General Competition | Science | Biology (जीव विज्ञान) | अनुवंशिकी

गुणसूत्र की खोज 1859 में हॉफमीस्टर ने किया था। उन्होंने इसका नाम न्यूक्लियर फिलामेंट रखा। क्रोमोसोम शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1898 में वाल्डेयर के द्वारा किया गया।

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गुणसूत्र (Chromosome)

  • गुणसूत्र की खोज 1859 में हॉफमीस्टर ने किया था। उन्होंने इसका नाम न्यूक्लियर फिलामेंट रखा। क्रोमोसोम शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1898 में वाल्डेयर के द्वारा किया गया।
  • गुणसूत्र केन्द्रक (Nucleus) के अंदर पाये जाने वाली पतली-पतली धागेनुमा रचनाएँ है, जिसका निर्माण कोशिका विभाजन के समय क्रोमेटीन जालिका के द्वारा होता है। माइॉसिस कोशिका विभाजन के मेटाफेज एवं ऐनाफेज अवस्थाओं में क्रोमोजोम (गुणसूत्र) स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ते हैं।
  • गुणसूत्र की लंबाई सामान्यत: 0.5 μm से 30 μm तथा मोटाई 0.2 μm से 3 μm होती है। पौधों के कोशिका में पाये जानेवाले गुणसूत्र जंतु कोशिका के गुणसूत्र से थोड़ा बड़ा होता है। 
  • प्रत्येक प्राणी एवं पौधों की प्रजाति में गुणसूत्र की एक निश्चित संख्या होती है। ये गुणसूत्र हमेशा जोड़ों में रहते हैं तथा जोड़ा वाला दोनों गुणसूत्र हमेशा एक दूसरे के समान होते हैं, जिस कारण जोड़ों वाले क्रोमोसोम (गुणसूत्र ) समजात क्रोमोसोम कहलाते हैं, कायिक (Somatic) कोशिका में समजात क्रोमोजोम होते हैं ये द्विगुणित (Diploid) कहलाते हैं । परंतु जनन कोशिका (शुक्राणु, अंडाणु) में क्रोमोसोम की संख्या कायिक कोशिका की आधी होती है। ऐसे कोशिका के क्रोमोसोम अगुणित (Haploid) कहलाते हैं।
  • प्रत्येक गुणसूत्र में एक खास स्थान होता है, जहाँ से गुणसूत्र दो भुजाओं में बँटे नजर आते हैं। इस खास स्थान को सेंट्रोमियर (Centromere) कहते है। सेंट्रोमियर के स्थिति के अनुसार गुणसूत्र चार प्रकार के होते है-
    1. Metacentric : इस गुणसूत्र की दोनों भुजाएँ बराबर होता है। तथा इसकी आकृत्ति अंग्रेजी वर्णमाला के 'V' अक्षर के समान होती है। 
    2. Submetacentric : इस गुणसूत्र की एक भुजा दूसरी भुजा के तुलना में थोड़ा छोटा होता है तथा इसकी आकृति अंग्रेजी वर्णमाला के 'L' अक्षर के तरह होता है। 
    3. Acrocentric : इस गुणसूत्र की एक भुजा बहुत बड़ी तथा दूसरी बहुत छोटी होती है। इसकी आकृति छड़ ( rod) के समान होता है।
    4. Telocentric : इस गुणसूत्र केवल एक ही भुजा होता है तथा शीर्ष पर सेंट्रोमियर स्थित होता है।
  • एक पूर्ण विकसित गुणसूत्र के निर्माण में निम्नलिखित रचनाएँ भाग लेती है-
    1. पेलिकल (Pellicle) : गुणसूत्र के सबसे बाहरी आवरण पेलिकल कहलाता है। पेलिकल के से घिरा हुआ भाग को मैट्रिक्स कहा जाता है ।
    2. अर्द्धगुणसूत्र (Chromatids ) : गुणसूत्र के मैट्रिक्स में, गुणसूत्र के पूरे लंबाई तक दो कुंडलित (Coiled) धागे के समान रचनाएँ होती है, जिसे अर्द्धगुणसूत्र कहते हैं।
    3. क्रोमोनिमेटा (Chromonemata) : गुणसूत्र का प्रत्येक अर्द्धगुणसूत्र (Chromatids ) दो या इससे अधिक महीन धागे की रचनाओं से बना होता है, जिसे क्रोमोनिमेटा कहा जाता है। प्रत्येक अर्द्धगुणसूत्र के क्रोमोनिमेटा इतनी अधिक घनिष्ठता से एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं कि वे एक ही दिखाई पड़ते है।
    4. प्राथमिक संकुचन (Primary constriction) : गुणसूत्र के दोनों भुजाओं के मिलन स्थल पर स्थित संकुचन को प्राथमिक संकुचन कहते हैं। प्राथमिक संकुचन के स्थान पर ही एक गोलाकार कण होते हैं जो सेंट्रोमियर कहलाता है। सेंट्रोमियर गुणसूत्र को दो भुजाओं में बाँटता है।
    5. द्वितीयक संकुचन - I (Secondary constriction - I) : गुणसूत्र के शीर्षभाग पर स्थित संकुचन को द्वितीयक संकुचन-I कहते हैं। द्वितीयक संकुचन - I को (Nucleolar Organise) भी कहा जाता है क्योंकि केंद्रिका (Nucleolus) बनने में इसकी जरूरत होती है।
    6. सैटेलाइट (Satellite) : गुणसूत्र के द्वितीयक संकुचन के बाद वाला हिस्सा एक गोलाकार रचना जैसा होता है जिसे सैटेलाइट कहते हैं।
    7. द्वितीयक संकुचन - II ( Secondary Constriction - II) : प्राथमिक संकुचन के अतिरिक्त गुणसूत्र के किसी भी भाग (शीर्ष भाग छोड़कर) में स्थित संकुचन को द्वितीयक संकुचन II कहा जाता है। गुणसूत्र का सेंट्रोमियर केवल प्राथमिक संकुचन पर ही स्थित होता है, अन्य किसी संकुचन पर नही ।
    8. टीलोमियर (Telomere ) : गुणसूत्र के दोनों अंतिम सिरों को टीलोमियर कहा जाता है। टीलोमियर गुणसूत्र के दोनों भुजाओं को आपस में कभी जुटने नहीं देता है। अगर किसी कारणवश गुणसूत्र टूट जाये तो टूटे हुए गुणसूत्र भी टेलोमियर से जुट नहीं सकता है।
  • गुणसूत्र कोशिका का एक महत्वपूर्ण भाग है। ये पैतृक गुणों के संरचरण के लिए उत्तरदायी 'जीन' को एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में पहुँचता है । गुणसूत्र में स्थित अर्द्धगुणसूत्र (Chromatids) DNA तथा की पूरी लंबाई में दाने प्रोटीन का बना होता है। DNA के क्रियात्मक समान दिखते हैं। खंड को जीन कहते हैं। यह जीन अद्धत्मक खंड जीन को अनुवंशिक इकाई कहा जाता है।
  • DNA में कोशिका निर्माण DNA को अनुवंशिक पदार्थ तथा इसके एवं संगठन की सभी आवश्यक सूचनाएँ होती है तथा DNA में प्रतिलिपिकरण (Replication) द्वारा अपने समान अणु के संश्लेषण की क्षमता होती है।
  • कोशिका के न्यूक्लियस से DNA का पृथक्कीकरण सर्वप्रथम फ्रेडरिक मेशर ने किया था तथा इसका नाम न्यूक्लिन रखा। DNA अनुवंशिक पदार्थ है यह प्रमाण अल्फ्रेड हर्षे तथा मार्था चेस के प्रयोग से प्राप्त हुआ। ये दोनों अपना प्रयोग बैक्टिरिओफेज विषाणु परकिया था ।
  • कोई भी अणु जो अनुवंशिक पदार्थ के रूप में कार्य कर सकता है उसमें निम्नलिखित गुण का होना जरूरी है-
    1. वह अपना प्रतिकृति बनाने में सक्षम हो ।
    2. उसकी रचना तथा रसायनिक संगठन स्थिर होना चाहिए।
    3. उसमें उत्परिवर्तन (Mutation) की संभावना होनी चाहिए क्योंकि वह विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।
    4. इसे स्वंग मेंडल के लक्षण के अनुरूप अभिव्यक्त होना चाहिए। उपर्युक्त सभी गुण DNA में मौजूद है, इसलिए DNA को अनुवंशिक पदार्थ माना गया है।
  • DNA एक न्यूक्लिक अम्ल है। सजीवों में दो प्रकार के न्यूक्लिक अम्ल पाये जाते है - DNA तथा RNA अधिकांश जीवों में अनुवशिक पदार्थ DNA ही होता है परंतु पृथ्वी पर का पहला अनुवंशिक पदार्थ RNA के रूप में पाये गये हैं।

न्यूक्लिक अम्ल (Nucleic Acid)

  • न्यूक्लिक अम्ल प्रत्येक जीवित कोशिका में पाया जाता है। इसकी प्रकृति अम्लीय तथा केंद्रक (Nucleus) में मिलने के कारण इसे न्यूक्लिक अम्ल कहा गया है। यह दो प्रकार का होता है - DNA (Deoxyribonucleic Acid) तथा RNA (Ribonucleic Acid)।
  • न्यूक्लिक अम्ल, न्यूक्लियोटाइड्स (Nucleotides) मोनोमर इकाई का बना एक बहुलक (Polynur) है जिसे पॉलिन्यूक्लियोटाइड भी कहा जाता है। न्यूक्लियोटाइड तीन प्रकार के यौगिक के बने होते है-
    1. Sugar ( शर्करा ) : न्यूक्लिक अम्ल ( या न्यूक्लियोटाइड्स) में 5 कार्बन परमाणु का बना राइबोस या डीऑक्सीराइबोस पाई जाती है। डीऑक्सीराइबोस (C5H10O4) DNA के निर्माण में भाग लेते हैं तथा राइबोस (C5H10O5) RNA के निर्माण में भाग लेते है।
    2. फॉस्फेट अम्ल : फॉस्फेरिक अम्ल (H3PO4) के उपस्थित के कारण ही न्यूक्लिक अम्ल अम्लीय प्रकृति के होते है।
    3. नाइट्रोजन क्षार (Nitrogen Base) : नाइट्रोजन क्षार दो प्रकार के होते हैं- प्यूरीन्स तथा पीरिमिडीन। प्यूरीन्स के अंतर्गत एडेनीन तथा ग्वानीन तथा पीरिमिडीन के अंतर्गत थाइमीन तथा साइटोसीन आते हैं। DNA में चारों नाइट्रोजन क्षार (एडेनीन, ग्वानीन, थाइमीन, साइटोसीन) पाये जाते हैं परंतु RNA में थाइमीन नहीं पाये जाते हैं। थाइमीन के स्थान पर यूरेसिल पाये जाते हैं।
  • एक फॉस्फेट, एक सुगर और एक क्षार मिलकर एक न्यूक्लियोटाइड (Nucleotides) बनते हैं। इस तरह चार प्रकार के नाइट्रोजन क्षार से चार प्रकार के न्यूक्लियोटाइड्स बनते है । न्यक्लियोटाइड्स के हजारों अणु आपस में जुटकर एक - एक श्रृंखला बनाते है। ऐसी ही दो श्रृंखला आपस में सर्पिल रूप से जुटकर DNA अणु का निर्माण करते हैं लेकिन RNA का निर्माण एक ही श्रृंखला के द्वारा होता है।
  • DNA Double halix Model 
    • सर्वप्रथम विलकिन्स ने एक्स किरण विवर्तन के आधार पर DNA अणु के संरचना का अध्ययन किया था। इसके बाद खानिन तथा साइटोसीन की मात्रा बराबर चारगैफ ने यह पता लगाया कि DNA में एडीनिन एवं थाइमीन की मात्रा होती है।
    • विलकिन्स तथा चारगैफ के खोज को आधार मानकर कैम्ब्रिज विश्लवविद्यया के दो वैज्ञानिक जेम्स वाटसन तथा फ्रान्सिस क्रिक ने 1953 में DNA अणु की रचना का एक सफल मॉडल प्रस्तुत किया और यह मॉडल Double halix Model कहलाया।
    • DNA के Double halix मॉडल में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती है-
      1. DNA अणु में दो पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखला होती है जो सर्पिल रूप से कुंडलित (Coiled) होती है।
      2. DNA के प्रत्येक स्ट्रैंड में बाहर की ओर फॉस्फेट तथा डीऑक्सीराइबोस शर्करा पाये जाते हैं।
      3. DNA के स्ट्रैंड में भीतर की ओर नाइट्रोजनी बेस प्यूरीन तथा पीरिमीडीन डॉऑक्सीराइबोस शर्करा से जुड़े होते हैं।
      4. DNA के एक स्टैंड का प्यूरिन हेमशा दूसरी स्ट्रैंड के पीरिमिडीन से हाइड्रोजन बंधन द्वारा जुड़ा रहता है। ऐडीनीन, थाइमीन से दो हाइड्रोजन बंधन के द्वारा जबकि साइटोसीन ग्वानीन से तीन हाइड्रोजन बंधन से जुड़े रहते है।
      5. DNA कुंडली का एक पूर्ण घुमाव 34A° में पूरा होता है तथा इसमें 10 न्यूक्लियोटाइड्स के जोड़े होते हैं यानि प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड्स के बीच 3.4A° की दूरी रहती है।
      6. DNA के दोनों स्ट्रैंडों की बीच की दूरी 20A° होता है या DNA का व्यास 20A° होता है।
  • DNA के कार्य
    1. DNA अनुवंशिक गुणों का भंडार है। यह जीन के रूप में पैतृक गुणों का संचरण पीढ़ी-दर-पीढ़ी करते है ।
    2. DNA प्रोटीन संश्लेषण का मुख्य संचालक है क्योंकि प्रोटीन संश्लेषण क्रिया में प्रयुक्त होने वाले RNA तथा एंजाइम का निर्माण DNA से ही होता है। DNA से RNA के निर्माण की क्रिया ट्रांसक्रिप्सन तथा RNA से प्रोटीन निर्माण को ट्रांसलेशन कहा जाता है। 
    3. DNA में उत्परिवर्तन लाकर पौधों की उन्नत रोग-प्रतिरोधी एवं अधिक उपज देने वाली जातियाँ उत्पन्न की गई है।
    4. Genetic Engineering के द्वारा DNA के खंड को एक प्राणि की कोशिका से अलग कर किसी दूसरे प्राणि की कोशिका में प्रतिरोपित करने से अनुवंशिक रोगों के निदान में सफलता मिली है।
  • DNA तथा RNA में अंतर
    1. DNA मुख्यत: केन्द्रक के क्रोमोसोम में पाया जाता है, इसके अतिरिक्त यह माइटोकॉण्ड्रिया तथा लवक में भी पाया जाता है जबकि RNA कोशिकाद्रव्य तथा केंद्रिका में पाया जाता है।
    2. DNA का आकार दोहरी कुंडली (Double halix ) वाला होता है जबकि RNA का आकार एकहरी कुंडली (Single halix) वाला होता है।
    3. DNA में डिऑक्सीराइबोस शर्करा रहता है जबकि RNA मैं राइबोस शर्करा पाया जाता है।
    4. DNA में थाइमीन नाइट्रोजन क्षार पाया जाता है जबकि RNA में में थाइमीन के जगह यूरेसिल नाइट्रोजन क्षार पाया जाता है।
    5. DNA केवल एक प्रकार का होता है जबकि RNA तीन प्रकार का होता है।
    6. DNA सदैव ही अनुवंशिक सूचना देता है जबकि RNA कभी-कभी ही अनुवंशिक सूचना देता है। RNA मुख्यत: प्रोटीन संश्लेषण करता है।
    7. DNA का आण्विक भार RNA के तुलना में बहुत अधिक होता है।
  • RNA तीन प्रकार के होते हैं जो निम्नलिखित है-
    1. mRNA (Mesenger RNA ) : यह RNA कोशिका द्रव्य में राइबोसोम से जुड़ा रहता हैं। यह RNA, DNA के अनुवंशिक सूचनाओं को ढ़ोता है, यही कारण है कि इसे Messenger RNA (mRNA) कहते है। कोशिका में मौजूद कुल RNA का यह 5-10 प्रतिशत होता है।
    2. tRNA (Transfer RNA ) : यह RNA प्रोटीन संश्लेषण के समय विभिन्न प्रकार के अमीनों अम्ल को कोशिकाद्रव्य से राइबोसोम तक स्थानांतरित (Transfer) करता है। एक प्रकार का tRNA एक ही प्रकार के अमीनों अम्ल का स्थानांतरण कर सकता है इसलिए किसी भी कोशिका में अमीनों अम्ल की जो संख्या होती है वही tRNA की भी होती है। कोशिका में स्थित कुल RNA का यह 10 से 15 प्रतिशत होता है।
    3. rRNA (Ribosomal RNA ) : यह RNA राइबोसोम का निर्माण में भाग लेता है। यह कोशिका में स्थित कुल RNA का 80 प्रतिशत होता है। तीनों RNA में यह सबसे स्थिर प्रकृति का तथा सर्वाधिक समय तक क्रियाशील रहता है।

जीन (Gene)

  • सर्वप्रथम 1909 में जोहान्सन ने जीन शब्द का प्रयोग किया था उन्होंने मेंडल के अनुवंशिक 'फैक्टर' को जीन कहा। टी. एच. बोवेरी तथा डल्लू. एस. सटन के प्रयोग से सर्वप्रथम यह प्रामणित हुआ कि जीन गुणसूत्र के अंश है और यह गुणसूत्र के निश्चित स्थान (Chromatids ) पर पाये जाते हैं।
  • शुरूआत में जीन को एक ऐसा कारक माना जाता था जो सजीवों के एक विशेष लक्षण की उत्पत्ति के लिए उत्तरदायी होता है। जीन की आधुनिक परिभाषा है- "जीन DNA की एक ऐसी विशेष लंबाई है जो एक विशेष प्रकार के RNA का निर्माण करती है। " .
  • जीन अनुवंशिकता की इकाई है। जीन अपना कार्य एंजाइम के माध्यम से करता है। बीडल तथा टेटम के 'एक जीन - एक इंजाइम' सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक जीन एक विशिष्ट इंजाइम का उत्पादन करता है जो विशिष्ट लक्षणों को प्रकट करते हैं।
  • जीन क्रोमोजोम में रैखिक क्रम में एक सिरे से दूसरे सिरे तक व्यवस्थित होते हैं एवं सभी जीवों में वंशागत लक्षणों के निर्धार है। चूँकि गुणों (लक्षणों) की संख्या हजारों में है, लेकिन गुणसूत्रों की संख्या सिर्फ कुछ जोड़े है, इसलिए प्रत्येक गुणसूत्र पर औसतन तीन हजार जीन होते हैं। किसी जीव में एक लक्षण के प्रकट होने के लिए एक ही जीन उत्तरदायी हो सकता है परंतु सामान्यत: बहुत से जीनों की संयुक्त क्रिया से ही कई लक्षण प्रकट होते हैं।
  • जिस तरह गुणसूत्र जोड़े में रहते हैं उसी तरह जीन भी जोड़े में रहते हैं। प्रत्येक गुणसूत्र में न सिर्फ जीनों के प्रकार निश्चित होते हैं बल्कि उनकी सजावट भी निश्चित होती है। किसी भी प्राणी के गुणसूत्र के एक सेट में पाये जाने वाले जीनों के समूह को जीनोम (Genome ) कहा है तथा प्रत्येक गुण पर बसे जीनों के समूह संलग्न समूह (linkag group) कहलाते हैं। मनुष्य में 23 लिंकेज ग्रुप पाये जाते हैं i
  • एक कोशिका में उपस्थित कुल जीनों में 90 प्रतिशत निष्क्रिय रहते हैं, केवल 10 प्रतिशत जीन ही सक्रिय रहते हैं, जीवों की वृद्धि के अनुसार कुछ जीन सक्रिय होते हैं तथा कुछ निष्क्रिय हो जाते हैं। जैसे- बीजों के अंकुरण के बाद अंकुरण को प्रभावित करने वाले जीन निष्क्रिय हो जाऐंगे तथा पोधों की लंबाई बढ़ाने वाले जीन सक्रिय हो जाऐंगे।
  • एस. बेंजर नामक वैज्ञानिक ने 1962 में जीन की परिभाषा सिस्ट्रॉन (Cistron), रिकॉन (recon) तथा म्यूटॉन (Muton) के रूप में दिया। जीन की क्रियात्मक इकाई जो प्रोटीन संश्लेषण को निर्देशित करती है, उसे सिस्ट्रॉन, जो इकाई पुन: संयोजन (recombination) को निर्देशित करती है, उसे रिकॉन तथा जो इकाई उत्परिवर्तन को निर्देशित करती है उसे म्यूटॉन कहते हैं।

विभिन्नताएँ (Variation)

  • एक ही प्रजाति से उत्पन्न विभिन्न संतानों में पाये जाने वाले सभी गुण समान नहीं होते हैं, उनमें कुछ अंतर अवश्य रहता है इसे ही विभिन्नता कहते हैं।
  • विभिन्नता जीन के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुँचते है। विभिन्नता मुख्य रूप से लैंगिक जनन (Sexual Reproduction) से उत्पन्न संतान में ही पाये जाते हैं। अलैंगिक जनन में विभिन्नता का प्रायः अभाव रहता है। 
  • विभिन्नताएँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचरित होती है और वंशजों में इसका संचयन होते रहता है एवं कई पीढ़ीयों के बाद ढ़ेर सारी विभिन्नताएँ इकट्ठा होकर नई जातियाँ बनाती है। किसी भी जाति के लिए विविधता का सबसे बड़ा लाभ होता है कि वह परिवर्तनशील वतावरण में उसके जीवित रहने की संभावना बढ़ा देता है।
  • विभिन्नताएँ दो प्रकार के होते हैं-
    1. जननिक विभिन्नता (Germinal Variation) : यह विभिन्नता क्रोमोसोम पर जीन की व्यवस्था में परिवर्तन तथा DNA के निर्माण में संलग्न नाइट्रोजन क्षार के अनुक्रम में परिवर्तन के कारण उत्पन्न होते हैं। जननिक विभिन्नता को अनुवंशिक विभिन्नता भी कहते हैं।
    2. कायिक विभिन्नता (Somatic Variation) : वातावरणीय दशाओं, भोजन की उपलब्धता, आपसी व्यवहार के कारण उपार्जित किये जाने वाले विभिन्नता कायिक विभिन्नता कहलाता है। कायिक विभिन्नता का संचयरण पीढ़ी-दर-पीढ़ी नहीं होता है और न ही जैव विकास में इसका महत्व है।

आनुवंशिकी (Genetics)

  • माता-पिता के गुण जीन के माध्यम से उनके संतानों में पहुँचता है ऐसे गुण को अनुवंशिक गुण कहते हैं। अनुवंशिक गुण का पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचरित होना अनुवंशिकता (Heredity) कहलाता है।
  • जीव विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत अनुवंशिकता तथा विभिन्नता का अध्ययन किया जाता है, उसे नुकी (Genetics) कहते हैं।
  • अनुवंशिकता का अध्ययन सर्वप्रथम ग्रेगर जोहान मेंडल ने किया था। मँडल आस्ट्रिया में ब्रुन नामक स्थान पर एक मठ के पादरी थे लेकिन उन्हें बागवानी में बहुत रूचि थी ।
  • मेंडल ने अपने बागवानी में 1857 ई. से 1865 ई. तक मटर के पोधों पर अनेक प्रयोग किये तथा अपने प्रयोग के आधार पर सांख्यिकीय आँकड़े तैयार किये। इन आँकड़ों को पेंडल ने 1865 में " नैचुरल हिस्टोरिकल सोसाइटी ऑफ वून" के वैठक प्रस्तुत किया, जिसके बाद 1866 में इसी सोसाइटी के पत्रिका में मंडल का अनुसंधान प्रकाशित हुआ ।
  • मेंडल के अनुसंधान प्रकाशित होने के बाद भी उस समय के वैज्ञानिकों ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया क्योंकि उस समय वैज्ञानिकों का ध्यान चार्ल्स डार्विन के सिद्धान्तों के अध्ययन में व्यस्त था। 1884 ई. में मंडल का देहांत हो गया और उन्हें अपन जीवनकाल में कोई उपलब्धि हासिल नहीं हो पाई।
  • मेंडल के अनुसंधान प्रकाशित होने के 34 वर्ष बाद 1900 में तीन वैज्ञानिक ह्यूगो डि ब्रीज (हॉलैंड), कार्ल कोरन्स (जर्मनी) तथा इरिक वॉन शेरमाक (आस्ट्रिया) ने मेंडल के अनुसंधान की पुष्टि की तथा उनके अनुसंधान को "मंडल के वंशागत के नियम" के रूप में मान्यता दिलाई। इसके बाद मंडल 'अनुवंशिकता के पिता' या 'अनुवंशिकी के जनक' कहलाये।
  • मेंडल ने अपना प्रयोग मटर के पौधा पर किया था। मंडल ने मटर के पोधों के उन लक्षणों पर विचार किया जो सर्वथा विपरित गुण वाले थे। मेंडल ने सात जोड़ो विपरित लक्षण वाले पौधों के बीच कृत्रिम परागण (Cross pollination) कराया और उनसे उत्पन्न नये पौधों का अध्ययन किया। मंडल द्वारा मटर के पौधों के जिन सात जोड़े विपरित लक्षणों का अध्ययन किया गया वे निम्न है-
    1. तने की ऊँचाई - लंबा / बौना
    2. बीज का रंग - पीला / हरा
    3. बीज का आकार - गोला / झुर्रीदार
    4. फली का रंग - हरा / पीला
    5. फली का आकार - फूला / सिकुड़ा
    6. फूल का रंग - बैंगनी / सफेद
    7. फूल की स्थिति - अक्षीय (Axiliary) / शीर्षस्थ (terminal)
  • मेंडल अपने प्रयोग में सफल रहे। उनके ही किये गये का यह परिणाम है कि जीवविज्ञान क्षेत्र में अनुवंशिकी (Genetics) विषय का प्रार्दुभाव हुआ । मेंडल को अपने प्रयोगों में सफलता मिलने में निम्नलिखित कारण हैं-
    1. वनस्पति जगत में पाये जाने वाले लाखों पौधों में मंडल ने केवल मटर पौधों को ही चुना क्योंकि मटर के पौधों में अनेक प्रकार के विपरित गुण होते हैं।
    2. मटर के पौधे छोटे होने के कारण प्रयोग करने में सुविधाजनक होते है।
    3. मटर का जीवन चक्र कुछ ही महीनों में पूरा हो जाता है जिसके कारण मटर के पैतृक एवं संतति पीढ़ीयों के गुणों का अध्ययन बहुत कम समय में किया जा सकता है।
    4. मटर के पौधों में स्वपरागण होता हैं लेकिन बड़ी आसानी से उसमें कृत्रिम परागण कराया जा सकता है।
    5. मटर के पौधों में सात जोडे गुणसूत्र पाये जाते हैं और संयोग से मंडल द्वारा चयनित गुण अलग-अलग गुणसूत्र पर अवस्थित थे।
    6. मेंडल ने अपने अध्ययन के लिए एक समय में केवल एक ही गुण को लिया तथा अपने अध्ययन में सांख्यिकी का प्रयोग किया।

एकसंकर क्रॉस (Monohybird Cross)

  • जब दो पौधों के एक इकाई लक्षण के आधार पर संकरण (hybridization) कराया जाता है तो उसे एकसंकर क्रॉस कहा जाता है। एकसंकर क्रॉस के तहत मेंडल ने लम्बे तथा बौने मटर के पौधों के बीच संकरण (या प्रजनन) करवाया। इन दोनों विपरित गुण वाले पौधे (लम्बे तथा बौने) को जनक पीढ़ी (Parental genration) कहा गया तथा इसे P अक्षर से सूचित किया जाता है।
  • जनक पौधे के संकरण से जो बीज प्राप्त हुए उससे उत्पन्न पौधों को प्रथम पीढ़ी या F1 पीढ़ी कहा जाता है। F1 पीढ़ी के सभी पौधा लम्बा हुआ अर्थात् जनक पीढ़ी का एक लक्षण (बौना) F1 पीढ़ी के पौधों में प्रकट नहीं हुआ।
  • F1 पीढ़ी के लम्बे पौधों के बीच संकरण कराने पर मेंडल को F2 पीढ़ी या दूसरी पीढ़ी में लंबे तथा बौने दोनों पौधे विकसित हुए। F2 पीढ़ी के कुल पौधों में लंबे - तथा बौने का अनुपात 3:1 पाया गया । F1 पीढ़ी में जनक पौधे का जो लक्षण लुप्त (बौनापन) हो गया था वह दूसरी पीढ़ी में पुनः प्रकट हो गया। अर्थात् बौनापन लक्षण F1पीढ़ी में लुप्त नहीं हुआ था बल्कि वह लंबे के समाने अप्रभावी हो गया था। 
  • यदि F2 पीढ़ी के पौधे से तीसरी पीढ़ी या F3 प्राप्त किया जाए तो F2 पीढ़ी के लम्बे पौधे से सदैव लम्बे तथा बौने पौधे से सदैव बौने ही पौधे प्राप्त होते हैं।
  • मेंडल के एकसंकर क्रॉस का लक्षण प्ररूपी अनुपात (Phenotype ration ) 3 : 1 है तथा जीन प्ररूपी अनुपात (Genotype ratio) 1 : 2 : 1 है।
  • जीन प्ररूप (Genotpe) किसी जीव की अनुवंशिक बनावट है। जीन प्रारूप को हमेशा अक्षरों के जोड़ा में प्रदर्शित किया जाता है जैसे- TT, Tt लंबे पौधे का जीन प्ररूप है वही 11 बौने पौधे का जीन प्ररूप है। T तथा t एक ही जीन के अलग-अलग रूप है। एक ही जीन के अलग-अलग रूपों को ऐलील (Allele) कहा जाता है। 
  • जीवों के ऐसे लक्षण जो स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं जैसे- लम्बा, बौना उसे लक्षण प्ररूप (Phenotype) कहा है।
  • मेंडल ने अपने एकसंकर क्रॉस के आधार पर निम्नलिखित नियम प्रतिपादित किये इन नियम को अनुवंशिकता का नियम भी कहते हैं।
  1. इकाई लक्षणों का वंशागति (Law of Unit Characters)
    • किसी जीव में अनेक लक्षण होते है। प्रत्येक लक्षण स्वतंत्र होता है तथा दूसरे पर आधारित नहीं होता है। एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में यह लक्षण स्वतंत्र रूप से संचरण करता है ।
    • हर एक ऐसे लक्षण को इकाई लक्षण कहा जाता है। यह लक्षण जीन द्वारा निर्धारित होते हैं। मेंडल के प्रयोग में किसी पौधे का लंबा होना या बौना होना इकाई लक्षण है।
    • मेंडल ने बताया कि प्रत्येक लक्षण कारको (Factor ) के एक जोड़ी द्वारा निर्धारित होता है। मटर के शुद्ध लंबे लक्षण हेतु कारकों की जोड़ी TT है तथा बौने लक्षण की करकों की जोड़ी tt है। इसी कारक (Factors) को जोहान्सन ने सर्वप्रथम जीन की संज्ञा दी अर्थात् जीन जोड़ी में कार्य करते है। किसी जीव के प्रत्येक लक्षण के लिए जीनों की एक जोड़ी होती है।
  2. प्रभाविता का नियम (Law of Dominance)
    • इस नियम के अनुसार जब दो विपरित अलील (Tt) किसी जीवधारी में एक साथ आते हैं तब उनमें से केवल एक ही बाह्य रूप से दिखाई देता दूसरा दबा हुआ रहता है। दिखाई देने वाले लक्षण को प्रभावी लक्षण तथा नहीं दिखने वाले लक्षण को अप्रभावी लक्षण कहा जाता है।
    • मेंडल ने शुद्ध लंबा (TT) तथा शुद्ध बौना (tt) के बीच संकरण किया तो F1 में सभी पौधे लंबे थे परंतु उनमें बौनापन जीन मौजूद थे। F1 का जीन प्रारूप Tt था परंतु लंबा (T), बौना (t) पर प्रभावी था।
  3. पृथक्करण का नियम (Law of Segregation)
    • इस नियम के अनुसार अप्रभावी लक्षण, प्रभावी लक्षण के सामने प्रकट नहीं होते हैं परंतु वह प्रभावी लक्षण के साथ रहते हुए भी यथावत् शुद्ध रहता है। अतः जब अगली पीढ़ी में अप्रभावी लक्षण के कारक या जीन प्रभावी लक्षण के कारक से अलग होते है तो वह अपने लक्षण को अभिव्यक्त कर देता है।
    • पृथक्करण के नियम को युग्मकों के शुद्धता का नियम (Law of Purity of Gamits) भी कहा जाता है।

द्विसंकर क्रॉस (Dihybrid Cross)

  • एकसंकर क्रॉस के बाद मेंडल ने अपने प्रयोग में दो विपरित जोड़े के लक्षणों की वंशागति का अध्ययन किया जिसे द्विसंकर क्रॉस कहा जाता है।
  • द्विसंकर क्रॉस में मेंडल ने मटर के ऐसे पौधे का चयन किया जिसमें एक प्रकार के पौधे के बीज पीले तथा गोलाकार थे तथा दूसरे प्रकार के पौधे के बीच हरा तथा झुर्रीदार थे। इन दोनों पौधे के आपस में प्रजनन के पश्चात् F1 पीढ़ी में जितने भी पौधे हुए उन सभी पौधे के बीज पीले तथा गोलाकार हुए। F1 पीढ़ी में पीला तथा गोलाकार लक्षण प्रभावी हुआ वही हरा तथा झुर्रीदार अप्रभावी ।
  • इसके बाद F1 पीढ़ी के पौधे के बीच जब प्रजनन कराया गया तब F2 पीढ़ी में चार प्रकार के पौधे प्राप्त हुए ये थे- पीला तथा गोलाकार, हरा तथा गोलाकार, पीला तथा झुर्रीदार, और हरा तथा झुर्रीदार। इन चार प्रकार के पोधों का अनुपात 9: 3: 3: 1 पाया गया।
  • मेंडल के द्विसंकर क्रॉस का लक्षणप्ररूपी अनुपात (Phenotype ratio) 9: 3 : 3 : 1 रहा तथा जीन प्रारूपी अनुपात 1: 2:2:4:1: 2:1:2 : 1 रहा।
  • मेंडल ने द्विसंकर क्रॉस के प्रयोग के आधार पर अनुवंशिकता से संबंधित 'स्वतंत्र विन्यास का नियम' दिया।
  • स्वतंत्र विन्यास का नियम (Law of Independent Assortment) : इस नियम के अनुसार एक अनुत्रंशिक लक्षण का प्रभावी गुण दूसरे के प्रभावी गुण से ही नहीं बल्कि अप्रभावी गुण से भी मिल सकता है। ठीक इसी प्रकार अप्रभावी गुण दूसरे के अप्रभावी गुण से ही नहीं बल्कि प्रभावी गुण से भी मिल सकता है।
  • स्वतंत्र विन्यास नियम के तहत ही प्रभावी लक्षण 'पीला' अप्रभावी लक्षण 'झुर्रीदार' के साथ मिल गया वहीं अप्रभावी लक्षण 'हरा' प्रभावी लक्षण गोलाकार के साथ मिल गया और F2 पीढ़ी में चार प्रकार के बीच प्राप्त हुए।
  • मेंडल के सभी नियम या मेंडल के अनुवंशिकता का नियम न सिर्फ मटर के पौधे पर लागू होते हैं बल्कि यह पौधे तथा जन्तु सभी पर लागू होते हैं।

मेंडल के नियम के अपवाद (Exceptions of Mendel's Law)

  • मेंडल ने अनुवशिकता से संबंधित जो नियम प्रतिपादित किये हैं, वह नियम कई जगहों पर लागू नहीं होते हैं। मेंडल नियम का अपवाद निम्नलिखित है-
    1. अपूर्ण प्रभाविता (Incomplete Dominance) :
      • मेंडल का प्रभाविता का नियम जहाँ नहीं लागू होता है, उसे अपूर्ण प्रभाविता कहा जाता है। अपूर्ण प्रभाविता में विपरित लक्षण के जोड़े में एक लक्षण दूसरे लक्षण के ऊपर अपूर्ण रूप से प्रभाव दिखाता है।
      • गुल अब्बास (मिराबिलिस जलापा) के लाल फूल और सफेद पूल वाले पौधे का संकरण कराने पर F1 पीढ़ी में लाल रंग, सफेद रंग पर पूर्ण रूप से प्रभावी नहीं होता है बल्कि F1 पीढ़ी के पौधे का फूल लाल और सफेद का मिश्रण या गुलाबी होता है।
    2. सहप्रभाविता (Codominance) :
      • जब किसी जीव में ऐलील के जोड़े के बीच का संबंध प्रभावी तथा अप्रभावी वाला न हो बल्कि F1 पीढ़ी में दोनों एलील का प्रभाव एक साथ पड़ता तो ऐसी स्थिति को सहप्रभाविता कहा जाता है ।
      • एक ही जीन के विभिन्न रूपों को एलील कहा जाता है। एलील के जोड़े जैसे Tt में T तथा t एक ही जीन के विभिन्न रूप है तथा T तथा t एक दूसरे के एलील है।
      • पशुओं में लाल त्वचा वाले मवेशी एवं सफेद त्वचा वाले मवेशी के बीच क्रॉस कराने पर F1 पीढ़ी में मवेशी का रंग चितकबरा (Roan) हो जाता है। मवेशी चितकबरा होना सहप्रभाविता को दर्शाता है।
      • सहप्रभाविता, अपूर्ण प्रभाविता से इस है कि सहप्रभाविता में F1 पीढ़ी में जनकों का लक्षण का स्वतंत्र समावेश रहता है जबकि अपूर्ण प्रभाविता में F पीढ़ी में जनकों के लक्षणों का प्रभाव मिश्रीत रूप से पड़ता है।
    3. बहुविकल्पता (Multiple allelism) :
      • मेंडल के सिद्धान्त के अनुसार गुणों या लक्षणों को निर्धारित करने वाले जीन्स दो एलीलोमॉर्फिक रूप (जैसे ऊँचाई हेतु T तथा t; रंग हेतु Y तथा y आकार हेतु R तथा r) में पाये जाते हैं परन्तु कई ऐसे लक्षणों का पता लग चुका है, जिन हेतु दो या ज्यादा ऐलील जिम्मवार है।
      • जब किसी खास एक लक्षण हेतु दो से ज्यादा वैकल्पिक ऐलील जिम्मेवार हो तो ऐसे ऐलील को बहुविकल्पीय ऐलील (Multiple allele) कहते हैं तथा इस घटना को बहुविकल्पता कहते हैं।
      • मानव का रक्त-वर्ग (Blood-group) बहुविकल्पता को दर्शाता है। मानव के चार रूधिर वर्ग (AB, A, B, O) का निर्धारण तीन विकल्पी ऐलील ( IA, IB, IO ) द्वारा होता है। मानव के रूधिर-वर्ग में तीन विकल्पी ऐलील में दो ही रहता है जिनसे उसका रूधिर वर्ग का निर्धारण होता है।
      • खरगोश के शरीर के रंग के लिए चार अथवा इससे अधिक ऐलील पाये जाते हैं। ड्रोसोफेलिया के आँख के रंग के लिए 15 ऐलील होते हैं।
    4. सहलग्नता (Linkage):
      • हलग्नता मेंडल "स्वतंत्र विन्यास के नियम" का अपवाद है। मैडल के इस नियम के अनुसार गुग्मक (Gamets) वितरण के समय ऐलील स्वतंत्र रूप से अलग हो जाते हैं।
      • एक ही क्रोमोजोम में स्थित में चीन अपना ऐलील जो अर्द्धसूत्री विभाजन के समय एक-दूसरे से बिना अलग हुए उसी स्थिति में पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होते रहते हैं, इस घटना को सहलग्नता कहते हैं तथा इस जीन को सहलान जीन कहते हैं।
      • थॉमस हंट मॉर्गन ने ड्रोसोफिला पर शोधकार्य के समय सहलानता की खोज की थी जिस हेतु 1933 में उसे नोबेल पुरस्कार दिया गया। इसेक बाद जॉन हचिन्सन ने मकई के पौधों में सफलतापूर्वक सहलग्नता को दर्शाया।
      • सहलग्नता का मुख्य प्रभाव यह पड़ता है कि उत्तरोत्तर पीढ़ी में पैतृक लक्षणों की संख्या अनुमानित संख्या से बहुत अधिक होती है तथा संकर लक्षण की संख्या बहुत कम हो जाती है।
  • विनिमय (Crossing over): क्रॉसिंग ओवर अर्द्धसूत्री कोशिका विभाजन की महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है । और यह प्रक्रिया अर्द्धसूत्री विभाजन के प्रोफेज 1 की पैकीटीन अवस्था में होता है। क्रॉसिंग ओवर वह प्रक्रिया है जिसमें एक क्रोमोसोम पर स्थित जीनों का एक समूह समजात क्रोमोजोम (Homlogous Chromosome) पर स्थित समान जीनों के समूह से स्थान परिवर्तित करता है।
  • नई जातियों के विकास में क्रॉसिंग ओवर का बहुत महत्व है क्योंकि इसी प्रक्रिया के चलते माता-पिता के लक्षण का विनिमय होता है जिसके फलस्वरूप अच्छे गुणों वाले संतान उत्पन्न होते हैं। क्रॉसिंग ओवर के कारण ही लैंगिक जनन करने वाले जीवों में विभिन्नताएँ उत्पन्न होती है।
  • क्रॉसिंग ओवर शब्द का नामकरण 1912 में मोर्गन तथा कैसल के द्वारा किया गया।

मानव में लिंग निर्धारण (Sex Determination in Human)

  • मानव में लिंग निर्धारण की प्रक्रिया क्रोमोसोम के द्वारा होता है। मनुष्य में 23 जोड़ा क्रोमोसोम पाया जाता है, जिनमें 22 जोड़ा के द्वारा होता है क्रोमोसोम एक ही प्रकार के होते हैं, जिसे ऑटोसोम (Autosome) कहा जाता है। 23वाँ जोड़ा क्रोमोसोम लिंग क्रोमोसोम कहलाता है यह दो प्रकार के होते हैं X तथा Y
  • हेनकिंग ने 1898 में तथा इसके बाद मैकक्लंग ने 1904 में लिंग निर्धारण करने वाले X क्रोमोसोम का पता लगाया था। इसके बाद 1906 में लिंग निर्धारण करने वाले Y क्रोमोसोम का पता मॉर्गन ने लगाया। X क्रोमोसोम लंबा तथा छड़ आकार का होता है जबकि Y क्रोमोसोम बहुत छोटे आकार का होता है।
  • मानव नर (male) में X तथा Y दोनों लिंग गुणसूत्र पाये जाते है जबकि मादा (Female) में Y गुणसूत्र का अभाव रहता है। इसके स्थान पर एक और X गुणसूत्र ही पाया जाता है। नर का 23वाँ जोड़ा XY होता है तथा मादा में 23वाँ जोड़ा XX होता है। इसी X तथा Y क्रोमोसोम द्वारा मानव में लिंग का निर्धारण होता है।
  • युग्मक ( Gamets) निर्माण होते समय X तथा Y क्रोमोसोम अलग-अलग क्रोमोसोम में चले जाते है। नर युग्मक (sperm) दो प्रकार के अनुवंशिक संरचना वाले होते हैं। आधे शुक्राणु (sperm) की अनुवंशिक संरचना 22 + X तथा आधे की 22 + Y होती है। मादा युग्मक (Ova) की अनुवंशिक संरचना एक ही प्रकार की होती है- 22 + X
  • निषेचन के दौरान अगर अंडाणु (Ova ) X गुणसूत्र वाले शुक्राणु से निषेचित होता है तो मादा संतति (Female offespring) तथा Y गुणसूत्र वाले शुक्राणु से निषेचित होता है तो नर संतति जन्म लेता है। लिंग निर्धारण की यह प्रक्रिया को हेटेरोगैमेसिस का सिद्धान्त कहते हैं।
  • इस तरह पुरूष (Male) के शुक्राणु की अनुवंशिक संरचना ही तय करता है कि होनेवाला बच्चा लड़का होगा या लड़की। समाज में यह गलत धारणा बैठ गई है कि निर्धारण में मादा (Female) का दोष है जबकि यह नर (Male) के शुक्राणु (sperm) पर निर्भर है।

उत्परिवर्त्तन (Mutation)

  • उत्परिवर्तन किसी भी जीव में अचानक होनेवाला विशाल असतत (Random) भिन्नता है जो वंशागत होता है तथा उत्परिवर्त्तन को प्रदर्शित करने वाला संतान उत्परिवर्त्ती (Mutant) कहलाता है।
  • डच वैज्ञानिक ह्यूगो डी ब्रीज ने 1901 में इवनिंग प्राइमरोज के पौधे पर प्रयोग करके उत्परिवर्तन का पता लगाया था।
  • उत्परिवर्तन कायिक (Somatic) तथा जनन दोनों कोशिका में होता है। कायिक कोशिका में होने वाला उत्परिवर्त्तन वंशानुगत नहीं होता है जबकि जनन कोशिका में होनेवाला उत्परिवर्तन पीढ़ी-दर-पीढ़ी वरित होते रहता है।
  • आकार के आधार पर उत्परिवर्तन दो प्रकार के होते हैं-
    1. वृहद् उत्परिवर्त्तन (Macromutation) : वे सभी विभिन्नताएँ जो फीनोटाइप लक्षण में दिखाई देते हैं वृहद् उत्परिवर्तन कहलाते हैं। वृहद् उत्परिवर्तन रवर्तन क्रोमोसोम की संख्या तथा संरचना में परिवर्तन के कारण उत्पन्न होते हैं।
    2. सूक्ष्म उत्परिवर्त्तन (Micromutation) : ऐसी विभिन्नताएँ जो जीनोटाइप में होती है उसे सूक्ष्म उत्परिवर्तन कहते हैं। सूक्ष्म उत्परिवर्तन DNA में हुए परिवर्तनों के कारण उत्पन्न होती है ।
  • उत्परिवर्त्तन प्रायः हानिकारक तथा अप्रभावी होता है। वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार केवल 0.1 प्रतिशत उत्परिवर्तन ही लाभकारी सिद्ध होता है। हालाँकि उत्परिवर्तन का उपयोग कर कई अच्छे किस्म का पादप तैयार किये गये है।

आनुवंशिक विकार (Genetic Disorders)

  • जीवो का हर लक्षण क्रोमोसोम में अवस्थित जीन द्वारा निर्धारित होते है। सामान्यत: क्रोमोसाम तथा उसमें अवस्थित जीन बिना किसी परिवर्तन के एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में स्थानांतरित होते रहते हैं। क्रोमोसोम के स्तर पर या जीन के स्तर पर होनेवाले उत्परिवर्त्तन से कई प्रकार के अनुवंशिक विकार उत्पन्न हो जाते हैं जो एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी तक चलती रहती है। अनुवंशिक विकार दो प्रकार के होते हैं-
    1. मेंडलीय विकार (Meridelian Disorders) :
      • ऐसे अनुवंशिक विकार (या रोग) जो मुख्यत: एकल जीन के रूपांतरण (उत्परिवर्तन) से निर्धारित होते हैं, उसे मंडलीय विकार कहा जाता है । मेंडलीय विकार प्रभावी या अप्रभावी भी हो सकता है। प्रमुख मंडलीय विकार निम्न है-
        1. हीमोफिलिया (Haemophilia) :
          • इस रोग में मनुष्यों में रूधिर जमने की क्षमता नहीं के बराबर होती है क्योंकि रूधिर को जमाने वाले प्रोटीन का संश्लेषण इस रोग से ग्रसित लोगों में नहीं हो पाता है।
          • हीमोफिलिया लक्षण हेतु जिम्मेवार जीन X क्रोमोसोम पर पाये जाते हैं जिस कारण इसे लिंग - सहलग्न रोग भी कहा जाता है।
          • अगर सामान्य पुरूष की शादी हीमोफिलिया रोग के वाहक स्त्री से होता है तो इन दोनों से उत्पन्न मादा संतान में 50 प्रतिशत हीमोफिलिया रोग के वाहक होंगे तथा नर संतानों में 50 प्रतिशत सामान्य तथा 50 प्रतिशत हीमोफिलिया रोग से ग्रस्त होंगे।
          • अगर किसी सामान्य स्त्री का विवाह हीमोफिलिया पुरूष के साथ होता है तो इनसे उत्पन्न सभी मादा संतान सामान्य परंतु रोगवाहक होगी तथा सभी पुत्र सामान्य होंगे।
          • हीमोफिलिया से मादा संतानें रोगग्रस्त नहीं होती है, वे सिर्फ वाहक होती है।
        2. वर्णांधता ( Colour Blindness) :
          • इस रोग से ग्रस्त रोगी लाल एवं हरे रंग की पहचान नहीं कर सकता है। इस रोग के भी जिम्मेवार जीन X क्रोमोसोम पर होते हैं अतः हीमोफिलिया के तरह वर्णांधता भी एक लिंग सहलग्न रोग है।
          • ज्ञान जब किसी वर्णांध स्त्री (Colour Blind woman) की शादी सामान्य दृष्टिवाले पुरूष के साथ होती है तो इनसे उत्पन्न मादा संतान सामान्य परंतु वर्णांधता का वाहक होगी जबकि सभी नर संतान वर्णांध होंगे।
          • जब सामान्य दृष्टिवाली स्त्री का विवाह वर्णांध पुरूष के साथ होता हैं तो इनसे उत्पन्न सभी नर संतान समान्य तथा सभी मादा संतान वर्णांध के वाहक होंगे।
        3. दात्र कोशिका अरक्तता (Sickle cell anaemia) :
          • यह रोग में मानव रक्त के लाल रुधिरकण (RBC) के आकार में परिवर्तन आ जाता है। RBC का आकार उभयातल (Biconcave) होता है जबकि इस रोग में RBC का आकार हंसिए की तरह (Sickle-shaped) हो जाता है। इस रोग का होने का मुख्य कारण हिमोग्लोबिन अणु के एक अमीनो अम्ल (ग्लूटैमिक अम्ल) का वैलीन द्वारा प्रतिस्थापन होता है।     
          • यह लिंग - सहलग्न नहीं है तथा यह रोग जनकों से संतति में तभी स्थानांतरित होता है जब दोनों जनक (माता-पिता) इस विकार के लिए जिम्मेवार जीन के वाहक होते हैं।
        4. फीनाइलकीटोन्यूरिया (Phenylketonuria) :
          • इस विकार में मनुष्य में फेनिल ऐलेनीन अमीनो अम्ल को टाइरोसीन अमीनो अम्ल में बदलने के लिए आवश्यक एंजाइम की कमी होती है, जिसके कारण फेनिल ऐलेनीन इकट्ठा हो जाता है तथा इसके एकत्रीकरण से मानसिक दुर्बलता आ जाती है।
        5. थैलेसीमिया (Thalassaemia) :
          • थैलेसीमिया रोग एक तरह का रक्त विकार है। इस रोग में मनुष्य के शरीर में RBC ( लाल रक्त कण ) का उत्पादन सही तरीके से नहीं हो पाता है और इन कोशिका की आयु भी कम होती है।
          • थैलेसीमिया जन्म से ही बच्चों को अपनी गिरफ्त में ले लेता है। यह रोग दो प्रकार का होता है माइनर और मेजर । जिन बच्चों में माइनर थैलेसीमिया होता है वे लगभग स्वस्थ जीवन जी लेते हैं लेकिन मेजर थैलेसीमिया वाले बच्चों में लगभग हर महीने 1 यूनिट खून चढ़ानी पड़ती है फिर भी वह सामान्य जीवन नहीं जी पाता है।
    2. क्रोमोसोमीय विकार ( Chromosomal Disorders) :
      • मानव शरीर में पाये जाने वाले 23 जोड़े क्रोमोसोम की संख्या या संरचना में किसी भी प्रकार का परिवर्नन से उत्पन्न विकार क्रोमोसोमीय विकार कहलाते हैं। प्रमुख क्रोमोसोमीय विकार निम्न है -
        1. टर्नर सिंड्रोम (Turner's Syndrome) :
          • जब मनुष्य में द्विगुणीत क्रोमोसोम में से एक ही कमी हो जाती है तब यह सिंड्रोम उत्पन्न होता है। अर्थात् इस सिंड्रोम में क्रोमोसोम की संख्या 45 होती है।
          • यह सिंड्रोम महिलाओं में पाया जाता है। ऐसी महिलाओं के अंडाशय अपरिपक्व होते हैं तथा उनमें बच्चे पैदा करने की क्षमता नहीं होती है।
          • इस सिंड्रोम को मोनोसोफी (2n - 1 ) भी कहा जाता है।
        2. डाउन्स सिंड्रोम (Down's Syndrome) :
          • इस सिंड्रोम में 21वॉ जोड़ा क्रोमोसोम में 1 की वृद्धि होती है जिससे गुणसूत्र की संख्या 47 जाता है। इस सिंड्रोम में ग्रसित रोगी का कद छोटा, सिर गोल, जीभ मोटा तथा मुँह आंशिक रूप से खुला रहता है। रोगी मंदबुद्धि होते हैं तथा श्वास - संबंधि रोग से जल्द प्रभावित हो जाते हैं। 
          • इस रोग की खोज 1866 में लैंगडन डाउन ने किया था जिसके कारण इस रोग का नाम डाउन्स सिंड्रोम पड़ा। इस रोग से ग्रसित बच्चे मंगोलियन के तरह दिखते हैं जिस कारण इस रोग को मंगोलिज्म भी कहा जाता है।
          • डाउन्स सिंड्रोम को ट्राइसोमी (2n + 1) भी कहा जाता है।
        3. क्लाइनफेल्टर्स सिंड्रोम (Klinefelter's Syndrome) :
          • इस सिंड्रोम में भी गुणसूत्र की संख्या में एक की वृद्धि हो जाती है परंतु इसमें लिंग क्रोमोसोम में वृद्धि होती है। यह सिंड्रोम पुरूष में होता है जिसमें एक अतिरिक्त X क्रोमोसोम की वृद्धि हो जाती है। इस तरह इस सिंड्रोम से ग्रसित पुरूष की अनुवंशिक संरचना 44 + XXY होता है।
          • इस सिंड्रोम से ग्रसित जैसे लक्षण आ जाते हैं तथा उनमें स्तन (Mammary gland) का भी विकास हो जाता है। ऐसे पुरूष में शुक्राणु (sperm) बहुत कम बनते हैं अथवा नहीं बनते हैं।
          • यह सिंड्रोम ट्राइसेमी (2n + 1)

अभ्यास प्रश्न

1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये-
1. क्रोमोसोम शब्द का उपयोग सर्वप्रथम वालडेयर ने किया था।
2. जीन शब्द का उपयोग सर्वप्रथम जोहान्सन के द्वारा किया गया।
3. अनुवंशिकी (Genetics) शब्द डब्ल्यू. एस. सटन के द्वारा दिया गया।
उपर्युक्त में कौन - सा /से कथन सत्य है / हैं ?
(a) केवल 1
(b) 1 और 2
(c) केवल 3
(d) 1 और 3
2. निम्नलिखित में किस प्रकार के गुणसूत्र की आकृति अंग्रेजी वर्णमाला के V अक्षर के समान होता है ?
(a) Acrocentric 
(b) Submetacentric
(c) Metacentric
(d) Telocentrict
3. निम्नलिखित में कौन-सा कथन गुणसूत्र के संबंध में सही नहीं है ?
(a) गुणसूत्र का निर्माण कोशिका विभाजन के समय केंद्रक में स्थित क्रोमोटीन जालिका द्वारा होता है।
(b) पादप कोशिका का गुणसूत्र जंतु कोशिका से ज्यादा बड़ा होता है।
(c) किसी भी जाति में गुणसूत्र की संख्या निश्चित होती है
(d) किसी भी जीव में गुणसूत्र की संख्या हमेशा एक से अधिक होता है।
4. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
1. गुणसूत्र के दोनों सिर कभी भी आपस में नहीं मिल सकते हैं।
2. गुणसूत्र कारण वश अगर टूट जाए तो वह पुनः जुट जाता है।
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 तथा 2 दोनों
(d) न तो 1 न ही 2
5. गुणसूत्र के किस हिस्से में सेंट्रोमियर स्थित रहता है ?
(a) प्राथमिक संकुंचन
(b) द्वितीयक संकुचन I
(c) द्वितीयक संकुंचन II
(d) इनमें से सभी 
6. गुणसूत्र के दोनों अंतिम सिरे को क्या कहते है ?
(a) सैटेलाइट
(b) टीलोमियर
(c) क्रोमैटीड
(d) क्रोमोमियर
7. निम्नलिखित में किस कोशिका में अगुणित गुणसूत्र (Haploid Chromosome) पाये जाते है ?
(a) कायिक कोशिका
(b) जनन कोशिका
(c) मृत कोशिका
(d) इनमें से कोई नहीं
8. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजए-
1. प्रोकैरोयोटिक कोशिका में गुणसूत्र की संख्या 1 होती है।
2. यूकैरोयोटिक कोशिका में गुणसूत्र की संख्या 1 से अधिक होती है।
उपर्युक्त में कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं ?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 तथा 2 दोनों
(d) न तो 1 न ही 2
9. निम्मेंनलिखित में कौन-सा कथन सत्य है ?
(a) किसी भी जाति में पाये जाने वाले सभी गुणसूत्र आकार में समान होते है।
(b) किसी भी जाति में पाये जाने वाले प्रत्येक गुणसूत्र पर जीनों की संख्या समान होती है।
(c) मेंडल जब अपना प्रयोग कर रहे थे तब गुणसूत्र की खोज नहीं हुई थी ।
(d) गुणसूत्र केवल जनन कोशिका में पाया जाता है, कायिक कोशिका में इसका अभाव रहता है।
10. किसी भी प्राणी के गुणसूत्र के एक सेट में पाये जाने वाले जीनों के समूह को क्या कहा जाता है ?
(a) जीनोम
(b) जीन प्ररूप
(c) संलग्न समूह
(d) जीनी - संरचना
11. सर्वप्रथम किस वैज्ञानिक ने न्यूक्लिक अम्ल को केंद्रक से अलग कर उसका नाम न्यूक्लीन रखा ?
(a) एल्फ्रेड कुन
(b) एडोल्फ बूटेनांड
(c) गाइडो पोपटेकोर्वो
(d) जॉन फ्रेडरिक मिशर
12. निम्नलिखित में कौन प्यूरीन नाइट्रोजन बेस नही है ?
(a) एडीनीन
(b) गुएनीन
(c) साइटोसीन
(d) इनमें से सभी
13. निम्नलिखित में कौन पिरिमिडीन नाइट्रोजन बेस है ?
(a) थाइमीन
(b) साइटोसीन
(c) यूरेसील
(d) इनमें से सभी
14. अनुवंशिक विभिन्नता उत्पन्न होने के क्या कारण हैं ?
(a) क्रोमोसोम पर स्थित जीन के व्यवस्था में परिवर्तन
(b) DNA के निर्माण में संलग्न नाइट्रोजन क्षार के अनुक्रम में परिवर्तन
(c) a तथा b दोनों
(d) न तो a न ही b
15. मटर के पौधों के काशिका में गुणसूत्र की कुल संख्या कितनी होती है ?
(a) 12 
(b) 14 
(c) 18
(d) 32
16. निम्नलिखित में किसे अनुवंशिक पदार्थ कहा जाता है ?
(a) क्रोमोसोम
(b) जीन
(c) DNA
(d) क्रोमोटीनजालिका
17. DNA को अनुवंशिक पदार्थ इसलिये कहा जाता है कि-
(a) यह अपना प्रतिकृति बनाने में सक्षम है
(b) इसकी रचना तथा रसायनिक संगठन स्थिर बना रहता है।
(c) इसमें उत्परिवर्तन की सम्भावना बनी रहती है।
(d) इनमें से सभी 
18. जलवायु एवं वातावरण के प्रभाव से उत्पन्न होने वाले विभिन्नता को क्या कहते है ?
(a) जननिक विभिन्नता
(b) अनुवंशिक विभिन्नता
(c) कायिक विभिन्नता
(d) इनमें से कोई नहीं
19. कोशिका में किस प्रकार के RNA की संख्या सर्वाधिक होती है ?
(a) m RNA
(b) t RNA
(c) r RNA
(d) इनमें से कोई नहीं
20. निम्नलिखित में किसे अनुवंशिक इकाई कहा जाता है ?
(a) DNA 
(b) जीन
(c) क्रोमोसोम
(d) क्रोमेटीन जालिका
21. mRNA का निर्माण कहाँ होता है ?
(a) कोशिका द्रव्य में
(b) राइबोसोम में
(c) केंद्रक में
(d) माइट्रोकॉण्ड्रिया में
22. प्रोटीन संश्लेषण में एमीनो अम्ल को सक्रिय करने में किसकी आवश्यकता होती है ?
(a) AMP 
(b) ADP
(c) GTP
(d) ATP
23. एक जीन एक इंजाइम सिद्धान्त किसने दिया है ?
(a) एवेरी एवं मैककार्थी 
(b) बीडल एवं टैटम
(c) टेमिन एवं वैल्टिमोर
(d) मेसेल्सन एवं स्टॉल
24. सर्वप्रथम किसके प्रयोग से यह प्रमाणित हुआ कि जीन गुणसूत्र के ही अंश है ?
(a) टी. एच. बोवेरी तथा डब्ल्यू. एस. सटन
(b) जेम्स वाटसन तथा फ्रांसिस क्रिक
(c) एफ. जैकब तथा जे. मोनोद
(d) एस. बेंजर तथा जोहान्सन
25. जो जीन अपना स्थान बदलते रहते है उसे क्या कहते है ?
(a) ऑपरेटर
(b) रचनात्मक जीन
(c) ट्रांसपोसोन्स जीन
(d) नियंत्रक जीन
26. विभिन्न प्रकार के RNA से प्रोटीन संश्लेषण की क्रिया क्या कहलाता है ?
(a) ट्रांसलोकेशन
(b) ट्रांसक्रिप्सन
(c) ट्रांसफॉरमेशन
(d) ट्रांसलेशन
27. DNA से mRNA बनने की क्रिया को क्या कहा जाता है?
(a) ट्रांसडक्शन
(b) रूपांतरण
(c) ट्रांसलेशन
(d) ट्रांसक्रिप्सन
28. निम्नलिखित में कौन-सा कथन सही है ?
(a) जीवों में वंशानुगत गुणो का निर्धारक जीन है।
(b) जीन के माध्यम से ही विभिन्नताएँ एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में संचरित होता है ।
(c) जीन का द्विगुणन (Duplication of gene) ही विभिन्नता का कारण बनता है।
(d) इनमें सभी
29. जीन को सिस्ट्रॉन, रिकॉन तथा म्यूटॉन के रूप में किसने परिभाषित किया है।
(a) ब्रिटेन एवं डेविडसन ने
(b) बेंजर ने
(c) जैकत्र एवं मोनोद ने
(d) वाटसन एवं क्रिक ने
30. मेंडल के प्रयोगों में विकसित लक्षणों की जोड़ी को क्या कहते है ?
(a) फीनोटाइप
(b) जीनोटाइप
(c) जीन
(d) ऐलील
31. मेंडल ने अपने प्रयोग में मटर के कितने जोड़े विपरीत लक्षणों का चयन किया था ?
(a) 5   
(b) 6
(c) 7 
(d) 8
32. मेंडल के अनुवंशिकता नियम को किस वैज्ञानिक ने मान्यता दिलाई ?
(a) ह्यूगो डि ब्रीज
(b) कार्ल कोरेन्स
(c) इरिक वान शेरमाक
(d) इनमें से सभी
33. मेंडल ने एक शुद्ध बैगनी फूल वाले मटर के पौधो को जब सफेद फूल वाले पौधा से क्रॉस करवाया तो पहली पीढ़ी में किस प्रकार के पौधे मिले?
(a) सभी सफेद फूल वाले पौधे
(b) 75% बैंगनी तथा 25% सफेद फूल वाले पौधे
(c) सभी बैंगनी फूल वाले पौधे
(d) 50% बैंगनी एवं 50% सफेद फूल वाले पौधे 
34. मेंडल ने अपने प्रयोग में मटर के पौधे का चयन क्यो किया था ?
(a) मटर के पौधे में अनेक प्रकार के विपरीत गुण होते है।
(b) मटर के पौधे छोटे होते है जिनसे उस पर प्रयोग करना आसान है।
(c) मटर का जीवन चक्र कुछ ही महीनों में पूरा हो जाता है। 
(d) इनमें से सभी
35. मेंडल को अपने प्रयोग में सफलता मिलने के क्या कारण थे ? 
(a) उन्होने मटर के पौधे का चयन किया।
(b) मेंडल ने अपने अध्ययन के लिये एक समय में केवल एक ही गुण को लिया
(c) मेंडल ने अपने अध्ययन में सांख्यिकी का प्रयोग किया
(d) इनमें से सभी
36. F1 पीढ़ी के संकर पौधों को जब समयुग्मजी अप्रभावी जनक से क्रॉस कराया जाता है तो इसे क्या कहते है ?
(a) बैक क्रॉस
(b) टेस्ट क्रॉस
(c) एकसंकर क्रॉस
(d) द्विसंकर क्रॉस
37. निम्नलिखित ऐलील के जोड़ो में कौन समयुग्मजी (Homozygous) है ?
(a) TT 
(b) tt
(c) A तथा B दोनों
(d) Tt
38. मेंडल का कौन सा नियम एकसंकर क्रॉस पर आधारित नही है ?
(a) इकाई लक्षण का नियम
(b) प्रभाविता का नियम
(c) पृथक्करण का नियम
(d) स्वतंत्र विन्यास का नियम
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