General Competition | Science | Biology (जीव विज्ञान) | पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी

किसी जीव के चारों ओर स्थित एवं फैली जैविक तथा अजैविक घटक, जो जीवो को विकसित, पोषित तथा तथा समाप्त होने में मदद करता है, उन्हें सम्मिलित रूप से पर्यावरण कहते हैं।

General Competition | Science | Biology (जीव विज्ञान) | पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी

General Competition | Science | Biology (जीव विज्ञान) | पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी

  • किसी जीव के चारों ओर स्थित एवं फैली जैविक तथा अजैविक घटक, जो जीवो को विकसित, पोषित तथा तथा समाप्त होने में मदद करता है, उन्हें सम्मिलित रूप से पर्यावरण कहते हैं। जीव तथा उसका पर्यावरण एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़े होते हैं, पर्यावरण से अलग जीवन की कल्पना असंभव है।
  • Environment (पर्यावरण) शब्द ग्रीक भाषा के शब्द 'Environ' से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है, जीवों के चारों ओर का परिवेश। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 में पर्यावरण को इस तरह परिभाषित किया गया है- किसी जीव के चारों तरफ घिरे भौतिक (अजैविक) तथा जैविक दशाएँ, जिसके साथ जीव अंतः क्रिया करते हैं, उसे सम्मिलित रूप से पर्यावरण कहा जाता है।

पर्यावरण की संरचना या घटक

  • पर्यावरण की संरचना काफी जटिल है तथा इसका विस्तार वास्तव में बहुत बड़ा है। पर्यावरण के अंतर्गत समस्त जैव मंडल समाहित है। जैवमंडल के अंतर्गत समस्त जीव तथा उसका भौतिक पर्यावरण (जल, स्थल, वायु) शामिल है।
  • पर्यावरण के मुख्य दो घटक हैं- जैविक तथा अजैविक घटक । वर्तमान समय में पर्यावरणविद पर्यावरण के चार घटकों की बात करते हैं, ये है- जैविक घटक, अजैविक घटक, ऊर्जा घटक तथा सांस्कृतिक घटक ।
अजैविक घटक (Abiotic Component)
  • अजैविक घटक को निर्जीव घटक कहते हैं। इस घटक के अंतर्गत स्थल मंडल, जल मंडल तथा वायुमंडल सम्मिलित है।
  • स्थल मंडल के अंतर्गत मृदा, खनिज, तत्व शैल, स्थलाकृति, वायुमंडल के अंतर्गत पृथ्वी का गैसी आवरण तथा जल मे अंतर्गत समस्त महासागरीय एवं भूमिगत जल को सम्मिलित किया जाता है।
  • अजैविक घटक ही पृथ्वी पर जीवन को संभव बनाता है। इसी घटक के द्वारा जीवों का जीवन चक्र, उनके शरीर का आकार तथा पृथ्वी पर उसके सफलता का निर्धारण होता है। 
जैविक घटक (Biotic Component)
  • पृथ्वी पर के समस्त जीव जैविक घटक के हिस्सा है। जिसमें पौधा (Plant), जन्तु (Animal) तथा सूक्ष्मजीव (Micro Organism) आते है।
  • सभी जैविक घटकों में पौधा सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि पौधा ही उन सभी जैविक पदार्थों का निर्माण करता है जो जीवों के शरीर के निर्माण हेतु तथा उसमें वृद्धि एवं विकास के लिए जरूरी है।
ऊर्जा घटक (Energy Component)
  • ऊर्जा घटक के अंतर्गत प्रकाश तथा तापमान को सम्मिलित किया जाता है, जिसका प्रमुख स्त्रोत सूर्य से प्राप्त ऊर्जा अर्थात् सौर ऊर्जा है जो पृथ्वी को विद्युत चुंबकीय तरंग के रूप में प्राप्त होती है।
  • पृथ्वी की सतह पर प्राप्त सौर ऊर्जा को सूर्यातप या सौर विकिरण कहते हैं। पृथ्वी के क्षैतिज सतह पर पहुँचने वाले सकल सौर विकिरण को भूमण्डलीय विकिरण कहते हैं।
सांस्कृतिक घटक (Cultural Component)
  • सांस्कृतिक घटक मानव निर्मित होते हैं। यह घटक समाज के क्रिया-कलापों को नियंत्रित करते हैं। इस घटक के अंतर्गत राजनीति, अर्थव्यवस्था तथा संस्कृति एवं सभ्यता को सम्मिलित किया जाता है।
  • पर्यावरण उपर्युक्त चार घटकों से मिलकर निर्मित होता है परंतु ये सभी घटक आपस में सम्बद्ध रहते हैं, इन्हें विभाजित नहीं किया जा सकता है। पर्यावरण अविभाज्य है।

जैव व्यवस्था (Biological Organization)

  • जैव व्यवस्था के भिन्न-भिन्न स्तर होते हैं और सभी स्तर आपस में मिलकर रहती है तथा कार्य करती है। जैव व्यवस्था के हर एक स्तर की अपनी विशिष्ट संरचना तथा कार्य होते हैं जिस आधार पर वे जैव- व्यवस्था के दूसरे स्तर से भिन्न होते हैं।
  • जैव व्यवस्था के कई स्तर होते हैं परंतु सभी स्तर एक-दूसरे से संबंधित होते है, कोई भी अकेली अस्तित्व में नहीं रह सकता है। जैव व्यवस्था के विभिन्न स्तर निम्न प्रकार से व्यवस्थित रहते है-

  • जैव व्यवस्था के उपर्युक्त स्तर में सबसे सुस्पष्ट इकाई जीव है। प्रत्येक जीव की अपनी एक विशिष्ट संरचना होती है, जो किसी अन्य जीव से भिन्न होती है।
  • एक ही प्रकार के जीव जो जीवन विषयक कार्यों में परस्पर सहायक है और लैंगिक / अलैंगिक जनन द्वारा अपनी ही जैसी संतानों की उत्पत्ति करता है, जाति (Species) कहते है। किसी खास समय और क्षेत्र में एक ही प्रकार की जाति के जीवों की संख्या आबादी (Population) कहते हैं।
  • जीवों का वह निश्चित क्षेत्र जहाँ वे निवास करते हैं, भोजन का खोज करते हैं, वह आवास (Habitat ) कहलाता है। जैसे- वन-आवास, जल-आवास आदि। एक आवास में कई तरह की जातियाँ पाई जा सकती है।
  • जीवों के आवास में कई सारे निकेत (Niche) होते हैं। एक आवास में रहने वाले हर जाति का अपना एक विशेष निकेत होता है तथा एक निकेत में कभी भी दो जातियाँ निवास नहीं कर सकता है।
  • किसी विशिष्ट आवास-क्षेत्र में कई जातियों का जीव निवास करते है और जीवन-संबंधित आवश्यकताओं, के पूर्ति के लिए परस्पर आश्रित रहते हैं। किसी विशिष्ट आवास क्षेत्र में रहने वाले सभी जातियों के जीवों का समूह समूदाय (Community) कहलाता है। समुदाय को बायोम (Biome) या जैव  मुदाय भी कहा जाता है। आवास स्थान में भिन्नता आने पर वहाँ के जैविक समुदाय में भी भिन्नता आ जाती है।

महत्त्वपूर्ण प्रजाति (Important Species)

1. आधार प्रजाति (Foundation Species)
आधार प्रजाति उस प्रजाति को कहा जाता है जो अन्य प्रजाति के निर्माण व संरक्षण में मुख्य भूमिका निभाते हैं। प्रवाल एक आधार प्रजाति के जो प्रवाल भित्ती को निर्मित कर कई जीवों के रहने के आश्रय तैयार करते हैं।
2. अंब्रेला प्रजाति (Umbrella Species)
यह प्रजाति मुख्य रूप से विशालकाय शरीर वाले उच्च काशेरूकी जीव होते हैं जीन पर अन्य प्रजातियों का जीवन एवं संख्या निर्भर करती रहती है। टाइगर रिजर्व के टाईगर (बाघ), गिरवन में शेर एक अंब्रेला प्रजाति है।
3. की स्टोन प्रजाति (Key stone Species)
आवास क्षेत्र या पारिस्थितिकी तंत्र में जिस जाति का अत्यधिक प्रभाव रहता उसे कीस्टोन प्रजाति के रूप में जाना जाता है। कीस्टोन प्रजाति पौधा, जन्तु, सूक्ष्मजीव में कोई भी हो सकता है।
4. संकेतक प्रजाति (Indicator Species)
किसी पौधा या जंतु की ऐसी प्रजाति जो पर्यावरण परिवर्तन के लिए बहुत ही संवेदनशील होता उसे संकेतक प्रजाति कहते हैं। लाइकेन एक संकेतक प्रजाति है जो वायु प्रदूषण के प्रति बहुत ही संवेदनशील है।

पर्यावरणीय अनुकूलन (Environmental Adaptions)

  • अनुकूलन जीवों का ऐसा विशेष गुण है जो उन्हें उनके अपने पर्यावरण में जीवित रहने के योग्य बनाता है। प्रत्येक जीव केवल उसी पर्यावरण में रह सकता है जिसमें वह अनुकूलित है।
  • अनुकूलन दो प्रकार के होते हैं- अस्थायी तथा स्थायी अनुकूलन । तेज एवं मंद प्रकाश में हमारी आँखों की पुतली जिस तरह व्यवहार करती है, वह अस्थायी अनुकूलन है। ऊँट की शारीरिक संरचना कुछ इस प्रकार की है कि वह मरूस्थल में आसानी रह सकते हैं, यह स्थायी अनुकूलन है।
  • जीवों में अनुकूलन अचानक से नहीं आ जाता है, यह अनुलून पृथ्वी पर जीवों के लंबे समय की विकास यात्रा के बाद विकसित होते हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी में अग्रसरित रहते है ।
  • पौधों में अनुकूलन के उदाहरण-
    1. Sciophytes Plant- यह पौधे छाया प्रिय होते हैं तथा इन पौधों में प्रकाश संश्लेषण श्वसन की क्रिया प्रायः धीमी होती है।
    2. Heliophytes Plant - ये पौधे उच्च प्रकाश में अपना जीवन चक्र पूरा करते है । इन पौधों में उच्च तापमान में भी प्रकाश संश्लेषण कर सकता है तथा श्वसन की दर भी उच्च होता है।
    3. Xerophytes Plant - ये पौधे रेगिस्तान एवं शुष्क स्थानों पर उगने हेतु अनुकूलित होते हैं। इन पौधों में निम्नलिखित तरह के अनुकूलन पाये जाते हैं-
      • इनकी जड़े बहुत लंबी, मोटी एवं मिट्टी के नीचे अधिक गहराई तक जाती है।
      • इनके तने जल संचय करने के लिए मांसल और मोटे होते हैं।
      • वाष्पोत्सर्जन के द्वारा जल की क्षति को रोकने के लिए तना सामान्यत: क्यूटिकल युक्त तथा घने रोम से भरा होता है।
      • पत्तियाँ छोटी, शल्क पत्र या काँटों में परिवर्तित हो जाती है जिससे कम-से-कम जल की क्षति वाष्पोत्सर्जन द्वारा हो ।
      • पत्तियों में जल संचय करने योग्य उत्तक होते हैं।
      • रंध्र, स्टोमैटल कैविटी में धँसे होते हैं।
    4. Xerophytic Plant, जिनकी जीवन अवधि काफी छोटी होती है उसे Ephemeral plant कहते है ।
    5. Hydrophytes Plant - ये पौधे स्थायी रूप से जल में पाये जाते हैं। पौधा पूरी तरह जलमग्न होता है या आधा जल में तथा पत्तीवाला आधा भाग जल के बाहर रहता है।
    6. Halophytes Plant- यह पौधे लवण की उच्च सांद्रता वाले जल का या मृदा में उगने के लिए अनुकूलित होते हैं। ऐसे पौधे अपने कोशिकाओं, तनों, पत्तों में लवण को संचित करते हैं। मैंग्रोव पौधे Halophytes plant के उदाहरण है।
  • जंतुओं में अनुकूलन के उदाहरण-
    1. प्रवास (Migration)— जीवों का एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में लंबी दूरी या कम दूरी तय करके पहुँचना प्रवास कहलाता है। प्रवास द्वारा जीव उस क्षेत्र में जाते हैं जहाँ के जलवायु (मौसम) के प्रति अनुकूलित है। उदाहरण- आर्कटिक टर्न, पक्षी, व्हेल, टिड्डा आदि ।
    2. छद्मावरण (Comouflage ) - कुछ प्राणियों में अपने परिवेश में घुल मिल जाने की क्षमता होती है, जिसे छद्मावरण कहते है। छद्मावरण एक अस्थायी अनुकूलन है। तितली, गिरगीट, तेंदुआ, कुछ कीड़ों में ये गुण पाया जाता है।
    3. शीत निष्क्रियता (Hibernation ) - अत्यधिक ठंडे या शुष्क वातावरण में जीव जन्तु प्रवसन करने योग्य नहीं रहता है तब उसका शरीर निष्क्रिय हो जाता है। इसे ही शीत निष्क्रियता कहते हैं। इस दौरान जीव के शरीर में केवल श्वसन होता है, अन्य जैविक प्रक्रिया रूक जाती है। उदाहरण- चमगादड़, ध्रुवीय भाल, हेजहॉग, काला भालू, चिपमूंक्स आदि ।
    4. ग्रीष्म निष्क्रियता (Aestivation ) - शीत निष्क्रियता के तरह ही जब जीव अत्यधिक गर्मी में निष्क्रिय अवस्था में चले जाते हैं तो इसे ग्रीष्म निष्क्रियता कहते हैं। उदाहरण- कछुआ, मेढ़क, छिपकली, केंचुआ, घोंघा, अफ्रीकन लंगफीश आदि ।
    5. अनुहरण (Mimicry ) - जब दो जातियाँ एक-दूसरे जैसी दिखती है तो उनमें एक जाति अनुहारक (mimic) कहलाती है। अनुहारक जाति को सुरक्षा संबंधी लाभ प्राप्त होता है जिसमें वे परभक्षियों के आक्रमण से बचे रहते है।
    6. मरूस्थलीय जीवों में अनुकूलन- मरूस्थलीय प्राणी में दो प्रकार के अनुकूलन पाये जाते हैं, पहला जल का जितना कम हो उतना कम उपयोग करना तथा मरूस्थलीय जलवायु के अनुकूल व्यवहार करना ।
      • उत्तरी अमेरिका के मरूस्थल में रहने वाला कंगारू - चूहा मूत्र को ठोस रूप में उत्सर्जित कर जल-हानि कम से कम करता है। यह जन्म से मृत्यु तक बिना पानी पिये रह सकता है क्योंकि यह अपने जल के आवश्यकता की पूर्ति अपनी आंतरिक वसा के ऑक्सीकरण से करता है।
      • मरूस्थलीय अनुकूलन का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण ऊँट। यह जल का उपयोग बहुत ही मितव्ययता से करता है, शरीर के तापमान में उतार-चढ़ाव के प्रति सहिष्णुता दिखाता है तथा अत्यधिक गर्मी में भी रूधिर धारा की आर्द्रता को बनाये रखने में सक्षम होता है।
      • मरूस्थलीय के छोटे जीव जैसे- चूहा, साँप, केकड़ा दिन के समय बालू के बनाये सुरंग में रहते है तथा रात को जब तापमान घट जाता है तब ये भोजन की खोज में बाहर निकलते हैं।

पारिस्थितिकी (Ecology)

  • पारिस्थितिकी विज्ञान की शाखा है, जिसमें यह अध्ययन किया जाता है, कि जीव जिस पर्यावरण में रहते, उसके साथ उसका पारस्परिक संबंध कैसा है। पर्यावरण तथा उनके सभी घटकों के अंतसंबंधों का अध्ययन पारिस्थितिकी के अंतर्गत ही होता है।
  • Ecology (पारिस्थितिकी) शब्दका सर्वप्रथम प्रयोग एच. रेटर ने किया परिभाषित किया। अर्नस्ट हेकेल के अनुसार, "वातावरण के कार्बनिक पारिस्थितिकी को 1870 में अर्नस्ट हेकेल का अध्ययन पारिस्थितिकी है। "
  • पारिस्थितिकी के दो मुख्य शाखाएँ है- 
    1. स्वपारिस्थितिकी (Autecology) इसके अतगत क इसके अंतर्गत केवल एक जीव या केवल एक जाति का पर्यावरण के साथ पारस्परिक संबंधों का अध्ययन किया जाता है। 
    2. समुदाय पारिस्थितिकी ( Synecology ) - इसके अंतर्गत जीवों के समुदाय तथा उसके पर्यावरण के संबंध का अध्ययन किया जाता है।

पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem)

  • जीवमंडल या पर्यावरण की स्वपोषित, संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई को पारिस्थितिकी तंत्र कहा जाता है। पृथ्वी खुद ही एक विशाल पारिस्थितिकी तंत्र का उदाहरण है।
  • Ecosystem (पारिस्थितिकी) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1935 में आर्थर जॉर्ज टैन्सले ने किया था। एक पारिस्थितिकी तंत्र में निम्न विशेषता पायी जाती है-
    1. पारिस्थितिकी तंत्र एक खुला तंत्र है जिसमें पदार्थों तथा ऊर्जा का का सतत् रूप से अंतर्गमन (Input) तथा बहिर्गमन (Output) होते रहता है।
    2. पारिस्थितिकी तंत्र मुख्य रूप से सूर्य की ऊर्जा के द्वारा संचालित होता है।
    3. पारिस्थितिकी तंत्र संरचित तथा सुसंगठित तंत्र होता है जिसके सभी घटक के बीच लगातार पारस्परिक क्रियाएँ होते रहता है।

पारिस्थितिकी तंत्र के घटक (Component of Ecosystem)

  • पारिस्थितिकी तंत्र के दो मुख्य घटक है जैविक (Biotic) तथा अजैविक (Abiotic) घटक। ये दोनों घटक आपस में अलग नहीं है बल्कि एक-दूसरे से संबंधित है।
  • अजैविक घटक (Abiotic Component) - इसके अंतर्गत सभी निर्जीव अवयव आते हैं। अजैविक घटक को तीन मुख्य भाग में बाँटा जाता है-
    • भौतिक वातावरण- जल, वायु मृदा
    • पोषण - जल, प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट।
    • जलवायु- ताप, दाब, आद्रता, प्रकाश ।
  • जैविक घटक (Biotic Component)- इसके अंतर्गत सभी सजीव अवयव आते हैं। जैविक घटक को तीन मुख्य भागों में बाँटा जाता है-
    1. उत्पादक (Producer)— उत्पादक के अंतर्गत के सभी सजीव शामिल है जो प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते है, अर्थात् वे जो स्वपोषी होते है। उत्पादक के अंतर्गत मुख्य रूप से हरे पौधे आते है। जैविक घटकों में सबसे ज्यादा महत्त्व उत्पादक या हरे पौधे का है क्योंकि यह निम्नलिखित कार्यों को सम्पन्न करते हैं-
      • ये पारिस्थितिकी तंत्र में रहने वाले जीवों के प्रकार का निर्धारण करता है।
      • यह सौर ऊर्जा को समस्त जीवों के लिए ऊर्जा का स्त्रोत हैं, उसे ग्रहण करता है।
      • यह मिट्टी से प्रमुख तत्वों को अवशोषित करने में समर्थ होता है।
      • यह वायुमंडल में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाई ऑक्साइड के बीच संतुलन बनाए रखता है।
    2. उपभोक्ता (Consumers) - उपभोक्ता के अंतर्गत वे सभी सजीव शामिल है जो पोषण हेतु उत्पादक पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर रहता है। उपभोक्ता के अंतर्गत जन्तु (Animal) आते है। उपभोक्ता के तीन श्रेणी होते हैं।
      • प्राथमिक उपभोक्ता - ये उपभोक्ता अपने पोषण हेतु प्रत्यक्ष रूप से हरे पौधे पर निर्भर रहते हैं तथा शाकाहारी होते हैं। जैसे- बकरी, हिरण, गाय, खरगोश आदि । मनुष्य जब शाकाहारी रहता है तब वह प्राथमिक उपभोक्ता है।
      • द्वितीयक उपभोक्ता- इसके अंतर्गत वे उपभोक्ता आते है जो प्राथमिक उपभोक्ता या शाकाहारी जीव को खाते हैं। जैसे- सांप, मेढ़क, पक्षी, शेर, बाघ आदि ।
      • तृतीयक उपभोक्ता- वे उपभोक्ता जो प्राणिमिक तथा द्वितीयक दोनों उपभोक्ता को खाते हैं परंतु स्वयं दूसरे जंतु द्वारा मारे और खाये नहीं जाते है, उसे तृतीयक उपभोक्ता कहते है। तृतीय उपभोक्ता को सर्वोच्च उपभोक्ता भी कहते है ।
    3. एक ही मांसाहारी जीव भिन्न-भिन्न स्थितियों में द्वितीयक या तृतीयक उपभोक्ता हो सकते हैं। अपघटक (Decomposers) - इसके अंतर्गत सूक्ष्मजीव (जीवाणु, कवक आदि ) आते हैं जो मृत पौधे तथा जन्तु के अवशेष को अपघटित कर पोषण भी प्राप्त करते हैं तथा मृत अवशेष में स्थित कार्बनिक पदार्थों को अकार्बनिक पदार्थ के तोड़कर हवा एवं मिट्टी में मुक्त कर देते हैं।
  • पारिस्थितिकी तंत्र के सभी घटक एवं उसके उप-घटक एक-दूसरे से जुड़े होते है तथा उस पर निर्भर होते हैं जिससे पारिस्थितिक तंत्र में संतुलन बना रहता है। जैसे ही घटकों के बीच असंतुलन पैदा होगा पारिस्थितिक तंत्र असंतुलित होने लगेगा और धीरे-धीरे नष्ट हो जाएगा।

आहार श्रृंखला (Food-Chain)

  • पारिस्थितिकी तंत्र में प्रत्येक जीव पोषण की दृष्टिकोण से एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। उत्पादक को प्राथमिक उपभोक्ता खाते हैं, प्राथमिक उपभोक्ता को द्वितीयक उपभोक्ता खाते हैं, द्वितीय उपभोक्ता को उच्च श्रेणी के तृतीयक उपभोक्ता खाते है। इस तरह प्रत्येक जीव अन्य जीव का भोजन बन जाता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र में एक-दूसरे को खाने वाले जीवों में एकदिशीय क्रम को आहार श्रृंखला कहते है। प्रत्येक आहार - श्रृंखला निम्न तरीके से व्यवस्थित होत है- 
              उत्पादक → प्राथमिक उपभोक्ता → द्वितीय उपभोक्ता → तृतीयक उपभोक्त
  • अधिकांश आहार श्रंखला उत्पादक से शुरू होता है तथा उच्च श्रेणी के मांसाहारी जीव (जिसे कोई अन्य जीव नहीं खाता है | ) पर आकर समाप्त हो जाता है।
  • घास स्थल पारिस्थितिकी तंत्र की आहार श्रृंखला-
            घास → टिड्डा → मेढ़क → सर्प → गिद्ध
  • तालाब पारिस्थितिकी तंत्र की आहार श्रृंखला-
           शैवाल → छोटे जंतु → छोटी मछली → बड़ी मछली → मांसाहारी पक्षी
  • वन पारिस्थितिकी तंत्र की आहार श्रृंखला -
                 घास → हिरण → बाघ 
         पौधा → कृमि → चिड़ियाँ → बिल्ली
  • किसी पारिस्थितिकी तंत्र का एक जीव केवलएक आहार भाग नहीं होते है, वे एक से अधिक आहार श्रृंखला के भाग हो सकते हैं क्योंकि एक ही पारिस्थितिकी तंत्र में कई आहार - श्रृंखला मौजूद रहती है।
  • आहार श्रृंखला दो प्रकार के होते हैं-
    1. चारण आहार श्रृंखला (Gazing Food chain ) - यह आहार श्रृंखला उत्पादक (पौधे) से प्रारंभ होता है। जैसे- घास → टिड्डा → पक्षी → बाज
    2. अपरद आहार श्रंखला (Detritus Food chain ) - यह आहार श्रृंखला क्षय होते जन्तु या पादप शरीर के मृत जैविक पदार्थों से आरंभ हाकर सूक्ष्मजीवों में तथा सूक्ष्मजीवों से अन्य जीवों में पहुँचाता है। जैसे- कचरा → कीट → मकड़ियाँ

पोषी स्तर ( Trophic Level)

  • आहार श्रृंखला के प्रत्येक स्तर पर भोजन (ऊर्जा) या स्थानांतरण अगले स्तर में होता है। आहार श्रृंखला के प्रत्येक स्तर को पोषी स्तर कहते हैं जिसमें उत्पादक हमेशा प्रथम पोषी स्तर होता है।
  • सामान्यतः किसी आहार श्रृंखला में चार पोषी स्तर होते हैं लेकिन विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्रों में तीन या पाँच या इससे अधिक पोषी स्तर हो सकते है।

आहार-जाल (Food-Web)

  • किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र का एक उपभोक्ता एक ही भोजन स्त्रोत का इस्तेमाल नहीं करता है बल्कि एक से अधिक भोजन स्त्रोत पर वह निर्भर रहता है। इस तरह एक पारिस्थितिकी तंत्र में कई आहार श्रृंखला मौजूद होता है।
  • एक पारिस्थितिकी तंत्र की सभी आहार श्रृंखला एक-दूसरे से स्वतंत्र नहीं रहता है बल्कि सभी आहार- श्रृंखला एक दूसरे से जाल के रूप में जुड़ा रहता है, इसे ही आहार जाल कहा जाता है।
  • वन पारिस्थितिकी तंत्र का आहार जाल-
  • किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र का खाद्य जाल जितना विशाल होगा वह पारिस्थितिकी तंत्र उतना ही स्थायी होगा। प्रकृति में जीवों के रहने हेतु एक संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र अति आवश्यक है।
  • आहार-श्रृंखला में ऊर्जा का प्रवाह एकदिशीय होता है लेकिन जब आहार श्रृंखला मिलकर आहार जाल का निर्माण करता है तब ऊर्जा प्रवाह के कई पथ बन जाते हैं परंतु ये सारे पथ एक-दूसरे से जुड़े होते है ।

पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह (Energy Flow in Ecosystem)

  • पारिस्थितिकी तंत्र या जीवमंडल में ऊर्जा का मूल स्त्रोत सौर ऊर्जा है। सौर ऊर्जा को हरे पौधे (उत्पादक) रसायनिक ऊर्जा में बदलते है। यह रसायनिक ऊर्जा का कुछ भाग पौधे स्वयं उपयोग करते हैं, शेष उपभोक्ताओं में स्थानांतरित हो जाते है।
  • किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह निम्नलिखित तरीके से होता है-
    1. ऊर्जा का प्रवाह आहार श्रृंखला के एक पोषी स्तर से दूसरे पोषी स्तर तक लगातार होते रहता है, यह प्रक्रिया कभी रूकती नहीं है।
    2. ऊर्जा का प्रवाह हमेशा एक दिशा में होता है।
    3. पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का प्रवेश एवं रूपांतरण उष्मागति नियम के अनुसार होता है।
    4. आहार श्रृंखला में सर्वाधिक ऊर्जा उत्पादकों के पास पास होता तथा आगे के पोषी स्तर को मिलने वाली ऊर्जा में कमी होती जाती है।
    5. आहार-श्रृंखला के प्रत्येक पोषी स्तर को उपलब्ध होने ऊर्जा में कमी लिंडेमान के 10% नियम के अनुसार होता है। लिंडेमान का नियम इस प्रकार है-
      • 'आहार श्रृंखला के प्रत्येक पोषी स्तर पर कुल ऊर्जा के 10 प्रतिशत ऊर्जा का ही स्थानांतरण अगले पोषी स्तर को हो पाता है तथा शेष 90 प्रतिशत ऊर्जा का उपयोग विभिन्न प्रकार से हो जाता है । "

पारिस्थितिकी पिरामिड (Ecological Pyramid )

  • किसी एक आहार-श्रृंखला में उत्पादक और प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय श्रेणीयों के उपभोक्ताओं की संख्या तथा उनके बीच के संबंध एक निश्चित अनुपात में रहता है। यदि इन संबंधों को चित्रित किया जाए तो एक शंकु के समान रचना बनती है जिसे पारिस्थितिकी पिरामिड कहा जाता है- यह पिरामिड तीन प्रकार के होते हैं- 1. संख्या पिरामिड, 2. जीवभार पिरामिड तथा 3. ऊर्जा पिरामिड |
  1. संख्या पिरामिड (Pyramids of Numers )
    • उत्पादक एवं प्रथम, द्वितीय और तृतीय श्रेणी के उपभोक्ताओं के संख्या बीच जो संबंध स्थापित होता है उसे संख्या पिरामिड कहेत हैं। यह पिरामिड सीधा तथा उल्टा दोनों प्रकार का बनता है।
    • तालाब, घास स्थल, फसल स्थल का संख्या पिरामिड सीधा बनता है तथा किसी एक पेड़ तथा का संख्या पिरामिड सीधा बनता है।
  2. जीवभार का पिरामिड ( Pyramids of Biomas )
    • जीवभार पिरामिड के अंतर्गत जीवों के शुष्क भार (Dry weight) को सम्मिलित किया जाता है। यह पिरामिड भी सीधा तथा उल्टा दानों बनता है।
    • तालाब का जैवभार पिरामिड उल्टा बनता है। घास स्थल तथा वन का जैवभार पिरामिड सीधा बनता है।
  3. ऊर्जा पिरामिड (Energy Pyramids )
    • ऊर्जा पिरामिड में प्रत्येक पोषी स्तर को प्राप्त ऊर्जा के बीच संबंध दर्शाया जाता है। ऊर्जा का पिरामिड हमेशा ही सीधा बनता है, किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र का ऊर्जा पिरामिड काफी उल्टा नहीं बनेगा ।

पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता (Productivity of Ecosystem)

  • पारिस्थितिकी तंत्र के किसी पोषी स्तर द्वारा इकाई क्षेत्रफल एवं प्रति इकाई समय में कार्बनिक पदार्थों की संश्लेषण की दर, उस पारिस्थितिकी की उत्पादकता कहलाता है। उत्पादकता दो प्रकार की होती है, प्राथमिक उत्पादकता तथा द्वितीयक उत्पादकता।
  • प्राथमिक उत्पादकता- उत्पादक ( हरे पेड़ पौधे) द्वारा प्रकाश संश्लेषण से सौर ऊर्जा को कार्बनिक यौगिकों में परिवर्तित करने की दर को प्राथमिक उत्पादकता कहते है। इसे Kcalm-2yr-1 (किलो कैलोरी मीटर-2 वर्ष-1 ) में मापा जाता है। प्राथमिक उत्पादकता का मापन दो रूपों में किया जाता है-
    1. सकल प्राथमिक उत्पादन (GPP) तथा
    2. शुद्ध प्राथमिक उत्पादन (NPP
  • प्राथमिक उत्पादक (पेड़-पौधे) द्वारा आत्म सात की गई ऊर्जा को सकल प्राथमिक उत्पादन कहा जाता है जबकि श्वसन के दौरान खर्च हुई ऊर्जा के बाद उत्पादक में जो ऊर्जा संचित रहता शुद्ध प्राथमिक उत्पादन कहते है।
          GPP - श्वसन के दौरान खर्च ऊर्जा = NPP
  • द्वितीयक उत्पादकता- जब ऊर्जा के कहते हैं। यह उत्पादकता सकल एवं संचयन की दर को उपभोक्ताओं मापा जाता है तो इसे द्वितीयक उत्पादकता शुद्ध उत्पादकताओं आम विभाजित नहीं होती है।
  • प्राथमिक उत्पादकता उत्पाद के संख्या पर निर्भर करती है। रेगिस्तान एवं समुद्र की प्राथमिक उत्पादकता बहुत कम होता है जबकि वन पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता बहुत अधिक होती है। पृथ्वी के पूरे जैवमंडल की कुल वार्षिक प्राथमिक उत्पादकता 170 बिलियन टन आँका गया है जिनमें पृथ्वी के लगभग 70 प्रतिशत भाग जो समुद्र से ढँका है उसकी उत्पादकता मात्र 55 बिलियन टन ही है।
  • ई.पी. ओडम ने पृथ्वी के स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र को उत्पादकता के आधार पर तीन स्तरों में बाँटा है-
    1. उच्च पारिस्थितिकी उत्पादकता वाले क्षेत्र - जलोढ़ मैदान वाला क्षेत्र, वन- प्रदेश (आर्द्र), छिछले स्थल स्थित जलीय क्षेत्र, गहन - कृषि वाले क्षेत्र ।
    2. मध्यम पारिस्थितिकी उत्पादकता वालो क्षेत्र- घास मैदान, छिछली झीले गहन कृषि छोड़कर अन्य कृषि क्षेत्र ।
    3. निम्न पारिस्थितिकी उत्पादकता वालो क्षेत्र - गहरे सागरीय भाग, मरूस्थलीय क्षेत्र, बंजर भूमि, हिमाच्छादित क्षेत्र, आर्कटिक क्षेत्र

पारिस्थितिकी अनुक्रमण (Ecological Succession)

  • किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र में पाये जाने वाले जैविक समुदाय (पेड़-पौधे तथा जन्तु) में परिवर्तन होते रहता है। वनस्पति तथा जन्तु के प्रजाति के समुदाय समय के साथ बदलते रहते हैं अर्थात् एक जाति का स्थान दूसरे जाति ग्रहण कर लेते है। इसे ही पारिस्थितिकी अनुक्रमण कहा जाता है। पारिस्थितिकी अनुक्रमण को समुदाय गतिकी (Community dynamics) भी कहा जाता है। पारिस्थितिकी अनुक्रमण के दो चरण होते है-
    1. प्राथमिक अनुक्रमण (Primary Succession)
      • प्राथमिक अनुक्रमण उन खाली क्षेत्रों में होता है जहाँ पहले किसी समुदाय का अस्तित्व नहीं था। इस अनुक्रमण में मृदा निर्माण प्रक्रिया चलती रहती है और मृदा निर्माण के उपरांत वनस्पति का विकास होता और फिर जन्तु का।
    2. द्वितीयक अनुक्रमण (Secondary Succession)
      1. किसी क्षेत्र के वर्तमान प्राकृतिक वनस्पति का प्राकृतिक या मानवीय कारको से पूर्ण या आंशिक रूप से नष्ट होने के बाद वनस्पति समुदाय का पुनः विकास होना द्वितीयक अनुक्रमण कहलाता है। द्वितीयक अनुक्रमण में प्राथमिक अनक्रमण के तुलना में बहुत कम समय लगता है।
  • पारिस्थितिकी अनक्रमण के विभिन्न चरण-
    1. वनस्पति रहित - पारिस्थितिकी अनुक्रमण की शुरूआत ऐसे ही विरल / बंजर स्थान से शुरू होता है जहाँ कोई वनस्पति की जाति या समुदाय मौजूद नहीं रहता है।
    2. प्रवास- इस अवस्था के दौरान विरान / बंजर स्थानों पर अनेक नई जाति का आगमन होना शुरू होता है।
    3. आस्थापन (Ecesis)- यह अनुक्रमण का वह दौर है जब बीजों से अंकुरण होता है और पौधे विकसित होते हैं। पहली बार विकसित पौधे में वृद्धि दर तो बहुत अधिक होती है परन्तु उसका जीवन काल बहुत कम होता है ।
    4. स्पर्द्धा (Competition) - विकसित होने वाले पौधे की जातियों में संसाधन तथा स्थान के लिए प्रतिस्पर्धा शुरू होती है और अंत में इस स्पर्धा में वही सफल होते हैं जो पर्यावरण के अनुकूल होते हैं।
    5. प्रतिक्रिया - इस चरण में जैविक तथा अजैविक घटकों के बीच प्रतिक्रिया होता है, साथ ही एक पादप प्रजाति दूसरे प्रजाति की स्थन ले लेती है। पारिस्थितिकी अनुक्रमण में मानव का हस्तक्षेप पहली बार इसी चरण में होता है।
    6. स्थिरीकरण- इस चरण में पर्यावरण के अनुकूल सर्वश्रेष्ठ प्रजाति पूर्ण रूप से विकसित हो जाते हैं और उसकी जनसंख्या संतुलन की स्थिति प्राप्त कर लेता है। 

जैविक अन्योन्यक्रिया (Biotic Interaction)

  • किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र में जैविक अन्योन्यक्रिया निम्नलिखित प्रकार के हो सकते हैं-
    1. असहयोजिता (Amensalism) - दो प्रजाति के के बीच ऐसा संबंध (अन्योन्यक्रिया) जिसें एक प्रजाति नुकसान में रहती है जबकि दूसरी प्रजाति को न हानि होती है, न ही लाभ, असहयोजिता कहलाता है। उदाहरण- पेनिसिलियम कवक तथा जीवाणु ।
    2. परभक्षण (Predation ) - इस अन्योन्यक्रिया में एक प्रजाति शिकार होता है दूसरी प्रजाति शिकारी । उदाहरण- शेर तथा हिरण ।
    3. परजीविता (Parasition ) - इस अन्योन्यक्रिया में एक प्रजाति को लाभ होता है वही दूसरी प्रजाति हानि में रहता हैं। उदाहरण- अमरबेल तथा अन्य वृक्ष
    4. स्पर्द्धा (Compeition ) - इस अन्योन्यक्रिया में दोनों प्रजाति एक-दूसरे को प्रभावित करती है। उदाहरण- चूहा, बिल्ली, सॉप के बीच की स्पर्द्धा ।
    5. सहजीविता (Mutulism) - दो प्रजाति के बीच ऐसा संबंध जिसमें दोनों लाभ की स्थिति में रहता है, सहभोजिता कहलाता है। उदाहरण- शैवाल तथा कवक के बीच का संबंध जिससे लाइकेन अस्तित्व में आता है।
    6. सहभोजिता (Commensalism) - इस अन्योन्यक्रिया में एक प्रजाति लाभ की स्थिति में रहता है जबकि दूसरी प्रजाति को न लाभ होता है और न ही हानि । उदाहरण- शार्क मछली से जुड़ा हुआ चूषक मछली ।
    7. तटस्थता (Nutralism)- जब दो प्रजाति किसी भी दृष्टिकोण से एक-दूसरे का प्रभावित न करे तो इसे तटस्थता कहते है।

संक्रमिका तथा कोर प्रभाव (Ecotone and Edge Efect)

  • दो या इससे अधिक विविध समुदाय के मध्य संक्रमण क्षेत्र को संक्रमिका या इकोटोन कहते हैं। संक्रमिका क्षेत्र में दो पारिस्थितिकी तंत्र की विशेषता पायी जाती है। जैसे- घास स्थल पारिस्थितिकी तंत्र या वन पारिस्थितिकी तंत्र के मिलन स्थली क्षेत्र इकोटोन होगा। इकोटोन छोटे क्षेत्र भी हो सकता है तथा एक विशाल क्षेत्र भी । इकोटोन तनाव का क्षेत्र होता है क्योंकि यहाँ दो पारिस्थितिकी तंत्र के विभिन्न समुदाय आपस में मिलते रहते है।
  • जहाँ भी दो पारिस्थितिकी तंत्र मिलते हैं या एक-दूसरे को ओवरलैप करते है वहाँ जैव-विविधता सर्वाधिक पायी जाती है। इसे ही कोर प्रभाव कहा जाता है। कोर प्रभाव वाले क्षेत्र-
    • पर्वत तथा घाटी का मिलन स्थल
    • नदी तट तथा घास स्थल का मिलन स्थल
    • वह क्षेत्र जहाँ एश्चुरी समुद्र से मिलती है

पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाएँ (Services of Ecosystem)

  • पर्यावरणविद् ने पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को चार भागों में वर्गीकृत किया है जो निम्न है-
    1. उपबंधित सेवाएँ (Provisioning Services) – इनमें पारिस्थितिकी तंत्र से प्राप्त होने वाले उत्पाद/कच्चा माल या ऊर्जा, जैसे- पानी, दवाइयाँ, खाद्य सामग्री संसाधन शामिल है। 
    2. विनियमित सेवाएँ (Regulating Services)- इनमें ऐसी सेवाएँ शामिल है जो पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित करने का कार्य करता है। जैसे वन जो कि वायु की गुणवत्ता को शुद्ध और विनियमित करते है।
    3. समर्थकारी सेवाएँ (Supporting Services) – ये विभिन्न जीवों हेतु निवास स्थान प्रदान करते हैं और जैव विविधता, पोषण चक्र तथा अन्य सेवाओं को बनाए रखते है।
    4. सांस्कृतिक सेवाएँ (Cultural Services )- इनमें मनोरंजन, सौंदर्य, सांस्कृतिक और अध्यात्मिक सेवाएँ आदि शामिल है। अधिकांश प्राकृतिक तत्व जैसे- प्रकृति परिदृश्य, पहाड़, गुफाओं आदि का उपयोग सांस्कृतिक और कलात्मक उद्देश्यों के लिए किया जाता है।  

पारिस्थितिकी में पदार्थों का संचरण (Propagation of Matters in Ecosystem)

  • जीवमंडल, वायुमंडल, जलमंडल तथा स्थल मंडल में विभिन्न अजैविक तत्वों का विभिन्न चक्रों के माध्यम से इस तरह संचरण होता है कि इन तत्वों का सकल द्रव्यमान प्रायः एक समान रहता है तथा ये तत्व जैविक समुदाय के लिए हमेशा उपलब्ध रहते है। पारिस्थितिकी तंत्र में पोषक तत्वों का प्रवाह जिन चक्रों के माध्यम से होता है उसे जैव भू-रसायन चक्र (Biogeochemi- cal cycle) कहते है।
  • भू-रसायन चक्र को पोषण चक्र भी कहा जाता है। यह चक्र दो प्रकार के होते हैं-
    1. गैसीय चक्र : गैसीय चक्र अंतर्गत नाइट्रोजन चक्र, ऑक्सीजन चक्र, कार्बन चक्र तथा जल चक्र शामिल है।
    2. अवसादी चक्र : इसके अंतर्गत फॉस्फोरस चक्र, सल्फर चक्र आदि शामिल है।

अभ्यास प्रश्न

1. पर्यावरण से अभिप्राय है-
(a) भूमि, जल, वायु, पौधा एवं पशुओं की प्राकृतिक दुनिया जो इनके चारों ओर अस्तित्व में है ।
(b) भौतिकीय, जैवकीय एवं सांस्कृतिक तत्वो की अंतः क्रियात्मक व्यवस्था जो अन्तः संबंधित होते है।
(c) उन संपूर्ण दशाओं का योग जो व्यक्ति को एक समय बिन्दु पर घेरे हुए होती है। 
(d) उपर्युक्त सभी
2. निम्नलिखित में कौन सा कथन सही है ?
(a) पर्यावरण के अजैविक संघटक के अंतर्गत स्थल मंडल, वायुमंडल तथा जलमंडल आते है।
(b) पादप, जीव, सूक्ष्मजीव पर्यावरण के जैविक संघटक है।
(c) अजैविक तथा जैविक संघटक मिलकर बायोम की रचना करते हैं।
(d) पर्यावरण के सभी घटक हमेशा स्थिर रहते है।
3. पर्यावरण के जैविक संघटक में पादप सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि- 
(a) पादप ही जैविक पदार्थों का निर्माण करते है।
(b) पादप ही पर्यावरण के जैविक संघटको में जैविक पदार्थों तथा पोषक तत्वों के गमण को संभव बनाते है।
(c) पादप अपना आहार स्वंग तैयार करते है।
(d) इनमें से सभी
4. निम्नलिखित में कौन सा एक सही है ?
(a) निकेत में कई तरह की प्रजातियाँ पाई जाती है।
(b) आवास में एक ही तरह की प्रजाति पाई जाती है।
(c) एक आवास में कई निकेत होते है
(d) आवास के द्वारा हमें किसी प्रजाति के पारिस्थितिकी तंत्र में स्थान का पता चलता है।
5. झील परितंत्र का वह क्षेत्र क्या कहलाता है जहाँ पादपप्लवक (Phytoplankton ) की अधिकता होती है?
(a) वेलांचल क्षेत्र 
(b) सरोजाबी क्षेत्र
(c) गहरा क्षेत्र
(d) इनमें से सभी
6. संक्रमिका (Ecotone) के संदर्भ में निम्न कथनों पर विचार कीजिए-
1. यह दो या अधिक पारिस्थितिकी तंत्र का संक्रमण क्षेत्र होता है इसलिये यहाँ तनाव पाया जाता है।
2. संक्रमिका का क्षेत्र प्रायः न्यून होता है।
उपर्युक्त में कौन-सा /से सही है / है ?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 तथा 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
7. जैवमंडल के अंतर्गत शामिल है-
(a) जलमंड
(b) वायुमंडल
(c) स्थलमंडल
(d) इनमें सभी
8. कोर प्रभाव (Eedge effect) के संदर्भ में निम्न कथनों पर विचार कीजिए-
1. कोर प्रभाव एक पारिस्थितिकी अवधारणा है जो कि संक्रमिका से संबंधित है ।
2. कोर प्रभाव वाले क्षेत्र में विशिष्ट प्रजातियाँ पाई जा सकती है जो कि आसन्न परितंत्र में नहीं होती है।
उपर्युक्त में कौन - सा /से सही है / है ?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 तथा 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
9. निम्नलिखित में कौन सी प्रजाति पारिस्थितिकी की हानि से तुरंत प्रभावित होती है ?
(a) फाउंडेशन प्रजाति
(b) की - स्टोन प्रजाति
(c) संकेतक प्रजाति
(d) अंब्रेला प्रजाति
10. निम्नलिखित में कौन सा एक पारिस्थितिकी तंत्र के संदर्भ में सही नहीं है ?
(a) पारिस्थितिकी तंत्र प्राकृतिक संसाधन तंत्र होते है।
(b) पारिस्थितिकी तंत्र विभिन्न प्रकार के ऊर्जा द्वारा संचालित होते है।
(c) पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता उसमे ऊर्जा की सुलभता पर निर्भर करता है।
(d) पारिस्थितिकी तंत्र एक बंद तंत्र है।
11. पारिस्थितिकी कर्मता (Ecological Niche) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
1. पारिस्थितिकी कर्मता, किसी विशेष प्रजाति की उसके पर्यावरण में कर्यात्मक भूमिका तथा स्थिति को प्रदर्शित करता है।
2. पारिस्थितिकी कर्मता के अंतर्गत प्रजातियों द्वारा उपयोग किये जाने वाले संसाधनों की प्रकृति, उनके उपयोग के तरीको एवं समय तथा उस प्रजाति की अन्य प्रजाति के साथ अन्तर्क्रिया को भी सम्मिलित किया जाता है।
3. पारिस्थितिकी कर्मता की अवधारणा का विकासी जोसेफ ग्रीनेल ने किया था।
उपर्युक्त में कौन-सा/से सही है/है?
(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3
(c) 1 तथा 2 दोनों
(d) 1, 2 और 3
12. घास स्थल पारिस्थितिकी तंत्र की संख्या पिरामिड होगा-
(a) उल्टा
(b) सीधा
(c) कभी उल्टा कभी सीधा
(d) इनमें से कोई नहीं
13. निम्नलिखित में किसका संख्या पिरामिड उल्टा बनेगा ?
(a ) घास-स्थल
(b) तालाब
(c) आम का पेड़
(d) इनमें से सभी
14. किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र का कौन सा पिरामिड हमेशा सीधा बनता है ?
(a) संख्या पिरामिड
(b) बायोमास पिरामिड
(c) ऊर्जा पिरामिड
(d) इनमें से सभी
15. जलीय पारिस्थितिकी तंत्र का बायोमास पिरामिड कैसा होगा ?
(a) उल्टा
(b) सीधा
(c) कभी उल्टा कभी सीधा
(d) इनमें से कोई नहीं
16. निम्नलिखित में से किस जीव में शीत निष्क्रियता नहीं पाई जाती है ?
(a) चमगादड़
(b) कंगारू
(c) चूहा
(d) गिरगिट
17. निम्नलिखित में किस जीव में ग्रीष्म निष्क्रियता नहीं पाई जाती है ?
(a) मगरमच्छ
(b) सैलामैंडर
(c) चूहा
(d) चमगादड़
18. पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता को प्रभावित करने वाला सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक कौन है ?
(a) सूर्यातप
(b) जल की मात्रा
(c) पोषक तत्वो की आपूर्ति
(d) जलवायु
19. निम्नलिखित में कौन सा क्षेत्र उच्च पारिस्थितिकी उत्पादकता वाला क्षेत्र नहीं है ?
(a) जलोढ़ मैदान
(b) आर्कटिक क्षेत्र
(c) आई वन प्रदेश
(d) गहन कृषि क्षेत्र
20. किसी जलीय वातावरण स्वतंत्र एवं स्थूलदर्शीय प्राणियों को किस प्रकार उल्लिखित किया जाता है ?
(a) प्लवक 
(b) परिपादप (परिजीव)
(c) तरणक
(d) नितल जीवजात
21. समुद्री वातावरण में मुख्य प्राथमिक उत्पादक कौन होते है ?
(a) फाइटोप्लैन्कटॉन्स
(b) जलीय ब्रायोफाइट्स
(c) समुद्री आवृतबीजी
(d) समुद्री अपतॄण
22. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
1. खाद्य श्रृंखला में ऊर्जा का प्रवाह एकमार्गीय होता है।
2. खाद्य जाल में ऊर्जा का प्रवाह बहुमार्गीय होता है।
उपर्युक्त में कौन-सा/से सही है/है?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 तथा 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
23. खाद्य श्रृंखला के समय सर्वाधिक ऊर्जा कहाँ संचित रहती है ?
(a) शाकाहारी
(b) मांसाहारी
(c) उत्पादक
(d) अपघटक
24. निम्न में कौन प्राथमिक उपभोक्ता की श्रेणी में आते है?
(a) जलीय कीट
(b) बाज एवं सर्प
(c) सर्प एवं मेढ़क
(d) कीट एवं मवेशी
25. परितंत्र कैसा होता है ?
(a) बंद 
(b) खुला
(c) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
26. पारिस्थितिकी तंत्र का कार्य केंद्रित रहता है-
(a) ऊर्जा के प्रवाह में
(b) पदार्थों के चक्रण में
(c) A तथा B दोनों
(d) न तो A में न ही B में
27. फॉस्फोरस किस रूप में मिट्टी में रहता है ?
(a) फॉस्फोरस ऑक्साइड 
(b) फॉस्फोरस सल्फाइड
(c) फॉस्फोरिक एसिड 
(d) आर्थोफॉस्फेट
28. उपभोक्ता के स्तर पर संचित ऊर्जा को क्या कहते है ?
(a) शुद्ध प्राथमिक उत्पादकता
(b) शुद्ध उत्पादकता
(c) सकल प्राथमिक उत्पादकता
(d) द्वितीयक उत्पादकता
29. शाकाहारी से मांसाहारी स्तर में ऊर्जा स्थानांतरण में कितनी कमी आती है ?
(a) 30%
(b) 20%
(c) 10%
(d) 5%
30. झील परितंत्र का जैवभार पिरामीड कैसा होगा ?
(a) उल्टा
(b) सीधा
(c) उल्टा तथा सीधा दोनों
(d) तिरछा
31. जन्तु जो समुद्र की तली में रहते है, उसे क्या कहा जाता है ?
(a) डायटम
(b) बेन्थोस
(c) प्लेक्टोन्स
(d) नेक्टोन्स
32. जैविक समुदाय में प्राथमिक उपभोक्ता होते है-
(a) सर्वभक्षी
(b) शाकभक्षी
(c) मांसभक्षी
(d) अपरभक्षी
33. पादप अनुक्रमण में अन्तिम स्थिर समुदाय कहलाता है ?
(a) चरम समुदाय
(b) क्रमिक समुदाय
(c) अग्रनी समुदाय
(d) इकोस्फीयर
34. घास स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र में ग्रासहॉपर है-
(a) प्राथमिक उपभोक्ता
(b) द्वितीयक उपभोक्ता
(c) तृतीयक उपभोक्ता
(d) उत्पादक
35. परितंत्र के अजैव घटक निम्न में से कौन है ?
(a) जल
(b) वायु
(c) मिट्टी
(d) इनमें से सभी
36. अनुक्रमण सदैव किस ओर होता है-
(a) समोद्भिद
(b) जलोद्भिद
(c) मरूद्भिद
(d) इनमें से कोई नहीं
37. निम्न में किसे जीवन का माना जाता है ?
(a) कार्बन
(b) फॉस्फोरस
(c) ऑक्सीजन
(d) नाइट्रोजन
38. पोषण चक्र कितने प्रकार के होते है ?
(a) एक 
(b) दो
(c) तीन
(d) चार
39. तालाबीय पारिस्थितिकी तंत्र में बड़ी मछली होती है ?
(a) उत्पादक
(b) प्राथमिक उत्पादक
(c) द्वितीयक उत्पादक
(d) तृतीयक उत्पादक
40. निम्नलिखित में कौन प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता है ?
(a) गाय
(b) मेढ़क
(c) शेर
(d) जीवाणु
41. किसी आहार श्रृंखला के प्रथम जीव कौन होते है ?
(a) उत्पादक
(b) उपभोक्ता
(c) अपघटक
(d) इनमें से कोई नहीं
42. सौर विकिरण का कितना प्रतिशत भाग पौधे प्रकाश संश्लेषण हेतु ग्रहण करते है ?
(a) 1-15% 
(b) 2-10%
(c) 50%
(d) 100%
43. परितंत्र के जलवायु संबंधी कारक निम्नलिखित में कौन है ?
(a) प्रकाश
(b) तापक्रम
(c) आर्द्रता
(d) इनमें से सभी
 share आधार (b)
44. उत्तरोत्तर पोषण स्तर पर ऊर्जा की मात्रा-
(a) घटती है
(b) बढ़ती है 
(c) स्थिर रहती है
(d) इनमें से कोई नहीं
45. अपरद खाद्य श्रृंखला प्रारंभ होती है-
(a) पादप से
(b) जन्तु से
(c) मृत कार्बनिक सामग्री से
(d) इनमें से कोई नहीं
46. किसी स्थान में होने वाले अनुक्रमण में सबसे पहले स्थापित होने वाले समुदाय को क्या कहते हैं ?
(a) प्रधान समुदाय
(b) परिवर्ती समुदाय
(c) अग्रगामी समुदाय
(d) इनमें से कोई नहीं
47. दीर्घ उपभोक्ता के अंतर्गत कौन सम्मिलि है ?
(a) सिर्फ प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता
(b) सिर्फ द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता
(c) सिर्फ तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता 
(d) इनमें सभी
48. अगर कर पारिस्थितिकी तंत्र में अपघटको को नष्ट जाए तो इसका क्या परिणाम होगा ?
(a) ऊर्जा का प्रवाह रूक जाएगा
(b) खनिजों का प्रवाह रूक जाएगा 
(c) अपघटन की दर बढ़ जाएगी
(d) प्रकाश संश्लेषण की क्रिया रूक जाएगी
49. निम्नलिखित में कौन वन पारिस्थितिकी तंत्र का एक उपभोक्ता है ?
(a) वैलिसनेरिया
(b) स्पाइरोगाइरा
(c) टेक्टोना
(d) निम्फिया
50. उत्पादक उपभोक्ता के पारस्परिक संबंध के चलते उत्पादक के अबादी में उपभोक्ता की वृद्धि का क्या असर पड़ता है?
(a) वृद्धि होती है
(b) कमी आती है
(c) कोई परिवर्तन नहीं होता है
(d) इनमें कुछ नहीं होता है
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