झारखण्ड की औद्योगिक नीति

झारखण्ड की औद्योगिक नीति

झारखण्ड की औद्योगिक नीति
झारखण्ड की औद्योगिक नीति, 2001
> झारखण्ड राज्य निर्माण के लगभग एक वर्ष पश्चात् राज्य की प्रथम औद्योगिक नीति की घोषणा अगस्त में की गई। इसे 1 मार्च, 2001 को अधिसूचित कर दिया गया था। 
> इस नीति का प्रमुख उद्देश्य राज्य में आधारभूत संरचनाओं का त्वरित विकास बेरोजगारी में कमी लाना निवेश को बढ़ावा देना, राज्य का संतुलित विकास करना, निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन, लघु एवं कुटीर उद्यान बढ़ावा देना, अनुसंधान एवं विकास द्वारा उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ावा देना आदि है। 
> इस नीति के लागू होने के बाद राज्य में कई मेगा उद्योग, वृहद उद्योग, मध्यम एवं लघु उद्योगों की स्थापना हुई। 
> इस नीति के सफल क्रियान्वयन के परिणामस्वरूप राज्य के राजस्व में वृद्धि के साथ-साथ, औद्योगिक उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि तथा राज्य सकल घरेलू उत्पाद में भी वृद्धि हुई। 
> औद्योगिक नीति, 2001 के सफल क्रियान्वयन में राँची औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकरण, आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकरण, बोकारो औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकरण, आधारभूत संरचना विकास निगम राज्य खादी बोर्ड तथा झारक्रॅफ्ट जैसे संगठनों का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
> इस नीति की सफलता से उत्साहित होकर तथा इस नीति में समय के साथ परिवर्तन की आवश्यकता महसूस करते हुए राज्य सरकार ने औद्योगिक नीति, 2012 की घोषणा की। इस नीति का कार्यान्वयन अगले पाँच वर्षों तक किया जाएगा।' 
झारखण्ड की औद्योगिक नीति, 2012
> इस नीति के अंतर्गत राज्य में औद्योगीकरण सुनिश्चित करने हेतु कुल 16 उद्देश्यों / नीतियों को चिन्हित किया गया है। 
> औद्योगिक नीति, 2012 के प्रमुख उद्देश्य निम्नवत् हैं
1. राज्य में निवेश को प्रोत्साहित करना तथा राज्य में औद्योगिक विकास को सतत् रूप से प्रोत्साहित करना।
2. विनिर्माण एवं प्रसंस्करण उद्योगों को प्रोत्साहित करना ।
3. रेशम, हथकरघा, खादी एवं ग्रामोद्योगों को प्रोत्साहित करना ताकि राज्य में रोजगार के पर्याप्त अवसरों का सृजन किया जा सके।
4. ग्रामीण क्षेत्रों में हस्तकला संबंधी क्रियाकलापों को प्रोत्साहन एवं उनका संरक्षण
5. वृहद्, लघु तथा सूक्ष्म उद्योगों के बीच समन्वय स्थापित करना।
6. राज्य के खनिज एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों का तार्किक दोहन एवं अनुकूल प्रयोग करना।
7. राज्य में बागवानी एवं खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देना।
8. पर्यावरण संरक्षण के अनुकूल उद्योगों को प्रोत्साहित करने वाले प्रौद्योगिकी एवं कौशल को बढ़ावा देना 
9. राज्य के अनुसूचित जाति, जनजाति तथा पिछड़े वर्ग के लागों की औद्योगिक विकास में भागीदारी सुनिश्चित करना।
10. नवीनीकरण एवं प्रौद्योगिकी उन्नयन की दिशा में सार्थक प्रयास ताकि औद्योगिक उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाया जा सके।
11. राज्य के भीतर क्षेत्रीय विषमता को दूर करना ।
12. पीपीपी (सार्वजनिक-निजी भागीदारी) मॉडल पर आधारित औद्योगिक पार्कों का विकास करना । 
13. तकनीकी, चिकित्सा तथा प्रबंधन आदि के क्षेत्र में निजी निवेश से शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना को प्रोत्साहित करना ।
14. मानव संसाधन विकास तथा कौशल विकास के क्षेत्र में निजी निवेश को प्रोत्साहित करना ।
15. राज्य में निवेश हेतु सुगम एवं भयमुक्त माहौल का निर्माण करना।
16. विकास को प्रोत्साहित करने हेतु विधि व्यवस्था को सुगम, संवेदनशील तथा पारदर्शी बनाना।
> औद्योगिक नीति, 2012 के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु सरकार की कार्यनीति निम्नवत् हैं
1. इस नीति में निजी उद्योग, औद्योगिक क्षेत्र प्राधिकार, औद्योगिक कलस्टर एवं उद्योग पार्क को विशेष रूप से प्रोत्साहित करने का प्रावधान किया गया है ।
2. कार्यों के समय से निपटारे के लिए "एकल खिड़की सुविधा " का विकास ।
3. राज्य में आधारभूत संरचनाओं के विकास के लिए सुगम वातावरण के निर्माण पर बल।
4. विभिन्न क्षेत्रों में निजी-सार्वजनिक भागीदारी को प्रोत्साहन ।
5. राज्य में लघु उद्योग, हस्तकला, कुटीर उद्योगों द्वारा निर्मित उत्पादों के लिए बाजार की व्यवस्था पर बल । 
6. इस्पात, ऑटोमोबाइल, सूचना एवं संचार तकनीकी, प्रसंस्करण आदि हेतु विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र के निर्माण पर बल ।
7. रूग्ण इकाईयों की पहचान कर उनके संरक्षण एवं विकास हेतु जिला स्तरीय निगरानी प्रणाली का विकास। 
8. विस्थापन एवं पुनर्वास नीति, 2008 में सुधार करना।
9. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़े वर्ग, महिलाओं तथा दिव्यांग श्रेणी के व्यक्तियों को विशेष रूप से प्रोत्साहित करना ।
10. जिला स्तर पर " भूमि बैंक" का निर्माण करना तथा इस पर आधारभूत संरचनाओं के विकास के साथ-साथ इस भूमि को औद्योगिक इकाईयों की स्थापना हेतु आवंटित करना ।
11. राज्य में औद्योगिक गलियारों का विकास कर इसमें बिजली, रेलवे संपर्क, कलस्टर जैसे आधारभूत संरचनाओं का निर्माण करना।
12. राज्य में वस्त्र औद्योगिक पार्क, सूचना प्रौद्योगिकी पार्क, जड़ी-बूटी पार्क, खाद्यान्न प्रसंस्करण पार्क, औषधीय पार्क आदि का निजी-सार्वजनिक मॉडल पर विकास करना।
13. राज्य में विशेष आर्थिक क्षेत्र का विकास करना ताकि औद्योगिक निवेश को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ निर्यात में भी वृद्धि हो । इसके अंतर्गत आदित्यपुर में ऑटोमोबाइल के विकास हेतु विशेष आर्थिक क्षेत्र प्रस्तावित है।
14. राज्य में औद्योगिक क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण की स्थापना करना ताकि भूमि अधिग्रहण, उसका आवंटन एवं नवीकरण से संबंधित गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जा सके।
15. राज्य में विभिन्न तकनीकी संस्थानों, पॉलिटेक्निक कॉलेजों, अभियंत्रण कॉलेजों की स्थापना की जा रही है। इन संस्थाओं में राज्य के निवासियों हेतु 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं। साथ ही इनके निर्माण हेतु निजी निवेश को प्रोत्साहित किया जा रहा है ।
16. राँची तथा दुमका में मिनी टूल रूम की स्थापना की गयी है।
17. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहन देने हेतु राज्य सरकार द्वारा नई दिल्ली तथा राँची में अप्रवासी भारतीय सेल की स्थापना का प्रस्ताव है।
18. राज्य सरकार द्वारा इनवेस्टर्स मीट के आयोजन का प्रस्ताव । (इसी नीति के आलोक में 'मोमेंटम झारखण्ड' नामक गतिविधि का आयोजन किया गया।) 
झारखण्ड औद्योगिक एवं निवेश प्रोत्साहन नीति, 2016 
> झारखण्ड औद्योगिक एवं निवेश प्रोत्साहन नीति, 2016 स्टेट-ऑफ आर्ट अवसंरचना की स्थापना, विनिर्माण को प्रोत्साहन, समावेशिता में वृद्धि, नवोन्मेष को गति प्रदान करने तथा रोजगार अवसरों के सृजन पर लक्षित है। 
> इस नीति का प्रमुख उद्देश्य झारखण्ड राज्य को निवेशकों हेतु भरोसेमंद राज्य के रूप में परिणत करने के साथ-साथ राज्य में सतत् औद्योगिक वृद्धि को प्रोत्साहन प्रदान करने व परियोजनाओं के अनुमोदन हेतु वेब आधारित पारदर्शी कार्यशैली का विकास करना आदि है।
> इस नीति के क्रियान्यवन हेतु निम्न रणनीति अपनायी गयी है
1. संवृद्धि को गति प्रदान करने हेतु नवोन्मेष गतिविधियों को प्रोत्साहित करते हुए क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं को आपस में जोड़ना होगा।
2. अवसंरचनाओं के विकास हेतु निजी निवेश एवं सार्वजनिक-निजी भागेदारी को प्रोत्साहित करना होगा। इसमें सड़क, ऊर्जा, औद्योगिक कलस्टर, औद्योगिक पार्क, ग्रामीण औद्योगीकरण (रेशमकीट पालन, खादी, हैंडीक्रॉफ्ट, खाद्य प्रसंस्करण, हैण्डलूम, बाँस, चमड़ा, लाह आदि) शामिल हैं।
3. ग्रामीण महिला स्वयं सहायता समूहों को रेशमकीट पालन, हैण्डलूम, हैण्डीक्रॉफ्ट आदि हेतु गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाएगी।
4. औद्योगिक क्षेत्र विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योगों को पर्याप्त व ससमय साख की व्यवस्था एगी।
5. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने हेतु अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सेवा प्रदाताओं का विकास किया जाएगा। 
6. निर्यात उद्योगों को सुविधाएँ प्रदान करने हेतु सिंगल विंडो प्रणाली को मजबूती प्रदान करना होगा। 
7. औद्योगिक क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण में नये निवेशकों हेतु भूमि का प्रबंधन एवं विकास करना होगा। 
8. महिला, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति उद्यमियों को विशेष प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा। 
9. निगरानी, मूल्यांकन एवं शिकायत निवारण तंत्र को मजबूती प्रदान किया जाएगा।
10. राज्य में कौशल विकास कार्यक्रमों का संचालन किया जाएगा।
11. अवसंरचनात्मक विकास की गति को तीव्र किया जाएगा।
12. श्रम गहन उद्योगों को प्रोत्साहित किया जाएगा।
13. औद्योगिक दृष्टि से अल्प विकसित क्षेत्रों के विकास पर विशेष बल दिया जाएगा।
14. क्षेत्र - विशेष कौशल विकास एवं व्यावसायिक कुशलता को मजबूती प्रदान की जाएगी।
15. विविद्यालयों को स्टार्ट-अप एवं नवोन्मेष उत्पादों के विकास हेतु प्रोत्साहित किया जाएगा।
16. तकनीकी उन्नयन एवं शोध व विकास को समर्थन प्रदान किया जाएगा।
17. व्यापार सुविधाओं व ई-गवर्नेस को प्रोत्साहित किया जाएगा।
18. महिलाओं को ध्यान में रखते हुए श्रम क्षेत्र में सुधार किया जाएगा।
19. मेक-इन-इण्डिया कार्यक्रम हेतु फोकस दृष्टिकोण अपनाया जाएगा तथा इसके लिए निम्न कदम उठाया जाएगा:
» ईज ऑफ डुइंग बिजनेस पर बल देते हुए व्यवसाय वातावरण में सुधार किया जाएगा।
» विनिर्माण प्रक्रिया को सक्षम बनाया जाएगा। जाएगा।
» शून्य प्रदूषण उत्सर्जन संयंत्रों की स्थापना की जाएगी।
झारखण्ड औद्योगिक एवं निवेश प्रोत्साहन नीति, 2021
> नीति का परिचय
> यह नीति राज्य में 1 अप्रैल, 2021 से लागू मानी जाएगी तथा यह अगले पांच वर्षों तक प्रभावी रहेगी। 
> इस नीति में टेक्सटाइल एंड अपेरल्स, ऑटोमोबाइल, ऑटो कंपोनेंट, एग्रो फूड एंड मीट प्रोसेसिंग, फार्मास्यूटिकल व इलेक्ट्रिॉनिक सिस्टम डिजाइन एंड मैन्युफैक्चरिंग को उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया गया है। 
> इस नीति के तहत राज्य में उद्योग हेतु किए जाने वाले पूंजी निवेश का 25% या अधिकतम 6.25 करोड़ रूपये तक इंसेंटिव के रूप में प्रदान किया जायेगा। 
> इस नीति के तहत राज्य में लगने वाली सूक्ष्म उद्योगों के लिए 1 करोड़ रूपये, लघु उद्योगों के लिए 10 करोड़ रूपये तथा बड़े उद्योगों के लिए 25 करोड़ रूपये के अधिकतम निवेश पर इंसेंटिव प्रदान किया
जायेगा।
> सभी वर्ग की महिलाओं को निवेश पर 5% का अतिरिक्त इंसेंटिव प्रदान किया जायेगा।
> दृष्टिकोण व लक्ष्य
> राज्य में उचित व्यावसायिक वातावरण व उच्चस्तरीय संरचना का निर्माण करना ताकि निवेशकों को आकर्षित किया जा सके।
> राज्य में व्यावसायिक गतिविधियों में नवाचार तथा वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना। 
> राज्य के उद्योगों को चौथी पीढ़ी व आगे की नई तकनीकों को अपनाने हेतु दक्ष बनाना। 
> जमीनी स्तर पर क्षमता निर्माण ताकि सतत् औद्योगिक विकास पर बल दिया जा सके। 
> अगले दशक में औद्योगिक क्षेत्र में तीव्र व सतत् वृद्धि का लक्ष्य प्राप्त करना ताकि सकल राज्य घरेलू उत्पाद में इस क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाया जा सके। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु निम्न उपाय किये जायेंगे
1. एक प्रभावी, सक्रिय व सहायक संस्थागत तंत्र का निर्माण।
2. प्रचार रणनीतियों का निर्माण व कार्यान्वयन।
3. गोदाम, सामान्य सुविधा केन्द्र आदि जैसी बुनियादी सुविधाओं का निर्माण।
4. विपणन विकास सहयोग, वैश्विक बाजार हेतु शोध व विकास तथा प्रयोगशाला सहयोग आदि।
> नीति के प्रमुख उद्देश्य
> राज्य में 1 लाख करोड़ का निवेश आकर्षित करके 5 लाख रोजगार सृजित करना।
> झारखण्ड को निवेशकों के पसंदीदा गंतव्य के रूप में परिणत करना तथा सतत् औद्योगिक संवृद्धि को
प्रोत्साहित करना । 
> परियोजना को मंजूरी, उत्पादन घोषणा की तारीख तथा वित्तीय व गैर-वित्तीय सहायता व मंजूरी हेतु समयबद्ध, वेब आधारित पारदर्शी कार्यतंत्र निर्मित करना। 
> गोदामों, अंतर्देशीय कंटेनर डिपो, कोल्ड स्टोरेज, औद्योगिक समूहों से रेल-सड़क कनेक्टिविटी, टूल रूम आदि जैसे बुनियादी ढांचे को मजबूत करना। 
> निर्यात क्षमता वाले उद्योगों पर ध्यान केंद्रित करना।
> एमएसएमई क्षेत्र द्वारा 100% स्वदेशी आगतों से विनिर्मित निर्यात वस्तुओं पर ध्यान केन्द्रित करना।
> ओईएम तथा एमएसएमई / सहायक उद्योगों के बीच संबंध स्थापित करना ।
> सभी क्षेत्रों में विकास हेतु एक सरल, सक्रिय व सहायक तंत्र प्रदान करना ।
> औद्योगिक व निवेश प्रोत्साहन नीति, एमएसएमई अधिनियम-2006 तथा अन्य नीतिगत हस्तक्षेपों के तहत सुविधा प्रदान करके औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों में रोजगार सृजन को बढ़ावा देना।
> मूल्यवृद्धि और गुणवत्ता प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने हेतु खनिज आधारित उत्पादों, हस्तशिल्प, हथकरघा, कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों जैसे पारंपरिक क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी और कौशल उन्नयन करना ।
> खाद्य व चारा प्रसंस्करण के समग्र विकास हेतु प्रसंस्करण के स्तर को बढ़ाना, अपव्यय में कमी करना, मूल्यवृद्धि करना तथा किसानों की आय में वृद्धि के साथ-साथ निर्यात में वृद्धि को बढ़ावा देना। 
> नवाचार, स्टार्ट-अप तथा तकनीकी हस्तांतरण को प्रोत्साहित करना।
> औद्योगिक विकास की रणनीति
> निजी निवेश व सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना ताकि आधारभूत संरचनाओं सड़क, विद्युत, दूरसंचार, औद्योगिक संपदा, औद्योगिक कलस्टर व औद्योगिक पार्क का विकास किया जा सके। साथ ही ग्रामीण औद्योगीकरण हेतु रेशम कीट पालन, खादी, हस्तशिल्प, खाद्य प्रसंस्कण, हैण्डलूम, बांस, चमड़ा व लाह संबंधी उद्योगों पर ध्यान केन्द्रित करना।
> उद्योगों को (विशेष रूप से एमएसएमई क्षेत्र को) ससमय तथा उपयुक्त साख की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
> निर्यात संवर्द्धन परिषदों, आईटीपीओ, क्षेत्रीय संघों तथा एमएसएमई संघो के साथ मजबूत नेटवर्क का विकास करना।
> अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने हेतु अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सेवा प्रदाताओं का विकास करना।
> निर्यात उद्योगों को सहायता प्रदान करने हेतु सिंगल विंडो सिस्टम के मजबूत करना।
> बेहतर भूमि प्रबंधन तथा नए निवेशकों हेतु प्लॉट/भूमि की उपलब्धता बढ़ाना।
> समावेशिता प्रोत्साहन हेतु महिला, अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के उद्यमियों को विशेष प्रोत्साहन राशि प्रदान करना।
> निगरानी, मूल्यांकन व शिकायत निवारण तंत्र का संस्थानीकरण ।
> हितधारकों और औद्योगिक संघों के साथ परामर्श तंत्र का संस्थानीकरण।
> उद्यमिता व कौशल विकास कार्यक्रमों पर जोर।
> बुनियादी ढाँचों के विकास में तेजी लाना।
> श्रम प्रधान उद्योगों को बढ़ावा देना।
> औद्योगिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों के लिए केन्द्रित दृष्किोण।
> प्रौद्योगिकी उन्नयन, अनुसंधान व विकास के सहयोग द्वारा विश्वविद्यालयों को स्टार्ट-अप और नवीन उत्पाद विकास हेतु प्रोत्साहित करना।
> व्यापार सुविधा और ई-शासन को बढ़ावा देना।
> राज्य में अनुकूल श्रम सुधार और व्यापार सुगमता को
> 'मेक इन इण्डिया' कार्यक्रम पर लक्षित दृष्टिकोण।
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