General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | प्रमुख भारतीय विद्रोह (जातिगत, जनजातीय, किसान व मजदूर आन्दोलन)

भारत की संस्कृति एवं सभ्यता में नई औपनिवेशिक व्यवस्था के प्रवेश ने नवीन परिवर्तन का प्रयास किया।

General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | प्रमुख भारतीय विद्रोह (जातिगत, जनजातीय, किसान व मजदूर आन्दोलन)

General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | प्रमुख भारतीय विद्रोह (जातिगत, जनजातीय, किसान व मजदूर आन्दोलन)

भारत की संस्कृति एवं सभ्यता में नई औपनिवेशिक व्यवस्था के प्रवेश ने नवीन परिवर्तन का प्रयास किया। इस परिवर्तन ने भारतीय जनमानस एवं व्यवस्था के जड़ में बैठे लोगों को अंदर तक विचलित किया। इस विचलन ने ही जनआक्रोश को उद्वेलित किया जो विद्रोह में परिवर्तित हो गए। विद्रोह का स्वरूप बहुआयामी एवं भारत के सभी क्षेत्रों राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक थ। भारतीय राष्ट्रवादी परिदृश्य में सभी विद्रोह सिर्फ पानी के बुलबुले की तरह थे। जिसको औपनिवेशिक अंग्रेजी सरकार ने कभी तुरंत तो कभी देर से कुचल दिया। किंतु इसके परिणाम स्थायी एवं दीर्घकालीन थे। इसी छोटे-छोटे बहुआयामी विद्रोहों ने भारतीय जनमानस को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा किया। अंततः भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के अग्रदूतों ने इसका लाभ अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने में किया।

विद्रोह का संयुक्त कारण

  • भारत की सामाजिक पृष्ठभूमि में कुछ स्थायी एवं दीर्घकालीन व्यवस्था के गुण थे। औपनिवेशिक व्यवस्था (अंग्रेजी सरकार) इसको समझने में असफल रही थी।
  • सम्पूर्ण भारत भौगोलिक दृष्टिकोण से अलग-अलग था किंतु सामाजिक जीवनशैली की मूल गुण लगभग एक जैसा था।
  • औपनिवेशिक शासन व्यवस्था ने भारत की नींव (धार्मिक अवधारणा) पर चोट किया। परिणाम स्वरूप भारतीय सांस्कृतिक जड़ के पुरोधाओं ने अंग्रेजों को भारत में जड़ विहीन कर दिया।
  • भारत की राजनीतिक व्यवस्था ( राजतंत्र ) को अंग्रेजों ने एक समय समाप्त कर अपनी नवीन व्यवस्था स्थापित तो किया। किंतु भारतीय जनतंत्र की अपने पुरातन व्यवस्थाओं के प्रति प्रेम ने भी अंग्रेजों के विरुद्ध खड़ा किया था।

जनजाति/ आदिवासी आंदोलन

कारण :

  • आदिवासी बनैले क्षेत्र में रहने वाला मानव समुदाय था । इस समुदाय की जीवनशैली मुख्य धारा के नागरिक जीवन से पूर्णतः भिन्न था।
  • औपनिवेशिक व्यवस्था ने इनके जीवन शैली में सर्वप्रथम प्रवेश कर इनके सांस्कृतिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि को तबाह करने का प्रयास किया था।
  • आदिवासी समुदाय अपने कृषि कारणों एवं परम्पराओं के लिए सुप्रसिद्ध था। जिसमें प्रमुख झुम कृषि था। इस पर प्रतिबंध भी विद्रोह का कारण बना था ।
  • आदिवासी/जनजाति एवं कृषि श्रमिकों से औपनिवेशिक व्यवस्था, जमींदार तथा साहुकारों ने बेगार, बंधुआ मजदूरी जैसे नवीन शोषण पद्धति से शोषण किया जो विद्रोह का कारण बना था ।
  • आदिवासी समूह में वर्गीय चेतना का अभाव था । इनके अंदर क्षेत्रीय एवं जातीय चेतना विद्यमान था । अंग्रेजी व्यवस्था ने आदिवासियों के मूल चरित्र को बदलने एवं उस पर प्रहार करने की कोशिश किया।
  • आधारभूत संरचना के विकास में लगे महिला आदिवासियों के शारीरिक शोषण ने भी अनेक आंदोलनों को प्रारंभ किया था।

चुआर विद्रोह (1768-72)

  • यह विद्रोह (1768-72) के बीच हुआ था । इसे भूमि विद्रोह भी कहा जाता है।
  • चुआर विद्रोह बंगाल के मेदिनीपुर जिले के आदिम लोगों ने किया था। इसका प्रमुख कारण लगान एवं अकाल में बढे हुए कर का दर था।
  • इस विद्रोह का नेतृत्व राजा जगन्नाथ तथा दुर्जन सिंह ने किया था। यह विद्रोह 30 वर्षों तक चलता रहा एवं अपने आस-पास इलाके को उजाड़ दिया था ।
  • इसी प्रकार छोटानागपुर तथा सिंहभूमि जिले की हो जनजाति ने भी बढ़े हुए राजस्व कर का विरोध किया था।

विजयनगरम का विद्रोह (1794 ई.)

  • दक्षिण भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा उत्तरी जिले को प्राप्त करने के उपरांत विजयनगरम के राजा को अपनी सेना भंग करने तथा 3 लाख रु. भेट देने पर विवश किया था।
  • राजा ने भेंट एवं कर देने से मना कर दिया तथा 1794 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया था।

गंजाम का विद्रोह एवं गुमसुर विद्रोह (1800-1805)

  • 1800-1805 ई. में बीच में गंजाम विद्रोह का नेतृत्व श्रीकर भंज ने किया था।
  • इस विद्रोह का मुख्य केन्द्र मद्रास प्रेसीडेंसी ने चौकाकोल सरकार में स्थित गंजाम जिला था।
  • 1935 ई. में गुमसुर की जमींदारी के लगान के बकाए के प्रश्न पर हुए विद्रोह को (गुमसुर विद्रोह) कहा गया था।

पालीगारो का विद्रोह (1801-05)

  • टीपू सुल्तान के हार के पश्चात मालाबार तथा पालीगारो ने अंग्रेजों की 1801 ई. में संघर्ष प्रारंभ हुआ तथा 1805 तक जारी रहा।
  • इस विद्रोह व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह किया। का नेतृत्व वीर जी. कट्टवामन ने किया था।

दीवान वेलुथम्पी का विद्रोह (1808-09)

  • केरल के त्रावणकोर के राजा ने लॉर्ड वेलेजली की सहायक संधि को स्वीकार करने से मना कर दिया था।
  • इसके प्रति उत्तर में अंग्रेजों ने शासक को अपदस्थ कर दिया था। इसी क्रम में केरल के राजा के दीवान वेलुथम्पी ने विद्रोह कर दिया।
  • इस विद्रोह का समर्थन नायर बटालियन ने किया था। थम्पी के द्वारा सहयोग के लिए फ्रांस तथा अमेरिका में सम्पर्क स्थापित किया था।
  • इस संघर्ष का विद्रोह करते हुए वेलुम्पी घायल हुए तथा उनकी मृत्यु हो गई।

भील विद्रोह (1818-1921)

  • इस विद्रोह का मुख्य केन्द्र वर्ष 1818 में खानदेश (महाराष्ट्र) था। कुछ आदिम जातियां पश्चिमी तट के खानदेश में रहती थी ।
  • अंग्रेजों के द्वारा खानदेश प्रदेश पर भीलों के नेतृत्वकर्ता दशरथ के द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की घोषणा कर दिया।
  • वर्ष 1831 में इस विद्रोह ने पुनः आक्रोश पकड़ लिया।
  • 1857 में भागोजी तथा काजल सिंह ने विद्रोह का नेतृत्व किया था।

भील विद्रोह का प्रसार

  • महाराष्ट्र के अतिरिक्त राजस्थान के भीलों ने भी शोषण के विरुद्ध युद्ध प्रारंभ कर दिया था।
  • मेवाड़ के राजा ने कर्नल रीड़ के सुझाव पर भेलाई तथा रखवाली संज्ञक कर को समाप्त कर दिया। यह कर भील स्वयं की सुरक्षा के लिए रखी जाने वाली बंदूकों के लिए लिया था ।
  • इस संज्ञक कर की समाप्ति के साथ, भीलों को महुआ कंफुल इकट्ठा करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। तथा तिसाला नामक भूमि कर रोपित कर दिया गया था।
  • इसी क्रम में भीलों ने 1821 में दौलत सिंह के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया था। बाद में इस आंदोलन का नेतृत्व मोतीलाल तेजावर ने किया।
  • मोतीलाल तेजावर ने जमींदारों द्वारा ली जाने वाली बेट बेगार के विरोध में नीमडा गाँव में भीलों का एक विशाल सम्मेलन आयोजित किया था ।
  • इस क्रम में मोतीलाल तेजावर को गिरफ्तार कर लिया गया तथा सेन्ट्रल जेल भेजा गया।

बघेरा विद्रोह 18-19

  • ओखा मण्डल (गुजरात) के बघेरा जनजाति के लोग विदेशी सामान का विरोध कर रहे थे।
  • इसी क्रम में बड़ौदा के गायकवाड़ों ने अंग्रेजी सेना की सहायता से अत्यधिक कर वसूली का प्रयास किया।
  • इस बढ़े हुए कर का विरोध बघेरा सरदार ने किया तथा 1818-19 में सशस्त्र विद्रोह कर दिया।
  • 1820 में यह विद्रोह दबा दिया गया था।

रामोसी विद्रोह (1822-41)

  • रामांसी जनजाति मुख्यत: पश्चिमी घाट (महाराष्ट्र) में रहने वाली एक आदिम जनजाति थी। इसने अंग्रेजों के कर वृद्धि से परेशान होकर 1822 में चितर सिंह के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया था।
  • इसी क्रम में महाराष्ट्र में सतारा के आस-पास लूट की गई थी। 1825-26 में अकाल के कारण रामोसी भूखमरी के शिकार हुए पुन: इन लोगों ने 3 वर्षों तक दक्कन क्षेत्र में लूटपाट किया था।
  • ज्ञातव्य है कि रामोसी समुदाय कभी मराठा साम्राज्य की सेना एवं पुलिस में अधिनस्थ कर्मचारी हुआ करते थे ।
  • अंग्रेजों ने 1839 में जब अंग्रेजों ने सतारा के राजा प्रताप सिंह को सिंहासन से हटा दिया तो 1840-41 में जनता में आक्रोश बढ़ गया। नरसिंह दत्तात्रेय पंतकर ने शर्माोसी का नेतृत्व किया था।

कूकी विद्रोह (1826-44)

  • मणिपुर एवं त्रिपुरा के मध्य अवस्थित ईसाई नामक पहाड़ी पर कुकी जनजाति निवास करती थी । 
  • 18वीं शताब्दी में अंग्रेजी सरकार ने झूम कृषि पर प्रतिबंध लगा दिया गया। 
  • इसी क्रम में कूकी जनजाति ने ( 1826-44) के मध्य विद्रोह कर दिया था। इस विद्रोह को अंग्रेजों ने 1850 तक दबा दिया था।

अहोम विद्रोह (1828-33)

  • अहोम 'असम' के स्थायी निवासी थे। जब अंग्रेजों के अहान प्रदेश को अपने राज्य में मिलाने का प्रयास किया हो।
  • अंग्रेजों के इस कदम का अहोम लोगों ने विरोध किया था। 1828 में गोमधर कुंवर के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया ।
  • 1830 में अंग्रेजों के खिलाफ अहोम लोगों ने दूसरे विद्रोह की योजना का निर्माण किया था ।
  • अंग्रेजों ने अहोम लोगों से समझौता कर लिया एवं कूटनीतिपूर्वक उत्तरी असम के प्रदेश को महाराजा पुरंदर सिंह को दे दिया एवं विद्रोह को शांत करा दिया।

कोल विद्रोह (1831-48)

  • छोटानागपुर में रहने वाली कोल जाति भी अंग्रेजों के प्रशासन से असंतुष्ट थी ।
  • अंग्रेजों ने पहले भू-राजस्व में वृद्धि किया फिर 1822 में सरकार ने आदिवासियों द्वारा प्रयोग में ली जाने वाली चावल से निर्मित शराब पर कर लगा दिया।
  • ज्ञातव्य है इस विद्रोह को 'लरका विद्रोह' भी कहा गया है।
  • इस क्रिया के प्रतिक्रिया में कोल लोगों ने बुद्धो भगत के नेतृत्व में राँची, हजारीबाग, पलामू इत्यादि क्षेत्रों में विद्रोह कर दिया था।
  • इस विद्रोह को दबाने के लिए बैरकपुर एवं दानापुर छावनी में विलिकिन्सन तथा डेंट के नेतृत्व में सेना भेजी गई थी।
  • 1832 में बुद्धो भगत हजारों विद्रोहियों के साथ मारे गए। 1832 में कालांतर में गंगानारायण ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया था।

खोंड तथा सवार विद्रोह (1837-56)

  • ओडिशा प्रांत के खैडमाल क्षेत्र में निवास करने वाली आदिवासियों को खाँड जनजाति की संज्ञा दी गई है।
  • इस जनजाति ने 1837 से 1856 6 तक ब्रिटिश सत्ता का बिरोध किया था।
  • यह जनजाति नरबली प्रथा 'मोरिया' को प्रतिबंधित करने पर अंग्रेजों से क्षुब्ध थी।

  • इस क्रांति में 1846 ई. में चक्र बिसोई शामिल हुए तथा 1856 में राधाकृष्ण दण्डसेन शामिल हुए थे।
  • ज्ञातव्य है कि 1855 में चक्र त्रिसोई की कोई जानकारी नहीं मिलती है जबकि दण्डसेन को 1856 में अंग्रेजों ने फांसी दे दिया था।

गडकरी विद्रोही (1844)

  • इसका उद्भव 1844 में महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुआ था।
  • गडकरी जाति मराठा किले में कार्यरत अनुवांशिक सैनिक थे। इसके बदले में उनको कर मुक्त भूमि प्राप्त होती है।
  • सेवा समाप्त किए जाने पर समनगढ़ तथा भुदरगढ़ के किले पर कब्जा कर लिया।
  • इस विद्रोह का नेतृत्व बाबाजी अहिरकर के द्वारा किया गया था।

संथाल विद्रोह (1855-56)

  • आदिवासी विद्रोहों में संथाल विद्रोह अत्यधिक शक्तिशाली था । इसको हुल विद्रोह भी कहा जाता है।
  • यह विद्रोह मुख्यतः भागलपुर जिले से लेकर राजमहल तक केन्द्रित था । इस प्रकार इस स्थान विशेष को दमन-ए-कोह नाम से संबोधित किया जाता है।
  • अंग्रेजों द्वारा 1793 की स्थापित भूराजस्व व्यवस्था में आदिवासियों ने अपनी जमीनें खो दी थी। साथ ही अंग्रेजी प्रशासन एवं शोषण ने लोगों को आक्रोशित किया था ।
  • सिद्धू तथा कान्हु नामक दो आदिवासियों ने 30 जून, 1855 को भगनीडीह में 6000 से अधिक आदिवासी एकत्रित हुए तथा विद्रोह कर दिया।
  • अंग्रेजों ने सैनिकों को विद्रोह दबाने के लिए लगाया तथा सिद्ध-कान्हु पर 10000 का इनाम घोषित कर दिया गया था।
  • अगस्त, 1855 में सिद्धू तथा फरवरी, 1856 में कान्हु एकड़े गए और इनको गोली मार दिया गया था ।
  • 1856 के अंत तक भागलपुर के कमिश्नर ब्राउन तथा मेजर जनरल लॉयड ने क्रूरतापूर्वक विद्रोह किया था।
  • इसी क्रम में संथाल परगना को एक नया जिला घोषित कर दिया गया था।

भुयान और जुआंग विद्रोह (1867-68)

  • यह विद्रोह उडिसा के क्योझार क्षेत्र में हुआ था प्रारंभ में नायक के नेतृत्व में भुयान जनजाति ने विद्रोह किया था।
  • इस विरोध की जड़ क्योंझर के राजा की मृत्यु के पश्चात उनकी उत्तराधिकारी की नियुक्ति से संबंधित था ।
  • 1891 में त्रिद्रोह ने पुन: जागृत हो गया था। इसका नेतृत्व यह धरणीधर नामक व्यक्ति ने किया था ।
  • इस युद्ध में राजा को भागकर कटक में शरण लेना पड़ा था।

मुंडा विद्रोह (1895-1901)

  • यह विद्रोह कभी भी एक दिशा में एक साथ नहीं चला था। इसका कार्यकाल 1895-1901 था
  • इस विद्रोह को अलुगवती (उलगुलान) या महाविद्रोह भी कहा गया। इसको 'सरदारी विद्रोह' की उपमा भी प्रदान किया गया था।
  • सामान्यतः मुण्डा आदिवासी बिहार के छोटानागपुर पठार के रांची के दक्षिण भाग में निवास करते थे।
  • इनकी पारम्परिक भूमि व्यवस्था खुंटकरी या मुंडारी कहलाती थी । जो सामूहिक कृषि के लिए प्रचलित थी ।
  • औपनिवेशिक नवीन भूराजस्व व्यवस्था ने एकल कृषि व्यवस्था को जन्म दिया था।
  • एकल भूराजस्व व्यवस्था एवं शासन तथा प्रशासनिक शोषण के विरुद्ध बिरसा मुंडा के नेतृत्व में 1895 में आंदोलन प्रारंभ हो गया था।
  • बिरसा मुंडा का जन्म 1875 हुआ था। यह एक धार्मिक व्यक्ति था एकेश्वाद में विश्वास करता था।
  • बिरसा मुंडा ने सिंग बोगा की पूजा करने का आदेश की स्व‍ आदेश पारित किया था।
  • 1899 की क्रिसमस की पूर्व संध्या पर अपनी जाति स्वशासन स्थापित करने के उद्देश्य से सिंहभूमि तथा राँची में विद्रोह का प्रारंभ किया था।
  • 5 जनवरी, 1900 तक यह विद्रोह समूचे क्षेत्र में फैल गया। इस विद्रोह में स्त्रियों ने भी मुख्य भूमिका निभाया।
  • इस विद्रोह का अंत अतिशीघ्र हो गया था। सैरयरकंब पहाड़ी पर ब्रिटिश सेना द्वारा मुंडा पराजित किया गया एवं गिरफ्तार कर लिया गया ।
  • जून 1900 बिरसा मुंडा की रांची जेल में हैजा नामक बीमारी के कारण मृत्यु हो गया था।
  • ब्रिटिश सरकार के द्वारा छोटानागपुर में काएतकारी कानून द्वारा कृषकों को कुछ राहत दिया था बेगारी तथा बंधुआ मजदूरी प्रतिबंधित कर दिया गया।

रानी गाइडिन्ल्यू का नागा आंदोलन (1917-31) 

  • इस आंदोलन का प्रारंभ नागा समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए चलाया गया था ।
  • इस आंदोलन ने कालांतर में अंग्रेजों की नीतियों का विरोध करते । हुए राजनीतिक स्वरूप धारण कर लिया।
  • इस कारण इसके नेतृत्वकर्ता 'जदोनांग' को 29 अगस्त, 1931 को फांसी दे दिया गया था।
  • इस आंदोलन का नेतृत्व कालांतर मैं 17 वर्षीय नागा युवती गाइडिन्ल्यु ने किया था।
  • गाइडिन्ल्यु ने नागा आंदोलन को सविनय अवज्ञा आंदोलन से जोड़ दिया। जवाहर लाल नेहरू तथा आजाद हिंद फौज ने गाइडिन्ल्यु  को 'रानी' की उपाधि दिया था। 
  • रानी गाइडिन्ल्यू ने जदोनांग के विचारों के आधार पर 'हेक पिंथ' (धार्मिक विचार ) की स्थापना किया था।

किसान विद्रोह

कारण :

  • ब्रिटिश शासन की भूमि व्यवस्था जिसमें कर की दर उच्च थी तथा शोषण सर्वाधिक था।
  • जमींदार, साहुकार तथा आर्थिक शोषक वर्ग के खिलाफ समाज में क्रांति का प्रवाह हुआ।
  • 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में किसान अपने आर्थिक एवं सामाजिक हितों को लेकर जागरूक हो गए थे।

नील विद्रोह (Indigo Riots) (1859-60)

  • ब्रिटिश औपनिवेशिक व्यवस्था में कुछ अवकाश प्राप्त अधिकारी बंगाल तथा बिहार के कुछ क्षेत्रों पर बलात कृषकों से खेती करवाते थे।
  • इस क्रम में किसानों को एक छोटी रकम के एवज में कृषि के पैदावार संबंधित करारनामा लिखवाते थे। कृषि की उपज की रकम बाजार मूल्य से अत्यधिक कम होता था । 
  • किसानों पर किए जाने वाले इस शोषण व्यवस्था को ददनी कहा जाता था।
  • ददनी प्रथा (व्यवस्था) बंगाल के नदिया जिले में स्थित गोविंदपुर गांव # 1859 में प्रारंभ हुआ था।
  • वर्ष 1860) तक ददनी प्रथा जैसोर, खुलना, राजशाही, ढांका, मालदा, दिनाजपुर इत्यादि जैसे स्थानों के साथ बंगाल के तथा बिहार तक फैल गया।
  • इस विद्रोह का प्रारंभ दिगम्बर विश्वास तथा विष्णु विश्वास के द्वारा किया गया था।
  • 31 मार्च, 1860 को अंग्रेजों ने डब्ल्यू. एस. सीटोनकर के नेतृत्व में नील आयोग (Indigo commission) का गठन किया था।
  • ज्ञातव्य हो प्रख्यात अखबार 'हिंदू पैट्रियाट' के संपादक 'हरिश्चन्द्र मुखर्जी' ने 'नील विद्रोह' का समर्थन किया था।
  • 1859 नील विद्रोह का वर्णन दीनबंधु मित्र ने अपने नाटक 'नील दर्पण' में किया था। यह आंदोलन भारतीय किसानों का प्रथन सफल आंदोलन था।

पाबना आंदोलन (Pabna peasant movement ) (1873-76)

  • इस विद्रोह का प्रारंभ बंगाल प्रांत के पवना जिले के युसुफशाही परगना में हुआ था ।
विद्रोह के कारण :
(i) जमींदारों के द्वारा कर की दर को कानूनी सीमा दर से कई गुना बढ़ा देना।
(ii) 1859 ई. के अधिनियम-10 के अन्तर्गत काश्तकारों को जमीन पर मिले अधिकारों से जमींदारों द्वारा वंचित करना।
  • वर्ष 1873 में किसानों ने पबना जिला के युसुफशाही किसान संघ की स्थापना किया तथा किसानों को संगठित करना प्रारंभ कर दिया था।
  • इस क्रम में संगठित किसानों ने अहिंसक लड़ाई की, जुलुस निकाले, लगान हड़ताल किया इत्यादि ।
  • इंडियन एसोसिएशन के सदस्य सुरेन्द्र नाथ बनर्जी आनंद मोहन बोस तथा द्वारका गांगुली इत्यादि ने किसानों का समर्थन किया था।
  • इस क्रम में लेफ्टिनेंट गवर्नर कैम्पबेल ने भी पवना विद्रोह का समर्थन किया था। इसके पीछे सही तर्क था कि यह विद्रोह जमींदारों के शोषण एवं अत्याचार के विरुद्ध था। इसमें अंग्रेजों से कोई लेना-देना नहीं था ।
  • इस आंदोलन को कभी भी अंग्रेजों ने हिंसा के बल पर दमन नहीं किया था। इसके पीछे यही कारण था। नेतृत्व कर्त्ता ने नारा दिया था 'हम महारानी और सिर्फ महारानी के रैयत होना चाहते हैं। "
  • 1885 में बंगाल का काश्तकारी अधिनियम पारित हुआ जिसके अंतर्गत किसानों को उनकी जमीन वापस कर दी गई थीं।
  • ज्ञातव्य है कि इसी आंदोलन से संबंधित मुसर्रफ हुसैन ने 'जमींदार दर्पण' नामक नाटक लिखा था।

फड़के विद्रोह (1879)

  • इस विद्रोह के प्रमुख क्रांतिकारी बासुदेव बलवंत फड़के थे।
  • बासुदेव बलवंत फड़के 1857 की क्रांति के पश्चात प्रमुख व्यक्ति थे जो अंग्रेजों को हिंसा के माध्यम से बाहर करना चाहता था ।
  • गोविन्द रानाडे के धन बर्हिगमन सिद्धांत ने बासुदेव बलवंत फड़के को प्रेरित किया था।
  • इसी क्रम में महाराष्ट्र में 1876-77 में भयंकर दुर्भिक्ष (अकाल) पड़ा। महाराष्ट्र की जनता भयंकर भूख की पीड़ा से ग्रसित थी । तथा औपनिवेशिक शासन व्यवस्था आम जनता की शोषण कर रही थी।
  • फड़के ने रामोसियो तथा महाराष्ट्र किसानों का एक 50 सदस्यीय संगठन है) का 50 | बनाया। इनका उद्देश्य अमीरों को लूट कर गरीबों की सहायता करना था ।
  • 21 जुलाई 1879 को निजाम सरकार के सहयोग से फड़के को गिरफ्तार कर लिया गया था।
  • फड़के को गिरफ्तार को अदन जेल में निर्वासित कर दिया गया। 17 फरवरी, 1883 को वहां उनकी मृत्यु हो गई।
  • वासुदेव बलवंत फड़के के देहावसान के पश्चात दौलत रामोसी के द्वारा इस आंदोलन का नेतृत्व किया गया।

मोपला विद्रोह (Mopla riots )

  • मध्यकाल में अरब मूल के कुछ मुस्लिम केरल राज्य के मालाबार क्षेत्र में आकर बस गए थे।
  • सामान्यतः ये लोग इस्लाम धर्मावलंबी थ एवं पेशे से कृषक थे। जो उपलब्ध वातावरण की सभी प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन करते थे।
  • इस क्षेत्र में हिंदू जाति के उच्च वर्ग के स्वर्ण नम्बुदारी तथा नायर जमींदारों का प्रभाव था ।
  • मोपला इन उच्च वर्ग के (जिम्मी) जमींदारों के बंधुआ मजदूर थे। 19वीं शताब्दी में मोपालाओं की शिकायतें बढ़ती गई थी। उच्च लगान की दर एवं अन्य कारणों से शोषण मांपालाओं को होता था ।
  • वर्ष 1836-54 तक मालाबार क्षेत्र के एरनद और वल्लुवनाद तालुका में कुछ 20-30 विद्रोह थे।
  • हुए इस क्रम में मोपला विद्रोहियों को धार्मिक राजनीतिक विद्रोह का नेतृत्व माम्बराम के थंगल के द्वारा किया गया था।
  • इसी क्रम में मोपला विद्रोह के प्रमुख नेतृत्वकर्ता अलावी तथा उसमें ज्येष्ठ पुत्र मंगद फजल पुल्कोया तथा थंगल को भारत से निर्वसित कर दिया गया।
  • 1921 में पुन: मोपला विद्रोह जागृत हो गया था इसका तात्कालिक कारण औपनिवेशिक शासन व्यवस्था का शोषण एवं जमींदारों का अत्याचार I
  • अप्रैल, 1920 में कॉंग्रेस के मालाबार जिला इकाई के मोपला विद्राह का समर्थन किया था ।
  • इसी क्रम में महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन के साथ मोपला विद्रोह का भी समर्थन किया था। समर्थकों में मौलाना अबुल कलाम आजाद तथा शौकत अली भी थे। 
  • इस समय मोपला विद्रोह का नेतृत्व एक धार्मिक नेता अली मुसलीयार कर रहे थे। 20 अगस्त 1921 को मजिस्ट्रेट टॉमस ने सेना को छापा मारने का आदेश दिया।
  • सेना ने तिरूरांगडी कं मस्जिद में छापा मारा। अली मुसलीयार को अंग्रेज बंदी बना पाने में असफल साबित हुए।
  • मस्जिद की छापे की खबर से अली मुसलियार के समर्थक हिंसक हो गए। वेल्लुवनाद तथा पोन्नानी तालुके के कुछ यूरोपीय अधिकारियों को हिंसक भीड़ ने मार डाला।
  • मोपलाओं के हिंसक भीड़ ने रेलवे लाइन उखाड़ दिया, सरकारी भवनों में आग लगा दिया। रेल की पटरिया उखाड़ दिया।
  • इसी क्रम में अलीमुसलियार के पश्चात मोपला विद्रोह का नेतृत्व वैरियन कुन्नाथ कुन अहमद हाजी ने किया था।
  • इस विद्रोह को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने कूटनीति का सहारा लिया। इस विद्रोह का स्वरूप साम्प्रदायिक कर दिया गया। क्योंकि जमींदार हिंदू थे तथा किसान, श्रमिक मुस्लिमा

महत्वपूर्ण तथ्य

  • 1932 में हरिजन सेवक संघ की स्थापना गाँधीजी के द्वारा किया गया था।
  • डिप्रेस्ड क्लास मिशन सोसायटी की स्थापना वी. आर. सिन्दे ने किया था वर्ष 1906 बंबई में।
  • नायर सर्विस सोसायटी की स्थापना मन्नार पद्मनाभा पिल्लई के द्वारा किया गया है।
  • ई. वी. रामास्वामी नायक के द्वारा तमिल भाषा में सच्ची रामायण की रचना किया गया है।
  • देव समाज के संस्थापक शिव नारायण अग्निहोत्री थे।
  • 1873 में सत्य शोधक समाज की स्थापना ज्योतिबा फूले के द्वारा किया गया था।
  • बहुजन समाज के संस्थापक शंकर राव जाधव तथा मुकुंद राव पाटिल थे।
  • 1899 में तेरूनेवल्लू में भयंकर दंगे हुए थे जिसका उद्देश्य मंदिर में नाडार समुदाय का मंदिर में प्रवेश पाना था।
  • एन. सी. शीतलवाड़ा, वी. एन. राव अल्लादि कृष्ण स्वामी अय्यर सर्वेन्ट ऑफ इंडिया सोसायटी के प्रख्यात सदस्य थे।
  • सर्वेन्ट ऑफ इंडिया सोसायटी की स्थापना गोपाल कृष्ण गोखले ने 1905 में किया था।
  • फरैजी आंदोलन के नेतृत्व बंगाल के फरीदपुर स्थित दाई मियां ने किया था।
  • फरैजी आंदोलन से भावार्थ था - अल्लाह का हुक्म मानने वाला।
  • समस्त भूमि अल्लाह की देन है यह किसने कहा था-दादू मिया।
  • किस आंदोलन का नेतृत्व सैयद अहमद रेलवी ने किया था। बहावी आंदोलन (1820-1870)
  • ज्ञातव्य है कि वहाबी आंदोलन का प्रमुख केन्द्र पटना था।
  • अली बंधु विलायत अली एवं इनायत अली दोनों वहाबी आंदोलन से संबंधित थे।
  • महाराष्ट्र में रामोसी कृषक जत्था वासुदेव बलवंत फड़के ने स्थापित किया था।
  • बंकिम चन्द्र चटर्जी का उपन्यास आनंद मठ संन्यासी विद्रोह से संबंधित था।
  • संन्यासी विद्रोह का प्रमुख कारण था तीर्थ स्थानों पर कर लगाने के कारण।
  • वारेन हेस्टिंग्स के द्वारा संन्यासी विद्रोह पूर्णतः समाप्त कर दिया गया था।
  • संन्यासी विद्रोह की नारा था ऊं वंदे मातरम्।
  • बकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित उपन्यास का नाम था दुर्गेश नंदिनी (1865)
  • फकीर विद्रोह का नेतृत्व मजमून शाह तथा चिराग अली ने किया था।
  • फकीर विद्रोह में चिराग अली की सहायता किन दो हिंदुओं ने किया था - भवानी पाठक तथा देवी चौधरानी।
  • नामधारी आंदोलन के संस्थापक रामसिंह थे।
  • गुलामगिरी तथा सार्वजनिक सत्य धर्म पुस्तक ज्योतिबा फूले की रचनाएं थी ।
  • दी ऑल इंडिया डिप्रेस्ड क्लास फेडरेशन तथा बहिष्कृत हितकारिणी सभा का गठन डॉ. भीमराव अंबेडकर ने किया था।
  • समाज समता संघ तथा अनुसूचित जाति परिसंघ का गठन डॉ. भीमराव अंबेडकर ने किया था।
  • जस्टिस पार्टी आंदोलन के मुखिया टी. एन. मुदलियार थे।
  • हरिजन सेवक संघ के संस्थापक (1932) घनश्याम दास बिड़ला थे।
  • चुआर विद्रोह का नेतृत्व मेदनीपुर (बंगाल) के राजा जगन्नाथ थे।
  • खम्पाती विद्रोह असम में हुआ था।
  • मणिपुर में कूकी विद्रोह का प्रमुख कारण पोथांग लेना (बिना मजदूरी का सामान ढोना) था।
  • परीक्षित जमातिया का संबंध त्रिपुरा में था।
  • पाइक लोग लगान मुक्त भूमि का उपयोग करने वाले सैनिक थे।
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