→ उपभोग प्रकार का वैट सबसे प्रचलित वैट है। भारत में इसी प्रकार का वैट लागू है। उपभोग प्रकार का वैट को रिटेल सेल्स टाइप वैट भी कहते है।
→ उपभोग प्रकार के वैट, फ्रांस में वैट लागू होने के बहुत समय बाद सबसे पहले ब्राजिल में हुआ।
→ वर्तमान समय में वस्तु तथा सेवाओं के उत्पादन तथा उपभोग पर लगने वाले करो को जी एस टी (GST) के मिला दिया गया है। GST लागू करने का भी आधार वही है जो वैट का है।
5. क्रय कर (Purchase Tax)
  • यह कर कुछ राज्य (पंजाब, हरियाणा ) ने कृषि उत्पाद जैसे गेहूँ की खरीद पर लगाया है।
  • इस कर को भी वर्तमान GST के अंतर्गत शामिल करने का विचार हैं परंतु कर आरोपित करने वाले राज्य विरोध कर रहे है।
  • अप्रत्यक्ष करो से सम्बन्धित सभी राजस्व समस्याओं का नियमन तथा नियंत्रण राजस्व विभाग के केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड (Central Board of Excise and Custom ) द्वारा होता है।
  • बहुत से अर्थशास्त्री करो को प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष आधार पर वर्गीकरण न करके करो का कर आधार पर वर्गीकरण करते है। यह वर्गीकरण निम्न है-
    • आय आधार पर लगने वाले कर
      1. आयकर
      2. निगम कर
      3. पूंजी लाभ कर
      4. व्यय कर आदि
    • सम्पत्ति के आधार पर लगने वाले कर
      1. सम्पत्ति कर
      2. इस्टेट ड्यूटी
      3. उपहार कर
    • वस्तु तथा सेवा के आधार पर लगने वाले कर
      1. उत्पाद शुल्क
      2. सीमा शुल्क
      3. GST

उपकर तथा अधिभार (Cess and Surcharge)

  • कर एक प्रकार का अनिवार्य अंशदान है जिसे सरकार किसी उद्देश्य विशेष की पूर्ति के लिए नही लगाता है इसके विपरित उपकर तथा अधिभार दोनों ही किसी उद्देश्य विशेष की पूर्ति के लिए राजस्व के उगाही के लिए लगाये जाते है।
  • उपकर कर के साथ कर आधार पर ही किसी विशेष प्रायोजन पर लगाया जाता है जबकि अधिभार कर के ऊपर कर है जिसकी गणना कर दायित्व पर की जाती है।
  • सामान्यत: उपकर प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों करों के साथ लगाया जाता है जबकि अधिभार प्रत्यक्ष कर पर लगाया जाता है।
  • अधिभार तथा उपकर से प्राप्त राशि राज्यों के बीच नहीं बाटाँ जाता है, इससे प्राप्त राजस्व को उन्हीं उद्देश्यों पर लगाया जाता है जिनके लिए इन्हें लगाया गया है।

कर, शुल्क (Duty) तथा फीस में अंतर

  • कर (Tax)- जब बिना आवश्यक रूप से लाभ प्राप्त किए, कर आधार से सम्बन्धित होने के कारण भुगतान किया जाता है तो इसे कर कहते है। यानि कर के बदले किसी भी प्रकार की सेवा प्राप्त करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है।
  • शुल्क (Duty) - जब सरकार द्वारा प्रदत्त सुविधाएँ (जैसे- सड़क, बिजली, संचार, बैंकिंग, पोर्ट आदि) के प्रयोग से या लाभ प्राप्त कर के व्यक्ति कोई आर्थिक क्रिया करता तो इनके बदले जो अनिवार्य भुगतान किया जाता है उसे शुल्क कहते है। जैसे उत्पाद शुल्क, आयात शुल्क आदि। परंतु बहुत से देशों में शुल्क को भी कर ही कहा जाता है।
  • फीस (Fees) - सरकार द्वारा व्यक्तियों को प्रदान की जाने वाली सेवाओं के लिए दिया गया भुगतान फीस कहलाता है। फीस की रकम साधारण तथा उसके बदले में दी जाने वाली सेवा की लागत के बराबर होती है। जैसे - जन्म, मृत्यु के रजिस्ट्रेशन फीस भूमि का रजिस्ट्रेशन फीस आदि ।
  • चुंगी (Octroi) - चुंगी एक प्रकार अप्रत्यक्ष कर है और इसे प्रवेश कर (Entry Tax) भी कहते है। इसे स्थानीय सरकार (नगर निगम, नगर पंचायत, पंचायत) लगाती है। अधिकांश राज्यों में इसे समाप्त कर दिया गया है।

कर लोच (Tax Elasticity)

  • राष्ट्रीय आय में वृद्धि के परिणाम स्वरूप कर राजस्व में होने वाले वृद्धि के बीच पाये जाने वाले सम्बन्ध को कर लोच कहते है।
    • कर लोच = कर राजस्व में % परिवर्तन / राष्ट्रीय आय के प्रतिशत परिवर्तन

टैक्स रिटर्न (Tax Return)

  • टैक्स रिटर्न एक प्रकार का विवरण जिसे कर मुक्त आय से अधिक आय अर्जित करने वाला व्यक्ति को अनिवार्य रूप से भरना पड़ता है। यह विवरण में अर्जित आय के स्त्रोत, व्यक्ति द्वारा किये गये उन विनियोगो का विवरण देना होता है जिन पर आयकर में है। छूट इसके अलावे भी कई प्रकार के सूचनायें टैक्स रिटर्न फॉर्म में भरना पड़ता है।
  • टैक्स रिटर्न भरने के निश्चित तिथि की घोषण आयकर विभाग द्वारा किया जाता है तथा निश्चित तिथि से पहले टैक्स रिटर्न भर देना अनिवार्य होता है।
  • वर्तमान में रू. 5 लाख (वार्षिक) से अधिक आय वालो के लिये ऑनालइन (online) टैक्स रिर्टन भरना अनिवार्य है।

कर आश्रय (Tax Haven)

  • कुछ देश विदेशी नागरिकों को यह सुविधा देता है कि उस देश में रहकर जो व्यापार करेगें या वहाँ के उद्योगों में निवेश करेंगे उस पर उनको कर नहीं देना होगा या न्यूनतम मात्रा में ही कर देना होगा। ऐसे ही देश को Tax Haven कहते है ।
  • मॉरीशस, साइप्रस, सिंगापुर जैसे देश Tax Haven देशों के श्रेणी में आते है।

कर उत्प्लवता (Tax Bouyancy)

  • राष्ट्रीय आय तथा सरकार द्वारा कर ढांचे के सम्बन्ध में सुधार हेतु उठाये गये कदम के परिणामस्वरूप कर राजस्व में होने वाले परिवर्तनों के बीच के संबंध को कर उत्प्लवता कहते है । कर उत्प्लवता की गणना करते समय सम्पूर्ण राष्ट्रीय आय को आधार न लेकर जी. डी. पी. को ही लेते है।
  • आर्थिक समीक्षा (2015-16) के अनुसार- 

       

स्थायीखाता संख्या या पैन (Permanent Account Number or PAN)

  • पैन 10 अल्फा न्यूमेरिक की तरह एक संख्या जो राष्ट्रीय स्तर पर आयकर विभाग द्वारा जारी की जाती है। पैन का उद्देश्य संभावित आयकर दाताओं को चिह्नित करना है। पैन कार्ड में आयकर दाता ( या संभावित आयकर दाता) के नाम, फोटो, जन्म तिथि तथा हस्ताक्षर होता है, इस पर निवास स्थान का पता नहीं दिया रहता है।
  • पैन के पहले तीन अक्षर एक निश्चित सिरीज के रूप में अनवतर जारी है जो AAA से ZZZ तक होता है। (उदा. - AECPY7315P)
  • पैन का चौथा लेटर पैन धारक की स्थिति बतलाता है जैसे ( P = पर्सनल या इन्डिविजुअल हेतु, H = हिन्दु अनडिवाइडेड फैमिली हेतु, फर्म हेतु, A = सरकार हेतु उदा. - AECPY73159)
  • पैन का पाँचवा लेटर पैन धारक के सरनेम को व्यक्त करता है जैसे - लाल सर नम हेतु = L, झा सरनेम हेतु = J, यादव सरनेम हेतु Y.
  • पैन का 6ठें से लेकर 9वें अंक 0001 से 9999 तक हो सकता है। यह चार अंक पंजीकरण सिरीज व्यक्त करते हैं।
  • पैन के अंतिम अल्फावेट एक निर्धारित सूत्र के अनुसार आयकर विभाग तैयार करता है।
  • पैन प्रणाली का शुरूआत 1998 में हुई थी, पैन प्रणाली से पहले 'सामान्य परिचय पंजीकरण संख्या' प्रभावी था।

स्त्रोत पर कटौती या टीडीएस (Tax deducted at source or TDS)

  • जब कोई संस्था व्यापारिक कम्पनी या व्यक्ति अन्य व्यक्ति को वेतन, व्याज, लाभांस या अन्य रूप से कोई भुगतान करता है तो यह अनिवार्य है कि वह भुगतान के समय उस आय में आयकर अधिनियम के तहत निश्चित दर पर कटौती कर ले इसी कटौती को TDS कहते है।
  • TDS का सीधा अर्थ है व्यक्ति के आय का कुछ प्रतिशत (जो सरकार द्वारा निश्चित है ) व्यक्ति को आय देने वाला संस्था द्वारा काट लेना। TDS जिसका कटता है उसे Deductee कहते है। तथा TDS जो काटता है उसे Deductor कहते हैं। Deductor को TDS की राशि निश्चित समय के भीतर सरकार को जमा करना पड़ता है नही तो सरकार Deductor पर ब्याज और पेनल्टी लगा सकता है।
  • TDS काटने वाला संस्था आय प्राप्तकर्त्ता के सभी जानकारी आयकर विभाग को देता है। आय प्राप्त कर्त्ता को टैक्स रिर्टन भरते समय TDS का उल्लेख करना अनिवार्य है। आयप्राप्तकर्त्ता अगर कर दायरे में आता है तो TDS की राशि का कर दायित्व से समायोजित कर दिया जाता है अगर आय प्राप्तकर्त्ता कर दायरे में नहीं आता है तो टैक्स रिटर्न भरते समय टी डी एस रिफंड का क्लेम कर सकते है।
  • TDS के पीछे का उद्देश्य यही है कि कर चोरी को कम से कम किया जाए।

कर अपवंचन (Tax Evasion)

  • कर दायरे में आने के बावजूद भी कर का भुगतान नहीं करना या टैक्स रिटर्न नही भरना या टैक्स रिटर्न में भ्रामक जानकारी देकर कर से बच जाना कर अपवंचन कहलाता है।
  • कर अपवंचन गैर-कानूनी क्रिया है और यह अपराध के श्रेणी में आता है। | 

कर बचाव (Tax Avoidance)

  • अपने आय तथा सम्पत्ति को चाटर्ड एकाउन्टेन्ट की सलाह या सहायता इस प्रकार व्यवस्थित करना ताकि कर दायरे से बाहर हो जाए या न्यूनतम कर अदा करना पड़े इसे कर बचाव कहते है।
  • इस तरह से कर बचाव कानूनन अपराध नहीं है।

ग्रैच्युटी (Gratutity)

  • किसी नियोक्ता द्वारा अपने कर्मचारी को उसकी लगातार सेवाओं के बदले सेवा अवकाश पर दी जाने वाले एकमुश्त रकम को ग्रैच्युटी कहते है।
  • ग्रैच्युटी की गणना कर्मचारी के औसत वेतन, महगायी भत्ता तथा कर्मचारी द्वारा की गई सेवा के आधार पर की जाती हैं। समान्यतः 1 वर्ष की सेवा पर 15 दिन को ग्रैच्युटी की गणना के लिए लिया जाता है तथा ग्रैच्युटी प्राप्त करने के लिए न्यूनतम सेवा अवधि 5 वर्ष है। 

अग्रिम कर ( Advance Tax)

  • व्यापारिक ईकाई, कम्पनी तथा पेशवरो के लिए यह अनिवार्य है कि वे कर निर्धारण वर्ष में अपने कर दायित्व का कुछ भाग मार्च से पूर्व अग्रिम रूप से सरकार के पास जमा करें। इसे ही अग्रिम कर कहते है।
  • जिस किसी का कर दायित्व किसी वित्तीय वर्ष में रू. 10000 है उसे अग्रिम कर देना अनिवार्य है।

पूर्वकल्पित कर ( Pressumptive Tax)

  • इस कर को लगाने की सिफारिश 1991 में गठित चैलैया समिति ने की थी जिसे सर्वप्रथम 1991-92 में लागू किया गया परंतु बाद में इसे समाप्त कर दिया गया। इसकी पुनः शुरूआत 2009-10 में किया गया है।
  • वर्तमान व्यवस्था के अनुसार छोटे तथा मध्यम कम्पनी जिसकी कुल बिक्री रू. 2 करोड़ से अधिक नही है तो वह अपने सकल बिक्री का 8% आय मानकर उस पर कर दे सकती है। इसे ही पूर्व- कल्पित कर कहा जाता है। पूर्वकल्पित कर देने वाली इकाई को कारोबार का लेखा जोखा रखने से मुक्त कर दिया जाता है।

लैफर वक्र (Laffer Curve)

  • अर्थशास्त्री आर्थर लैफर द्वारा प्रतिपादित यह वक्र राजस्व प्राप्ति तथा कर के दर के बीच का संबंध बतलाता है। इस वक्र के अनुसार कर की एक इष्टतम दर पर ही अधिक राजस्व की प्राप्ति की जा सकती है।
  • अगर कर की दर इष्टतम दर से कम है तो कम राजस्व की प्राप्ति होगी अगर कर की दर इष्टतम दर से अधिक की प्रवृत्ति बढ़ेगी। 

रैमसे टैक्स रूल (Ramsy Tax Rule)

  • यह रूल कर के कुशल सिद्धांत (Efficient rule of Taxation) से सम्बन्धित है।
  • इस रूल के अनुसार सरकार को उन आगतो ( Inputs) तथा निर्गतो (Output) पर भारी करारोपण करनी चाहिए जिसकी मांग और पूर्ति अधिक बेलांच हैं (जैसे- सिगरेट की मांग)
  • इस रूल के तहत सरकार आर्थिक कुशलता को न्यूनतम हानि पहुँचाये बिना अधिक राजस्व प्राप्त कर सकता है।

विवरण- पत्र पहचान संख्या (Documents Identification Number or DIN)

  • करदाताओं की शिकायत में कमी लाने हेतु DIN प्रणाली की शुरूआत 2009-10 के बजट में की गई।
  • आयकर विभाग करदाता को प्रत्येक व्यवहार के संबंध में कम्प्यूटर जेनटेटेड एक नम्बर देता है जिसे DIN कहते है। इसके द्वारा करदाता की शिकायत तथा उसके संबंध में उठाये गये कदम के बिना विलम्ब पहचान किया जा सकता है।

वस्तु तथा सेवा कर या जीएसटी (Goods and Service Tax)

  • सर्वप्रथम GST, वैट नाम से 1954 में फ्रांस में लागू किया गया था। जी एस टी का आधार वही है जो वैट का है। वस्तुओं तथा सेवाओं पर लगने वाले वैट या उत्पाद शुल्क, सेवाकर की अलग-अलग दरें अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को अत्यंत ही जटिल स्वरूप में ला दिया था इसलिए केंद्र और राज्य सरकार के सभी अप्रत्यक्ष कर ( उत्पाद शुल्क, VAT, सेवा कर) को एक साथ समाहित कर दिया गया है और इसे GST नाम दिया गया। भारत का GST मॉडल कनाडा के उपभोग वैट मॉडल पर आधारित है।

GST का विकास क्रम

  • GST लागू होने की प्रक्रिया 1 मार्च 1986 में MODVAT के लागू होने साथ प्रारम्भ हुई।
  • 1999 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने GST मॉडल का प्रारूप तैयार करने हेतु असिम दास गुप्ता की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी।
  • 2002 गठित केलकर समिति ने 2005 में GST लागू करने की सिफारिश की। 12 वें वित्त आयोग ने भी 2005 में GST लागू की सफारिश की थी।
  • फरवरी 2006 में तत्कालिन वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम ने 1 अप्रैल 2010 से जी एस टी लागू करने की घोषना की परंतु यह लागू नही हो पाया।
  • जब भारत के वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी बने तो उन्होंनें जी एस टी लागू करने का पूरा प्रयास किया और लागू करने हेतु संसद में संविधान संशोधन प्रस्तुत किया परंतु राजनैतिक कारणों से इस बार भी GST लागू नही हो सका ।
  • 2014 में जब पूर्ण बहुमत की NDA सरकार बनी तो पुन: GST लागू करने के प्रयासो में तेजी आयी ।
  • अंतत: GST लागू करने के संबंध में 101 वाँ संविधान संशोधन संसद में पारित हुआ । 8 दिस्मबर 2016 को तत्कालिन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हस्ताक्षर के बाद 1 जुलाई 2017 को पूरे भारत में GST लागू हो गया ।
  • 101 वें संविधान संसोधन के तहत संविधान में तीन नये अनुच्छेद जोड़ों गये है। अनुच्छेद 246A (GST के संबंध में नयी व्यवस्था) अनुच्छेद 269A (अंतराज्यीय व्यापार के संबंध में GST) तथा 279A ( जी एस टी कौंसिल)

GST में शामिल अप्रत्यक्ष कर

केंद्र सरकार का अप्रत्यक्ष कर
1. केंद्रीय उत्पाद शुल्क
2. अतिरिक्त उत्पाद शुल्क
3. उत्पाद शुल्क (दवाइयाँ तथा प्रसाधन)
4. सेवा कर
5. कपड़ा तथा कपड़ा उत्पाद पर लगा अतिरिक्त उत्पाद शुल्क
6. अतिरिक्त सीमा शुल्क
7. विशेष अतिरिक्त सीमा शुल्क
8. सभी अधिभार तथा उपकर जो वस्तु पर लगते थे |
राज्य सरकार का अप्रत्यक्ष कर
1. VAT या बिक्री कर
2. मनोरंजन कर
3. केंद्रीय बिक्री कर
4. चुंगी या प्रवेश कर
5. क्रय कर
6. विलासिता कर
7. लॉटरी, सट्टा एवं जुए पर कर
8. राज्य के सभी अधिभार तथा उपकर जो वस्तु और सेवा से संबंधित है।
जो कर जी एस टी के दायरे से बाहर है
1. नशीली शराब पर कर
2. सीमा शुल्क
3. पाँच प्रकार के पेट्रोलियम उत्पाद (कच्चा पेट्रोलियम, डीजल, पेट्रोल, प्राकृति गैस, विमान ईंधन )

GST कर ढांचा

  • भारत में लागू GST दो स्तरीय है जिससे केंद्र तथा राज्य सरकारे एक साथ एक आधार पर बराबर-बराबर अनुपात में कर लगायेंगी। केंद्र द्वारा लागू GST को CGST तथा राज्य द्वारा GST को SGST कहते है। केंद्रशासित प्रदेशों के संबंध इसे UTGST कहा जाता है।
  • अगर किसी वस्तु (या सेवा) पर GST की दर 18% है तो 9% CGST तथा 9% SGST होगा तथा प्रत्येक राशि सम्बन्धित ( 9% केंद्र को 9% राज्य को ) खजाने में जमा की जाऐगी।
  • यदि वस्तु और सेवा एक से अधिक राज्यों से गुजरेगी या भारत में आयात की जाएगी तो उस पर जो जीसएटी होगी उसे IGST कहा जाता है। IGST केन्द्र सरकार द्वारा लागू होगा तथा इसकी वसूली भी केन्द्र करेगी ताकि वस्तु और सेवा का प्रवाह एक राज्य से दूसरे राज्य में बिना किसी बाधा के हो सके। आयतित वस्तु पर लगने वाला IGST, सीमा शुल्क ( Custom duty) के अतिरिक्त होगा।
  • GST की दरों का निर्धारण GST कौंसिल करती है। कौंसिल अब तक 1300 वस्तु तथा 500 सेवाओं पर कर आरोपित करने के लिए 0, 5, 12, 18 तथा 28 प्रतिशत के पाँच दर निर्धारित कर रखी है।
    • शून्य दर के अंतर्गत आने वाली वस्तु- इसमें एसी वस्तु है जो व्यक्ति के मूलभूत आवश्यकताओं से संबंधित है। जैसे- गर्भनिरोधक खाद्यान्न, दूध, दही, अंडा, बिना पैकिंग किया हुआ पनीर, शहद, ताजी सब्जि, आटा, बेसन, मैदा, चूड़ी, बिंदी, गोलियाँ, ब्रेड, हैन्डलूम उत्पाद ।
    • 5 प्रतिशत GST स्लैब में आनी वाली वस्तु- इसमें एसी वस्तु जो रोज प्रयोग में आते है परंतु इन्हे मूलभूत आवश्यक वस्तु नहीं कहा जा सकता है। जैसे- चाय, कॉफी, मिल्क पाउडर, पैकिंग किया हुआ पनीर, मसाला, दवा, फ्रोजन सब्जी, पिज्जा आदि ।
    • 12 प्रतिशत GST स्लैब में आने वाली वस्तु- इससे ऐसी वस्तु को रखा गया है जो प्राय: प्रतिदिन प्रयोग में आते है परंतु अनिवार्य या आवश्यक रूप से नहीं। जैसे- घी, मक्खन, काजू, मोबाइल फोन, सिलाई मशीन, अगरबत्ती, फलों का रस आदि ।
    • 18 प्रतिशत GST स्लैब में आने वाली वस्तु- इसमें एसी वस्तु को रखा गया है जो मध्यमवर्गीय परिवार प्रायः उपयोग करते है। जैसे- हेयर ऑयल, आइसक्रीम, पॉपकॉर्न, पूंजीगत वस्तुएँ, आयरण एण्ड स्टील, मिनरल वाटर, पास्ता, पैन ।
  • 28% GST स्लैब में आने वाली वस्तु - इसके अंतर्गत विलासिता की वस्तुएँ, प्रतिष्ठा सूचक वस्तुएँ तथा स्वास्थ्य को हानि पहुँचाने वाले वस्तु शामिल है।
  • GST कर ढांचा में कुछ वस्तु पर 28% GST दर के अलावा उपकर (सेस) की भी व्यवस्था है। पान मसाला पर 128%, तम्बाकू वाली वस्तु पर 290%, विलासिता वाले कार पर 15%, कोल्ड ड्रिंक पर 40%, कोयले पर रू. 400 प्रति टन की दर से GST लगता है।
  • उपकर इसलिए लगाया गया ताकि GST लागू करने से राज्यों को अगर राजस्व हानि होता है तो उसकी भरपाई हो सके ।
  • जी एस टी.लगाने पर यदि राज्यों को कोई घाटा होगा तो इसकी भरपाई करने के लिए केंद्र ने राज्यों को पांच वर्षों की गारंटी दी है। जहाँ जी एस टी से होने वाली क्षति की पूर्ति की बात है, पहले 3 वर्ष तक 100%, चौथे वर्ष में 75% तथा पाँचवें वर्ष में 50 % होगी ।
  • विद्युत तथा रीयल इस्टेट भी GST के बाहर है।
  • इस समय 81% से भी अधिक वस्तुएँ 18% या इससे कम GST स्लैब के अंतर्गत शामिल है।
  • सेवाओं के सम्बन्ध में भी, यही चार दरें - . 5, 12, 18 तथा 28 है। सभी प्रकार के सेवाओं को चार वर्गों में बाँट दिया गया है।

GST के प्रमुख विशेषताएँ

  • जी एस टी एकल कर प्रणाली है जिससे वस्तु तथा सेवा पर एक साथ कम से कम दरों पर कंरारोपित किया जाता है।
  • जी एस टी वैट की तरह एक मूल्य वर्द्धित कर हं है जो. . वस्तु के निर्माण से लेकर उपयोग तक प्रत्येक चरण किये जाने वाले मूल्यवर्द्धन (Value Addittion) पर लगेगा।
  • GST उत्पादन से लेकर उपयोग तक प्रत्येक चरण से होगा एवं किसी चरण में जितना भुगतान किया गया है, उसमें से उससे पहले चरण में किये गए कर भुगतान को घटा दिया जाएगा। इस तरह जी एस टी लगने के परिणामस्वरूप 'कर पर कर' की समस्या का सामाधान हो जाएगा।
  • GST एक गंतव्य आधारित उपयोग कर है क्योंकि GST का अंतिम रूप से भार उपभोक्ता पर ही पड़ता है। यह कर उसी राज्य अथवा संघ राज्य क्षेत्र को प्राप्त होगा जहाँ वस्तु और सेवा या उपयोग होगा।
  • GST लागू होने से राज्य अपनी मर्जी से कर की दर लागू नही कर सकेंगे एवं प्रत्येक राज्य में कर की दर एक समान होगी।
  • GST से संबंधित सभी कार्य जैसे- GST पंजीकरण, रिटर्न फाइलिंग, कर अदायगी, रिफन्ड ऑन-लाइन पूरे किये जाते है। अत: अब कर दाता को अधिकारी के पास चक्कर लगाने की जरूरत नही पडती तथा भ्रष्टाचार में कमी आयेगी।

जी एस टी कौंसिल (GST Council)

  • अनुच्छेद 279A के आवश्यकतानुसार 12 सितम्बर 2016 को GST Council की स्थापना की गई है।
  • GST Council की संरचना निम्न प्रकार है-
    अध्यक्ष — केंद्रीय वित्त मंत्री
    उपाध्यक्ष — सदस्यों में कोई एक जिसे सदस्य निर्वाचित करते है ।
    सचिव — भारत सरकार में राजस्व सचिव पदेन सचिव होता है।
    स्थायी आमंत्रित सदस्य — CBEC के अध्यक्ष
    सदस्य — केंद्रीय राज्य मंत्री ( राजस्व या वित्त प्रभार) तथा राज्यों के वित्त मंत्री या राज्य जिसे सदस्य हेतु नामित करे।
    सचिवालय — दिल्ली में है।
  • GST Council में कार्य निम्न है- 
  1. संघ, राज्यों तथा स्थानीय सरकार द्वारा आरोपित कर, उपकर तथा अधिभार के विषय में जिन्हें GST में शामिल किया जायेगा, यह सिफारिश करेगा।
  2. जो वस्तु GST से छूट गया है उसे शामिल करने का सिफारिश करेगा। 
  3. GST के -दरो की सिफारिश करेगा
  4. प्राकृतिक आपदा के समय धन उगाही करने हेतु विशेष दरो की सिफारिश करेगा।
  5. GST Council GST से संबंधित सभी मुद्दे पर निर्णय करेगी।
  • GST Council में निर्णय उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के भारित मत के तीन-चौथाई ( 3/4 ) बहुमत द्वारा किया जायेगा ।
  • मतदान में केंद्र सरकार के मत का भार कुल डाले गये वोटो के मत का एक-तिहाई होगा जबकि कुल राज्यों का संयुक्त मत का भार कुल डाले गये मतो का दो-तिहाई होगा।
  • GST Council में बैठक हेतु गणपूर्ति कुल सदस्य कुछ सदस्य का आधा (50%) की उपस्थिति से होगी जबकि किसी निर्णय हेतु 75% वोट अनिवार्य होगा।

जी एस टी नेटवर्क (GSTN)

  • जी एस टी नेटवर्क की स्थापना जी एस टी के आईटी अवसंरचना के रूप में की गई है। जी एस टी कर संरचना के अंतर्गत किये जाने वाले सभी ऑन-लाइन कार्य इसी नेटवर्क के माध्यम से होगा।
  • जी एस टी नेटवर्क का लक्ष्य है- कर अनुपालन के कार्य को सरल बनाना, करो के भुगतान प्रक्रिया को सरल बनाना ।
  • जी एस टी नेटवर्क की स्थापना केंद्र तथा राज्यों ने मिलकर किया है। यह नेटवर्क गैर-सरकारी तथा गैर-लाभकारी संगठन के रूप में हुआ है जिसमे केंद्र 24.5 प्रतिशत सभी राज्य 24.5 प्रतिशत हिस्सेदारी रखते है । शेष बची हुई 51% हिस्सेदारी गैर - सरकारी वित्तीय संस्थानों की है।

ई-वे बिल (e-way bill)

  • ई-वे सिस्टम की शुरूआत 1 अप्रैल 2018 को की गई। ई-वी बिल एक प्रकार का दस्तावेज है जो वस्तु के अंतर्राज्यीय आवागमण की स्थिति में जारी किया जाता है।
  • GST कर अंतर्गत रू. 50,000 से अधिक मूल्य के वस्तु को 10 Km से बाहर त्रिकी के लिए ले जाने वाले वाहन के प्रभारी व्यक्ति द्वारा है। ई-वे बिल को ले जाना अनिवार्य होता है। ई-वे बिल पर वस्तुओं का विवरण तथा उस पर लगने वाले GST का पूर्ण विवरण होता है।
  • ई-वे बिल प्रणाली से कर योग्य वस्तु पर निगरानी रखना आसान होता है तथा कर चोरी में भी कमी आएगी।

कर - संरचना

Objective

1. निम्न कथनों पर विचार करें
1. प्रगतिशील कर प्रणाली में आय की दर बढ़ने के साथ-साथ कर की दर बढ़ती जाती है।
2. प्रतिगामी कर प्रणाली में एक सीमा तक आय बढ़ने से कर प्रतिशत में वृद्धि होती है तथा उसके बाद आय बढ़ने पर 0 भी कर की दर समान ही रहती है।
3. अधोगामी कर प्रणाली में आय बढ़ने के साथ-साथ कर प्रतिशत में कमी आने लगती है।
4. प्रतिगामी कर विकासशील देशों में प्रचलित है।
उपरोक्त में कौन सत्य कथन नहीं है?
कूट
(A) 1 और 2
(B) 1, 3 और 4
(C) 2 और 4
(D) 2. 3 और 4
2. निम्नलिखित में कौन-से कर केन्द्र सरकार द्वारा लगाए जाते हैं? 
1. आयकर
2. सीमा कर
3. केन्द्रीय उत्पादन शुल्क
4. बिक्री कर
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें।
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
3. निम्नलिखित में से कौन-से राज्य सरकारों के कर राजस्व के मुख्य स्त्रोत हैं ?
1. मालगुजारी, स्टाम्प, रजिस्ट्रेशन शुल्क और मादक पदार्थों पर उत्पादन कर |
2. वाणिज्यिक कर ।
3. आयकर ।
4. केन्द्रीय कर एवं राजस्व में राज्यों का भार ।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
4. भारतीय कर व्यवस्था के सम्बन्ध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें 
1. भारतीय कर ढाँचा प्रशासनिक दृष्टि से कार्यकुशल नहीं है।
2. करों की अनेकता और एकीकरण का अभाव ।
3. कर ढाँचे में अन्तक्षेत्रीय असन्तुलन।
4. कर प्रणाली में पारदर्शिता का अभाव।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
5. निम्नलिखित में बिक्री कर व्यवस्था में बुनियादी समस्याएँ हैं
1. दरों की विविधता तथा विभिन्न रियायतों के कारण बिक्री कर प्रणाली में पारदर्शिता का अभाव होना ।
2. विभिन्न राज्यों में बिक्री कर की दरों का अलग-अलग होना ।
3. बिक्री कर का आधार संकुचित होना
4. बिक्री कर में कर चोरी की सम्भावना का अधिक होना।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और
(C) 1, 2 और 4
(D) सभी 3
6. निम्नलिखित में कौन राजा चेलैया समिति की सिफारिश है ?
1. आय करों की दरों में कमी करना।
2. उत्पादन शुल्क के आधार को और व्यापक बनाना ।
3. अप्रत्यक्ष कर पर निर्भरता को बढ़ाना।
4. केवल अनुत्पादक सम्पत्ति पर सम्पत्ति कर लगाना ।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
7. द्रव्य की पूर्ति यथावत् रहने पर यदि द्रव्य की माँग में वृद्धि होती है, तो
(A) कीमत-स्तर में गिरावट आ जाएगी
(B) ब्याज की दर में वृद्धि हो जाएगी
(C) ब्याज की दर में कमी हो जाएगी
(D) आय और रोजगार के स्तर में वृद्धि हो जाएगी
8. भारत जैसे अल्पविकसित देशों में परोक्ष कर वृद्धि की तुलना प्रत्यक्ष कर वृद्धि को तरजीह दी जाती है, क्यों ?
(A) प्रत्यक्ष करों को आसानी से जुटाया जा सकता है तथा कर चोरी सम्भव नहीं होती
(B) प्रत्यक्ष कर चुराने की जिम्मेदारी आसानी से तय की जा सकती है -
(C) प्रत्यक्ष करों का बोझ अपेक्षाकृत सम्पन्न वर्ग को सहन करना पड़ता है जबकि परोक्ष कर का बोझ सामान्य नागरिक पर पड़ता है
(D) यदि धनी वर्ग से कर वसूला जाए तभी समाजवाद की स्थापना की जा सकती है
9. निम्न में से किन्हें भारत में प्रत्यक्ष कर संवर्ग में सम्मिलित किया गया है?
1. निगम-कर
2. आय पर कर
3. सम्पत्ति कर
4. सीमा शुल्क
5. उत्पाद शुल्क
नीचे दिए गए कूटों का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए ।
(A) 1, 2 और 3
(B) 1, 2, 4 और 5
(C) 2 और 3
(D) 1, 3, 4 और 5
10. MODVAT का तात्पर्य है।
(A) उत्पादन शुल्क अन्तिम वस्तुओं पर लगाने की व्यवस्था
(B) उत्पादकों को शुल्क चुकाने के लिए लाभ देने की व्यवस्था
(C) उत्पादन शुल्क प्रत्येक स्तर पर लगाने की व्यवस्था
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
11. निम्नलिखित में से कौन-सा एक, भारत में केन्द्रीय सरकार के कर राजस्व का स्रोत नहीं है?
(A) आय कर
(B) सीमाशुल्क
(C) सेवा कर
(D) मोटरयान कर
12. भारत में निगम कर किसी कम्पनी की आय पर लगाया जाता है। 
निम्नलिखित में से कौन-सी मद में निगम कर शामिल नहीं है?
(A) व्यवसाय से लाभ
(B) पूँजीगत अभिलाभ
(C) प्रतिभूतियों पर ब्याज
(D) परिसम्पत्तियों की विक्रय प्राप्ति
13. दीर्घकालीन वित्तीय नीति का उद्देश्य किसको स्थायित्व प्रदान करना है?
(A) प्रत्यक्ष कर
(B) अप्रत्यक्ष कर
(C) प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कर राजस्व अनुपात
(D) कर राजस्व तथा राष्ट्रीय आय
14. राज्य सरकारों की आय का प्रमुख स्रोत है
1. केन्द्रीय करों में भाग
2. आर्थिक अनुदान
3. भूमि एवं मनोरंजन कर
4. आयकर
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
15. केन्द्रीय सरकार के लिए आगम की दृष्टि से दूसरा प्रमुख कर है
(A) सामाजिक एवं सुरक्षा अभिदान
(B) निगम कर
(C) वस्तुओं और सेवाओं पर घरेलू कर
(D) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार तथा लेन-देन पर कर
16. निम्नलिखित में से कौन-सा कर केवल राज्य सरकारें ही लगा सकती हैं?
(A) राजस्व कर
(B) आयात-निर्यात कर
(C) आयकर
(D) सम्पत्ति कर
17. आनुपातिक कर प्रणाली के सम्बन्ध में सही उत्तर का चयन करें
(A) आय के सभी स्तरों पर समान दर, से कर लगाया जाता है।
(B) आय के सभी स्तरों पर कर की दर बढ़ती जाती है
(C) आय के सभी स्तर पर कर की दर घटती जाती है।
(D) उपरोक्त सभी
18. निम्नलिखित में से कौन-सा एक, प्रगामी कर संरचना को निरूपित करता है?
(A) कर दर सभी आयों में समान है
(B) कर दर आय में बढ़ोतरी के साथ-साथ बढ़ाती जाती है।
(C) कर दर आय में बढ़ोतरी के साथ-साथ घटती जाती है।
(D) प्रत्येक परिवार कर की समान राशि का भुगतान करता है।
19. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
1. वस्तु एवं सेवा कर, जो कि केलकर टास्क फोर्स द्वारा अनुशंसित किया गया है, एक प्रत्यक्ष कर है ।
2. उपकर एक अस्थायी कर है, जो किसी विशेष लक्ष्य को पाने के लिए लगाया जाता है और केवल प्रत्यक्ष कर पर ही लगाया जा सकता है।
उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
(A) केवल 1 
(B) केवल 3
(C) 1 और 2 दोनों
(D) न तो 1 और न ही 2
20. विक्रय-कर जिसका भुगतान आप कोई टूथपेस्ट खरीदते समय करते हैं, निम्नलिखित से किस प्रकार का कर है ? 
(A) केन्द्र सरकार द्वारा आरोपित कर
(B) केन्द्र सरकार द्वारा आरोपित, किन्तु राज्य सरकार द्वारा संग्रहीत कर
(C) राज्य सरकार द्वारा आरोपित किन्तु केन्द्र सरकार द्वारा संग्रही कर
(D) राज्य सरकार द्वारा आरोपित एवं संग्रहीत कर
21. आयकर के लगाने, 'उद्ग्रहण करने और वितरण करने के सम्बन्ध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा एक सही है ?
(A) संघ कर लगाता है, उद्ग्रहण करता है और कर प्राप्तियों का स्वयं और राज्यों के बीच वितरण करता है।
(B) संघ कर लगाता है, उद्ग्रहण करता है और कर प्राप्तियों को अपने लिए रख लेता है
(C) संघ कर लगाता है और उद्ग्रहण करता है लेकिन सभी प्राप्तियाँ राज्यों में वितरित कर दी जाती
(D) केवल आयकर पर लगाया गया अधिभार ही संघ और राज्यों के बीच बाँटा जाता है
22. निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही सुमेलित है ?
(A) आयकर — अप्रत्यक्ष कर
(B) सीमा शुल्क — प्रत्यक्ष कर
(C) उत्पाद शुल्क — केन्द्र का अधिकतम कर आय स्रोत
(D) मनोरंजन कर — राज्यों का अधिकतम कर आय स्रोत
23. मूल्य वर्द्धित टैक्स (बैट) लगाया जाता है
(A) प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ता पर
(B) उत्पादन के अन्तिम स्तर पर
(C) उत्पादन के प्रथम स्तर पर
(D) उत्पादन के अन्तिम बिक्री तक प्रत्येक स्तर पर
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here