General Competition | Indian Polity | केंद्र राज्य संबंध (Centre - State Relation)
★ इस विषय में जानकारी हमें भारतीय संविधान के भाग- 11 के अंतर्गत अनुच्छेद -- 245 से 263 प्रदान है। भाग 11 को दो अध्याय में बाँटा गया है जिसमें से अध्याय- 1 हमें केंद्र राज्य विधायी संबंध (अनुच्छेद - 245 से 255) और अध्याय - 2 हमें केंद्र राज्य प्रशासनिक संबंध ( अनुच्छेद- 256 से 263) की जानकारी प्रदान करता है।
★ केंद्र राज्य संबंध के आधार पर शासन प्रणाली 3 प्रकार का होता है:-
(1) संघात्मक
(2) एकात्मक
(3) परिसंघात्म
(1) संघात्मक (Fererul Systeam):-
वैसी शासन प्रणाली जिसमें केंद्र और राज्य दोनों का यह अस्तिव हो, संघात्मक शासन प्रणाली कहलाती है । इस शासन प्रणाली में केंद्र अपने केंद्र में शक्तिशाली और राज्य अपने क्षेत्र में शक्तिशाली होता है। इस शासन प्रणाली की प्रमुख विशेषता निम्न है:-
(1) संविधान लिखित हो ।
(2) संविधान सर्वोच्च हो ।
(3) स्वतंत्र न्यायपालिका हो ।
(4) द्विसदनीय विधायिका हो ।
नोट:- संघात्मक शासन प्रणाली को अविनाशी राज्यों का अविनाशी संगठन कहा जाता है। इस शासन प्रणाली का सर्वोकृष्ट उदाहरण अमेरिका को माना जाता है ।
(2) एकात्मक (Unitary Systeam):-
वैस शासन प्रणाली जिसमें समस्त शक्ति केंद्र में निहित हो, एकात्मक शासन प्रणाली कहलाता है। इस प्रकार की शासन प्रणाली खास तौर पर कम क्षेत्रफल और कम जनसंख्या वाले राज्यों में देखने को मिलता है । इस शासन प्रणाली का गुण निम्न है:-
(1) संविधान लिखित हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है।
(2) संविधान सर्वोच्च हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है ।
(3) एक सदनीय या द्विसदनीय किसी भी प्रकार की विधायिका हो सकती है।
नोट:- एकात्मक शासन प्रणाली को विनाशी राज्यों का अविनाशी संगठन कहते हैं ।
(3) परिसंघात्मक (Confedration):-
वैसे शासन प्रणाली जिसमें समस्त शक्ति राज्य के पास हो, परिसंघात्मक शासन प्रणाली कहलाती है 1991 से पहले रूस परिसंघात्मक शासन प्रणाली वाला देश कहलाता था
नोटः- परिसंघात्मक शासन प्रणाली को अविनाशी राज्यों का विनाशी संगठन कहते हैं।
अनुच्छेद- 245
यह अनुच्छेद कहता है कि संसद द्वारा बनाया गया कानून पूरे भारत वर्ष में लागू होता है तो वहीं राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया गया कानून संबंधित राज्य में लागू होता है ।
★ भारत की कानून की निर्माण करने वाली सबसे बड़ी संस्था संसद है | ( बिहार दरोगा)
अनुच्छेद- 246
यह अनुच्छेद हमें 3 सुचियों (1) संघ सूची (2) राज्य सूची (3) समवर्ती सूची के विषय में जानकारी प्रदान करता है ।
★ संघ सूची में शामिल विषय पर कानून बनाने का अधिकार भारत की संसद को है। इस सूची में मुलतः 97 विषय था जबकि वर्त्तमान में 100 है। इस सुची के प्रमुख विषय निम्न है -
जैसे- रक्षा, विदेश, संचार, बड़े बंदरगाह, जनगणना, परमाणू उर्जा, संयुक्त राष्ट्र संघ, इत्यादि ।
★ राज्य सूची में मूलतः 66 विषय था जबकि वर्त्तमान में 61 है। इस पर कानून बनाने का अधिकार राज्य के विधानमंडल को है। इसके प्रमुख विषय निम्न है:- जैसे:- कृषि, राज्य पुलिस, लोक स्वास्थ्य, स्वच्छता, इत्यादि ।
★ समवर्ती सूची में मुलत5 47 विषय था जबकि वर्त्तमान में 52 विषय है। इस सूची में शामिल विषयों पर कानून बनाने का अधिकार संसद और राज्य के विधानमंडल दोनों को होता है, लेकिन अगर दोनों बनाया हो तो इस स्थिति में संसद द्वारा बनाया गया कानून मान्य होता है। इस सूची के प्रमुख विषय निम्न है:- जैसे- शिक्षा, वन, परिवार, नियोजन, आर्थिक आयोजन, इत्यादि ।
★ 42वाँ संविधान संसोधन 1976 के तहत् राज्य सूची के 5 विषय राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में शामिल किया गया। जो निम्न है:-
(1) शिक्षा
(2) वन
(3) वन्य जीवों का संरक्षण
(4) माप-तौल
(5) न्याय प्रशासन
★ अनुच्छेद- 247 संसद को यह अधिकार देता है कि वो अतिरिक्त न्यायालय की स्थापना कर सकता है।
अनुच्छेद:- 248
यह अनुच्छेद हमें अवशिष्ट विषयों की जानकारी प्रदान करता है। वैसे विषय जिसकी चर्चा ना संघ सूची में हो, ना राज्य सूची में हो और ना ही समवर्ती सूची में हो उस विषय को अवशिष्ट विषय में रखा जाता है। इस पर कानून बनाने का अधिकार भारत की संसद को होता हैं। जैसे- साइबर कानून ।
अनुच्छेद:- 249
यह अनुच्छेद कहता है कि राज्यसभा अगर अपनी दो तिहाई से संकल्प पारित करें कि राज्य सूची के विषय पर कानून संसद बनाएगी तो इस स्थिति में संसद ही राज्य सूची के विषय पर कानून बनाती है।
अनुच्छेदः - 250
यह अनुच्छेद कहता है कि आपात के दौरान राज्य सूची के विषय पर कानून संसद बनाएगी ।
अनुच्छेदः - 252
अगर दो या दो से अधिक राज्य संसद को यह सिफारिश करें कि उन राज्यों के लिए राज्य सूची के विषय पर कानून संसद बनाएगें तो इस स्थिति में संसद ही कानून बनाता है।
अनुच्छेदः - 253
अंतर्राष्ट्रीय संधि और समझौता को लागू करने के लिए राज्य सूची के किसी विषय पर कानून संसद बनाता है।
केंद्र राज्य संबंध को बेहतर बनाने को लेकर गठित आयोग
(1) प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोगः-
इस आयोग का गठन 1966 ई0 में हुआ था। शुरूआती दौर में इस आयोग के अध्यक्ष मोरारजी देसाई थें, लेकिन जब वे उप-प्रधानमंत्री बन गए तरे उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा और फिर इस आयोग के अध्यक्ष के० हनुमनथैया बनें। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1969 ई0 में प्रस्तुत की जिसमें निम्न प्रकार की सिफारिसें की गई।
(1) अंतर्राज्जीय परिषद का गठन होना चाहिए ।
(2) राज्यपाल के पद पर गैर-राजनीतिक व्यक्ति को नियुक्त किया जाना चाहिए।
(3) राज्यों में केंद्रीय पुलिस बलों की नियुक्ति तव की जायेंज व राज्य ने अनुरोध किया हो ।
(4) लोकपाल का गठन किया जाना चाहिए ।
नोटः- प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग के सिफारिश पर भारतीय संसद में पहली बार लोकपाल बिल 1968 में लाया गया था।
(2) राजमन्नार आयोगः-
तामिलनाडू राज्य सरकार के द्वारा 1969 ई० में वी०पी० राजमन्नार की अध्यक्षता में 3 सदस्यीय आयोग गठित किया गया जिसके 2 अन्य सदस्य A L मुदालियर और चंद्रा रेड्डी थे। यह आयोग अपना रिपोर्ट 1971 ई0 में प्रस्तुत किया था। इस आयोग के किसी भी सिफारिश को भारत सरकार के द्वारा स्वीकार नहीं किया गया था। इस आयोग की प्रमुख सिफारिशें निम्न
(1) अनुच्छेद- 249 को निरस्त कर देना है।
(2) अनुच्छेद- 356, 357 और 365 को समाप्त " कर देना है।
(3) योजना आयोग को समाप्त कर देना है ।
(4) अखिल भारतीय सेवा को समाप्त कर देना है।
(5) वित्त आयोग को स्थायी आयोग बनाना है । इत्यादि......
(3) सरकारिया आयोगः-
1983 ई0 में R.S सरकारिया की अध्यक्षता में 3 सदस्सीय आयोग गठित हुआ जिसके दो अन्य सदस्य S.R सेन और वी० शिवरामन थें। यह आयोग अपना रिपोर्ट अंतिम रूप से 1987 ई0 में प्रस्तुत किया। इस आयोग की प्रमुख सिफारिशें निम्न है:-
(1) अनुच्छेद - 263 के तहत् अंतर्राज्जीय परिषद का गठन किया जाना चाहिए ।
(2) अनुच्छेद- 356 सोच-समझकर लागू किया जाना चाहिए ।
(3) राज्यपाल को 5 वर्षो तक पद पर रहने दिया जाना चाहिए ।
(4) अंतर्राज्जीय परिषदः-
सरकारिया आयोग के सिफारिश पर अनुच्छेद- 263 के तहत् 1990 ई0 में भारत में राष्ट्रपति के द्वारा अंतर्राज्जीय परिषद का गठन किया गया है। अंतर्राज्जीय परिषद के बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री के द्वारा किया जाता है। •
(5) पुंछी आयोगः-
केंद्र राज्य संबंध को बेहतर बनाने के उदेश्य से 2007 ई० में मदन मोहन पुंछी की अध्यक्षता में आयोग गठित हुआ। यह आयोग अपना रिपोर्ट 2010 ई0 में प्रस्तुत किया। इस आयोग की प्रमुख सिफारिशें निम्न है:-
(1) राज्यपाल का कार्यकाल निश्चित हो ।
(2) अनुच्छेद- 352 और 356 का प्रयोग अंतिम विकल्प के तौर पर हो ।
(3) योजना आयोग और वित्त आयोग में बेहतर तालमेल हो । इत्यादि........
(6) क्षेत्रीय परिषदः -
केंद्र राज्य संबंध को बेहतर बनाने के उदेश्य से संसदीय अधिनियम के तहत् क्षेत्रीय परिषद का गठन किया गया। अर्थात क्षेत्रीय परिषद एक सांविधिक आयोग है। भारत को मूलतः 5 क्षेत्रीय परिषद में बाँटा गया है:-
(1) उत्तरी क्षेत्रीय परिषद -
इसके अंतर्गत लद्याख जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हिमाचलप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, इत्यादि आता है। इस क्षेत्रीय परिषद का मुख्यालय नई दिल्ली में है ।
(2) दक्षिणी क्षेत्रीय परिषदः -
इसके अंतर्गत कर्नाटक, केरल, तामिलनाडू, आंध्रप्रदेष, तेलंगना आता है। इसका मुख्यालय चेन्नई है ।
(3) पूर्वी क्षेत्रीय परिषदः-
इसके अंतर्गत बिहार, झारखंड, उड़ीसा, बंगाल आता है। इसका मुख्यालय कोलकात्ता में है ।
(4) पश्चिमी क्षेत्रीय परिषदः-
इसके अंतर्गत महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा, इत्यादि राज्य आता है। इसका मुख्यालय मुम्बई में है ।
(5) मध्य क्षेत्रीय परिषदः-
इसके अंतर्गत उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ आता है। इसका मुख्यालय इलाहाबाद में है।
★ पूर्वोतर क्षेत्रीय परिषद अधिनियम 1971 के तहत् पूर्वोतर परिषद का गठन 1972 ई0 में हुआ है। इसका मुख्यालय शिलौंग में है। इस क्षेत्रीय परिषद के अंतर्गत 8 राज्य आते हैं जो निम्न है:-
(1) अरूणाचल प्रदेश
(2) असम
(3) मेघालय
(4) नागालैंड
(5) मणिपुर
(6) मिजोरम
(7) त्रिपुरा
(8) सिक्किम
★ अपनी सांस्कृतिक और भौगोलिक विविधता के कारण लक्ष्यद्वीप और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह किसी भी क्षेत्रीय परिषद के अंतर्गत नहीं आता है ।
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