General Competition | Indian Polity | राज्य का शासन

इसके विषय में जानकारी हमें भारतीय संविधान का भाग- 6 के अंतर्गत अनुच्छेद- 152 से 237 देता है ।

General Competition | Indian Polity | राज्य का शासन

General Competition | Indian Polity | राज्य का शासन

  • इसके विषय में जानकारी हमें भारतीय संविधान का भाग- 6 के अंतर्गत अनुच्छेद- 152 से 237 देता है ।

राज्यपाल

  • अनुच्छेद- 153 कहता है कि प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल होगा ।
अनुच्छेद- 154
यह अनुच्छेद कहता है कि राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होगा । अर्थात राज्य सरकार के सभी काम राज्यपाल के नाम से होगें ।
अनुच्छेद- 155
यह अनुच्छेद कहता है कि राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगें ।
अनुच्छेद- 156
यह अनुच्छेद कहता है कि राज्यपाल का कार्यकाल उसके शपथ ग्रहण करने की तिथि से 5 वर्षो का होगा लेकिन राष्ट्रपति जब चाहें तब राज्यपाल को उसके पद से हटा सकता है।.
नोट- राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यत्न पद है। राज्यपाल को पद से हटाने की प्रक्रिया का जिक्र भारतीय संविधान में नहीं है ।
अनुच्छेद- 157
यह अनुच्छेद हमें राज्यपाल बनने की योग्यता के विषय में जानकारी प्रदान करता है। राज्यपाल बनने के लिए निम्न योग्यता होनी चाहिए:-
(1) भारत का नागरिक हो
(2) उम्र कम से कम 35 वर्ष हो ।
(3) लाभ के पद पर ना हो ।
(4) पागल / दिवालियाँ ना हो ।
नोट- व्यक्ति का संबंध जिस राज्य से हो वह उस राज्य का राज्यपाल नहीं बन सकता है। यानी फागू चौहान अगर उत्तरप्रदेश राज्य से आते हैं तो वे उत्तरप्रदेश का राज्यपाल नहीं बन सकते हैं। इसके अलावे अन्य किसी भी राज्य का वह राज्यपाल बन सकता है।
अनुच्छेद- 158
यह अनुच्छेद हमें राज्यपाल पद के लिए शर्तों के विषय में जानकारी प्रदान करता है। इस पद की निम्न शर्ते है-
(1) राज्यपाल के पद पर रहते हुए व्यक्ति दूसरा कोई लाभ का पद ग्रहण नहीं करेगा।
(2) राज्यपाल को आबंटित किये गए भवन में रहना होगा और विधानमंडल द्वारा निर्धारित वेतन भत्ता प्राप्त करना होगा ।
(3) अगर कोई व्यक्ति संसद या विधानमंडल का सदस्य है और वह राज्यपाल बन गया तो उसे शीघ्र संसद और विधानमंडल का सदस्यता छोड़नी होगी ।
(4) अगर कोई व्यक्ति एक से अधिक राज्यों का राज्यपाल है तो इस स्थिति में वेतन किस अनुपात में राज्यों से दिया जायेगा इसका निर्धारण भारत के राष्ट्रपति करते हैं ।
⇒ राज्यपाल को वेतन 3,50,000 / - रुपया दिया जाता है।
अनुच्छेद- 159
यह अनुच्छेद हमें राज्यपाल के शपथ ग्रहण की जानकारी प्रदान करता है।
⇒ राज्यपाल को शपथ संबंधित राज्य के उच्च न्यायलय के मुख्य न्यायधिश दिलवाते हैं। I
अनुच्छेद- 160
किसी आकस्मिक स्थिति में राज्यपाल के पद रिक्त होने पर राज्यपाल के कृत्यों का निर्वहन कौन करेगें इसका निर्धारण राष्ट्रपति करते हैं।
अनुच्छेद- 161 
यह अनुच्छेद हमें राज्यपाल को दिए गए क्षमादान की शक्ति के विषय में जानकारी प्रदान करता है । राष्ट्रपति के अनुरूप राज्यपाल भी 5 प्रकार से क्षमा प्रदान कर सकते हैं । (1) क्षमा (2) परिहार (3) प्रविलंबन (4) विराम (5) लघुकरण
⇒ राज्यपाल मृत्युदंड की सजा को माफ नहीं कर सकता है I
⇒ किसी भी राज्य का आदिवासी समुदाय से राज्यपाल बनने वाली प्रथम महिला द्रोपति मुर्मू (झारखंड) है।
⇒ स्वतंत्र भारत में किसी भी राज्य का राज्यपाल बनने वाली प्रथम महिला श्रीमति सरोजनी नाइडू (उत्तरप्रदेश) है ।

राज्यपाल के कार्य और अधिकार

⇒ मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा की जाती है ।
⇒ मुख्यमंत्री के सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति भी राज्यपाल ही करते हैं ।
⇒ राज्य के महाधिवक्ता, राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष और सदस्य ( अनुच्छेद- 243 (I), राज्य निर्वाचन आयोग 243 (A), राज्य लोक सेवा आयोग (अनुच्छेद- 315 ), इत्यादि के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं ।
⇒ विधानमंडल के सत्र के आहुत करने, सत्रावसान करने तथा विघटन करने का अधिकार राज्यपाल को होता है ।
⇒ राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर विधानसभा को भंग कर सकता है।
⇒ विधानमंडल के सत्र में नहीं होने पर अगर कानून की आवश्यकता पड़ती है तो राज्यपाल अनुच्छेद- 213 के तहत् अध्यादेश जारी कर सकते हैं।
⇒ अगर किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाता है तो राज्यपाल राष्ट्रपति से राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा अनुच्छेद- 356 के तहत कर सकता है।
⇒ राज्य का धन विधेयक राज्यपाल के पूर्व अनुमति से सर्वप्रथम विधानसभा में आता है।
अनुच्छेद- 162
इसमें राज्य की कार्यपालिका शक्ति के विस्तार की चर्चा है ।

राज्य मंत्रिपरिषद और मुख्यमंत्री

⇒ अनुच्छेद- 163 कहता है कि राज्यपाल को उसके कार्यो में सलाह एवं सहयोग देने हेतू एक मंत्रिपरिषद होगा जिसे राज्य मंत्रिपरिषद कहा जाता है। राज्य मंत्रिपरिषद द्वारा दिए गए सलाह एवं सहयोग को राज्यपाल एक वार पुर्नविचार के लिए लौटा सकता है। राज्यपाल को सह अधिकार 44वाँ संविधान संसोधन 1978 के तहत् प्राप्त हुए हैं।
⇒ राज्य मंत्रिपरिषद में मंत्री तीन प्रकार के होते हैं-
(1) कैबिनेट मंत्री
(2) राज्य मंत्री
(3) उपमंत्री
⇒ राज्य मंत्रिपरिषद का सदस्य बनने के लिए विधानसभा या विधान परिषद दोनों में से किसी भी एक सदन की सदस्ता आवश्यक है। साथ ही साथ बिना किसी सदन की सदस्यता के भी कोई भी व्यक्ति 6 माह तक राज्य मंत्रिपरिषद का सदस्य रह सकता है।
⇒ 91वाँ संविधान संसोधन 2003 यह प्रावधान करता है कि राज्य मंत्रिपरिषद के मंत्रियों की संख्यां विधानसभा के कुल सीट के 15% से अधिक तथा 12 से कम नहीं होगा |
अनुच्छेद- 164
यह अनुच्छेद कहता है कि विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को मुख्यमंत्री के तौर पर नियुक्त राज्यपाल करेगें तथा मुख्यमंत्री के सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति भी राज्यपाल ही करते हैं। मंत्री राज्यपाल के प्रसाद पर्यत्न पद धारण करते हैं। 
अनुच्छेद- 164 (2)
यह अनुच्छेद कहता है कि राज्य मंत्रिपरिषद सामुहिक तौर पर विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होता है। अर्थात राज्य मंत्रिपरिषद का अस्तित्व में रहना या नहीं रहना विधानसभा के बहुमत पर निर्भर करता है ।
अनुच्छेद- 164 (3)
राज्य मंत्रिपरिषद के मंत्री अपने कर्तव्य निर्वहन से पूर्व तीसरीअनुसूची के प्रावधानों के तहत् शपथ ग्रहण करते हैं ।
अनुच्छेद- 164 (4)
यह अनुच्छेद कहता है कि बिना किसी सदन की सदस्यता के भी कोई व्यक्ति अधिकतम 6 माह तक मंत्री पद पर रह सकता है।
अनुच्छेद- 164 (5)
मंत्रियों के वेतन भत्ता का निर्धारण विधानमंडल करता है
⇒ मुख्यमंत्री विधानसभा का नेता होता है। मुख्यमंत्री बनने के लिए कम से कम उम्र 25 वर्ष होनी चाहिए ।
⇒ मुख्यमंत्री को शपथ राज्यपाल दिलाते हैं ।
⇒ मुख्यमंत्री अपना त्यागपत्र राज्यपाल को देता है।
⇒ समान्य तौर पर कोई भी व्यक्ति तब तक मुख्यमंत्री के पद पर रह सकता है, जब तक कि उसे विधानसभा में बहुमत प्राप्त होता है ।
⇒ किसी भी राज्य का मुख्यमंत्री राष्ट्रपति के चुनाव में तब भाग नहीं लेगें जब वे विधानपरिषद के सदस्य होगें ।
⇒ मुख्यमंत्री पद से हटाने हेतू विपक्षी पार्टी के सदस्यों के द्वारा विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लायें जाते हैं, अगर यह अविश्वास प्रस्ताव साधारण बहुमत से पारित हो जाता है तो मुख्यमंत्री को त्यागपत्र देना होता है।
⇒ अगर कोई मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए विधानसभा में अविश्वास का प्रस्ताव आता है और मुख्यमंत्री विधानपरिषद का सदस्य हैं तो वह मतदान नहीं कर सकेगा ।
अनुच्छेद- 166
राज्य सरकार के कार्य संचालन की चर्चा है।
अनुच्छेद 167
यह अनुच्छेद हमें मुख्यमंत्री के कर्तव्यों के विषय में जानकारी प्रदान करता है। यह अनुच्छेद कहता है कि राज्य मंत्रिपरिषद द्वारा लिए गए निर्णयों से राज्यपाल को अवगत मुख्यमंत्री करवाएगें। अर्थात राज्यपाल और मंत्रिपरिषद के बीच योजक कड़ी के रूप में काम मुख्यमंत्री करते हैं।

राज्य का महाधिवक्ता

⇒ महाधिवक्ता राज्य का कानूनी सलाहकार होता है ।
⇒ महाधिवक्ता राज्य सरकार का सबसे बड़ी वकील होता है। पूरे राज्य के भीतर किसी भी न्यायलय में राज्य सरकार का पक्ष महाधिवक्ता ही रखता है।
⇒ महाधिवक्ता के रूप में उस व्यक्ति को नियुक्त किया जाता है जिसमें उच्च न्यायलय के न्यायधिश बनने की योग्यता हो। इसलिए महाधिवक्ता को 2,25,000 /- रुपया वेतन दिया जाता है। इसको वेतन राज्य की संचित निधि से मिलता है ।
⇒ अनुच्छेद- 165 के तहत् महाधिवक्ता की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं ।
⇒ महाधिवक्ता का कोई कार्यकाल नहीं होता है। वह राज्यपाल के प्रसाद पर्यत्न अपने पद पर रहता है ।
⇒ महाधिवक्ता अपने पद पर रहते हुए निजी Practics कर सकता है।

राज्य का विधानमंडल

⇒ राज्य के भीतर कानून का निर्माण करने वाली सबसे बड़ी संस्था विधानमंडल है। अनुच्छेद- 168 कहता है राज्यपाल, विधानसभा और विधानपरिषद को मिलाकर विधानमंडल का कठन किया जाता है।
⇒ भारत के 28 राज्यों में विधानसभा है लेकिन विधानपरिषद भारत के मात्र 6 राज्यों में है। जिन 6 राज्यों विधानपरिषद है उसे द्विसदनीय विधायिका वाला राज्य कहते हैं। बाँकि बचे 22 राज्य एक सदनीय वाला राज्य है।

विधानपरिषद

⇒ इसके सृजन / समाप्ति के विषय में जानकारी अनुच्छेद- 169 देता है तो वहीं इसके संरचना के विषय में जानकारी अनुच्छेद- 171 देता है ।
⇒ अनुच्छेद- 171 कहता है कि विधानपरिषद में कम से कम 40 सदस्य और अधिक से अधिक संबंधित राज्य के विधानसभा के 1 / 3 (एक तिहाई से अधिक नहीं होगा ।
जैसे:- आंध्रप्रदेश में 50, तेलंगना में 40, कर्नाटक और बिहार में 75, महाराष्ट्र में 78 और उत्तरप्रदेश में 100 विधानपरिषद सीट है।
⇒ अनुच्छेद- 169 के तहत् राज्य के विधानसभा 2 / 3 (दो तिहाई बहुमत से संकल्प पारित कर विधानपरिषद के सृजन / समाप्ति को लेकर प्रस्ताव पारित करता है, तत्पश्चात् यह प्रस्ताव संसद के पास जाता है अगर संसद इसे स्वीकृति दे देता है तो विधानपरिषद का सृजन / समाप्ति हो जाता है।
⇒ विधानपरिषद राज्य का द्वितीय अथवा उच्च सदन है। साथ ही साथ यह एक स्थायी सदन भी है।
नोटः– विधानपरिषद एक ऐसा सदन है जिसे भंग नहीं किया जा सकता है, लेकिन समाप्त किया जा सकता है। > इस सदन का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम उम्र 30 वर्ष होनी चाहिए । इस सदन के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्षो का होता है। प्रत्येक 2 वर्ष पर 1 / 3 (एक तिहाई सदस्य पद मुक्त होते हैं।
⇒ विधानपरिषद के सदस्यों का चुनाव निम्न प्रकार से होता है:-
(1) 1 / 3 ( एक तिहाई सदस्यों के निर्वाचन में राज्य के विधानसभा के निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं।
(2) 1/3 (एक तिहाई) सदस्य का निर्वाचन स्थानीय निकाय के चुने हुए प्रतिनिधी के द्वारा किया जाता है।
(3) 1 /6 सदस्यों का मनोनयन राज्यपाल के द्वारा साहित्य, कला, विज्ञान, समाजसेवा तथा सहकारिता आंदोलन से किया जाता है।
(4) 1/12 भाग सदस्यों का निर्वाचन उच्च विद्यालय, महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय के शिक्षकगण के द्वारा किया जाता है ।
(5) 1/12 भाग सदस्यों का निर्वाचन ऐसे छात्रों के द्वारा किया जाता है जिनका स्नातक हुए 3 वर्ष या उससे अधिक हो गया हो ।

विधापरिषद के पदाधिकारी

⇒ अनुच्छेद- 182 कहता है कि विधानपरिषद में एक सभापति और एक उपसभापति होगा ।
⇒ विधानपरिषद के सभापति और उपसभापति बनने के लिए विधानपरिषद का सदस्य होना जरूरी है।
अनुच्छेद- 183
यह अनुच्छेद हमें सभापति और उपसभापत्ति के पद रिक्त होने की जानकारी प्रदान करता है।
⇒ पद रिक्त निम्न स्थितियों में होता है:-
(1) त्यागपत्र:- विधानपरिषद के सभापति अपना त्यागपत्र उपसभापति को और उपसभापति अपना त्यागपत्र सभापति को देता है ।
(2) पद पर रहते हुए मृत्यु होने पर
(3) अगर सभापति और उपसभापति सदन का सदस्य नहीं रह जाता है ।
अनुच्छेद- 184
यह अनुच्छेद हमें सभापति के कार्य, अधिकार और शक्ति के विषय में जानकारी प्रदान करता है ।
अनुच्छेद- 185
यह अनुच्छेद कहता है कि सभापति और उपसभापति को पद से हटाने का संकल्प विचाराधिन हो तो पीठासीन अधिकारी के तौर पर सभापति और उपसभापति काम नहीं कर सकेगें ।
नोट- (1) केंद्र के संदर्भ में अगर किसी साधारण विधेयक को एक सदन पारित कर देता है है तो विधेयक दूसरा सदन में जाता है। दूसरा सदन विधेयक को अधिक से अधिक 6 माह तक रोक कर रख सकता है।
(2) राज्य के संदर्भ में किसी साधारण विधेयक को विधानसभा पारित कर देता है तो यह विधेयक विधानपरिषद जाता है। विधानपरिषद इस विधेयक को पहली बार अधिक से अधिक 3 माह तक रोक सकता है, अगर 3 माह में विधानपरिषद पारित नहीं करता है तो यह विधेयक पुनः विधानसभा को लौट जाता है। विधानसभा इस विधेयक को पुनः पारित करता है, तत्पश्चात् यह विधेयक फिर से विधानपरिषद जाता है। इस बार विधानपरिषद 1 माह तक रोककर रख सकता है। इस 1 माह की अवधि के दौरान अगर विधानपरिषद पारित करता है तो ठीक है अन्यथा विधेयक उसी रूप में पारित समझा जाता है अर्थात "हम यह कह सकते हैं कि विधानसभा द्वारा पारित किसी साधारण विधेयक को विधानपरिषद अधिक से अधिक 4 माह तक रोक कर रख सकता है।

विधानसभा

⇒ अनुच्छेद- 170 कहता है कि प्रत्येक राज्य में एक विधानसभा होगा। विधानसभा में कम से कम 60 और अधिक से अधिक 500 सदस्य होगें, लेकिन कुछ राज्य अनुच्छेद- 170 के प्रावधानों को नहीं मानता है ।
जैसे- सिक्किम - 32, मिजोरम - 40, गोवा - 40
⇒ विधानसभा का चुनाव प्रत्येक्ष तौर पर होता है जिसमें राज्य की पयस्क जनता भाग लेती है ।
⇒ समान्य तौर पर विधानसभा का कार्यकाल उसकी प्रथम बैठक से 5 वर्षो का होता है, लेकिन आपातकाल के दौरान इसके कार्यकाल को बढाया जा सकता है। साथ ही साथ अगर राज्य मंत्रिपरिषद अपना बहुमत खो देती • है तो समय से पूर्व ही विधानसभा को भंग किया जा सकता है।
⇒ विधानसभा को विघटित करने का अधिकार राज्यपाल को है। राज्यपाल ऐसा मुख्यमंत्री की सलाह पर करता है।
⇒ विधानसभा के सत्र का आहुत और सत्रावसान करने का अधिकार भी राज्यपाल को ही है । 
⇒ विधानसभा को स्थगित विधानसभा का अध्यक्ष करता है ।
♦ विधानसभा के पदाधिकारीः
अनुच्छेदः - 178
यह अनुच्छेद कहता है कि विधानसभा में एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष होगा ।
⇒ विधानसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष विधानसभा का सदस्य ही बन सकता है ।
अनुच्छदे:- 179
यह अनुच्छेद हमें विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पद रिक्त होने के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
⇒ विधानसभा के अध्यक्ष अपना त्यागपत्र उपाध्यक्ष को और उपाध्यक्ष अपना त्यागपत्र अध्यक्ष को देते हैं
⇒ विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को विधानसभा के सदरूस साधारण बहुमत से संकल्प पारित कर पद से हटा सकते हैं।
अनुच्छेदः - 180
यह अनुच्छेद हमें विधानसभा अध्यक्ष के कार्य, अधिकार और शक्ति के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
अनुच्छेदः - 181
विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को पद से हटाने संबंधी संकल्प विचाराधीन हो तो वो पीठासीन पदाधिकारी के तौर पर काम नहीं कर सकेगा ।
जैसे:- बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा को पद से हटाने का संकल्प विधानसभा में लाया गया है तो वे अध्यक्ष के तौर पर काम नहीं कर सकेगें ।
♦ विधानसभा का सदस्य बनने के लिए निम्न योग्यता होनी चाहिए:- 
(1) भारत का नागरिक हो ।
(2) उम्र कम से कम 25 हो
(3) लाभ के पद पर ना हो।
(4) भारत के मतदाता सूची में ना हो ।
⇒ किसी भी राज्य में विधानसभा सीटों की संख्या उस उस राज्य की जनसंख्या के अनुसार निर्धारित किया जाता है।
जैसे:- सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य उत्तरप्रदेश है जिस कारण उत्तरप्रदेश की विधानसभा में सबसे ज्यादा 403 सीट है। वहीं सबसे कम जनसंख्या वाला राज्य सिक्किम है वहाँ की विधानसभा में सबसे कम 32- सीट है।
विधानसभा का कार्य:-
  • मुख्य तौर पर राज्य सुची और समवर्ती सुचीं के विषयों पर कानून का निर्माण राज्यों के विधानसभा के द्वारा ही किये जाते हैं ।
  • राज्य सरकार का अस्तित्व में रहना या नहीं रहना विधानसभा के ही बहुमत पर निर्भर करता है ।
  • वैसे संविधान संसोधन विधेयक जो भारत की संघीय ढाँचा में परिवर्तन करता है उस विधेयक को भारत के आधे से अधिक राज्यों के विधानसभा के समर्थन की आवश्यकता होती है।
  • राष्ट्रपति के चुनाव में विधानसभा के निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं ।
  • राज्य के संदर्भ में कानून का निर्माण करनेवाली जो सबसे महत्वपूर्ण और निर्णायक संस्था है वो विधानसभा है ।
  • राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, राज्यसभा के उपसभापति, विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, विधानपरिषद के सभापति और उपसभापति, इत्यादि को पद से हटाने की सुचना 14 दिन पूर्व देना होता है ।
  • राज्य धन विधेयक को जब विधानपरिषद पारित कर देती है तो उसे विधानपरिषद अधिक से अधिक 14 दिन तक रोक सकती है।
भारत के 8 केंद्रशासित प्रदेश में से 3 केंद्रशासित प्रदेश ऐसे हैं जहाँ पर विधानसभा है जो निम्न है-
(1) दिल्ली- 70
(2) पुड्डुचेरी-  30 
(3) जम्मू-कश्मीर- यहाँ की यथा स्थिति स्पष्ट नहीं है।

उच्च न्यायालय

√ उच्च न्यायालय के विषय में जानकारी हमें भारतीय संविधान का भाग- 6 के अंतर्गत अनुच्छेद- 214 से 231 प्रदान करता है।
√ अनुच्छेद- 214 कहता है कि प्रत्येक राज्य में एक High Court होगा ।
√ 7वाँ संविधान संसोधन 1956 में यह प्रावधान किया गया कि दो या दो से अधिक राज्यों के लिए 1 उच्च न्यायालय हो सकता है।
√ वर्त्तमान में हमारे देश में कुल 25 उच्च न्यायालय है ।
√ 3 उच्च न्यायालय ऐसे हैं जिसका अधिकार क्षेत्र 1 से अधिक राज्य है जो निम्न है-
(1) मुम्बई हाई कोर्ट:- इसके अधिकार क्षेत्र में महाराष्ट्र और गोवा राज्य आ जाता है ।
(2) चंडीगढ़ हाई कोर्ट:- इसके अधिकार क्षेत्र में पंजाब और हरियाणा राज्य आता है ।
(3) गुवाहाटी हाई कोर्टः- इसके अधिकार क्षेत्र में असम, अरुणाचलप्रदेश, नागालैंड और मिजोरम आता है ।
√ वर्त्तमान में भारत के 8 केंद्रशासित प्रदेशों में से मात्र 2 केंद्रशासित प्रदेश ऐसे हैं जिसका अपना हाई कोर्ट है:-
(1) दिल्ली
(2) जम्मू-कश्मीर
√ 6 केंद्रशासित प्रदेश ऐसे हैं जो अलग-अलग राज्यों के क्षेत्राधिकार में आते हैं जो निम्न है:-
(1) अंडमान-निकोबार द्वीप समूहः- यह कोलकात्ता हाई कोर्ट के क्षेत्राधिकार में आता है।
(2) पुडुचेरी:- यह चेन्नई हाई कोर्ट के क्षेत्राधिकार में आता है ।
(3) लक्ष्यद्वीप:- यह केरल हाई कोर्ट के क्षेत्राधिकार में आता है।
(4) दादर - नागर हवेली और दमन तथा दीव:- यह मुम्बई हाई कोर्ट के क्षेत्राधिकार में आता है।
(5) लद्याख:- यह जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के क्षेत्राधिकार में आता है।
(6) चंडीगढ़:- यह चंडीगढ़ हाई कोर्ट के क्षेत्राधिकार में आता है।
√ अनुच्छेद- 215 यह कहता है कि High Court एक अभिलेख न्यायालय है।
√ अनुच्छेद- 216 तहत् राज्य में High Court का गठन किया जाता है।
अनुच्छेद- 217
यह अनुच्छेद हमें उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के नियुक्ति के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति करते हैं। उन व्यक्तियों को न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त किया जाता है, जिसमें निम्न योग्यता हो:-
(1) भारत का नागरिक हो
(2) 10 वर्षो का न्याययिक अनुभव हो
या 
(3) 10 वर्षो तक उच्च न्यायलय में अधिवक्ता के यप में काम किया हो ।
या
(4) राष्ट्रपति के नज़र में विधि का बहुत बड़ा ज्ञाता हो ।
★ हाईकोर्ट के न्यायधीशों को शपथ संबंधित राज्य के राज्यपाल के द्वारा दिलाया जाता है।
★ हाईकोर्ट के न्यायधीशों का कोई कार्यकाल नहीं होता है, बल्कि उसके सेवा निवृत्ति की आयु 62 वर्ष होता है ।

भारत के सभी हाईकोर्ट

High Court स्थापना वर्ष मूल सथान
मुम्बई हाईकोर्ट 1862 ई० मुम्बई
मद्रास/चेन्नई हाईकोर्ट 1862 ई० चेन्नई
कोलकात्ता हाईकोर्ट 1862 ई० कोलकात्ता
इलाहाबाद हाईकोर्ट 1866 ई० इलाहाबाद (प्रयागराज )
कर्नाटक हाईकोर्ट 1884 ई० बंगलुरू
पटना हाईकोर्ट 1916 ई० पटना
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट 1928 ई० श्रीनगर
★ इलाहाबाद हाईकोर्ट मूल तौर पर आगरा में स्थापित हुआ था ।
★ उपर लिखे गए High Court भारत के आजादी के पूर्व स्थापित हुआ है।
★ भारत में उच्च न्यायालय का गठन होना प्रारंभ High Court अधिनियम 1861 के तहत् हुआ है।
High Court स्थापना वर्ष मूल स्थान
ओडिसा हाईकोर्ट 1948 ई० कटक
गुवाहाटी हाईकोर्ट 1948 ई० गुवाहाटी
राजस्थान हाईकोर्ट 1949 ई० जोधपुर
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट 1956 ई० जबलपुर
केरल हाईकोर्ट 1956 ई० एर्नाकुलम
गुजरात हाईकोर्ट 1960 ई० अहमदाबाद
दिल्ली हाईकोर्ट 1966 ई० दिल्ली
चंडीगढ़ हाईकोर्ट 1966 ई० चंडीगढ़
हिमाचलप्रदेश 1971 ई० शिमला
सिक्किम हाईकोर्ट 1975 ई० गंगटोक
उत्तराखंड हाईकोर्ट 2000 ई० नैनीताल
झारखंड हाईकोर्ट 2000 ई० राँची
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट 2000 ई० बिलासपुर
मेघालय हाईकोर्ट 2013 ई० शिलौंग
मणिपुर हाईकोर्ट 2013 ई० इम्फाल
त्रिपुरा हाईकोर्ट 2013 ई० अगरतल्ला
आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट 1 जनवरी 2019 अमरावती
तेलंगना हाईकोर्ट 1 जनवरी 2019 हैदराबाद
⇒ भाषायी आधार पर 1953 ई0 में आंध्रप्रदेश राज्य का गठन हुआ तो उस समय के आंध्रप्रदेश राज्य के लिए High Court का गठन 1954 ई0 में हैदराबाद में किया गया था।-
⇒ अनुच्छेद - 221 हमें Hight Court के न्यायाधीशों के वेतन, भत्ता और पेंसन की जानकारी देता है।
⇒ High Court के न्यायाधीशों के वेतन, भत्ता का निर्धारण भारत के संसदों के द्वारा निर्धारित किया जाता है संसद के द्वारा निर्धारित वेतन, भत्ता में कटौती नियुक्ति के बाद नहीं की जा सकती है लेकिन अगर वित्तीय आपात लागू हो तो कटौती की जा सकती है।
⇒ High Court के न्यायाधीशों को वेतन राज्य की संचित निधि से दी जाती है जबकि पेंसन भारत की संचित निधि से दिया जाता है।
⇒ High Court के मुख्य न्यायाधीशों का वेतन 2,50,000/- रुपया है जबकि अन्य न्यायाधीशों का वेतन 2,25,000/- रुपया है ।
⇒ अनुच्छेद- 229 हमें High Court के अधीन काम करने वाले अधिकारी एवं कर्मचारी तथा उसके उपर होने वाले व्यय (खर्च) के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
⇒ High Court के अधिकारी और कर्मचारी की नियुक्ति High Court के मुख्य न्यायाधीश के द्वारा किया जाता है।
⇒ अनुच्छेद - 220 यह कहता ळै कि जिस High Court से न्यायाधीश सेवानिवृत्त हुआ है उस High Court में वकालत नहीं कर सकता है ।
⇒ अनुच्छेद- 222 यह कहता है कि भारत के राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करके High Court के न्यायाधीश को दूसरें High Court में स्थानांतरित कर सकता है।
⇒ अनुच्छेद- 227 यह कहता है कि High Court अपने अधीन आने वाले अधीनस्था न्यायालय का अधिक्षण करेगा।
⇒ भारत तथा पूरे विश्व में सर्वाधिक न्यायाधीशों की संख्या वाला न्यायालय इलाहाबाद High Court है जहाँ न्यायाधीशों की संख्या 160 है ।

कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश

⇒ जब किसी कारणवश किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो जाता है या वो अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ हो जाते हैं तो, इस स्थिति में भारत के राष्ट्रपति उस उच्च न्यायालय से ही वरिष्टम न्यायाधीश को अनुच्छेद- 223 के तहत् उच्च न्यायालय के कार्यकारी मुख्यं न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त करते हैं |

अपर न्यायाधीश

⇒ जब किसी उच्च न्यायालय में काम का बोझ काफी बढ़ जाता है तथा बहुत ज्यादा मात्रा में केस Pending हो जाता है तो इस स्थिति में भारत के राष्ट्रपति अनुच्छेद- 224 के तहत् High Court के लिए अपर न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं । अपर न्यायाधीश की नियुक्ति अधिकतम 2 वर्षो के लिए होती है।

कार्य, अधिकार और शक्ति

मूल क्षेत्राधिकारः-
वैसे सीगी मामले जो सीधे तौर पर High Court में रखा जाता है उसे High Court के मूल क्षेत्राधिकार के अंतर्गत शामिल किया जाता है ।
जैसे:- (1) लोकसभा और राज्यसभा के चुनाव में होने वाले विवाद
(2) आम नागरिकों के मौलिक अधिकार के हनन से संबंधित मामले
(3) विधानसभा और विधानपरिषद के चुनाव में होने वाले विवाद
(4) अधीनस्थ न्यायालय के वैसे मामले जिसमें विधि का प्रश्न समाहित हो ।
अपीलीय अधिकारः-
राज्य के भीतर सबसे बड़ा अपीलीय न्यायालय उच्च न्यायालय होता है । अधीनस्थ न्यायालय के निर्णयों के खिलाफ अपील उच्च न्यायालय में की जा सकती है ।
सेना न्यायालय ( Court Marshal):-
भारतीय सैनिकों के बीच अनुशासन बनाए रखने को लेकर सेना न्यायालय का गठन हुआ है । यह न्यायालय सैनिकों को बाह्य हस्तक्षेप से बचाता है। सेना न्यायालय सैनिकों को बाह्य हस्तक्षेप से बचाता है। सेना न्यायालय में सैनिकों के मामलों की सुनवाई नहीं होती है ।
⇒ सेना न्यायालय का न्यायाधीश सेना का ही सर्वोच्च कमांडर होता है ।
⇒ अनुच्छेद - 136 (2) यह कहता है कि सेना न्यायालय के निर्णय के खिलाफ अपील Supreme Court में नहीं की जा सकती है। वहीं अनुच्छेद- 274 ( 4 ) यह कहता है कि सेना न्यायालय के निर्णय के खिलाफ अपील High Court में नहीं किया जा सकता है।
⇒ अगर मौलिक अधिकार से संबंधित मामला हो तो फिर Supreme Court में अनुच्छेद- 32 के तहत् तथा High Court में अनुच्छेद- 226 के तहत् अपील की जा सकती है।
मोबाईल अदालत (Mobile Court):-
मोबाईल कोर्ट की अवधारणा का विकास का श्रेय भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ० APJ अब्दूल कलाम अजाद को जाता है। इस न्याया की व्यवस्था को "पहिए पर न्याय" के नाम से जाना जाता है। इस न्याययिक व्यवस्था में न्याय से संबंधित आधारभूत ढाँचा का विकास एक बस में किया जाता है जिस कारण इसे पहिए पर न्याय के नाम से जाना जाता है ।
नोटः– मोबाईल कोर्ट के अंतर्गत सर्वप्रथम मामलों की सुनवाई 2007 ई० में हरियाणा के मेवात जिला में हुआ ।
लोक अदालत :-
लोक अदालत का अथा 'लोगों का न्यायालय' होता है। अस अदालत में निर्णय दोनों पक्षों के आपसी सहमती से होता है। यह आदालत गाँधी के विचारों से प्रेरित है। इस अदालत के निर्णय के खिलाफ अपील न तो Supreme Court में और ना ही High Court में की जा सकती है। इस कोर्ट में कोई फीस नहीं लगता है। इस कोर्ट में निर्णय तीन सदस्यों के पीठ द्वारा किया जाता है जिसमें 1 सेवानिवृत्त न्यायाधीश, 1 वकील और 1 सामाजिक कार्यकर्ता होते हैं।
परिवार न्यायालय (Family Court ) :-
उच्च न्यायालय के सलाह से राज्य सरकार के द्वारा 10 लाख से अधिक अबादी वाले नगरों में परिवारिक मामलों । जैसे- तलाक, विवाह, गुजाराभत्ता, बच्चों का संरक्षण, इत्यादि के निपटारें को लेकर परिवार न्यायालय का गठन प्रत्येक राज्य में 1984 ई0 में किया गया है। इस न्यायालय के निर्णय के खिलाफ अपील उच्च न्यायालय में की जा सकती है।
Fast Track Court:-
लंबित अपराधिक मामलों के शीघ्र निपटान हेतू 11वें वित्त आयोग के सिफारिश पर Fast Track Court गठन किये जाने का प्रावधान किया गया ।
अधीनस्था न्यायालय (Subordinate Court):-
इसके विषय में जानकारी हमें भारतीय संविधान के भाग- 6 के अंतग्रत अनुच्छेद- 233 से 237 प्रदान करता है। अधीनस्था न्यायालय के अंतर्गत जिला न्यायालय और सत्र न्यायालय आता है। जिला का सर्वोच्च न्यायायिक अधिकारी जिला न्यायाधीश होता है। जिला न्यायाधीश की नियुक्ति राज्य के राज्यपाल के द्वारा अनुच्छेद- 233 के तहत् किया जाता है । जिला न्यायाधीश जब सिविल मामलों की सुनवाई करता है तो वह जिला न्यायाधीशं कहलाता है लेकिन जब वह अपराधिक मामलों का सुनवाई करता है तो सत्र न्यायाधीश कहलाता है ।
न्यायायिक पुर्नविलोकन (Judicial Review):-
यह. अमेरिकी संविधान की विशेषताओं में से एक प्रमुख विशेषता है। 1803 में अमेरिकी Supreme Court के मुख्य मुख्य न्यायाधीश सर जॉन मार्शल के द्वारा न्यायायिक पुर्नविलोकन की व्यवस्था का सुत्रपात किया गया। अमेरिकी न्यायायिक प्रणाली से ही. भारत में इसे अपनाया गया है प्रत्यक्ष तौर पर भारतीय संविधान के किसी भी अनुच्छेद में न्यायायिक पुर्नविलोकन की चर्चा नहीं है लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर इसकी चर्चा मुलतः अनुच्छेद- 13, 32 और 226 में है
★ भारतीय न्यायायिक प्रणाली के अंतर्गत न्यायायिक पुर्नविलोकन का अधिकार उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय दोनों को प्राप्त है।
★ कार्यपालिका द्वारा आदेश तथा विधायिका द्वारा निर्मित विधि संविधान के अनुरूप है या नहीं, इसकी जाँच करने का अधिकार न्यायपालिका को होता है। यही व्यवस्था न्यायायिक पुर्नविलोकन कहलाता है। इस व्यवस्था के तहत् न्यायपालिका नियंत्रण स्थापित करता है ।
★ भारतीय न्याययिक प्रणाली के अंतर्गत संविधान सर्वोच्च है। संविधान की व्याख्या करने का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को है यही कारण है कि न्यायायिक पुर्नविलोकन का अधिकार न्यायपालिका को दिया गया है |
जनहितवाद/लोकहितवाद (PIL:- Public Intest / Litigation):-
इस व्यवस्था का सुत्रपात सर्वप्रथम 1960 के दशक में अमेरिका में ही हुआ था। 1980 के दशक में यह व्यवस्था भारत में लाया गया। भारत में इस व्यवस्था का सुत्रपात न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर और P. N भगवति के द्वारा दिया गया है। भारतीय न्यायायिक व्यवस्था में इसे लागू 1985-86 में किये गए थें। उस समय भारत के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश P.N भगवति थें ।
★ सामान्य कानूनी प्रक्रिया में जिस व्यक्ति का हित प्रभावित होता है वह न्यायालय के सरण में जाता है लेकिन अगर निरक्षरता, गरीबी, जानकारी इत्यादि के अभाव में अगर किसी व्यक्ति को न्याय नहीं मिल पाता है तो इस स्थिति में कोई सामाजिक संगठन या प्रभावित व्यक्ति के सगे-संबंधी प्रभावित व्यक्ति के लिए न्यायालय में आवाज उठाकर प्रभावित व्यक्ति को न्याय दिला सकता है उसे ही जनहितवाद/लोकहितवाद कहा गया।
न्यायायिक सर्कियता:-
1947 में अमेरिका में सर ऑर्थर के द्वारा न्यायायिक सर्कियता की अधिकल्पना की गई। न्यायायिक सर्कियता के तहत् न्यायापालिका, कार्यपालिका और विधायिका के काम नहीं करने की स्थिति में काम करने को लेकर हस्तक्षेप कर सकता है।
★ भारत में न्यायायिक सर्कियता का सुत्रपात 1970 के दशक में न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर और P. N भगवति के द्वारा किया गया है। .
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