General Competition | Economics & Economy | सरकारी बजट

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 के अनुसार केंद्र सरकार समस्त देश का वार्षिक वित्तीय विवरण (Arthual Financial Statement) तैयार करता है इसे केंद्र सरकार का बजट कहते है।

General Competition | Economics & Economy | सरकारी बजट

General Competition | Economics & Economy | सरकारी बजट

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 के अनुसार केंद्र सरकार समस्त देश का वार्षिक वित्तीय विवरण (Arthual Financial Statement) तैयार करता है इसे केंद्र सरकार का बजट कहते है।
  • बजट में तीन लगातार वर्षों का आय और व्यय का विवरण रहता है, आनेवाले वर्ष का बजट अनुमान, चालू वर्ष का संशाधित बजट अनुमान तथा बीते वर्ष का वास्तविक प्राप्तियां तथा व्यव। परन्तु सरकार अधिकतर ध्यान बजट के उस भाग पर देता है जिसमें आने वाले वर्ष में सरकार के अनुमानित प्राप्ति (आय) तथा व्यय का ब्यौरा होता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 202 के अनुसार प्रत्येक राज्य सरकार राज्य का वार्षिक वित्तीय विवरण तैयार करता है, यह राज्य का बजट कहलाता है।

बजट का महत्व

  • बजट सरकार के राजकोषीय नीति का अनिवार्य हिस्सा है। बजट के माध्यम से सरकार आय और संपत्ति के बँटवारे में सुधार लाने हेतु काराधान (Taxsation) तथा आर्थिक सहायता (Subsidies) की घोषणा करता है।
  • बजट नीति (अथवा राजकोषीय नीति) द्वारा सरकार साधनों का आवंटन इस प्रकार करती है जिससे अधिकतम लाभ तथा समाजिक कल्याण के बीच संतुलन स्थापित किया जा सके।
  • अर्थव्यवस्था में हमेशा अनुकूल स्थिति नहीं रहती है, कभी तेजी, कभी सुस्ती तो कभी मंदी का दौर आते रहता है। बजट के माध्यम से सरकार अर्थव्यवस्था में अनुकूल स्थिति बनाये रखने का हरसंभव प्रयास करती है।
  • बजट अर्थव्यवस्था में संपूर्ण राजकोषीय अनुशासन को स्थापित करता है। राजकोषीय अनुशासन से तात्पर्य एक ऐसी स्थिति से है जिसमें सरकार की आय और व्यय में बीच आदर्श संतुलन बना रहे।

राजस्व प्राप्ति (Revenue Receipts)

  • सरकार की राजस्व प्राप्तियाँ वे मौद्रिक प्राप्तियाँ है जिनके लौटने का दायित्व सरकार पर नहीं हो या जिसके साथ किसी संपत्ति की बिक्री नहीं जुड़ी हो। इस प्रकार की प्राप्ति से सरकार के संपत्ति में कोई कमी नहीं आती है।
  • राजस्व प्राप्ति दो प्रकार के होते है - 
    1. कर प्राप्तियाँ- सरकार को प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष कर तथा अन्य किसी प्रभार से लगाये कर से जो प्राप्ति होती है वह कर प्राप्ति (जंग Revenue Recipts) कहलाता है। 
    2. करेत्तर प्राप्तियाँ- करंतर प्राप्तियाँ के अंतर्गत निम्न प्रकार के प्राप्तियाँ शामिल होती है। 
      1. फीम, लाइसेंस तथा परमिट से हुई प्राप्तियाँ |
      2. एसचीट- एसचीट का तात्पर्य सरकार की उस आय (प्राप्ति) से है जो उनलोगों के संपत्ति से प्राप्त होती है जिनकी मृत्यु बिना किसी कानूनी उत्तराधिकार के नियुक्त किए, हो जाती है अथवा लावारिस संपत्ति से हुई आय को ही एसचीट कहते है। लावारिस संपत्ति पर कानूनी रूप से सरकार का अधिकार होता है।
      3. विशेष आंकन (Special Assessment) से प्राप्ति । विशेष आंकलन वह भुगतान है जो सरकारी कार्यों के फलस्वरूप किसी संपत्ति में सुधार होना या उसके मूल्य में वृद्धि होने के कारण उसके मालिकों द्वारा सरकार को किया जाता है।
      4. जुर्माना व जष्ती से प्राप्त आय। जुर्माना व जष्ती सरकार कानून तोड़ने वालों से नियमानुसार वसूल करती है। जुर्माना व जष्ती लगाने का उद्देश्य आय प्राप्त करना नहीं होता है बल्कि लोगों को कानून पालन करने के लिए मजबूर करना होता है।
      5. सरकारी उद्यम (रेलवे, बिजली, इस्पात उद्योग आदि) से हुए लाभ से प्राप्त आय ।
      6. सरकार को प्राप्त होने वाले उपहार तथा अनुदान ।
  • राजस्व प्राप्ति = कर प्राप्ति + करेत्तर प्राप्ति

पूंजीगत प्राप्ति (Capital Receipts)

  • पूंजीगत प्राप्ति वं प्राप्तियाँ जो सरकार के दायित्व या ऋण में वृद्धि लाती है तथा सरकार की सम्पत्तियों में कमी लाती है।
  • पूंजीगत प्राप्ति के अंतर्गत निम्न प्राप्तियों को सम्मीलित किया जाता है ।
    1. सरकार जो ऋण देती है वह सरकार की परिसंपत्ति होती है। ऋणों के वसूली से प्राप्त आय पूंजीगत प्राप्ति कहलाती है। केंद्र सरकार, राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेशों को वित्तीय आवश्यकता पूरा करने हेतु ऋण प्रदान करते है।
    2. उधार लेने के फलस्वरूप जो मुद्रा प्राप्त होती है उसे पूंजीगत प्राप्ति कहते हैं। सरकार सामान्य जनता से भारतीय रिजर्व बैंक से तथा शेष विश्व के देशों से उधार लेता है।
    3. विनिवेश से प्राप्त आय पूंजीगत प्राप्ति कहलाती है क्योंकि विनिवेश के फलस्वरूप सरकार की संपत्ति में कमी आ जाती है।

राजस्व व्यय (Revenue Ependiture)

  • राजस्व व्यय उस व्यय को कहते है जो सरकार के लिए न तो परिसंपत्तियों का निर्माण करते हैं और न ही सरकार की देयता (Liability) को कम करते हैं।
  • राजस्व व्यय के अंतर्गत निम्न व्यय आते है-
    1. ब्याज का भुगतान।
    2. आर्थिक सहायता पर होनेवाला व्यय ।
    3. प्रतिरक्षा पर किया गया व्यय ।
    4. कर्मचारी के तनख्वाह पेंशन पर किया गया व्यय ।
  • केन्द्र सरकार द्वारा राज्य एवं केन्द्रशासित प्रदेशों को दिए जाने वाले अनुदान को भी राजस्व व्यय माना जाता है।

पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure )

  • पूंजीगत व्यय वे व्यय है जो सरकार के लिए परिसंपत्ति का निर्माण करते हैं तथा सरकार की देयता को कम करते है।
  • पूंजीगत व्यय के अंतर्गत आने वाले महत्वपूर्ण व्यय-
    1. भूमि तथा भवन पर किया गया व्यय ।
    2. मशीनरी तथा उपकरणों पर किया गया व्यय ।
    3. सरकार के द्वारा शेयरों की खरीद पर हुआ व्यय ।
    4. केन्द्रीय सरकार द्वारा राज्य व केन्द्रशासित प्रदेश तथा राज्य निगमों को दिया गया ऋण ।
  • सरकार के द्वारा किए जाने वाले व्यय को निम्न प्रकार से भी वर्गीकृत किया जाता है-
    1. विकास व्यय ( Development Expenditure )- विकास व्यय वह व्यय है जो आर्थिक विकास तथा सामाजिक कल्याण के लिए किया जाता है। कृषि स्वास्थ्य, सड़क, पुल, बिजली आदि पर किया गया व्यय विकास व्यय कहलाएगा। सरकार उद्योगों को विकास हेतु जो ऋण प्रदान करती है वो भी विकास व्यय कहलाता है।
    2. विकासेतर व्यय (Non-Development Expenditure ) - विकासेतर कार्यों पर किया जाने वाला व्यय विकासेतर व्यय कहलाता है। प्रशासन, पुलिस, सेना ऋणों पर ब्याज, आर्थिक सहायता आदि पर किया जाने वाला व्यय विकासेतर व्यय है।
    3. योजना व्यय ( Plan Expenditure )- योजना व्यय से तात्पर्य सरकार के उस व्यय से है जो चालू पंचवर्षीय योजना के अधीन कार्यक्रमों पर किया जाता है। कृषि, ऊर्जा, संचार, उद्योग, यातायात सार्वजनिक सेवाएँ आदि पर होनेवाले व्यय योजना व्यय है।
    4. योजनेतर व्यय ( Non-Plan Expenditure ) - योजना व्यय के अतिरिक्त अन्य सभी व्यय को योजनेतर व्यय कहा जाता है।  इसके मुख्य उदाहरण है- अनुदान, सुरक्षा, कानून तथा व्यवस्था, सरकार द्वारा लिए गए ऋण पर ब्याज भुगतान तथा आदि पर व्यय ।
  • केन्द्रीय बजट 2016-17 में वित्तीय वर्ष 2017-18 से योजना व्यय तथा योजनेतर व्यय के वर्गीकरण को समाप्त कर दिया गया है।

 बजट घाटा (Budget Deficit) 

  • जब सरकार का बजट व्यय सरकार के बजट प्राप्ति से अधिक होता है तो यह बजट घाटा कहलाता है । 
  • बजट घाटा तीन प्रकार के होते है- 1. राजस्व घाटा, 2. राजकोषीय घाटा 3. प्राथमिक घाटा ।
राजस्व घाटा ( Revenue Dificit )
  • राजस्व घाटा का संबंध केवल राजस्व बजट ( राजस्व प्राप्ति तथा राजस्व व्यय) से है। इसका संबंध पूंजीगत बजट से नहीं है।
  • राजस्व घाटा = राजस्व व्यय - राजस्व प्राप्ति । 
  • राजस्व घाटा का अर्थ है सरकार को प्रशासन, कानून व्यवस्था जैसे जिम्मेवारी पर अधिक खर्च हो रहा है और लोगों द्वारा दिए गए कर से उतनी प्राप्ति नहीं हो रही है।
  • राजस्व घाटा शब्दावली का उपयोग पहली बार भारतीय बजट में 1997-98 में हुआ था। किसी भी वित्त वर्ष के राजस्व घाटे को मात्रात्मक अथवा सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।
  • प्रभावी राजस्व घाटा (Effective Revenue Deficit)– इस पद का प्रयोग सर्वप्रथम 2011-12 के बजट में किया गया था। प्रभावी राजस्व घाटा में केन्द्र सरकार द्वारा राज्य अथवा केन्द्रशासित प्रदेशों को दिए जाने अनुदान को निकाल दिया जाता है।
  • प्रभावी राजस्व घाटा = राजस्व व्यय ( अनुदान को छोड़कर) - राजस्व प्राप्ति
  • सरकार बढ़ते हुए राजस्व घाटे को पूरा करने के लिए या तो धन उधार लेना पड़ता है या विनिवेश करना पड़ता है।
राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit)
  • " राजकोषीय घाटा" शब्द का उपयोग सर्वप्रथम भारत में 1991 में डॉ. मनमोहन सिंह के द्वारा किया गया था।
  • राजकोषीय घाटा का संबंध कुल बजट व्यय ( राजस्व + पूंजीगत व्यय) तथा उधार छोड़कर कुल बजट प्राप्ति से है।
  • राजकोषीय घाटा = कुल बजट व्यय - उधार छोड़कर कुल बजट प्राप्ति या ( राजस्व + पूंजीगत व्यय) - (राजस्व प्राप्ति उधार छोड़कर कुल पूंजीगत प्राप्ति )
  • राजकोषीय घाटा से सरकार को यह पता चलता है कि उसे भिन्न-भिन्न स्त्रोतों कितना उधार लेना पड़ेगा। राजकोषीय घाटा जितना अधिक होगा सरकार पर ऋण का उतना ही बड़ा बोझ आयेगा ।
  • राजकोषीय घाटा का देश की अर्थव्यवस्था पर निम्न प्रभाव पड़ सकते है-
    1. अगर सरकार राजकोषीय घाटा को पूरा करने हेतु घाटे की वित्त व्यवस्था अपनाता है तो इससे मुद्रास्फीति उत्पन्न होगी।
    2. अगर सरकार शेष विश्व के देशों से उधार लेती है तो अन्य देशों पर निर्भरता बढ़ेगी जो एक तरह का आर्थिक गुलामी है।
    3. सरकार द्वारा उधार लिए जाने के फलस्वरूप देश के भावी पीढ़ी पर वित्तीय भार बढ़ जाता है।
    4. सरकार जो उधार लेती पुन: उसका ब्याज भुगतान करना पड़ता है। ब्याज का भुगतान बढ़ने से राजस्व घाटा बढ़ने राजकोषीय घाटा बढ़ने से राजस्व घाटा भी बढ़ने लगता है।
प्राथमिक घाटा (Primary Deficit)
  • राजकोषीय घाटा तथा सरकार द्वारा भुगतान किए जाने वाले ब्याज के अंतर को राजकोषीय घाटा कहते है ।
  • प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा ब्याज भुगतान।
  • प्राथमिक घाटे से सरकार को यह पता चलता है ब्याज भुगतान को छोड़कर अन्य कितनी उधार की आवश्यकता है।
  • शून्य प्राथमिक घाटा- अगर प्राथमिक घाटा शून्य है तो इसका अर्थ है सरकार उधार (ऋण) केवल अपने ब्याज के भुगतान के दायित्व को पूरा करने के लिए ही ले रहा है।
पूंजीगत घाटा (Capital Deficit)
  • बजट अथवा अर्थशास्त्र में " पूंजीगत घाटा" जैसा कोई शब्द नहीं है परंतु कभी-कभी समाचार पत्र के आर्थिक खबरों में इस शब्द का उपयोग किया जाता है। अगर पूंजीगत घाटा को स्पष्ट किया जाए तो यह पूंजीगत बजट से ही संबंधित होनी चाहिए अर्थात् पूंजीगत घाटा = पूंजीगत व्यय - पूंजीगत प्राप्ति
मौद्रीकृत घाटा (Monetised Deficit)
  • राजकोषीय घाटा को पूरा करने हेतु जो ऋण (उधार) सरकार RBI से लेती है उसे मौद्रीकृत घाटा के रूप में उल्लेखित किया जाता है।
  • "मौद्रीकृत घाटा" अवधारणा की शुरूआत भारत में 1997-98 से हुआ तथा इसे GDP के प्रतिशत के रूप में दर्शाया जाता है।
बजेटरी घाटा (Budgetary Deficit )
  • बजेटरी घाटा का तात्पर्य कुल व्यय तथा कुल प्राप्ति से है।
  • बजेटरी घाटा या बजट घाटा = कुल व्यय - कुल प्राप्ति या ( राजस्व व्यय + पूंजीगत व्यय) - ( राजस्व प्राप्ति + पूंजीगत प्राप्ति) या बजट व्यय - बजट प्राप्ति

घाटे का वित्त पोषण (Deficit Financing)

  • बजट में हुए घाटे को पूरा करने हेतु सरकार विभिन्न स्त्रोतों से ऋण लेती है। बजट में हुए घाटे को पूरा करने हेतु सरकार निम्न स्त्रोतों से ऋण लेता है।
  1. विदेशी ऋण- घाटे को पूरा करने के लिए यह सबसे उचित साधन है। विदेशी सरकार तथा अंतराष्ट्रीय संस्था से प्राप्त ऋण को विदेशी ऋण कहते है। संघ सरकार प्रत्यक्ष रूप से विदेशी सरकार से ऋण नहीं लेती बल्कि यह कम द्विपक्षीय या बहुपक्षीय संस्थाओं के माध्यम से किया जाता है।
  2. आंतरिक ऋण- आंतरिक ऋण के अंतर्गत सरकार द्वारा जारी प्रतिभूति तथा ट्रेजरी बिल्स के माध्यम से आये रूपये शामिल होता है। लेकिन सरकार आंतरिक ऋण की सीमा को बढ़ाते है तो जनता तथा निजी क्षेत्र के निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 1960, 1970, 1980 में आंतरिक ऋण के मात्रा बढ़ने से भारत की अर्थव्यवस्था चरमरा सी गयी थी ।
  3. अन्य देयता- इसके अंतर्गत वे देयताये शामिल होती है जो सरकार को एक ऋणी के रूप में प्राप्त नही होता है बल्कि सरकार के खाते में एक बैंक की भूमिका के रूप से प्राप्त होते है। जैसे- डाकघर के बचत खाते में जमा रकम, NSC के अंतर्गत जमा रकम आदि ।
  4. वर्तमान में सभी प्रकार के सार्वजनिक ऋण के प्रबन्धन का काम RBI करता है। केन्द्रीय बजट 2007-08 में वित्त मंत्री ने सार्वजनिक ऋण के उचित प्रबन्धन हेतु ऋण प्रबन्ध ऑफिस स्थापना की बात कही थी अबतक इसकी स्थापना नहीं की गई है।

भारत सरकार के खाता

  • संविधान के अनुच्छेद 266 तथा 267 में बजट का संरचना दिया हुआ है जिसके अनुसार भारत सरकार के तीन प्रकार के खातों का जिक्र किया गया है जिन खातों से सभी प्रकार के सरकारी व्यवहार ( प्राप्ति व व्यय) किए जाते हैं।
1. समेकित कोष (Consolidated Fund )
  • अनुच्छेद 266(1) में समेकित कोष का उल्लेख किया गया है। इस कोष में सम्पूर्ण राजस्व प्राप्ति सरकार द्वारा जारी ट्रेजरी बिल्स, ऋण आदि रिकार्ड की जाती है।
  • इस कोष से निकासी हेतु संसद की अनुमति लेना अनिवार्य है। विनियोग विधेयक संसद में पारित होने के बाद सरकार इस कोष में धन की निकासी करता है।
2. सार्वजनिक खाता ( Public Account )
  • अनुच्छेद 266 (2) में सार्वजनिक खाता का उल्लेख किया गया है। इस खाते में ऐसे प्राप्ति रिकॉर्ड की जाती है जो वास्तव में सरकार की नहीं होती है बल्कि सरकार दूसरे के लिए अपने पास रखती है।
  • इस खाते से फण्ड निकालने हेतु संसद की स्वीकृति नहीं ली जाती है।
3. आकस्मिक कोष (Contingency Fund) 
  • इस कोष का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 267 में किया गया है।
  • सरकार की आकस्मिक व्यय को पूरा करने हेतु (जिसे संसद की स्वीकृति होने तक टाला ना जा सके) इस कोष की व्यवस्था की गई है। यह कोष केन्द्र सरकार के संबंध में राष्ट्रपति तथा राज्य सरकार में संबंध में राज्यपाल के प्रयोग के लिए सुरक्षित है।
  • 1999 में पारित अधिनियम के तहत इस कोष से अधिकतम Rs. 500 करोड़ निकाला जा सकता है, मूल में यह Rs. 50 करोड़ था ।
  • आकस्मिक कोष से निकाले गये रकम, बाद में संसद से अधिकृत होने पर संचित कोष से निकालकर इसमें डाल दिया जाता है। 

घाटे की वित्त व्यवस्था या हीनार्थ प्रबन्धन (Deficit Financing) 

  • जब सरकार जान बूझकर बजट में घाटा उत्पन्न करें और घाटे की पूर्ति अतिरिक्त नोटो को छापकर करें ताकि देश में मुद्रा की मात्रा बढ़े तो इसे घाटे की वित्त व्यवस्था कहते हैं। 
घाटे के वित्त व्यवस्था के लाभ-
  1. सरकार घाटे की वित्त व्यवस्था से धन प्राप्तं करके बेरोजगार साधनों को रोजगार प्रदान कर सकती है, जिसके फलस्वरूप उत्पादन बढ़ता है तथा आर्थिक विकास की दर ऊँची हो जाती है।
  2. घाटे की वित्त व्यवस्था भारत जैसे अल्प विकसित देश में उचितं होता है। क्योंकि यहाँ प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में है परन्तु मुद्रा के अभाव में इसका उचित दोहन नहीं हो पाता है। घाटे के वित्त व्यवस्था से अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति बढ़ती है जिससे राष्ट्रीय व्यय के प्रत्यक्ष वृद्धि होती है।
  3. घाटे की वित्त व्यवस्था द्वारा धन प्राप्त करके रेलवे, सड़कों, नहरें, बिजली का विकास करना संभव हो पाता है जिससे देश की आर्थिक विकास तीव्र गति से होता है।
  4. विकास गति तीव्र करने हेतु जहाँ कृषि तथा उद्योगों का विकास करना आवश्यक है वहीं सामाजिक विकास ( शिक्षा, स्वास्थ्य आदि) की भी अधिक आवश्यकता है। इनके विकास के लिए उचित मात्रा में धन घाटे की वित्त व्यवस्था द्वारा ही प्राप्त करना संभव हो पाता है।
घाटे के वित्त व्यवस्था के दोष
  1. घाटे के वित्त व्यवस्था से अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति बढ़ जाती है, लेकिन उत्पादन उसी अनुपात में नहीं बढ़ा तो कीमतें बढ़नी शुरू हो जाती है इसका आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगता है ।
  2. घाटे के वित्त व्यवस्था के फलस्वरूप लोगों की आय बढ़ जाती है जिससे लोग आयतीत उपभोक्ता वाली चीजों की माँग को बढ़ाने लगते हैं। अगर इन आयात सरकार नहीं बढ़ाती है तो फिर स्मलिंग को बढ़ावा मिलने लगता है।
  3. घाटे की वित्त व्यवस्था के कारण कीमतों में बढ़ोतरी होती है जिसके फलस्वरूप निर्यात कम हो जाते हैं तथा आयात बढ़ जाती जिससे देश का भुगतान संतुलन प्रतिकूल होने लगता है।
  4. घाटे के वित्त व्यवस्था के कारण कीमतों में वृद्धि होती है जिसके कारण निर्धन तथा निश्चित आयवाले व्यक्ति (नौकरी करने वाला) कम वस्तु तथा सेवाओं का उपभोग कर पाता है। इस प्रकार ऐसे लोगों के जीवन स्तर पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

बजट के प्रकार

1. एक समान मद बजट (The line Item Budget)
  • इस बजट में प्रत्येक विभाग अपने अलग-अलग वित्तीय आवश्यकताओं को एक साथ समूहकृत मिलाकर देता है और फिर बजट में समूहकृत कार्य के लिए आवश्यक राशि का आवंटन कर दिया गया जाता है।
  • इस बजट में व्यय की राशि तो निर्देशित होता है परन्तु यह राशि खर्च किन-किन आवश्यकताओं हेतु एवं कितनी मात्रा में होगी इसका वर्गीकरण नहीं किया जाता है।
  • इस बजट में सबसे बड़ी कमी यह है कि इससे अलग-अलग इकाइयों के कार्यकलापों और उपलब्धियों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं मिल पाती।
2. निष्पादन बजट (Performing Budget)
  • यह बजट एकसमान मद बजट के ठीक विपरित है। इसकी शुरूआत भारत में वित्त वर्ष 1975-76 के बजट से किया गया है।
  • इस बजट में भिन्न-भिन्न मदें हेतु आवंटित व्यय की राशि का लक्ष्य एवं उद्देश्य स्पष्ट किए जाते हैं तथा लक्ष्य की प्राप्ति हेतु जो कार्य नीति होती है इसको भी बजट में प्रस्तुत किया जाता है।
3. आउटकम बजट (Outcome Budget)
  • आउटकम बजट वह बजट है जिसमें सरकार के विभिन्न मंत्रालय एवं विभाग विभिन्न विकासात्मक कार्यक्रमों के परिमाण को रिपोर्ट कार्ड के रूप में वित्त मंत्री के समक्ष प्रस्तुत करता है और उसी के अनुरूप बजट का निर्माण वित्त मंत्री द्वारा किया जाता है।
  • इस प्रकार की बजटीय प्रक्रियाओं का मुख्य उद्देश्य बजटीय प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना ताकि सरकार राजकोषीय नीति के मामले में जनता तथा सदन के प्रति अधिक जवाबदेह हो सके।
  • पहला आउटकम बजट 25 अगस्त 2005 को संसद में पारित किया गया था परन्तु वर्ष 2007-08 से आउटकम बजट तथां निष्पादन बज़ट को मिला दिया गया तथा बंजट को मिले जुले दस्तावेज का रूप दे दिया गया।
4. शून्य आधार बजट (Zero Base Budget) 
  • इस बजट अवधारणा का प्रयोग सर्वप्रथम अमेरिकी वित्त विशेषज्ञ पीटर फीट द्वारा प्रस्तुत किया गया था जिसे सर्वप्रथम अमेरिका में 1979 में प्रयोग किया गया।
  • इस प्रकार के बजटिंग में प्रत्येक संस्था या विभाग हरवार सब कुछ शून्य मानकर नए सिरे से बजट बनाती है तथा खर्च की जानेवाली राशि के संबंध में न्यायोचित आधार प्रस्तुत करती है।
  • शून्य आधारित बजट में सरकार मुख्यत: तीन प्रश्नों का उपयुक्त उत्तर पाकर ही बजट का निर्माण करता है।
    1. क्या हमें खर्च करना चाहिए
    2. हमें कितना खर्च करना चाहिए ?
    3. हमें कहाँ खर्च करना चाहिए ?
  • भारत में शून्य आधारित बजटिंग के शुरुआत 1987-88 के बजट से हुआ।
5. जेंडर बजटिंग (Gender Budgeting)
  • ऐसा बजट जिसमें संसाधनों का आवंटन लिंग के आंधार पर किया जाता है उसे जेंडर बजटिंग कहते हैं। यह बजट उन देशों के लिए उपयुक्त होता है जहाँ सामाजिक आर्थिक असमानता में लिंग के आधार पर विभेद दिखता हो। जैसे- भारत में। 
  • जेंडर बजटिंग का सबसे पहला प्रयोग सन् 1982 में ऑस्ट्रेलिया में किया गया था। भारत में इसकी शुरुआत 2005-06 के आम बजट से हुआ।

एफ.आर.बी.एम. अधिनिनियम, 2003 (FRBM Act. 2003)

  • अत्यधिक राजकोषीय घाटा कर में व्यापक विसंगतियां तथा अनुत्पादक सरकारी व्यय के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था का तेज आर्थिक विकास नहीं हो रहा है। जब 1991 में आर्थिक सुधारों को लागू किया गया तब सरकार ने राजकोषीय नीति के संबंध में निम्न उपाय के तरफ ध्यान देने लगा-
    1. राजस्व तथा राजकोषीय घाटा का न्यूनतम करना ।
    2. व्यय का प्राथमिकता के अनुसार चुनाव तथा उसके परिणाम को सुनिश्चित करना ।
    3. कर की दरों को निम्न करके कर के आधार को बढ़ाना, कर चोरी को रोकना ।
  • 1991 में प्रारंभ की गई उपर्युक्त नीति को लागू करने हेतु सरकार के लिए कोई संवैधानिक व्यवस्था नहीं थी जिससे सरकार इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। 26 अगस्त 2003 को FRMS Act. (Fical Responsibility and Budget Management Act) पारित किया गया ताकि राजकोषीय नीति के लिए मजबूत सांविधिक या बाध्यकारी व्यवस्था स्थापित हो सके। यह अधिनियम 5 जुलाई 2004 को प्रभावी हुआ ।
FRBMAct के प्रमुख अंश-
  1. भारत सरकार द्वारा राजकोषीय एवं राजस्व घाटे को कम करने के लिए कदम उठाते हुए 31 मार्च 2008 तक राजस्व घाटे को शून्य किया जाना था जिसे बाद पुनः 1 वर्ष के लिए बढ़ाया गया।
  2. राजस्व घाटे में प्रति वर्ष 0.5 प्रतिशत तथा राजकोषीय घाटे में प्रतिवर्ष 0.3 प्रतिशत कम करने का लक्ष्य रखा गया।
  3. राजकोषीय घाटा तथा राजस्व घाटा विशेष परिस्थिति में ही घोषित लक्ष्य को पार कर सकेंगे। जैसे- राष्ट्रीय सुरक्षा, आपदा के समय ।
  4. सरकार अर्थोपाय अग्रिम के अतिरिक्त किसी और प्रकार से R. B. I. से उधार नहीं लेगी।
  5. बजट एवं अनुदान के अतिरिक्त बजट पेश करते समय सरकार द्वारा निम्न तीन व्यक्तव्य प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा-
    1. राजकोषीय नीति रणनीति वक्तव्य (FPSS) 
    2. मध्य अवधि राजकोषीय नीति वक्तव्य (MTFPS ) 
    3. समष्टि अर्थशास्त्रीय रूपरेखा वक्तंव्य (MFS)
  6. वित्त मंत्री द्वारा पेश किए गए बजट के संबंध में सरकार की प्राप्ति तथा व्यय का त्रैमासिक समीक्षा की जाएगी।
  • नई सरकार द्वारा 2016-17 में FRBM Act के कार्यान्वयन की समीक्षा के लिए एक 5 सदस्यों वाली एक समिति गठित की गई। यह समिति जनवरी 2017 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दिया है परंतु रिपोर्ट की मुख्य सुझाव. लोगों के सामने आना बाकी है।

गोल्डन रूल (Golden Rule)

  • गोल्डन रूल राजकोषीय नीति से संबंधित है। है। इस रूल का आशय यह है कि सरकार को सिर्फ निवेश हेतु ही ऋण लेनी चाहिए ।
  • गोल्डन रूल का सार यही है कि सरकार अपनी पूंजीगत व्यय के लिए ऋण ले न कि राजस्व व्यय के लिए । 

भारत में बजटरी प्रक्रिया के विभिन्न चरण (Phases of Budgetary Process in India)

  • भारत में बजेटरी प्रक्रिया कुल 5 चरणों में संपन्न होती है-

1. बजट बनाना

  • बजट बनाने का काम वित्त मंत्रालय करता है प्रत्येक वर्ष के सितंबर महीने में वित्त मंत्रालय सभी विभागों को पत्र भेजता है कि वह अपने विभाग के संबंध में वह अनुमान तैयार करें।
  • विभिन्न मंत्रालय का अनुमान वित्त मंत्रालय को नवंबर-दिसंबर तक प्राप्त हो जाते हैं। फिर इससे मुख्य बजट बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
  • वित्त मंत्रालय विभिन्न विभागों (रेलवे मंत्रालय भी शामिल) की व्यय अनुमान की समीक्षा करता है। वित्त मंत्री बजट के अनुमान को देखते हैं तथा प्रधानमंत्री से विचार-विमर्श के बाद उसमें संशोधन भी कर सकते हैं। अंत में बजट राष्ट्रपति को दिखाया जाता है। बजट की प्रमुख बातें मंत्रिपरिषद् को भी बताई जाती है।
  • बजट तैयार करते समय वित्त मंत्री सबसे अधिक वित्त आयोग की स्थितियों को ध्यान से रखता है तथा संस्तुतियों के अनुरूप ही वह राशि केंद्र तथा राज्य के बीच बांटता है।
  • बजट तैयार होने के बाद फरवरी महीने के अंतिम सप्ताह में वित्त मंत्री संसद में अपने अभिभाषण के साथ बजट पेश करते हैं। बजट के अंतर्गत निम्नलिखित प्रपत्र ( Documents) तथा विवरण पेश किया जाता है।
    1. अनुच्छेद 112 के अंतर्गत वार्षिक वित्तीय विवरण जिसमें आय और व्यय का अनुमान रहता है।
    2. अनुदान के लिए मांग। इसमें संचित निधि होने वाले व्यय का अनुमान रहता है।
    3. वित्त विधेयक
    4. FRBM Act. के तहत पेश किए जाने वाले अनिवार्य विवरण |
    5. व्यय बजट।
    6. प्राप्ति बजट |
    7. वित्त विधेयक की व्यवस्थाओं के संबंध में मेमोरेंडम ऑफ एक्सप्लेनेशन।
    8. बजट एक झलक ।
    9. आउटकम बजट (यह नीति आयोग द्वारा तैयार किया जाता है। इसकी शुरुआत नीति आयोग के स्थापना के बाद हुई हैं ।)

2. बजट का वैधानिकीकरण

  • बजट को कानूनी मान्यता मिल सके, इस हेतु बजट को संसद में कई चरणों से होकर गुजरना पड़ता है।
  1. वित्त मंत्री के भाषण के साथ बजट प्रस्तुत होता है। यह मुख्यतः दो भागों में पेश होता है। बजट भाग - A में व्यय संबंधी ब्योरा होता है तथा बजट भांग - B में प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष करों के लगाने या वर्तमान कर ढांचे में सुधार या वर्तमान करो को उसी रूप में चलते रहने का प्रस्ताव होता है। बजट भाग - B के क्रियान्वयन हेतु सरकार को वित्त विधेयक पारित करवाना होता है।
  2. वित्त मंत्री द्वारा सदन में प्रस्तुत बजट पर संसद में बहस होता है परंतु वित्त मंत्री जिस दिन बजट संसद में प्रस्तुत करते हैं उस दिन कोई बहस नहीं होता है।
    बजट पर आम बहस पूरी के बाद संसद तीन अथवा चार हफ्तों के लिए स्थगित हो जाता है।
  3. जब तक संसद स्थगित रहता है उस समय अंतराल के दौरान संसद की स्थाई समिति, बजट के मांग व आदि की विस्तार से जांच करता है तथा कर संसद के दोनों सदनों के विचार हेतु रखा जाता है ।
    बजट के जाँच हेतु स्थाई समिति की व्यवस्था विभिन्न मंत्रालयों पर संसदीय वित्तीय नियंत्रण के उद्देश्य से 1993 में प्रारंभ की गई थी। जिसे 2004 में और अधिक विस्तृत किया गया।
  4. अनुच्छेद 113 के अनुसार सरकार राष्ट्रपति के संस्तुति पर, अनुदान के लिए मांग पेश करती है जिस पर संसद में व्यापक ब होता है। अनुदान की मांग पर संसद आपत्ति उठा सकती है, अस्वीकार कर सकती है, परंतु उसे बढ़ा नहीं सकती है। 
    • अनुदान के मांग में राजस्व व्यय तथा पूंजी व्यय को अलग-अलग दिखाया जाता है।
    • ऐसे व्यय जो संविधान के व्यवस्था के अंतर्गत समेकित कोष पर भारित है (जैसे- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के वेतन, पेंशन, न्यायाधीशों के वेतन, पेंशन आदि) उनके संबंध में सरकार को संसद से अनुमति नहीं लेनी पड़ती है।
    • अनुदान की मांग पर जब संसद में बहस होती है इस दौरान सरकार अपनी वित्त मंत्रालय के निष्पादन बजट तथा वार्षिक रिपोर्ट संसद सदस्यों को उपलब्ध करवाती है ताकि संसद सदस्य अनुदान की मांग पर व्यापक बस कर सकें।
    • अनुदान की मांग के अंतर्गत आम बजट में 109 मांगे होती है तथा रेल बजट में 32 मांगें होती है। प्रत्येक मांगों पर संसद सदस्य बहस करते हैं तथा प्रत्येक मांगों पर लोकसभा में अलग से मतदान होता है। अनुदान के मांग हेतु मतदान के संबंध में लोकसभा को विशेष शक्ति प्राप्त है, यह शक्ति राज्यसभा को नहीं है।
    • अनुदान की मांग पर बहस के दौरान संसद सदस्य कटौती प्रस्ताव भी ला सकता है कटौती प्रस्ताव तीन तरह के होते हैं।
      1. नीत कटौती प्रस्ताव- यह प्रस्ताव सरकार के नीति के प्रति असहमति व्यक्त करने का तरीका है। इसमें कहा . • जाता है कि मांग की राशि । रूपया कर दी जाए। संसद सदस्य चाहे तो अपनी तरफ से कोई वैकल्पिक नीति भी पेश कर सकता है।
      2. आर्थिक कटौती प्रस्ताव- इस प्रस्ताव में इस बात का उल्लेख होता है कि प्रस्तावित व्यय से अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ सकता है। इसमें कहा जाता है कि मांग की राशि को निश्चित सीमा तक कम किया जाए।
      3. सांकेतिक कटौती प्रस्ताव - यह भारत सरकार के किसी दायित्व से संबंधित होता है। इसमें कहा जाता है कि मांग में 100 रूपये की कमी की जाए।
    • कटौती प्रस्ताव का उद्देश्य अनुदान के मांग में कटौती लाना नहीं होता है बल्कि प्रस्ताव में उल्लिखित विशिष्ट मद की ओर सदन का ध्यान आकृष्ट करना होता है।
    • कटौती प्रस्ताव सदन में लाया जाता है। उन पर बहस होती है परंतु सरकार का बहुमत होने के कारण यह कभी पास नहीं होता ।
    • अनुदान की मांग पर मतदान हेतु 26 दिन निर्धारित किए गए हैं। अंतिम दिन लोकसभा अध्यक्ष सभी शेष मांगों को मतदान के लिए पेश करता है तथा इसका निपटारा कर दिया जाता है फिर चाहे उस मांग पर चर्चा हुई हो या नहीं हुई हो |
    • अगर अनुदान की मांग संसद में पारित नहीं हो तो तुरंत ही सरकार गिर जाती है। ऐसी स्थिति में समेकित कोष पर जो भारित व्यय है, उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
  5. लोकसभा में अनुदान की मांग पारित होने के बाद विनियोग विधेयक को संसद में पेश किया जाता है, उस पर विचार किया जाता है फिर उसे पारित कर दिया जाता है। इस विधेयक में किसी तरह का कोई संशोधन नहीं किया जाता सकता है। विनियोग' विधेयक पारित होते ही सरकार समेकित कोष से धन की निकासी कर सकती है।
    • लेखा अनुदान (Vote on Account)- सरकार समेकित कोष या संचित निधि से धन की निकासी तभी कर सकता है जब विनियोग विधेयक पारित जाए। लेकिन अगर सरकार विनियोग विधेयक तुरंत नहीं लाए या किसी अन्य कारण से विनियोग विधेयक के पारित होने से पहले ही रुपए की आवश्यकता हो जाए तो सरकार अनुच्छेद 116 (i) के तहत एक अग्रिम राशि संसद से मंजूर कराकर उसे समेकित कोष से निकाल सकती है। इसे ही लेखानुदान कहते हैं।
    • लेखानुदान में केवल व्यय पक्ष का उल्लेख किया जाता है तथा यह केवल दो महीने के लिए होता है। इसकी आवश्यकता प्रायः तब होती है जब आम चुनाव नजदीक हो तथा बजट बनाने का अधिकार नयी सरकार को हो ।
    • अनुदान (Vote for Credit ) - अगर आकस्मिक परिस्थितियों जैसे- युद्ध, आपदा में सरकार को बहुत अधिक धन की आवश्यकता हो तो संसद सरकार को एक बड़ी राशि व्यय करने की स्वीकृति दे सकती है। जिसे अनुदान कहते हैं। इसका उल्लेख अनुच्छेद 116 में किया गया है।
    • अनुपूरक अनुदान (Supplementary grant )- यदि विनियोग विधेयक द्वारा किसी विशेष सेवा पर चालू वर्ष में किए जाने वाले राशि कम पड़ जाए या बजट में उल्लेख न की गई किसी सेवा पर खर्च आवश्यक हो जाए तो सरकार 115 (1) (9) के अनुसार अनुपूरक अनुदान संसद में पेश करती है जिसे संसद स्वीकृति देता है।
  6. वर्तमान चल रहे सभी करों को बढ़ाने या घटाने या उसी रूप में लागू करने तथा नई कर लागू करने हेतु सरकार को संसद से वित्त विधेयक पारित करवाना होता है।
    • बजट प्रस्तुत करने के तुरंत बाद सरकार संसद के समक्ष वित्त विधेयक रखता है। यह विधेयक केवल लोकसभा में ही तथा राष्ट्रपति के अनुमति मिलने पर ही लाया जाता है।
    • वित्त विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत होते ही अप्रत्यक्ष कर लागू हो जाता है जबकि प्रत्यक्ष कर साधारणतः आगामी अप्रैल से लागू होता है।
    • वित्त विधेयक विनियोग विधेयक के ठीक विपरीत है जहां वित्त विधेयक बजट के आय पक्ष को विधिक मान्यता प्रदान करता है। वही विनियोग विधेयक सरकार के व्यय को विधिक मान्यता प्रदान करता है।

3. बजट का क्रियान्वयन

  • वित्त विधेयक तथा विनियोग विधेयक पारित होते ही सरकार राजस्व वसूली तथा अधिकृत मदों पर व्यय करने का कानूनी अधिकार प्राप्त हो जाता है। इसके बाद बजट का क्रियान्वयन हो जाता है।

4. लेखा-जोखा (आय व्यय ) की आडिट तथा ऑडिट रिपोर्ट

  • संविधान के अनुच्छेद 148 ( 1 ) के अनुसार नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की व्यवस्था है जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।
  • केंद्र सरकार के बजट के संपूर्ण आय तथा व्यय का ऑडिट CAG करता है तथा रिपोर्ट बनाकर राष्ट्रपति को सौंप देता है। राष्ट्रपति फिर इसे संसद के दोनों सदनों के समक्ष पेश करता है।
  • CAG का यह कर्तव्य है कि वह पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में हो रही अपव्यय को सामने लाये तथा उसका समीक्षात्मक आलोचना करें।

5. राजस्व लेखा-जोखा की संसदीय जांच

  • संसद सर्वोपरि संस्था है जो सभी बजेटरी व्यवस्थाओं पर नियंत्रण रखती है। संसद की अनुमति के बाद ही सरकार समेकित निधि से व्यय कर सकती है। इसलिए संसद में बजट पर बहस होती है तथा इसके बाद वोटिंग होती है। इन सबके बावजूद सभी प्रकार के व्यय का गहराई से प्रत्येक पहलू का अध्ययन तथा परीक्षण संसद नहीं कर पाता है इसलिए अनुच्छेद 118 के तहत लोकसभा ने कुछ वित्तीय समिति का गठन किया है
    1. आकलन समिति
    2. सार्वजनिक उद्यम समिति
    3. विभागों से संबंधित स्टैंडिंग कमेटी
    4. रेलवे कनवेंशन कमिटी
    5. लोक लेखा समिति
  • यह समितियां सरकार द्वारा की जाने वाले व्यय का पुनर्निरीक्षण करती है तथा अपनी रिपोर्ट संसद को देती है। यह समितियां सरकार द्वारा की जाने वाले अनियमितताओं से संसद को पारिचित कराती है।

सरकारी बजट

Objective

1. निम्नलिखित में कौन-सा लोक व्यय में वृद्धि का कारण
1. राष्ट्रीय आय में वृद्धि
2. ऋण वित्तीयन
3. आर्थिक सहायताओं की राशि में वृद्धि
4. प्रशासन तन्त्र का विस्तार
निम्नलिखित कूट आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2
(B) 2, 3 और 4
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
2. भारत में घाटे की वित्त व्यवस्था किसके लिए संसाधनों को बढ़ाने के लिए उपयोग की जाती है?
(A) आर्थिक विकास के लिए
(B) सार्वजनिक ऋण चुकाने के लिए
(C) भुगतान शेष का समायोजन करने के लिए
(D) विदेशी ऋण कम करने के लिए
3. पारम्परिक बजटीय घाटे को किस प्रकार किया जाता है? 
1. भारतीय रिजर्व बैंक के पास शेष नकदी आहरण से।
2. केन्द्र सरकार द्वारा जारी राजकोषीय हुण्डियों में निवल वृद्धि ।
3: कर राजस्व में वृद्धि करके ।
4. विदेशी ऋण लेकर ।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें।
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
4. बजट निर्माण में निम्न में से कौन-से सिद्धान्त हैं?
1. बजट सन्तुलित होना चाहिए ।
2. विभागीय स्तर पर आकलन होना चाहिए।
3. बजट सकल नहीं निवल होना चाहिए।
4. राजस्व एवं पूँजीगत पक्षों का एकीकरण होना चाहिए ।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन
(A) 1 और 2
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
5. बजट के साथ विधायिका में निम्नलिखित में से कौन-से दस्तावेज रस्तुत किए जाते हैं ?
1. बजट सम्बन्धी व्याख्यात्मक स्मृति - पत्र
2. अनुदान माँगों का सारांश
3. विनियोग विधेयक
4. वित्त विधेयक
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें।
(A) 1 और 2
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
6. निम्नलिखित में कौन-सा कथन राजस्व के महत्त्व के सम्बन्ध में उपयुक्त है?
1. साधनों का आवंटन।
2. उत्पादन, रोजगार एवं कीमतों को प्रभावित करना। 
3. विदेशी मुद्रा की दर को प्रभावित करना ।
4. आय और सम्पत्ति के वितरण में समानता ।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
7. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें
1. व्यय योग्य आय = व्यक्तिगत आय- प्रत्यक्ष कर
2. बजट घाटा = कुल व्यय- कुल आय
3. बजट घाटा = सकल राजस्व व्यय सकल राजस्व आय
4. राजकोषीय घाटा = राजस्व आय - बजट घाटा
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
8. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें
1. घांटे की वित्त व्यवस्था कीमत वृद्धि को जन्म देती है।
2. घाटे की वित्त व्यवस्था से पूँजी निर्माण में सहायता मिलती है।
3. घाटे की वित्त व्यवस्था उत्पादन वृद्धि में सहायता करती है ।
4. घाटे की वित्त व्यवस्था सदैव अर्थव्यवस्था को कुप्रभाविंत करती है।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें।
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
9. आम बजट प्रस्ताव संसद के समक्ष प्रस्तुत करना आवश्यक है, क्योंकि -
(A) संसद आर्थिक मामलों की विशेषज्ञ वाली एक सभा है
(B) संसद बजट प्रस्तावों पर विचार करके सरकार के अपव्ययों पर प्रतिबन्ध लगाती है
(C) भारतीय संविधान में संसद को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है
(D) सार्वजनिक धन की प्राप्ति और व्यय के प्रावधान को जनता के प्रतिनिधियों की स्वीकृति मिलना आवश्यक है
10. भारत सरकार घाटे की वित्त व्यवस्था की धन पूर्ति के लिए किस साधन का आश्रय ले सकती हैं?
1. नकद शेषों को कम करना
2. केन्द्रीय बैंक से ऋण लेना
3. मुद्रा का अवमूल्यन
4. अतिरिक्त करेन्सी मुद्रा छापना
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
11. गैर-योजना अनुदान केन्द्र राज्यों को निम्न उद्देश्य देता है
1. संविधान की धारा 275 (1) के अन्तर्गत मूल्यान्तर धन
2. प्रशासन सुधार हेतु
3. राज्य कर्मियों के वेतन एवं भत्ता हेतु
4. घाटा पूर्ति हेतु
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2
(B) 1, 2 और 3 
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी 
12. मौद्रिक नीति एवं राजकोषीय नीति में क्या अन्तर है?
(A) मौद्रिक नीति मुद्रा की मात्रा व ब्याज दर के आधार पर सम्पूर्ण माँग को नियन्त्रित करती है जबकि राजकोषीय नीति इसके लिए बजट प्रणाली का सहारा लेती है
(B) मौद्रिक नीति मुद्रा की पूर्ति से सम्बन्धित है जबकि राजकोषीय R नीति ब्याज दर से सम्बन्धित है।
(C) मौद्रिक नीति सरकारी व्ययों को स्पष्ट करती है जबकि राजकोषीय नीति ब्याज दर से सम्बन्धित है
(D) मौद्रिक नीति स्वचालित है जबकि राजकोषीय विभेदात्मक है
13. यदि संकल राजकोषीय घाटे में से ब्याज भुगतान को निकाल दिया जाए तो अवशेष को कहा जाएगा
(A) सकल प्राथमिक घाटा
(B) बजटीय घाटा
(C) मौद्रीकृत घाटा
(D) राजस्व घाटा
14. राजकोषीय घाटा है
(A) कुल व्यय - कुल प्राप्तियाँ
(B) राजस्व व्यय - राजस्व प्राप्तियाँ
(C) पूँजीगत व्यय-पूँजीगत प्राप्तियाँ- बाजार ऋण
(D) बजटीय घाटे का योग और सरकार का बाजार ऋण तथा दायित्व
15. भारतीय केन्द्र सरकार के बजट में राजस्व घाटे से ब्याज भुगतान घटाने पर प्राप्त होता है
(A) डेफिसिट फाइनेन्सिंग
(B) बजटीय घाटा
(C) राजकोषीय घाटा 
(D) प्राथमिक घाटा
16. निम्नलिखित प्रस्तावों में से किसका सन्दर्भित सम्बन्ध संघीय बजट से है?
(A) निन्दा प्रस्ताव
(B) ध्यानाकर्षण प्रस्ताव
(C) कटौती प्रस्ताव
(D) स्थगन प्रस्ताव
17. भारत सरकार की राजकोषीय नीति का निम्न में से कौन एक उद्देश्य नहीं है?
(A) पूर्ण रोजगार
(B) मूल्य स्थिरता
(C) अन्तर राज्यीय व्यापार
(D) धन तथा आय का न्यायोजित
18. राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबन्धन अधिनियम भारतवर्ष में कब पारित किया गया था ? 
(A) 2007
(B) 2005
(C) 2002
(D) 2003
19. निम्नलिखित में से कौन प्राथमिक घाटे का आकलन से होता:
(A) बजट घाटा - ब्याज अदायगियाँ
(B) बजट घाटा + ब्याज अदायगियाँ
(C) राजकोपीय घाटा - ब्याज अदायगियाँ
(D) राजकोषीय घाटा + ब्याज अदायगियाँ
20. रेलवे को सर्वाधिक आमदनी किस मद से होती है?
(A) माल दुलाई
(B) यात्री यातायात
(C) कोचिंग
(D) अन्य सेवाएँ
21. बजट तैयार करने का उत्तरदायित्व किसका है?
(A) राजस्व
(B) व्यय विभाग
(C) बजट
(D) आर्थिक मामलों का विभाग
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